20/06/2025
कहानी का नाम: “पिता की छाया – गुड़िया की कहानी”
धूल से सनी गलियों वाला वह गाँव, जहाँ ज़िंदगी हर रोज़ एक नई परीक्षा लेती थी। वहीं एक टूटी-सी झोपड़ी में रहते थे – रामधन और उसकी नन्हीं सी बेटी गुड़िया। गुड़िया की माँ उसे जन्म देते ही चल बसी थी। तब से उसके लिए उसका बाप ही सब कुछ था – माँ, पिता, दोस्त और रक्षक।
रामधन गरीब था, लेकिन उसका दिल बहुत बड़ा था। वह मेहनत मज़दूरी करता और गुड़िया को गोदी में लेकर अपने हाथों से खाना खिलाता, बालों में तेल लगाता और रात को कहानी सुनाकर सुलाता।
🌑 एक अंधेरी रात...
जब गुड़िया सात साल की थी, गाँव में एक नशेड़ी गिरोह सक्रिय हो गया। कई बच्चियाँ गायब होने लगीं। एक दिन वही दरिंदे रामधन की झोपड़ी के पास से गुज़रे। उन्होंने गुड़िया को देखा। मासूम चेहरा, भूरे बाल, बड़ी-बड़ी आँखें।
उस रात वे दरिंदे झोपड़ी में घुस आए।
रामधन समझ गया। वो डर के साये में कांपता हुआ गुड़िया को अपनी छाती से लगाकर खड़ा हो गया।
“इस बच्ची तक पहुँचने से पहले तुम्हें मेरी लाश से गुज़रना होगा।”
उसकी आंखों में आँसू नहीं, आग थी।
वो दरिंदे हँसने लगे, लेकिन तभी पूरे गाँव के कुत्ते भौंकने लगे। शेरू (गाँव का वफादार कुत्ता) ने खतरा भांप लिया और पूरे गाँव को जगा दिया।
गाँव वाले लाठियाँ लेकर पहुँचे। दरिंदे भाग निकले।
रामधन ने उस रात बेटी को सीने से लगाकर कहा,
“तेरी हिफ़ाज़त के लिए मेरी जान भी चली जाए, तो ग़म नहीं।”
🌱 गुड़िया बड़ी हुई...
मुश्किलें कभी कम नहीं हुईं — कभी भूख, कभी अपमान, कभी ठोकरें। लेकिन हर बार रामधन ने उसे हौसला दिया।
गुड़िया ने पढ़ाई नहीं छोड़ी। वह खेतों में काम करती, बर्तन माँजती, और रात को ट्यूशन जाती।
रामधन की तबीयत अब बिगड़ने लगी थी, लेकिन गुड़िया अब मजबूत हो चुकी थी।
वह सरकारी परीक्षा में पास हुई और पुलिस अफसर बनी।
जिस दिन उसने वर्दी पहनी, वो सीधे अपने पिता के पैरों में झुकी और बोली —
“अब कोई दरिंदा किसी मासूम को छू नहीं पाएगा, बाबू जी।”
✨ अंतिम दृश्य...
रामधन एक टूटी खाट पर लेटे-लेटे मुस्करा रहा था।
उसकी आँखें कह रही थीं —
“अब मैं चैन से मर सकता हूँ, मेरी गुड़िया अब कमजोर नहीं रही।”
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