13/07/2025
छली प्रायः स्वयं छला जाता है
एक समय की बात है, किसी गाँव में एक कुत्ता और एक मुर्गा रहते थे। दोनों में गहरी मित्रता थी। वे साथ-साथ घूमते, खाते-पीते और समय बिताते थे। एक दिन वे दोनों टहलते-टहलते जंगल की ओर निकल पड़े। जंगल की हरियाली, शांति और ठंडी हवा में दोनों ऐसे मग्न हुए कि समय का ध्यान ही नहीं रहा।
गपशप करते-करते कब दोपहर से शाम और शाम से रात हो गई, उन्हें पता ही नहीं चला। जब अंधेरा घिरने लगा, तो मुर्गा घबरा गया। उसने चिंतित होकर कहा, “अब क्या किया जाए कुत्ते भाई? सूरज डूब चुका है, चाँद निकल आया है और रात हो गई है। अब तो घर पहुँचना मुश्किल है।”
कुत्ता, जो स्वभाव से थोड़ा लापरवाह और बेफिक्र था, बोला, “अरे इसमें घबराने की क्या बात है? देखो, वह पेड़ कितना मजबूत और ऊँचा है। तुम उसकी डाल पर बैठ जाओ और आराम से रात बिताओ। मैं पेड़ के नीचे उसकी जड़ से सटकर सो जाता हूँ। सुबह होते ही हम फिर साथ घर चल देंगे।”
मुर्गे को यह बात ठीक लगी। वह फुर्र से उड़कर पेड़ की ऊँची शाखा पर बैठ गया, और कुत्ता पेड़ के नीचे जमीन पर लेटकर खर्राटे मारने लगा।
भोर होने को थी। रोज़ की तरह मुर्गा चहचहाना शुरू कर चुका था—"कुकड़ू-कूं! कुकड़ू-कूं!" उसकी तेज़ आवाज़ पूरे जंगल में गूँज उठी।
मुर्गे की यह कूक सुनकर एक चालाक सियार, जो पास ही कहीं छिपा हुआ था, लपकता हुआ वहाँ आ पहुँचा। उसने ऊपर देखा तो देखा कि एक ताज़ा और स्वादिष्ट मुर्गा डाल पर बैठा है। उसके मुँह में पानी भर आया।
सियार ने सोचा, "वाह! आज की सुबह तो कितनी शुभ है। थोड़ा मीठा बोलूँगा और यह मुर्गा स्वयं मेरे पास आ जाएगा। बिना मेहनत के आज का भोजन बन जाएगा।"
सियार ने ऊपर देखकर मुस्कराते हुए कहा, “अरे मुर्गे भाई! क्या मीठा गाते हो तुम। तुम्हारी आवाज़ ने तो मन प्रसन्न कर दिया। मुझे भी गाने का बड़ा शौक है। सोच रहा हूँ, क्यों न हम दोनों मिलकर कुछ सुर लगाएँ?”
मुर्गा सियार की मक्कारी को समझ गया। वह चतुर था। उसने सोच लिया कि अब इस चालाक सियार को सबक सिखाना चाहिए। मुस्कराते हुए मुर्गा बोला, “वाह सियार भाई! आपकी बात बहुत अच्छी लगी। मैं भी चाहता हूँ कि हम दोनों मिलकर गाएँ। लेकिन मेरे गाने में मज़ा तब ही आएगा जब मेरे साथी कुत्ते की ताल भी साथ हो। वह पेड़ के नीचे सो रहा है। आप उसे भी जगा दो, वह ढोल बजाएगा, और हम दोनों मिलकर गाएँगे।”
सियार यह सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुआ। उसे यह उम्मीद न थी कि काम इतना आसान हो जाएगा। वह तुरंत पेड़ के दूसरी ओर गया, जहाँ कुत्ता सो रहा था। लेकिन जैसे ही उसने कुत्ते को देखा, उसके होश उड़ गए। कुत्ता तो पहले से ही सजग था। सियार को देखते ही उसने छलांग लगाई और उस पर टूट पड़ा। सियार किसी तरह जान बचाकर भागा, लेकिन कुत्ते ने उसका कान काट लिया और वह बुरी तरह घायल हो गया।
यह दृश्य देखकर मुर्गा हँस पड़ा और बोला, “देखा सियार भाई! जो दूसरों को छलने जाता है, वह स्वयं ही छला जाता है।"
नैतिक शिक्षा:
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि दूसरों को धोखा देने वाले को एक न एक दिन उसका फल अवश्य मिलता है। चतुराई में अगर नीयत गलत हो, तो अंत में नुकसान उसी का होता है। इसलिए सदैव सच्चाई और ईमानदारी का मार्ग अपनाना चाहिए।