Katha kahani-Vichar

Katha kahani-Vichar मन राम का मंदिर हैं, यहाँ उसे विराजे रखना,
पाप का कोई भाग नहीं होगा, बस राम को थामे रखना।

पूरी  #दुनिया के लोग मिस्र की राजाओं के मृत शरीर (ममी)  संरक्षित शरीर को देख हैरान हैं. बहुत कम लोगों को इस बात की जानका...
18/07/2025

पूरी #दुनिया के लोग मिस्र की राजाओं के मृत शरीर (ममी) संरक्षित शरीर को देख हैरान हैं. बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी है कि मिस्र के राजाओं के मृत शरीर, जिस वस्त्र में लपेटे जाते थे। मसलिन भारतवर्ष से ही आयातित थे। तमिलनाडु कज जिला तिरुचिरापल्ली के श्रीरंगम स्थित " #श्रीरंगनाथस्वामी_मंदिर”, जिसे भारत के सबसे बड़े मंदिर-परिसर का गौरव प्राप्त है, में #विशिष्टाद्वैतदर्शन के महान आचार्य और श्रीवैष्णव परंपरा के अग्रणी संत स्वामी रामानुजाचार्य (1017-1137) का #पद्मासनस्थ भौतिक शरीर विगत 878 सालों से संरक्षित रखा जा रहा है और यहां देखा जा सकता है।

श्रीरंगनाथस्वामी मंदिर के पांचवें परिक्रमा-पथ पर स्थित “श्री रामानुज मंदिर” के दक्षिण-पश्चिम कोने पर यह भौतिक शरीर संरक्षित है। रामानुजाचार्य 120 वर्ष तक जीवित रहे थे। 1137 में उन्होंने पद्मासन अवस्था में ही समाधि ले ली थी। स्वयं श्रीरंगनाथस्वामी के आदेश से उसी अवस्था में रामानुजाचार्य के शिष्यों ने उनके भौतिक शरीर को संरक्षित रख लिया। इस संरक्षित शरीर में आँखें, नाखून आदि स्पष्ट दिखाई देते हैं। सड़न से बचाने के लिए इस शरीर पर रोजाना किसी प्रकार का अभिषेक नहीं किया जाता।

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14/07/2025

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छली प्रायः स्वयं छला जाता है एक समय की बात है, किसी गाँव में एक कुत्ता और एक मुर्गा रहते थे। दोनों में गहरी मित्रता थी। ...
13/07/2025

छली प्रायः स्वयं छला जाता है

एक समय की बात है, किसी गाँव में एक कुत्ता और एक मुर्गा रहते थे। दोनों में गहरी मित्रता थी। वे साथ-साथ घूमते, खाते-पीते और समय बिताते थे। एक दिन वे दोनों टहलते-टहलते जंगल की ओर निकल पड़े। जंगल की हरियाली, शांति और ठंडी हवा में दोनों ऐसे मग्न हुए कि समय का ध्यान ही नहीं रहा।

गपशप करते-करते कब दोपहर से शाम और शाम से रात हो गई, उन्हें पता ही नहीं चला। जब अंधेरा घिरने लगा, तो मुर्गा घबरा गया। उसने चिंतित होकर कहा, “अब क्या किया जाए कुत्ते भाई? सूरज डूब चुका है, चाँद निकल आया है और रात हो गई है। अब तो घर पहुँचना मुश्किल है।”

कुत्ता, जो स्वभाव से थोड़ा लापरवाह और बेफिक्र था, बोला, “अरे इसमें घबराने की क्या बात है? देखो, वह पेड़ कितना मजबूत और ऊँचा है। तुम उसकी डाल पर बैठ जाओ और आराम से रात बिताओ। मैं पेड़ के नीचे उसकी जड़ से सटकर सो जाता हूँ। सुबह होते ही हम फिर साथ घर चल देंगे।”

मुर्गे को यह बात ठीक लगी। वह फुर्र से उड़कर पेड़ की ऊँची शाखा पर बैठ गया, और कुत्ता पेड़ के नीचे जमीन पर लेटकर खर्राटे मारने लगा।

भोर होने को थी। रोज़ की तरह मुर्गा चहचहाना शुरू कर चुका था—"कुकड़ू-कूं! कुकड़ू-कूं!" उसकी तेज़ आवाज़ पूरे जंगल में गूँज उठी।

मुर्गे की यह कूक सुनकर एक चालाक सियार, जो पास ही कहीं छिपा हुआ था, लपकता हुआ वहाँ आ पहुँचा। उसने ऊपर देखा तो देखा कि एक ताज़ा और स्वादिष्ट मुर्गा डाल पर बैठा है। उसके मुँह में पानी भर आया।

सियार ने सोचा, "वाह! आज की सुबह तो कितनी शुभ है। थोड़ा मीठा बोलूँगा और यह मुर्गा स्वयं मेरे पास आ जाएगा। बिना मेहनत के आज का भोजन बन जाएगा।"

सियार ने ऊपर देखकर मुस्कराते हुए कहा, “अरे मुर्गे भाई! क्या मीठा गाते हो तुम। तुम्हारी आवाज़ ने तो मन प्रसन्न कर दिया। मुझे भी गाने का बड़ा शौक है। सोच रहा हूँ, क्यों न हम दोनों मिलकर कुछ सुर लगाएँ?”

मुर्गा सियार की मक्कारी को समझ गया। वह चतुर था। उसने सोच लिया कि अब इस चालाक सियार को सबक सिखाना चाहिए। मुस्कराते हुए मुर्गा बोला, “वाह सियार भाई! आपकी बात बहुत अच्छी लगी। मैं भी चाहता हूँ कि हम दोनों मिलकर गाएँ। लेकिन मेरे गाने में मज़ा तब ही आएगा जब मेरे साथी कुत्ते की ताल भी साथ हो। वह पेड़ के नीचे सो रहा है। आप उसे भी जगा दो, वह ढोल बजाएगा, और हम दोनों मिलकर गाएँगे।”

सियार यह सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुआ। उसे यह उम्मीद न थी कि काम इतना आसान हो जाएगा। वह तुरंत पेड़ के दूसरी ओर गया, जहाँ कुत्ता सो रहा था। लेकिन जैसे ही उसने कुत्ते को देखा, उसके होश उड़ गए। कुत्ता तो पहले से ही सजग था। सियार को देखते ही उसने छलांग लगाई और उस पर टूट पड़ा। सियार किसी तरह जान बचाकर भागा, लेकिन कुत्ते ने उसका कान काट लिया और वह बुरी तरह घायल हो गया।

यह दृश्य देखकर मुर्गा हँस पड़ा और बोला, “देखा सियार भाई! जो दूसरों को छलने जाता है, वह स्वयं ही छला जाता है।"

नैतिक शिक्षा:
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि दूसरों को धोखा देने वाले को एक न एक दिन उसका फल अवश्य मिलता है। चतुराई में अगर नीयत गलत हो, तो अंत में नुकसान उसी का होता है। इसलिए सदैव सच्चाई और ईमानदारी का मार्ग अपनाना चाहिए।

बारात में कोई बूढ़ा नहीं जाएगा (एक शिक्षाप्रद कहानी)बहुत समय पहले की बात है। एक सुंदर और समृद्ध गांव में एक युवक रहता था...
13/07/2025

बारात में कोई बूढ़ा नहीं जाएगा (एक शिक्षाप्रद कहानी)

बहुत समय पहले की बात है। एक सुंदर और समृद्ध गांव में एक युवक रहता था। वह युवा, सुशील और मेहनती था। जब उसकी उम्र विवाह योग्य हुई, तो उसके माता-पिता ने उसके लिए एक सुंदर और संस्कारी लड़की ढूंढ़ निकाली। लड़की का परिवार भी बहुत प्रतिष्ठित था और विवाह तय हो गया।

सगाई के बाद जब विवाह की तारीख निकली, तो लड़की वालों ने एक अजीब शर्त रख दी। उन्होंने कहा, "हमारी यह सख्त शर्त है कि बारात में कोई भी बूढ़ा व्यक्ति, विशेषकर 60 वर्ष से ऊपर का, नहीं आना चाहिए।"

लड़के वालों को यह शर्त थोड़ी अजीब तो लगी, लेकिन उन्होंने सोचा कि शादी का रिश्ता ना टूटे इसलिए मान लेना ही ठीक होगा। उन्होंने गांव के सभी बड़े-बुज़ुर्गों से हाथ जोड़कर निवेदन किया कि वे बारात में न आएं। लड़के का दादा, जो अपने पोते से अत्यधिक स्नेह करता था, यह बात सुनकर बहुत आहत हुआ। उसे यह स्वीकार नहीं था कि वह अपने पोते की शादी में शामिल न हो।

आखिरकार, उसने चुपचाप बारात के साथ जाने का निर्णय लिया। वह साधारण कपड़े पहनकर, बिना किसी को बताए बैलगाड़ी के पीछे छिप गया।

बारात बड़े धूमधाम से लड़की के गांव पहुँची। स्वागत सत्कार हुआ, ढोल-नगाड़े बजे और रस्में शुरू होने लगीं। तभी लड़की वालों ने एक और शर्त रख दी, जो सबको चौंका देने वाली थी। उन्होंने कहा, "हमारी दूसरी शर्त यह है कि शादी तभी होगी जब आप लोग इस गांव की नदी में दूध बहाएँ।"

यह सुनते ही बारातियों के चेहरे उतर गए। नदी बहुत बड़ी थी और उसमें दूध बहाना तो असंभव जैसा कार्य था। सब हैरान थे कि अब क्या किया जाए? कुछ समय तो सभी लोग चुपचाप सोचते रहे, फिर किसी ने कहा, "शायद हमें यह रिश्ता तोड़ देना चाहिए।"

उसी समय छिपे हुए दादा जी ने यह सब सुना और वह आगे आए। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, "यह तो कोई बड़ी बात नहीं है। लड़की वालों से कहिए कि हम दूध बहाने को तैयार हैं, पहले वे नदी का सारा पानी खाली करवा दें। जब नदी में पानी नहीं रहेगा तभी तो दूध बहाया जा सकेगा।"

लड़के वालों ने दादा जी की बात को दुहराया और लड़की वालों के सामने रख दिया। यह सुनकर लड़की वालों को जैसे झटका लगा। वे समझ गए कि यह उत्तर किसी अनुभवी और बुद्धिमान व्यक्ति का ही हो सकता है। उन्हें अपनी पहली शर्त याद आई और वे शर्मिंदा हो उठे।

लड़की के पिता ने हाथ जोड़कर कहा, "हमें माफ कीजिए। हमसे बहुत बड़ी भूल हो गई। वास्तव में, शादी जैसा बड़ा संस्कार बुजुर्गों के आशीर्वाद और मार्गदर्शन के बिना अधूरा होता है। आपने हमारी आंखें खोल दीं।"

इसके बाद गांव में सभी बुजुर्गों को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया। दादा जी को सबसे आगे बैठाया गया और उनका आदर-सत्कार किया गया। विवाह बड़े ही हर्षोल्लास और धूमधाम के साथ संपन्न हुआ।

सीख:
यह कहानी हमें सिखाती है कि बुजुर्गों के अनुभव और बुद्धिमानी जीवन की बड़ी से बड़ी समस्याओं का हल निकाल सकते हैं। किसी भी कार्य में उनके योगदान को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, विशेषकर विवाह जैसे जीवन के महत्वपूर्ण अवसर पर।

नम्रता, अनुभव और सम्मान – यही है सफल जीवन की कुंजी।

गलत सलाह देने का परिणाम (एक शिक्षाप्रद कहानी)एक गांव में एक किसान रहता था। उसने दो जानवर पाल रखे थे—एक गदहा और एक बकरा। ...
12/07/2025

गलत सलाह देने का परिणाम (एक शिक्षाप्रद कहानी)

एक गांव में एक किसान रहता था। उसने दो जानवर पाल रखे थे—एक गदहा और एक बकरा। गदहा बहुत मेहनती था। वह प्रतिदिन खेतों से लेकर बाजार तक बोझ ढोता था। चाहे तेज धूप हो या मूसलाधार बारिश, गदहा बिना शिकायत किए अपने मालिक का काम करता था।

गदहे की मेहनत देखकर किसान उसे अच्छा चारा, घास और पानी देता था। कभी-कभी वह उसे गुड़ या हरी घास भी खिला देता था। यह देखकर बकरा जल-भुन जाता था। बकरा सोचता, “मैं तो दिन भर खुले में घूमता हूं, खेलता हूं, उछलता हूं, लेकिन मुझे कोई विशेष खाना नहीं मिलता। और यह गदहा जो सारा दिन बोझ ढोता है, उस पर तो मालिक की खास कृपा बरसती है!”

यह सोचते-सोचते बकरा अंदर ही अंदर ईर्ष्या की आग में जलने लगा। वह सोचने लगा कि कैसे गदहे को मालिक की नजर से गिराया जाए ताकि वह खुद गदहे की जगह सम्मान पाए।

एक दिन बकरे ने गदहे से कहा, “भाई! मैं तो मालिक की कृपा पर हँसता हूँ। मुझे तो खुला छोड़ रखा है—जहाँ मन किया, उधर गया; जो मन किया, किया। लेकिन तुम बेकार ही मालिक के लिए जान तोड़ मेहनत करते हो। फिर भी वह तुम्हें पीठ पर बोझ लादकर हर जगह घसीटता है।”

गदहा थोड़ा मायूस होकर बोला, “भाई, मुझे भी बुरा लगता है, पर मैं क्या कर सकता हूँ? मेरा तो यही काम है।”

बकरे ने चालाकी से कहा, “उपाय है! क्यों न तुम एक दिन बीमार होने का बहाना बना लो? किसी गढ़े में गिर पड़ो और फिर आराम से कुछ दिन तक बैठकर खाओ-पीओ। मालिक को तो लगना चाहिए कि तुम अब कमजोर हो गए हो।”

गदहा सीधा-सादा और सरल स्वभाव का था। उसने बकरे की बातों पर विश्वास कर लिया। अगले ही दिन उसने योजना के अनुसार खुद को एक गढ़े में गिरा दिया और जोर-जोर से चिल्लाने लगा।

गिरने से वह सचमुच घायल हो गया। उसके पैरों में मोच आ गई और शरीर पर कई खरोंचें आ गईं। अब वह सच में चलने-फिरने लायक नहीं रहा। किसान को जब पता चला, तो वह घबरा गया। उसने तुरंत पशु-चिकित्सक को बुलाया।

डॉक्टर ने गदहे को देखकर कहा, “गंभीर चोट है। इसे कुछ दिनों तक आराम की जरूरत है। साथ ही इसके घावों पर बकरे की चर्बी से मालिश करनी होगी, तभी यह जल्दी ठीक होगा।”

अब किसान के पास कोई विकल्प नहीं था। उसने जैसे ही बकरे की ओर देखा और छुरी उठाई, बकरे के होश उड़ गए। वह बुरी तरह डर गया और रोते-रोते कहने लगा, “हाय! मैंने तो केवल चालाकी की थी। मैंने तो सोचा था गदहे को मुश्किल में डालकर खुद फायदा उठाऊंगा, पर अब खुद ही फंस गया।”

बकरे की आंखों से आँसू बहने लगे। वह बार-बार पछता रहा था, “हाय! मेरी बुद्धि को आग लग गई थी, जो मैंने ऐसी कुटिल सलाह दी। अब उसी का परिणाम मुझे भोगना पड़ रहा है।”

पर अब पछताने का कोई लाभ नहीं था। किसान ने बकरे को काट दिया और उसकी चर्बी से गदहे के घावों की मरहम-पट्टी शुरू कर दी।

शिक्षा:
जो दूसरों के लिए चाल चलता है, वह स्वयं ही फंस जाता है। ईर्ष्या और छल का परिणाम हमेशा बुरा ही होता है। दूसरों की सफलता या सम्मान देखकर जलना नहीं चाहिए, बल्कि खुद मेहनत करके आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।

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