
12/08/2025
सियासी अड्डा की कलम से उन ज़मीरों के नाम
दोस्तों अगर मेरी बात से आप सहमत हैं तो कमेंट में जरूर बताएं अपनी जिंदा दिली का सबूत दे कर
कुछ लफ़्ज़ आईना होते हैं पढ़ो तो चेहरा जलता है
जब गौ के नाम पर हमारे नौजवानों का ख़ून बहाया गया
उनकी माँओं के आँचल सूने हो गए
तब तुम किस माले-मुक़ाम में लुत्फ़ उठा रहे थे?
जब मदरसों पर बुलडोज़र चला क़ुरआन के पन्ने धूल में बिखरे
तब तुम्हारी गैरत का कफ़न कहाँ टँगा था?
जब मस्जिदों के मीनारों पर पत्थर बरसाए गए
अज़ान की आवाज़ दबाने की बातें हुईं
तब तुम्हारा इंसाफ़ किस ताक़तवर के दरबार में गिरवी था?
जब NRC के नाम पर हमारी बुज़ुर्ग माताओं को कतारों में खड़ा किया गया
और काग़ज़ के टुकड़ों से उनकी पहचान छीनी गई
तब तुम्हारी क़लम और कैमरे क्यों बंद पड़े थे?
जब सड़क पर जय श्री राम के नारे में इंसानियत का गला घोंटा गया
और मुसलमान को अपने ही वजूद का सबूत देना पड़ा
तब तुम्हारी आवाज़ क्यों दब गई थी?
जब हमारे ठेलों दुकानों पर नाम की पर्ची चिपकाकर रोज़ी-रोटी का गला घोंटा गया
तब तुम्हारी सियासी रोटियाँ सेंकने का मौसम क्यों नहीं आया था?
जब बेकसूर मुसलमान जेलों में सड़ते रहे माएँ बेटों की रिहाई के लिए दर-दर भटकती रहीं
तब तुम्हारा ज़मीर किस चैन की नींद सो रहा था?
और आज
जब वोट चोरी का मुद्दा आया
तो तुम ऐसे सड़कों पर उतर आए जैसे हक़ और इंसाफ़ के असल वारिस तुम ही हो
सुन लो
ये तुम्हारी जाग नहीं ये सिर्फ़ सियासी नौटंकी है
क्योंकि असली जाग वो होती है
जब ज़ुल्म किसी और पर हो और तुम उसके साथ खड़े हो
भले ही तुम्हारा वोट तुम्हारी कुर्सी तुम्हारा फ़ायदा उससे न जुड़ा हो
सियासी अड्डा का पैग़ाम
ज़ुल्म मज़हब देखकर नहीं आता इंसानियत को रौंदकर आता है
और जो किसी के ज़ुल्म पर चुप रहा
वो कल अपने ज़ुल्म पर भी आवाज़ उठाने का हक़ खो देता है