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The Insight Story with Ansar ब्रेकिंग न्यूज़ की दुनिया, घटिया पत्रकारिता की ख़बरों से दूर विभिन्न मुद्दों की इनसाइट स्टोरी देखें

07/04/2024

उनकी इच्छा और उम्मीद के विपरीत 62% लोगों ने राहुल गांधी को PM पद के लिए पहली पसंद बताया है। इसके साथ ही भाजपा नेताओं के मुताबिक विश्व में डंका बजाने वाले मोदी जी को केवल 38% लोगों ने प्रधानमंत्री के तौर पर पसंद किया है।

इन सर्वे से एक बात तो साफ़ हो गयी है कि मौजूदा सत्ताधीश मोदी सरकार के खिलाफ आम जनता में बेहद रोष है। लोग महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार आदि की वजह से बुरी तरह से त्रस्त हो चुके हैं। भाजपा की सम्प्रदायक राजनीति से भी लोग बुरी तरह ऊब चुके है और समाज में एक सौहार्द का माहौल चाहते है जिसको भाजपा नेता आये दिन नष्ट करने के प्रयास में लगे रहते है।

हाल ही में देखने को मिला है कि भाजपा के कई बड़े दिग्गज नेता, सांसद और विधायक भाजपा को अलविदा कह कर विपक्षी पार्टियों को ज्वाइन कर रहे हैं। कहीं ये भाजपा की डूबती हुयी नांव की निशानी तो नहीं। जो भाजपा अपनी हिन्दू मुस्लिम वाली राजनीति से इतनी आश्वस्त थी कि उसको तीसरी बार सरकार बनाने से कोई नहीं रोक सकता है वो अचानक से बैकफुट पर दिखाई दे रही है। हर छोटी बड़ी पार्टी को वो किसी भी तरीके से अपने गठबंधन में शामिल कर लेना चाहती है।

लोकसभा चुनाव 2024 का रण कौन जीतेगा और किसकी सरकार बनेगी ये तो आने वाला समय ही बताएगा। इस मुद्दे पर आपकी क्या राय है हमारे साथ जरूर साझा करें!

03/04/2024

अगर मुख़्तार अंसारी के 65 केस की वजह से वो माफिया हैं तो फिर 106 मुकदमों वाले बनारस के बृजेश सिंह के बारे में आप क्या कहेंगे। कुंडा के राजा भैया जिन पर 31 मुक़दमे है उन को माफिया बोलने में मीडिया कांपने क्यों लगती है। जौनपुर के माफिया डॉन धन्नजय सिंह जिस पर 46 मुक़दमे दर्ज है उसको माननीय क्यों कहा जाता है।

कहीं ऐसा तो नहीं है कि माफिया कहा जाना भी धर्म और राजनीति के अनुसार तय होता है। भाजपा समर्थक ये बताने का कष्ट करेंगे कि 84 मुकदमों वाले गोंडा के बृजभूषण सिंह के बारे में आपका क्या ख्याल है। भाजपाई होने की वजह से उनको माफिया बोलने में छूट मिली हुयी है क्या! सुल्तानपुर के सोनू सिंह और मोनू सिंह जिन पर 100 से ज्यादा मुकदमा दर्ज है उनको माफिया बोलने में जुबान क्यों बंद हो जाती है। महोबा के 88 मुकदमों वाले बादशाह सिंह और 42 मुकदमों वाले चुन्नू सिंह को माफिया कहा जायेगा या नहीं!

शायद राइट विंग की नजर में उन्नाव का भाजपाई नेता कुलदीप सिंह सेंगर तो संत आदमी होगा। क्या बनारस वाला चुलबुल सिंह जिस पर 53 मुक़दमे चल रहे है उसको माफिया बोलने पर पाबन्दी है। ये तो कुछ मिसालें है ऐसी सैंकड़ों मिसालें मिल जायेंगी जिस में जब भ्रष्टाचारी और माफिया भाजपा की वाशिंग मशीन को ज्वाइन कर लेता है तो उसके सारे काले कारनामे माफ़ हो जाते हैं।

तो यह जो माफिया के साथ मुस्लिम नेता का टैग है यह राजनीतिक हितों को साधने का जरिया है और कुछ नहीं। मऊ गाजीपुर की गरीब जनता के लिए मुख्तार अंसारी मसीहा ही थे अब दिल्ली और लखनऊ में बैठा मीडिया कुछ भी कहे क्या फर्क पड़ता है!

23/03/2024

ये फैसला अंशुमान सिंह राठौड़ द्वारा दायर एक रिट याचिका पर दिया गया है जिन्होंने यूपी मदरसा बोर्ड की शक्तियों को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है, जो मूल संरचना का एक हिस्सा है। यहां एक बात ध्यान रखिये कि राठौड़ की तरफ से इस केस को लड़ने वाले वकील आदित्य कुमार तिवारी और गुलाम मुहम्मद कामिल थे। वहीं यूनियन ऑफ़ इंडिया की तरफ से वकीलों की एक पूरी टीम अपना पक्ष रख रही थी।

अब देखने वाली बात ये है कि योगी सरकार के तहत चलने वाले यूपी मदरसा बोर्ड के चेयरमैन डॉक्टर इफ्तिखार अहमद जावेद का इस पूरे फैसले पर कैसा रवैया रहता है। क्या यूपी की मौजूदा सरकार इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगी अथवा फ़ौरन इस फैसले को लागू करते हुए सभी मदरसों को तत्काल बंद कर देगी।

अब एक सवाल जज साहब से भी है आप किस सेकुलरिज़्म की बात कर रहे हो जिसको सत्ताधारी भाजपा सरकार ने अपने पैरों के तले रौंद दिया है। उसी सेकुलरिज़्म की दुहाई दे रहे हो जिसे मौजूदा समय में "मोदी का परिवार" हैंडिंग वाले लोग आये दिन ख़त्म करने की कसमें खाते हुए नज़र आते हैं।

आप सभी को याद होगा अभी कुछ दिन पहले ही कोलकाता हाईकोर्ट के जज अभिजीत गंगोपाध्याय ने बाकायदा भाजपा ज्वाइन की थी। इससे पहले पूर्व CJI रंजन गगोई भी भाजपा की तरफ से राज्यसभा जा चुके हैं। मौजूदा राजनीतिक हालात को देखते हुए इस प्रकार के मुस्लिम विरोधी फैसलों पर सवाल उठना लाजमी हो जाता है।

"देने वाला हाथ लेने वाले हाथ से बेहतर है"
22/08/2023

"देने वाला हाथ लेने वाले हाथ से बेहतर है"

18/08/2023

मुसलमानों का राजनीतिक पतन ???

अगर मैं आपसे ये सवाल पूछो कि कोई समाज अगर पिछड़ा हो और लगातार हाशिये पर धकेला जा रहा हो तो उसके उत्थान के लिए क्या किया जायेगा?

इसी सवाल को थोड़ा और बड़ा करते है कि अगर कोई समुदाय शिक्षा, कारोबार और राजनीती हर जगह पिछड़ेपन की एक मिसाल हो तो उसको मुख्यधारा में वापस कैसे लाया जायेगा?

मुझे उस समुदाय का नाम बताने की जरूरत नहीं है आप सभी बखूबी वाकिफ हैं। मुसलमान समुदाय जिसको सच्चर कमेटी, रंगनाथ मिश्र आयोग, मंडल कमीशन सभी ने एक स्वर में भारत का सबसे पिछड़ा हुआ समुदाय माना है। इनके मुताबिक मुसलमानों की हालत तो दलितों से भी बदतर है।

शायद आप लोग भी सोचते होंगे आखिर मुसलमान इस देश में इतना पिछड़ा कैसे हो गया है तो ये जान लीजिये कि मुसलमान पीछे हुआ नहीं है बल्कि पूरे सामाजिक और सरकारी तंत्र ने उसे पीछे धकेला है और इतना पीछे धकेला है कि वो शायद पाताल में जा चुका है।

80 के दौर तक कभी कांग्रेस मुसलमानों को मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री की हैसियत देती थी मगर मौजूदा समय में मुस्लिम बहुल सीटों पर भी मुसलमानों को टिकट देने से कतराती है। मध्य प्रदेश इसकी सबसे बेहतरीन मिसाल है।

मुसलमान अपने समाज के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए शिक्षा, कारोबार और आरक्षण की बात करेंगे अक्सर सभी सेक्युलर पार्टियां कांग्रेस समेत सन्नाटे में चली जाती है मानों ऐसा लगता है कि ये लोग सोच रहे हों कि जमीं फट जाये और वो उसमें समां जाये मगर मुसलमानों के मुद्दों पर उन्हें बयान न देना पड़ जाए।

16/08/2023

कांग्रेस के सेकुलरिज़्म की हक़ीक़त 👇🏻👇🏻

कांग्रेस जो अपने आप को सेक्युलर, लिबरल और विभिन्नताओं वाली पार्टी बताती है। कांग्रेस पुराने समय मुसलमानों को टिकट देने में तो कुछ हद तक तो ठीक थी मगर हालिया समय में मुसलमानों को टिकट देने के मामले में ये पार्टी भी बेहद कंजूसी कर रही है। आबादी के हिसाब से तो छोड़िये मुस्लिम बहुल सीटों पर भी मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देने में आनाकानी शुरू हो चुकी है।

हालिया चुनाव में कर्नाटक में मुसलमानों ने कांग्रेस को एक तरफ़ा वोट किया था मगर राजनीतिक नुमाईंदगी और सीट बंटवारे के नाम पर मुसलमानों को केवल लॉलीपॉप ही मिला है। कर्नाटक की 13 फीसदी मुसलमानों का प्रदेश की राजनीती में केवल 4 फीसदी ही भागेदारी क्यों है?

तथाकथित सेकुलर सरकारें मुसलमानों का पूरा वोट लेने के बावजूद भी सीट के बंटवारे में हमेशा मुसलमानों को कम सीट का धोखा क्यों देती हैं? राज्य की विधानसभा में आबादी के हिसाब से 29 मुसलमान विधायक होने चाहिए मगर अभी 9 विधायक ही क्यों हैं?

13/08/2023

मुसलमानों के पिछड़ेपन की सबसे बड़ी वजह👇🏻👇🏻

जब तक किसी भी समुदाय को शिक्षा, कारोबार के साथ राजनीती में उचित भागीदारी नहीं मिलेगी तब तक उस समुदाय का उत्थान कोई माई का लाल नहीं करवा सकता है।

उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश में जहां मुस्लिम आबादी 19 फीसदी से ज्यादा है वहां पर आबादी के हिसाब से विधायक की गिनती देखी जाये तो ये गिनती तक़रीबन 80 विधायक होने चाहिए मगर 2022 के विधानसभा चुनाव में केवल 34 मुस्लिम विधायक ही चुने गए थे।

गुजरात जहां मुसलमान आबादी 10% और 34 सीटों के चुनावी नतीजे सीधे तौर पर मुसलमान प्रभावित करता है वहां से भी कोई भी मुस्लिम सांसद नहीं है।

मध्य प्रदेश जहां पर 6.5 फीसदी मुस्लिम आबादी है और भोपाल व् बुरहानपुर में अच्छी मुस्लिम आबादी होने के बावजूद कोई भी मुस्लिम सांसद नहीं है।

झारखंड की 15 फीसदी मुस्लिम आबादी के बावजूद भी केवल 2 विधायक और जीरो सांसद हैं।

अगर आबादी के अनुपात में लोकसभा सांसदों की बात करें तो 15 फीसदी मुस्लिम आबादी के हिसाब से 81 से ज्यादा मुस्लिम सांसद होने चाहिए थे मगर 2019 के लोकसभा चुनाव में केवल 27 सांसद चुन कर आये थे जिसमें से 3 सांसदों को हाल फिलहाल में अयोग्य घोषित कर दिया गया है।

"हम पर अशिक्षित नेताओं का शासन है जिनके पास कोई विज़न नहीं है"काजोल - फिल्म अभिनेत्री
12/08/2023

"हम पर अशिक्षित नेताओं का शासन है जिनके पास कोई विज़न नहीं है"

काजोल - फिल्म अभिनेत्री

11/08/2023

शायद आप लोग भी सोचते होंगे आखिर Indian Muslims देश में इतना पिछड़ा कैसे हो गया है? तो ये जान लीजिये कि मुसलमान पीछे हुआ नहीं है बल्कि पूरे सामाजिक और सरकारी तंत्र ने उसे पीछे धकेला है और इतना पीछे धकेला है कि वो शायद पाताल में जा चुका है।

पूरी वीडियो बहुत जल्द !!!
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