09/07/2025
पुरुष के पास पैसा हो तो औरत वस्त्रहीन हो जाती है,और अगर पैसे ना हो तो आदमी वस्त्रहीन हो जाता है
जब कीर्ति से मेरी शादी की बात चल रही थी, तो मुझे सच में लगा कि यही वो लड़की है जिसे भगवान ने मेरे लिए चुना है। शुरुआत में हम इतने अच्छे से एक-दूसरे से जुड़े कि बातचीत धीरे-धीरे जिम्मेदारियों से आगे बढ़कर निजी पलों तक पहुंच गई। अब बस एक ही ख्वाहिश थी — जल्दी से शादी हो जाए।
कीर्ति हमेशा कहती थी कि वह मुझसे ज्यादा मेरे माता-पिता से प्यार करेगी। और सच कहूं तो एक पुरुष को और चाहिए भी क्या? एक ऐसी जीवनसाथी जो प्यार दे, साथ निभाए और माता-पिता का भी आदर करे।
शादी हुई और ज़िंदगी अच्छे से चलने लगी। लेकिन तभी एक एहसास हुआ — जिस शारीरिक संबंध को लेकर अक्सर पुरुष अधीर होते हैं, उसकी उतनी ही गहरी चाहत एक महिला के भीतर भी होती है। मैं कीर्ति से बेहद प्यार करता था और उसकी हर छोटी-बड़ी ख्वाहिश पूरी करने की कोशिश करता था।
समय बीतता गया, ज़िम्मेदारियाँ बढ़ीं और मैंने कीर्ति से कहा कि अब हमें खर्चों में थोड़ी सावधानी बरतनी होगी। इस पर उसने झुंझलाकर कहा, "पहले ही मन मारकर रहती हूं।" मुझे यह बात बहुत चुभी क्योंकि मैंने तो हमेशा उसकी जरूरतों को प्राथमिकता दी थी।
मैंने पूछा, "ऐसा क्या है जो तुम्हें नहीं मिल पा रहा?"
उसने जवाब दिया, "मैं भी चाहती हूं बड़ी गाड़ी में घूमना, साल में 4-5 ट्रिप करना, घर सजा-संवरा रहे, ब्रांडेड मेकअप इस्तेमाल करूं।"
मैंने कहा, "तुम्हें हर महीने 3000 की लिपस्टिक और 5000 का पाउडर तो देता हूं, फिर भी क्या कमी है?"
उसका जवाब था, "मैं मांगती ही क्या हूं?" जैसे मैं उस पर कोई एहसान कर रहा हूं।
मुझे बुरा लगा, पर कुछ नहीं कहा। चुपचाप अतिरिक्त कमाई के लिए कुछ और काम शुरू कर दिए।
फिर आया उसका जन्मदिन। उसने 12000 की ड्रेस पसंद की थी। एक दिन उसने प्यार से गले लगाकर पैसे मांगे। मैंने थोड़ा मजाक में कहा कि इस महीने संभव नहीं, सैलरी में देरी हो रही है। इस बार साथ में केक काट लेते हैं, ड्रेस अगली बार। लेकिन उसे यह बात पसंद नहीं आई। उसने कहा, "एक ड्रेस भी नहीं दिला सकते? अब तो मेरी इज्जत भी चली गई।"
मैंने समझाने की कोशिश की, "ड्रेस अभी न मिले तो बाद में ले लेना, क्या फर्क पड़ेगा?"
उसने कहा, "मैंने अपने दोस्तों से कहा है वही ड्रेस पहनूंगी, अब क्या मुंह दिखाऊंगी?"
उसकी यह बात मुझे बहुत खली, लेकिन उस रात मैंने उसे पैसे दे दिए – 12000 ड्रेस के और 10000 पार्टी के। पैसे मिलते ही वह फिर से वही प्यारी कीर्ति बन गई। मुझे गले लगाया, सोरी कहा और फिर से नज़दीक आने की कोशिश की... लेकिन इस बार मेरा दिल दुखा था।
मैंने उससे कहा, "गलती तुम्हारी नहीं, मेरी है। मैंने समझा था कि तुम्हें मुझसे प्यार है, लेकिन अब लगता है कि तुम्हारा रिश्ता सिर्फ पैसों से है।"
कुछ दिनों बाद मैंने फैसला लिया कि अब गांव जाकर माता-पिता के साथ रहूंगा। कीर्ति को बताया तो उसने कहा, "गांव में तो बहुत दिक्कत है, वहां लाइट भी नहीं रहती।"
मैंने कहा, "तो मां-पापा को यहां बुला लेते हैं।"
उसका जवाब था, "उन्हें यहां अच्छा नहीं लगेगा, वो गांव के खुले माहौल के आदी हैं।"
मैंने कहा, "इसीलिए तो उनके पास जाना चाहता हूं। क्योंकि वो मुझसे बिना किसी शर्त के प्यार करते हैं।"
मैंने अपना सामान पैक किया और कहा, "अगर चलना है तो चलो, वरना मैं जा रहा हूं।"
वो नहीं आई। मैं अकेला गांव लौट आया। मां-पापा को सब बताया लेकिन उन्होंने मुझे ही समझाने की कोशिश की। फिर भी मैंने पैसे भेजना जारी रखा, लेकिन जब चार महीने बाद उसने कहा कि वह गांव आकर रहना चाहती है, तो मैंने पैसे भेजना बंद कर दिए।
तभी उसने मेरे खिलाफ केस कर दिया — यह कहकर कि मैं उसे वैवाहिक सुख देने में असमर्थ हूं और वह तलाक चाहती है। साथ ही हर महीने एक फिक्स रकम भी।
कोर्ट में मैंने अपनी बात रखी, लेकिन वहां बताया गया कि पत्नी का ससुराल वालों की सेवा करना कानूनन ज़रूरी नहीं है। केस हार गया और आज भी हर महीने 40000 रुपये देता हूं। अब गांव में माता-पिता के साथ रहता हूं।
एक बात समझ में आ गई — सच्चा और निस्वार्थ प्यार केवल माता-पिता ही कर सकते हैं।
शायद आज के दौर में शादी के लिए प्यार से ज़्यादा समझदारी चाहिए। ज़िंदगी बिताने के लिए सिर्फ सुंदर चेहरा नहीं, समझदारी, संवेदनशीलता और सादगी भी ज़रूरी होती है।
शायद गांव की सादगी में ही असली खूबसूरती छिपी होती है।