30/10/2025
🌸 नर्क के द्वार पर भी स्वर्ग की तख्ती लगी है 🌸
एक फकीर मरने के करीब था। उसने स्वप्न में परमात्मा से प्रार्थना की —
“मरने से पहले एक आकांक्षा है, मुझे स्वर्ग और नर्क दोनों दिखा दो, ताकि मैं अपने लिए चुन सकूं।”
पहले उसे स्वर्ग दिखाया गया —
वहाँ कोई रौनक नहीं थी, सब कुछ सूना और जड़ था। कोई गीत नहीं, कोई नाच नहीं, फूल तक खिलने से शर्माते थे।
फकीर ने कहा — “यह स्वर्ग है? अच्छा हुआ, पहले ही देख लिया। अब नर्क दिखाओ।”
फिर उसे नर्क दिखाया गया —
वहाँ तो चहल-पहल थी, गीत गाए जा रहे थे, फूल खिले थे, आनंद और उत्सव का माहौल था!
फकीर ने हैरानी से पूछा — “यह नर्क? दुनिया ने तो उल्टा बताया है।”
शैतान हँसा और बोला —
“क्या करें? हमारे पास प्रचार का मौका ही नहीं। सब मंदिर, मस्जिद भगवान के हैं। हमें नाहक बदनाम किया गया है।”
फकीर ने कहा — “तो मैं नर्क ही चुनूंगा।”
नींद खुल गई, फिर मृत्यु आई — और वह नर्क चला गया।
पर वहाँ दृश्य बदल चुका था —
चारों ओर यातना थी, तेल के कड़ाहे खौल रहे थे, लोग चिल्ला रहे थे।
फकीर ने कहा — “अभी तो दो दिन पहले आया था, तब तो यहाँ उत्सव था!”
शैतान बोला —
“वह तो दर्शकों के लिए सजाया गया कोना था; अब तुम निवासी बन गए हो, अब असली नर्क देखो।”
नर्क के द्वार पर भी स्वर्ग की तख्ती लगी है।
तख्तियों के धोखे में मत आना।
लोग काँटों से तो बचते हैं, मगर फूलों से घायल हो जाते हैं —
क्योंकि काँटे अब फूलों की ओट में छिपे हैं।
मछली आटा पकड़ने आती है, फँसती काटे से है।
हम भी सुख की खोज में जाते हैं, पर दुख को पा लेते हैं।
हर बार जब हमने सुख चाहा, तभी दुख मिला — यह नियम बिना अपवाद के है।
परिपक्व मनुष्य वह है जिसने यह देख लिया कि हर सुख के पीछे दुख छिपा है।
अब वह सुख की आकांक्षा ही नहीं करता —
इसलिए अब कोई दुख उसे छू नहीं सकता।
जो शोकरहित है, वही सर्वथा विमुक्त है।
जिसने फूलों के मोह से मुक्त होकर काटों को भी पहचान लिया — वही स्वतंत्र है। दिव्य रहस्य 🔥 ✍🏼 (एस धम्मों सनंतनो, प्रवचन-35)