20/10/2025
जब से नोटों की गड्डी बोरियों में भर भर कर जज की घर से मिली और जज के ऊपर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हुई, देश की आम नागरिक सरकार और न्यायपालिका पर थू थू कर रही हे।
कोलेजियम सिस्टम न्यायपालिका को खा गई। अनपढ़ अज्ञानी लोग कानून बिसारद बनकर जज की कुर्सी में बैठ जाते हैं और मनमानी करने लगते ।
आजकल जज को कोई इज्जत नहीं दे रहा। अब तो अलग अलग कोर्ट से जजों पर चपल जूते फेंकने और हड़काने की भी खबर आने लगी।
सबको पता लग चुका हे, सभी भ्रष्टाचार, अत्याचार और दुर्नीति की जड़ जज हे। पैसा लेकर न्याय बेचते हैं, भ्रष्टाचारी, आतंकियों, बलात्कारियों को रिहा करना, बेल देना इनलोगों की धंधा बनचुकी हे।
देशद्रोहियों के लिए रात को न्यायालय खोलना, भारतीय संस्कृति में समलैंगिक को कानूनी दर्जा देना और लिव न रिलेशन की कानूनी स्वीकृति से न्यायालय ने भारतीय संस्कृति, पारिवारिक और सामाजिक व्यवस्था पर कुठाराघात किया है।
वामपंथियों से प्रेरित कुछ जज राष्ट्रीय सुरक्षा की मुद्दे और धार्मिक मुद्दों पर अनावश्यक हस्तक्षेप करके जनमानस को अनेक बार कष्ट दिया। निचले से लेकर ऊपर तक कोई भी न्यायालय आम आदमी को न्याय देने में असमर्थ हे। सभी उगाही में लगे हुए हैं।
एक ट्रैफिक की चालान से लेकर राशनकार्ड की दफ्तर हो या थाना , तहसील से लेकर सुप्रीमकोर्ट तक आम आदमी की शोषण हो रहा।
न्यायपालिका में जज की नियुक्ति में पारदर्शिता लाया जाए, यही आज देश की आम जनता का मांग हे ।
नहीं तो यह जूते चप्पल की सिलसिला बढ़ने की खतरा को अस्वीकार नहीं किया जा सकता।
पारस मोहंती (एक सामान्य नागरिक)