24/03/2025
कभी रुक गए कभी चल दिए
कभी चलते चलते भटक गए
यूँही उम्र सारी गुज़र गई
यूँही ज़िन्दगी के सितम सहे
कभी नींद में कभी होश में
तू जहाँ मिला तुझे देख कर
न नज़र मिली न ज़ुबान हिली
यूँही सर झुका के गुज़र गए
कभी ज़ुल्फ़ पर कभी चश्म पर
कभी तेरे हसीं वजूद पर
जो पसंद थे मेरी किताब में
वो शेर सारे बिखर गए
मुझे याद है कभी एक थे
मगर आज हम हैं जुदा जुदा
वो जुदा हुए तो संवर गए
हम जुदा हुवे तो बिखर गए
कभी अर्श पर कभी फर्श पर
कभी उन के दर कभी दर -बदर
ग़म -ए -आशीकी तेरा शुक्रिया
हम कहाँ कहाँ से गुज़र गए
Credit -परवीन शाकिर