Sunil Satyam

Sunil Satyam Deputy Commissioner GST:- Spritual Motivational Speaker (Views expressed here are personal and don't represent my department)

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।तेन त्वाम प्रतिबद्धनामि  रक्षे माचल माचल:||रक्षा बंधन के पावन पर्व की सभी को हार्द...
09/08/2025

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वाम प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचल:||

रक्षा बंधन के पावन पर्व की सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ

16th November 2000A.D. Welcome Party in Department of History, CCS University Meerut. It was my 1st Semester of M.A. (wi...
07/08/2025

16th November 2000A.D. Welcome Party in Department of History, CCS University Meerut. It was my 1st Semester of M.A. (with Rohatash Sir, Krishna Pal and others.

राज्य कर अधिकारी श्री रविन्द्र खरे को विभाग से अवकाश प्राप्त करने पर जीवन के अगले पड़ाव के लिए हार्दिक शुभकामनाएं
31/07/2025

राज्य कर अधिकारी श्री रविन्द्र खरे को विभाग से अवकाश प्राप्त करने पर जीवन के अगले पड़ाव के लिए हार्दिक शुभकामनाएं

शिवरात्रि एवं जलाभिषेक की हार्दिक शुभकामनाएँ
23/07/2025

शिवरात्रि एवं जलाभिषेक की हार्दिक शुभकामनाएँ

लगभग 14 वर्ष पूर्व की रचना।      मेरे दादा के होने का,पुरातात्विक कोई सबूत नहीं।——
19/07/2025

लगभग 14 वर्ष पूर्व की रचना।

मेरे दादा के होने का,
पुरातात्विक कोई सबूत नहीं।——

माँ शीतला की शीतल छाया में
18/07/2025

माँ शीतला की शीतल छाया में

Once upon a time
14/07/2025

Once upon a time

वैवाहिक परम्पराएं- भात, घुड़ चढ़ी, बार द्वारी, धान बोना, कंगना, छठी (From my book Rurology)—————————————————हथछोया में व...
07/07/2025

वैवाहिक परम्पराएं- भात, घुड़ चढ़ी, बार द्वारी, धान बोना, कंगना, छठी (From my book Rurology)
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हथछोया में वैवाहिक परम्पराएं अत्यधिक रोचक हैं। इनमें से अधिकांश परंपराएं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गुर्जर, जाट और राजपूत आदि अन्य जातियों के गाँव में न्यूनाधिक समान रूप से पाई जाती हैं।
रोकना
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योग्य वर वधू के विवाह के लिए सबसे पहली रस्म रोकना कार्यक्रम से होती है। जब वर और वधू पक्ष में वैवाहिक संबंध स्थापित करने को सहमती बन जाती है तो वधू पक्ष वर को अपनी कन्या के लिए अंतिम रूप से चुनने के लिए हाँ करता है जिसके लिए वह वर पक्ष के घर जाकर रुपया देने की रस्म अदायगी करता है। इसे रोकना कहते हैं अर्थात् वधू पक्ष ने वर को अपनी कन्या से विवाह करने के लिए रोक दिया है। यानि अंतिम रूप से चुन लिया है। अब वह कहीं अन्य विवाह के लिए कोई बात नहीं करेंगे।
चिट्ठी/लगन
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रोकना के बाद विवाह की तिथि और विवाह से जुड़े अन्य कार्यक्रमों जैसे बान, हल्दी, बारात आगमन आदि की विस्तृत सूचना देने के लिए वधू पक्ष के घर पंडित जी द्वारा चिट्ठी जिसे लगन भी कहते हैं, तैयार की जाती है। इस चिट्ठी में लड़की के गांव के जिम्मेदार व्यक्तियों के नाम लिखकर वर पक्ष के गांव के जिम्मेदार लोगों के नामों का उल्लेख करते हुए उन्हें राम-राम कहने के विषय में लिखा होता है। हल्दी कब होगी, लड़की और लड़के के कितने कितने बाण होंगे यह भी इस लगन पत्रिका में लिखा जाता है। सामान्यत: वधू पक्ष का नाई और अन्य जिम्मेदार लोग वर पक्ष के घर लगन पत्रिका (चिट्ठी), फल, मिठाई, लड़के और उसके परिवार के अन्य लोगों के लिए कपड़े और कुछ नकदी लेकर पहुंचते है। वर पक्ष के घर में पंडित जी द्वारा विधि-विधान से वर का पूजन कर उसकी गोद में लगन पत्रिका रखी जाती है। उसके बाद बारी बारी सब सामान रखा जाता है। लगन पत्रिका में ही विवाह का दिनांक एवं सप्तपदी (फेरे) का समय नियत किया जाता है।
हलद (हल्दी) के मिट्टी के चूल्हे बनाना
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पश्चिम उत्तर प्रदेश के शाकुंभरी क्षेत्र में हल्दी जिसे गोजरी अथवा कौरवी भाषा में हलद कहा जाता है, विवाह की एक महत्वपूर्ण रस्म है जो वर एवं वधू दोनों पक्ष में समान रूप से महत्वपूर्ण है। हल्दी रस्म से कुछ दिन पूर्व मिट्टी से सात अथवा नौ (विवाह से जितने दिन पूर्व यह रस्म होती है उतनी संख्या) चूल्हे बनाये जाते है। जिन्हें हल्दी के चूल्हे कहा जाता है। विवाह से पूर्व बारात अथवा अतिथियों के लिए भोजन तैयार करने के लिए जब हलवाई अपनी भट्टी सुलगाता है तो सबसे पहले इन चूल्हों में ही आँच देकर कुछ भोजन तैयार किया जाता है। इनमें प्राय: एक अथवा आवश्यकतानुसार अधिक, बड़ा चूल्हा बनाया जाता है जबकि शेष चूल्हे छोटे आकार के बनाये जाते हैं।
हलद -सात अथवा नो दिन पूर्व
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लगन पत्रिका में पंडित जी द्वारा मुहूर्त अनुसार तय किए गए दिन के अनुसार विवाह से नौ, सात,पाँच अथवा तीन दिन पूर्व हल्दी की रस्म होती है। इसमें माता-पिता द्वारा वधू के दोनों हाथ पर हल्दी लगाकर उसके हाथ पीले किए जाते हैं। इसीलिए लड़की के विवाह का पर्यायवाची शब्द “हाथ पीले कर देना” भी है।
बान (सात या पाँच दिन के)
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बान लगाना भी वैवाहिक कार्यक्रम का अनिवार्य एवं महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसमें दोनों पक्ष वर अथवा वधू के दोनों पैरों की उँगली से शुरू कर दोनों घुटनों, दोनों कंधों पर लगाने के बाद दोनों हाथों से एक साथ दुर्वा (दूब घास) हल्दी एवं तेल में भिगोकर माथे पर लगाया जाता है। यह प्रक्रिया पाँच अथवा साथ बार, जितने बान लगन पत्रिका में तय किए गए हैं उतनी बार दोहराई जाती है। यह रस्म वर/ वधू की बहनों, बुआओं आदि द्वारा संपन्न कराई जाती है।
भलवाई (विवाह/फेरे अथवा मंढा से एक दिन पूर्व से एक दिन पूर्व-
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भालवाई भी एक महत्वपूर्ण रस्म है। इसमें विवाह कार्यक्रम के एक दिन पूर्व अथवा फेरे एवं मंढे से एक दिन पूर्व आटे अथवा बेसन के पीले टीकडे (पूरी जैसा पकवान) बनाकर मुहल्ले में बांटे जाते हैं। इन टीकडो को भलवाल कहते हैं।
बनना(बन्ना) एवं बनी(बन्नी)
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घुड़चढ़ी से पहले वर सज सँवर कर दूल्हा बनता है। वाह एक विशेष वेशभूषा पहनता है सिर पर सेहरा पहनता है जो एक पूर्वनिर्मित (Readymade) पगड़ी होती है। जब वर दूल्हा बनकर तैयार होता है तो उसे बन्ना और वधू को वधूरूप में तैयार होने पर बन्नी कहते हैं।
घुड़चढ़ी/चढ़त
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लड़के विवाह की सबसे महत्वपूर्ण रस्म है घुड़चढ़ी। घुड़चढ़ी का अर्थ है कि पूरी तैयारी के साथ “वर” अपने घर से बारात लेकर चलने वाला है। अर्थात् बारात ले जाने के लिए “वर” घोड़ी पर चढ़ गया है। घुड़चढ़ी को चढ़त भी कहते हैं। प्राचीन समय में बारात घोड़े, बग्गी, बैलगाड़ी आदि साधनों से जाया करती थी। इसलिए स्वाभाविक था कि बारात ले जाने के लिए वर का घोड़ी पर चढ़ना सर्वाधिक महत्वपूर्ण हो गया। वर के घोड़ी पर चढ़ने के बाद उसके समस्त महिला-पुरुष संबंधी घोड़ी के पीछे होते। महिलाएं गीत गाती, ढोल नगाड़े बजते और वर अपने इष्ट देवों के स्थान पर जाकर पूजन करता ताकि विवाह का मांगलिक कार्य बिना विघ्न बाधा के संपन्न हो सके। देव अनुनय के कार्य में अत्यधिक समय लगता है क्योंकि कोई देवता गांव के किसी कोने में स्थित है तो दूसरा अन्य कोने में। घुड़चढ़ी में लगने वाला समय प्रायः गांव के भौगोलिक विस्तार और उसमें इष्ट देवों के पूजा स्थानों के बीच की दूरी पर निर्भर करता है। बड़े बड़े गाँवों में इस प्रक्रिया में अपेक्षाकृत अधिक समय लगता है।
हथछोया अपेक्षाकृत एक बड़ा गाँव है। इसके दक्षिणी छोर में शिवाला है तो उत्तरी छोर पर लक्ष्मी नारायण मंदिर, भूमिया एवं माता का स्थान। दिलावरों को छोड़कर अनेक हिन्दू परिवार शेख सैयद अली की मजार (सैदली) का पूजन भी करते हैं।घुड़चढ़ी के अवसर पर सर्व धर्म समभाव में विश्वास रखने वाले हिंदू तो मंदिरों के अतिरिक्त मस्जिद में भी जाते हैं एवं वहाँ चंदा देते हैं। इसके विपरीत अपने वैवाहिक अथवा अन्य शुभ अवसरों पर मुस्लिमों द्वारा सौहार्द की ऐसी किसी परंपरा का निर्वहन किया जाता नहीं देखा गया है।
प्रायः घुड़चढ़ी के अगले दिन प्रातःकाल में बारात वधू को ब्याह कर लाने के लिए प्रस्थान करती है। घुड़चढ़ी के बाद गाँव के समस्त देवस्थानों के पूजन के बाद वर अपने घर वापस नहीं जाता है। रात्रि में वह गाँव में अपने घर या किसी पड़ोसी के घर पर विश्राम करता है तथा सुबह पुन: मंदिर में नमन करके बारात के साथ वधू के घर के लिए प्रस्थान करता है।
बारद्वारी
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बारात जब वधू पक्ष के गांव पहुँचती है तो सबसे पहले “बारात लेने” की रस्म होती है। जिसमें पंडित कुछ मन्त्रानुष्ठान के साथ वर का स्वागत करते हैं। बारात के नाश्ते पानी के बाद वधू पक्ष के गाँव में “बारात ठहराव स्थल से वधू के घर पहुँचने के लिए ढोल नगाड़ो और बंद बाजों के साथ बारात जाती है। इस रस्म को बारद्वारी कहते हैं।
बार रुकाई
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जब वर वधू के घर के द्वार पर पहुंचता हैं तो वधू की बहने वर को द्वार में घुसने से रोकती हैं। फिर वर को द्वार पर फीता काटकर आगे बढ़ने को कहती हैं। वर फीता काटकर वधू की बहनों को कुछ शगुन देकर वधू के घर के अंदर प्रवेश करता है।

अपने विभाग के शानदार कवि एवं डिप्टी कमिश्नर डॉ जितेंद्र कुमार (आगरा) का आज कार्यालय आगमन हुआ।
07/07/2025

अपने विभाग के शानदार कवि एवं डिप्टी कमिश्नर डॉ जितेंद्र कुमार (आगरा) का आज कार्यालय आगमन हुआ।

हथछोया समाचार
07/07/2025

हथछोया समाचार

गाँव में जामुन आज भी मुफ्त मिलती है ——————————————————सितंबर 1998 में मैंने दिल्ली का रुख़ किया। दिल्ली को बड़ा शहर नहीं...
06/07/2025

गाँव में जामुन आज भी मुफ्त मिलती है
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सितंबर 1998 में मैंने दिल्ली का रुख़ किया। दिल्ली को बड़ा शहर नहीं बल्कि एक वैश्विक नगर कहिए। यह एक मेट्रो सिटी नहीं बल्कि कॉस्मोपॉलिटन सिटी अर्थात् एक विश्वव्यापी नगर है जैसा कि दुनिया के ज्यादातर राजधानी शहर होते हैं। एक व्यक्ति को रेहड़ी पर जामुन बेचते देखा तो मुझे आश्चर्य हुआ कि जामुन भी बेचने की चीज है क्या? जामुन देखकर खाने का मन हुआ तो रेहड़ी वाले से रेट पूछा। रेट पूछकर जामुन खाने की इच्छा का त्याग कर दिया।
पहली बात तो यह कि मेरी ग्रामीण अवधारणा में जामुन कोई बेचने वाला व्यावसायिक फल नहीं था। दूसरी बात कि यदि इसे बेचा भी जाये तो यह सेव के बराबर के भाव पर तो बिल्कुल नहीं।
ऐसा नहीं कि ऊपर कहीं बात मेरा विचार है। यह ग्राम शास्त्र और ग्रामीण लोकमनोविज्ञान का सामान्य सिद्धांत है कि जिस चीज का बाग नहीं लगाया गया है, अर्थात खेत खलिहान ने जो भी एकाकी फलदार वृक्ष हैं जैसे जामुन, जमोया, झाड़ी बेर, शहतूत और तूतडी आदि वह साझी संपत्ति है। सामान्यतः जामुन के बाग ग्रामीण भारत में देखने को नहीं मिलते हैं। इसके एक दो पेड़ खेतों में रठाणों (खेत में बना ठिकाना) पर मिलते हैं। जिन्हें पकने के बाद गांव गुहाँड़ का कोई भी व्यक्ति खेत स्वामी से आज्ञा लेकर मुफ्त में तोड़कर खा सकता है। कोई खेत स्वामी सामान्यतः पके जामुन तोड़कर खाने से मना नहीं करता है। घनघोर व्यवसायीकरण के इस दौर में भी यह बात ज्यों की त्यों सत्य है।
जामुन की शहर में महंगे दाम पर खरीद से और गांव में आज भी मुफ्त प्राप्ति ग्राम और शहरी लोक मनोविज्ञान का वह विभाजन बिंदु है जो शायद कभी न मिट सके। यद्यपि यह सत्य है कि शहर में जाकर जामुन बेचने वाला व्यक्ति गाँव का ग़रीब-मजदूर ही है। लेकिन ग्रामीण जामुन स्वामी जामुन बेचने को आज भी उचित नहीं मानता है। उसके लिए जामुन ईश्वर प्रदत्त ऐसा फल है जो सभी को निशुल्क उपलब्ध होना चाहिए। यदि इस धारणा को व्यवसायिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो यह ग्रामीण व्यक्ति की बाज़ार का दोहन कर पाने की अयोग्यता को दर्शाती है लेकिन इसका आध्यात्मिक पक्ष यह है कि यही वह धारणा है जो अत्यधिक स्वार्थी एवं व्यावसायिक वातावरण में भी ग्रामीण समुदाय को संतुष्टि और शांति का वह वरदान है जिसकी खोज में शहरी मानुष मनोचिकित्सकों, प्राकृतिक चिकित्सालयों और विपश्यना केंद्रों पर लाखों खर्च करता है लेकिन फिर भी उसका यह अभाव पूर्ण नहीं होता है।
#जामुन

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