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धीमी, और भावनाओं के रस से भरी बेहतरीन कहानियाँ... 🎧 बंद आँखों से महसूस कीजिए, और बहने दीजिये अपने आपको अतीत में 💤 | Hindi Romantic, Motivational, Emotional Stories

मीनाक्षी, 32 साल की औरत थी, जो अपने पति रोहित के साथ इस हवेली में रहती थी। रोहित शहर में नौकरी करता था, और ज्यादातर समय ...
03/10/2025

मीनाक्षी, 32 साल की औरत थी, जो अपने पति रोहित के साथ इस हवेली में रहती थी। रोहित शहर में नौकरी करता था, और ज्यादातर समय ऑफिस में व्यस्त रहता। हवेली में मीनाक्षी अक्सर अकेली महसूस करती, लेकिन आज कुछ अलग था। हवेली में पुराने दिनों की यादें, पुराने झगड़े और दूरी अब धीरे-धीरे पिघलने लगी थी।

मीनाक्षी आँगन में खड़ी थी, हाथ में फूलों की बाल्टी लिए, और हल्की ठंडी हवा उसके बालों को छू रही थी। उसने देखा कि जेठानी, कृतिका, आँगन की ओर आ रही हैं। कृतिका का स्वभाव हमेशा थोड़ी कठोर और अनुशासनप्रिय था, लेकिन उसकी आँखों में आज हल्की मुस्कान और अपनापन झलक रहा था।

“मीनाक्षी, आज सुबह का मौसम कितना प्यारा है ना? आँगन में फूलों की महक और ठंडी हवा मन को सुकून देती है।” कृतिका ने कहा।

मीनाक्षी ने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया। उसने महसूस किया कि जेठानी का स्वर आज नरम और अपनापन भरा था। उसने जवाब दिया, “जी जेठानी, सच में बहुत अच्छा लग रहा है। हवेली में सुबह का यह समय बहुत शांत और सुकून भरा लगता है।”

कृतिका ने आँगन के पुराने झूले पर बैठकर अपनी प्याली चाय उठाई और कहा, “मीनाक्षी, मैं जानती हूँ कि हवेली में अक्सर व्यस्तता और पुराने नियमों की सख्ती के कारण आप खुद को अकेला महसूस करती होंगी। लेकिन आज मैं चाहती हूँ कि हम खुलकर बातें करें, अपने दिल की भावनाओं को साझा करें और हवेली में खुशियाँ और अपनापन बनाएँ।”

मीनाक्षी ने चुपचाप चाय का घूँट लिया और आँगन में फैलती हल्की ठंडी हवा को महसूस किया। हवेली के पुराने झरोखों से आती हल्की धूप, फूलों की महक और दूर से आती बच्चों की हँसी ने उनके बीच की दूरी को धीरे-धीरे कम कर दिया।

“जेठानी, मुझे भी यही लगता है। कभी-कभी हम अपनी भावनाओं को दबा देते हैं और सही समय पर साझा नहीं कर पाते। आज इस मौसम, हवेली की शांति और आपकी मुस्कान में मुझे महसूस हो रहा है कि अब हम पुराने झगड़े भूलकर एक नई शुरुआत कर सकते हैं।” मीनाक्षी ने धीरे कहा।

कृतिका ने हल्की हँसी के साथ सिर हिलाया। “सच में, मीनाक्षी। रिश्तों में छोटी-छोटी बातें और अपनापन ही सबसे बड़ी ताकत है। यह हवेली केवल दीवारों और फर्श की नहीं, बल्कि प्यार और समझ से भरी हुई होनी चाहिए। आज से मैं चाहती हूँ कि हम सब मिलकर हवेली को खुशियों से भरें।”

आँगन में खिले गुलाब और चमेली के फूल धीरे-धीरे अपनी खुशबू और रंग बिखेर रहे थे। मिट्टी की हल्की नमी, हवेली के पुराने झरोखों से आती हल्की धूप और दूर खेतों से आती हवा इस पल को और भी खास बना रही थी। मीनाक्षी ने महसूस किया कि जेठानी की मुस्कान और अपनापन, हवेली में रिश्तों की नई नींव डाल रहे हैं।

धीरे-धीरे दिन बढ़ता गया। हवेली की दीवारों और झरोखों से आती धूप, हवा की हल्की सरसराहट, फूलों की खुशबू और बच्चों की हँसी ने दोनों की बातचीत को और भी गहराई दी। मीनाक्षी और कृतिका पुराने दिनों की यादों में खो गईं। उन्होंने हवेली में घटित छोटी-छोटी घटनाओं को याद किया, हँसी-मजाक, बचपन की बातें और पुराने झगड़े।

“मीनाक्षी, याद है जब तुम पहली बार इस हवेली में आई थी?” कृतिका ने हल्की हँसी के साथ पूछा।
“जी जेठानी, मुझे सच में थोड़ा डर लगा था। लेकिन अब महसूस होता है कि आपके कठोर चेहरे के पीछे भी बहुत प्यार और चिंता छुपी हुई थी। आज मैं समझ पा रही हूँ।” मीनाक्षी ने कहा।

कृतिका ने धीरे से कहा, “सच में, हर रिश्ता अपनी नींव में सच्चाई और अपनापन चाहता है। कठोरता और अनुशासन जरूरी हैं, लेकिन प्यार और अपनापन के बिना केवल दूरी बढ़ती है। आज मैं चाहती हूँ कि हम सब मिलकर हवेली को खुशियों से भरें।”

दिन ढलते-ढलते, हवेली पूरी तरह शांत हो गई। चाँद की हल्की रोशनी आँगन में बिखरी हुई थी, और हवेली के पुराने झरोखों से हल्की ठंडी हवा आ रही थी। मीनाक्षी अपने कमरे में खिड़की के पास बैठी थी। उसने महसूस किया कि जेठानी का अपनापन, मुस्कान और दिल से की गई बातें हवेली में रिश्तों की नई नींव डाल रही हैं। अब हवेली में केवल प्यार, अपनापन और समझ का संगीत बज रहा था।

कहानी का यह सिखावन बताता है कि चाहे कितनी भी दूरी, कठोरता या गलतफहमी क्यों न हो, छोटे-छोटे अपनापन के संकेत, मुस्कान और दिल से की गई बातचीत हर दूरी को पाट सकते हैं और रिश्तों को मजबूत बना सकते हैं। यह दिखाता है कि एक प्याली चाय, थोड़ी बातचीत और अपने दिल से की गई अपनापन भरी मुस्कान भी जीवन में खुशियों की शुरुआत कर सकती है। हवेली के पुराने दीवारों में भी अब नई उम्मीद और नई खुशी की गूँज महसूस की जा सकती है।

सूरज धीरे-धीरे अपने लाल-सुनहरे रंग में गाँव की मिट्टी को रंगने लगा था। गाँव की गलियों में हल्की ठंडी हवा बह रही थी, और आ...
03/10/2025

सूरज धीरे-धीरे अपने लाल-सुनहरे रंग में गाँव की मिट्टी को रंगने लगा था। गाँव की गलियों में हल्की ठंडी हवा बह रही थी, और आँगन में खिले हुए फूलों की खुशबू पूरे मोहल्ले में फैल रही थी। गन्ने की खेतों से आती हल्की सरसराहट, मुर्गों की बांग और बच्चों की हँसी की गूँज ने गाँव के वातावरण को जीवंत बना दिया था।

कहानी की मुख्य पात्र, रीना, 28 साल की युवती थी, जो अपने मायके के पास ही ससुराल में रहती थी। उसके पति अमन की नौकरी शहर में थी, और अधिकांश समय वह गाँव में अकेली ही रहती। रीना की जेठानी, सीमा, हमेशा उसे समझने में थोड़ी कठोर लगती थी। सीमा का रौब और अनुशासन गाँव में मशहूर था, लेकिन उसके भीतर भी एक कोमल और अपनापन भरा दिल था, जिसे हर कोई समझ नहीं पाता था।

आज कुछ अलग था। रीना आँगन में बैठी, पुराने मिट्टी के झूले पर धीरे-धीरे झूल रही थी। उसका मन हल्का और खुश था। सीमा पास आकर बोली, “रीना, तुम इतनी देर तक क्यों बैठी हो? आँगन में सुबह की ठंडी हवा और फूलों की खुशबू बहुत प्यारी है। कुछ देर बात कर लो।”

रीना ने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया। उसने महसूस किया कि जेठानी का स्वर आज कुछ नरम और अपनापन भरा है। उसने जवाब दिया, “जी सीमा, बस आँगन में बैठकर सुबह का आनंद ले रही थी। आपके साथ बात करके अच्छा लगेगा।”

सीमा ने उसके हाथ में एक प्याली चाय रख दी और धीरे से कहा, “गाँव की सुबह और चाय की प्याली का अपना अलग मज़ा है ना? कभी-कभी हम इतनी व्यस्तता में इन छोटी-छोटी खुशियों को भूल जाते हैं।”

आँगन में खिले गुलाब और चमेली के फूल बारिश की हल्की बूंदों की तरह चमक रहे थे। मिट्टी की हल्की खुशबू और हवा की हल्की सरसराहट में दोनों की बातें धीरे-धीरे एक अपनापन भरे संवाद में बदल गईं।

रीना ने झूले पर धीरे झूलते हुए कहा, “सीमा, मैं कभी-कभी सोचती हूँ कि हवेली में हम सब एक-दूसरे के मन की बात कैसे समझें। कभी-कभी लगता है कि जेठानी आप हमसे नाराज हैं।”

सीमा ने हल्की हँसी के साथ कहा, “रीना, नाराजगी नहीं, बस मैं कभी-कभी अपनी बातों में कठोर लग जाती हूँ। लेकिन अब महसूस हुआ है कि अपनापन और प्यार के बिना रिश्तों में दूरी बढ़ जाती है। आज मैं चाहती हूँ कि हम सब मिलकर हवेली में हँसी और खुशियाँ फैलाएँ।”

बच्चों की हल्की आवाज़ें, मुर्गों की बांग, और दूर से आती नदी की सरसराहट, इस आँगन के वातावरण को और भी जीवंत बना रही थी। रीना ने महसूस किया कि जेठानी की मुस्कान और अपनापन केवल चेहरे का भाव नहीं, बल्कि दिल का एहसास भी है।

धीरे-धीरे दिन बढ़ा। हवेली के कोने में सीमा और रीना पुराने झरोखों के पास बैठकर हवेली की पुरानी कहानियाँ याद करने लगीं। हवेली के पुराने फर्श की लकड़ी हल्की चरमराहट कर रही थी, और आँगन में खिले फूल धीरे-धीरे अपनी महक बिखेर रहे थे।

सीमा ने कहा, “रीना, मुझे याद है जब तुम पहली बार इस हवेली में आई थी, तो मुझे लगा था कि तुम्हें समझना कठिन होगा। शायद मैंने कठोर होकर तुम्हें डराया भी।”

रीना ने मुस्कुराते हुए कहा, “सीमा, शुरू में सच में थोड़ा डर लगा था, लेकिन अब महसूस होता है कि आपके कठोर चेहरे के पीछे भी प्यार और चिंता छुपी हुई थी।”

हवेली की दीवारों पर सूर्य की किरणें धीरे-धीरे झलक रही थीं। दोनों ने महसूस किया कि अब हवेली में नई शांति और अपनापन की शुरुआत हो गई है। रौब, सख्ती और पुराने झगड़े अब धीरे-धीरे पीछे हट रहे थे।

रात होते-होते, जब हवेली शांत थी और आँगन में चाँद की रोशनी बिखरी हुई थी, रीना अपने कमरे में खिड़की के पास बैठी थी। उसने महसूस किया कि जेठानी की मुस्कान और अपनापन, हवेली में रिश्तों की नई नींव डाल रही थी। अब हवेली में केवल प्यार, अपनापन और हँसी का संगीत बज रहा था।

कहानी का यह सिखावन बताता है कि चाहे कितनी भी दूरी, कठोरता या गलतफहमी क्यों न हो, छोटे-छोटे अपनापन के संकेत, मुस्कान और दिल से की गई बातचीत हर दूरी को पाट सकते हैं और रिश्तों को मजबूत बना सकते हैं।

बारिश की पहली बूँदें जैसे ही पुराने शहर की गलियों पर गिरतीं, हवेली की मिट्टी की खुशबू चारों ओर फैल गई। कोहरे की हल्की चा...
03/10/2025

बारिश की पहली बूँदें जैसे ही पुराने शहर की गलियों पर गिरतीं, हवेली की मिट्टी की खुशबू चारों ओर फैल गई। कोहरे की हल्की चादर और बूंदों की ठंडी छुअन ने आँगन में एक अलग ही सुकून का अहसास पैदा कर दिया। कोहरे में भीगी गलियों की हल्की नमी, पुराने इमारतों की दीवारों की मिट्टी और ताज़ी खुशबू ने किसी अजीब तरह का अपनापन पैदा किया।

कहानी की मुख्य पात्र प्रिया थी, जो हाल ही में अपने पति रोहन के साथ अपने मायके से ससुराल आई थी। रोहन की नौकरी शहर में थी, और अधिकांश समय ऑफिस में व्यस्त रहता। हवेली में उसका स्वागत शीतलानी करती थी, जो कि प्रिया की जेठानी थी। शीतलानी का व्यवहार शुरू में थोड़ा सख्त और अनुशासनप्रिय था, लेकिन अब बारिश की इस ठंडी सुबह में कुछ बदलने वाला था।

प्रिया आँगन में खड़ी थी, हाथ में छतरी और बालों में भीगी बूंदों की हल्की-हल्की नमी। उसने देखा कि शीतलानी आँगन के पुराने लकड़ी के झूले पर बैठी हैं, चाय की प्याली हाथ में लिए हुए। उनकी आँखों में हल्की मुस्कान और चेहरे पर अपनापन झलक रहा था।

शीतलानी ने प्रिया को देखकर कहा, “प्रिया, बारिश में भीगी हवा की खुशबू कितनी प्यारी है ना? कुछ दिनों से मैं महसूस कर रही हूँ कि हवेली में हमारी बातें कम हो गई हैं।”

प्रिया ने सिर हिलाया और बोली, “जी जेठानी, मुझे भी लगता है। काम और घर की व्यस्तता में हम सबने आपस में बात करना कम कर दिया है।”

बारिश की बूँदें हल्की हल्की टपक रही थीं, और आँगन में रखे मिट्टी के बर्तन से टपकने की आवाज़ एक अलग तरह की संगीत सी गूंज रही थी। प्रिया ने महसूस किया कि हवेली में आज कुछ खास है। शीतलानी की आवाज़ में रौब कम और अपनापन ज्यादा था।

शीतलानी ने धीरे से कहा, “प्रिया, मुझे याद है जब तुम पहली बार इस हवेली में आई थी। मुझे लगा था कि तुम्हें समझना मुश्किल होगा। शायद मैंने सख्ती दिखाकर तुम्हें डराया भी।”

प्रिया मुस्कुराई और बोली, “जी जेठानी, शुरू में मुझे भी डर लगा था। लेकिन अब महसूस होता है कि आपके सख्त चेहरे के पीछे भी प्यार और चिंता छुपी हुई थी।”

हवेली के पुराने झरोखों से बारिश की बूँदें अंदर की ओर झर रही थीं, और उनके चारों ओर नमी की हल्की खुशबू थी। प्रिया ने शीतलानी की ओर देखा और महसूस किया कि आज उनकी बातें सिर्फ बातचीत नहीं, बल्कि दिल से दिल का जुड़ाव बन रही हैं।

दोनों ने बारिश की ठंडी हवा और चाय की गर्म प्याली का आनंद लिया। प्रिया ने कहा, “जेठानी, बारिश की इस ठंडी सुबह में आपकी बातें सुनकर मन को बहुत सुकून मिला। मुझे लगता है कि अब हम हवेली में एक नई शुरुआत कर सकते हैं।”

शीतलानी ने मुस्कुराकर सिर हिलाया और कहा, “हाँ प्रिया, रिश्तों में छोटी-छोटी बातें, प्यार और अपनापन सबसे महत्वपूर्ण हैं। आज से मैं कोशिश करूँगी कि हर कोई अपने मन की बातें खुलकर कह सके और हवेली में खुशियाँ बनी रहें।”

बाहर बारिश का संगीत धीरे-धीरे तेज हो रहा था, और हवेली में एक नर्म और गर्म अपनापन फैल रहा था। प्रिया ने महसूस किया कि जेठानी की मुस्कान अब केवल चेहरे का भाव नहीं, बल्कि दिल का एहसास भी है।

दिन ढलने के बाद जब शाम आई, हवेली की पुरानी दीवारें और लकड़ी की सीढ़ियाँ बारिश की बूँदों से नम थीं। रोहन घर आया और देखा कि प्रिया और शीतलानी आँगन में बैठकर चाय पी रही हैं, दोनों की आँखों में हल्की चमक और दिल में अपनापन। रोहन ने महसूस किया कि आज हवेली में एक नई खुशी और शांति का अनुभव हो रहा है।

रात को जब हवेली शांत थी और बारिश की बूँदें थम गई थीं, प्रिया खिड़की से बाहर झाँक रही थी। उसने महसूस किया कि जेठानी का अपनापन और मुस्कान, हवेली में रिश्तों की नई नींव डाल रही थी। हर दूरी, हर पुरानी कटुता और संकोच धीरे-धीरे गायब हो रहे थे।

कहानी का यह सिखावन बताता है कि चाहे कितनी भी दूरी, सख्ती या गलतफहमी क्यों न हो, छोटे-छोटे अपनापन के संकेत, मुस्कान और दिल से की गई बातचीत हर दूरी को पाट सकते हैं और रिश्तों को सशक्त बना सकते हैं।

सवेरा धीरे-धीरे उस पुराने शहर की गलियों में फैल रहा था। कोहरे की हल्की चादर हर जगह फैली हुई थी, और सुबह की ठंडी हवा कुछ ...
03/10/2025

सवेरा धीरे-धीरे उस पुराने शहर की गलियों में फैल रहा था। कोहरे की हल्की चादर हर जगह फैली हुई थी, और सुबह की ठंडी हवा कुछ मिठास लिए हुए थी। इंदौर के पुराने मोहल्ले की संकरी गलियों में, लाल ईंटों की दीवारें अब भी उस समय की याद दिलाती थीं जब बच्चे नंगे पाँव दौड़ते थे और गलियों में चिड़ियों की चहचहाहट गूंजती थी। इसी मोहल्ले में एक पुरानी हवेली थी, जहाँ जेठानी, शीतल, और बहू काव्या रहती थीं।

शीतल हमेशा अपने रौब के लिए जानी जाती थी। जेठ, उसके पति, का काम शहर में था, और ज्यादातर समय वह अपने ऑफिस में व्यस्त रहता। हवेली में सबसे अधिक आवाज़ शीतल की होती, लेकिन आज कुछ अलग था। आज शीतल की आँखों में हल्की मुस्कान झलक रही थी, जो शायद महीनों में पहली बार काव्या के लिए आई थी। काव्या, जिसकी शादी को अभी दो साल ही हुए थे, आज सुबह कुछ देर देर से उठी और आँगन में पानी की बाल्टी लेकर खड़ी हो गई।

काव्या हमेशा हल्की हँसी और चंचल नटखट अंदाज के लिए जानी जाती थी। उसकी चाल में हल्की नर्मी और आँखों में कुछ कहना छुपा रहता। शीतल ने उसे देखते ही कहा, “काव्या, आज तुम थोड़ी देर सोई हो क्या? हवेली में सुबह की ठंडी हवा बहुत प्यारी है, तुम इसे क्यों मिस कर रही हो?” उसकी आवाज़ में रौब कम और अपनापन अधिक था।

काव्या ने मुस्कुराकर सिर हिलाया और बोली, “जी जेठानी, बस नींद थोड़ी ज्यादा आ गई थी। लेकिन अब महसूस कर रही हूँ कि हवा सच में बहुत प्यारी है।”
शीतल ने उसकी ओर देखा और एक हल्की मुस्कान के साथ कहा, “ठीक है, आज मैं तुम्हारे साथ आँगन में फूलों की देखभाल करूँगी।”

काव्या के मन में अचानक गर्मी फैल गई। पिछले महीनों में शीतल का व्यवहार हमेशा सख्त और कठोर रहा था। हर छोटी गलती पर वह टोकती और जेठ की अनुपस्थिति में काव्या की मेहनत को कभी महत्व नहीं देती थी। लेकिन आज कुछ अलग था। आज शीतल की मुस्कान में अपनापन और दिल से जुड़ने का एहसास था।

आँगन में खिले हुए गुलाब और चमेली के फूलों की खुशबू हल्की ठंडी हवा के साथ उनके चारों ओर फैल रही थी। काव्या ने देखा कि शीतल पुराने मिट्टी के बर्तन उठाकर गुलाबों के पास रख रही थी और धीरे-धीरे उनकी देखभाल कर रही थी। काव्या ने सोचा, “शायद आज कुछ खास है, जेठानी का मन बहुत हल्का और कुछ कहने को तैयार है।”

शीतल ने काव्या की ओर देखते हुए कहा, “काव्या, मुझे याद है जब तुम पहली बार इस हवेली में आई थी, तो मैं थोड़ी सख्त लग रही थी। शायद मैंने तुम्हें समझने का मौका नहीं दिया।”
काव्या थोड़ी चौंकी लेकिन फिर मुस्कुराई, “जी जेठानी, मुझे भी शुरुआत में आपसे थोड़ी डर लगता था। लेकिन अब महसूस होता है कि हवेली में हर किसी का अपना ढंग और अपनापन होता है।”

हवेली की लकड़ी की सीढ़ियाँ हल्की चरमराहट कर रही थीं, और आँगन में रखा घंटाघर सुबह की धूप में चमक रहा था। इस हल्की सी आवाज़ और रोशनी में दोनों की बातें धीरे-धीरे एक सच्चे रिश्ते की ओर बढ़ रही थीं। काव्या ने धीरे से पूछा, “जेठानी, आप हमेशा इतनी सख्त क्यों रहती थीं? कभी लगता है कि आप हमें अपनापन दिखाएँगी ही नहीं।”

शीतल ने हल्का सा ठहाका मारा और कहा, “काव्या, सख्ती तो मैंने हमेशा इस लिए दिखाई, ताकि हवेली में अनुशासन बना रहे। लेकिन अब लगता है कि प्यार और अपनापन के बिना अनुशासन का कोई मतलब नहीं। मैं शायद अब सीख रही हूँ कि मुस्कान भी लोगों को जोड़ती है।”

काव्या की आँखों में चमक और दिल में हल्की धड़कन महसूस हुई। उसने सोचा, “शायद यही वह पल है जब रिश्तों की दूरी कम हो सकती है।”

धीरे-धीरे दिन बढ़ा, और हवेली की रसोई से चाय की खुशबू आ रही थी। काव्या और शीतल ने चाय की प्याली उठाई और बैठकर आँगन में बैठ गईं। हवेली की पुरानी दीवारों पर सूरज की किरणें हल्की-हल्की चमक रही थीं। दोनों ने कुछ देर चुपचाप बैठकर हवा, फूलों और सूरज की गर्मी का आनंद लिया।

शीतल ने अचानक कहा, “काव्या, मुझे एहसास हुआ कि रिश्तों में छोटी-छोटी बातें कितनी बड़ी खुशी ला सकती हैं। मैंने अब तक तुम्हारे साथ वह अपनापन नहीं दिखाया, जो दिखाना चाहिए था। आज से मैं कोशिश करूँगी कि हवेली में हर रिश्ता मुस्कान और प्यार से भरा रहे।”

काव्या ने भी मुस्कुराकर कहा, “जेठानी, मुझे भी आपकी बातें सुनकर बहुत खुशी हुई। मैं चाहती हूँ कि हम सब मिलकर हवेली को खुशियों से भरें।”

हवेली के कोने में गुलाब के बगीचे में हल्की ठंडी हवा में दोनों की हँसी गूंज रही थी। शीतल की मुस्कान में अब कठोरता नहीं थी, केवल अपनापन और दिल से जुड़ाव था। काव्या ने महसूस किया कि आज हवेली में प्यार की नई कहानी शुरू हो गई है।

दिन ढलने के बाद जब शाम का समय आया, हवेली के पुराने झरोखों से सूरज की हल्की रोशनी अंदर फैल रही थी। जेठ, जो ऑफिस से लौटे, ने देखा कि आँगन में दोनों महिलाएँ चाय पी रही हैं और बातों में खोई हुई हैं। उन्होंने अपनी पत्नी शीतल की ओर देखा और मन ही मन सोचा कि शायद आज हवेली में कुछ बदल गया है।

शीतल ने जेठ से कहा, “आज काव्या और मैंने बहुत सी बातें की, और मैंने महसूस किया कि प्यार और अपनापन हर रिश्ते की नींव है। अब मैं चाहती हूँ कि हम सब मिलकर हवेली को खुशियों से भरें।”

जेठ ने मुस्कुराकर सिर हिलाया। उसने देखा कि बेटी और बहू के बीच का तनाव धीरे-धीरे खत्म हो रहा है, और हवेली में सच्ची अपनापन की मिठास फैल रही थी।

रात को जब हवेली शांत थी, और चाँद की रोशनी आँगन में बिखरी हुई थी, शीतल अपने कमरे में बैठी थी। उसने महसूस किया कि मुस्कुराना केवल चेहरे का भाव नहीं, बल्कि दिल का एहसास भी है। आज उसने न केवल बहू के साथ अपने पुराने झगड़े भूलकर अपनापन दिखाया, बल्कि खुद के भीतर भी एक नई हल्की खुशी महसूस की।

काव्या अपने कमरे में बैठी, चाँद की रोशनी में खिड़की से बाहर झाँक रही थी। उसने भी महसूस किया कि जेठानी की मुस्कान केवल एक पल की मुस्कान नहीं थी, बल्कि हवेली में सच्चे रिश्तों की शुरुआत थी।

उस रात हवेली में एक नई शांति और अपनापन था। पुरानी दीवारों, पुराने झरोखों और पुराने फूलों के बीच अब केवल प्यार और समझ का संगीत बज रहा था।

कहानी का यह सिखावन अंत हमें बताता है कि रिश्तों में अपनापन, मुस्कान और दिल से जुड़ाव सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। चाहे कितनी भी दूरी, रौब या सख्ती हो, एक छोटी मुस्कान और दिल से की गई बातचीत हर दूरी को पाट सकती है और रिश्तों को मजबूत बना सकती है।

सर्दियों की हल्की धूप ने स्टेशन के प्लेटफ़ॉर्म को सुनहरी आभा में रंग दिया था। हवा में धूल और मिट्टी की हल्की खुशबू घुल र...
03/10/2025

सर्दियों की हल्की धूप ने स्टेशन के प्लेटफ़ॉर्म को सुनहरी आभा में रंग दिया था। हवा में धूल और मिट्टी की हल्की खुशबू घुल रही थी, और दूर-दूर से ट्रेन की धीमी आवाज़ें आ रही थीं। शहर की हल्की भीड़ और चाय की ताज़गी से महकती दुकानों के बीच, अनाम मुसाफिर भीड़ में खोए हुए खड़े थे।

अनाम मुसाफिर, अथर्व, अपने जीवन की भागदौड़ से कुछ दिनों का आराम लेने के लिए ट्रेन में सफ़र कर रहा था। उसने खिड़की के पास सीट ली और बाहर की दुनिया को निहारने लगा। ठंडी हवा उसके चेहरे को छू रही थी, और आँखों के सामने पुराने शहर की गलियाँ, हल्की धूल और पेड़ों की हरियाली का नज़ारा फैल रहा था। उसे लगा कि हर मोड़ पर, हर धूल भरे रास्ते में जीवन की कोई अधूरी कहानी छुपी हुई है।

उस ट्रेन में, उसके सामने एक महिला बैठी थी—नेहा। लगभग तीस साल की, साधारण सिल्क की साड़ी और ब्लाउज पहने, लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक और जज़्बात की गहराई थी। उसने अपने हाथ में किताब पकड़ रखी थी, लेकिन नजरें बार-बार खिड़की से बाहर झांकती रही। उसकी आँखों में एक अनकही कहानी थी, जिसे अथर्व केवल महसूस कर पा रहा था।

धीरे-धीरे ट्रेन चली। धूल और हल्की ठंडी हवा के बीच, दोनों मुसाफिरों की नजरें कभी टकराईं। किसी ने कुछ नहीं कहा, पर दोनों की आँखों में एक अजीब सा संवाद था—जैसे बिना शब्द कहे सब कुछ कह दिया गया हो। वह पल था, जिसमें समय भी धीरे-धीरे बहता गया।

अथर्व ने धीरे से कहा, “सुबह की धूप और ठंडी हवा, दोनों मिलकर कुछ खास अहसास दे रहे हैं।”
नेहा ने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया, “हाँ, लगता है जैसे ट्रेन की खिड़की भी हमारी बातें सुन रही हो।”

ट्रेन की हल्की आवाज़ और धूल भरी हवा के बीच, दोनों के बीच की दूरी अब महसूस की जा रही थी। कभी-कभी अथर्व ने नेहा की ओर देखा, और उसे महसूस हुआ कि इस मुसाफिर का जीवन भी कुछ अधूरी कहानियों से भरा है। नेहा ने भी उसकी ओर देखा और आँखों में वही हल्की झिलमिलाहट दिखाई दी।

दिन धीरे-धीरे ढल रहा था। ट्रेन की खिड़कियों से बाहर हरियाली, छोटे गांव, पुराने मकान, और बच्चों की हँसी दिखाई दे रही थी। दोनों मुसाफिर चुपचाप उन नज़ारों को देख रहे थे। कभी-कभी एक-दूसरे की ओर मुस्कराहट जाती, लेकिन शब्दों में कोई भी एहसास नहीं आया। यह चुप्पी ही उनकी बातचीत थी।

ट्रेन रुकती रही, और दोनों मुसाफिरों का यह अहसास और गहरा होता गया। उनके मन में यह समझ पैदा हुई कि जीवन की सबसे खूबसूरत बात केवल महसूस करना है। कभी-कभी अधूरी कहानियाँ, अनजान मुसाफिर, और खिड़की के बाहर का नज़ारा—सब कुछ मिलकर जीवन को कुछ पल के लिए स्थिर कर देता है।

शाम को जब सूरज ढल रहा था, ट्रेन की खिड़कियों से हल्की सुनहरी रोशनी आ रही थी। अथर्व ने धीरे से कहा, “कुछ पल ऐसे होते हैं, जिन्हें शब्दों में बाँधना मुश्किल होता है। बस महसूस करना ही काफी होता है।”
नेहा ने सिर हिलाया, और मुस्कान में कुछ कहने की कोशिश की। दोनों की आँखों में जज़्बात थे, पर उन्होंने उन्हें केवल महसूस किया।

रात धीरे-धीरे ट्रेन के साथ साथ चल रही थी। हल्की ठंडी हवा और खिड़की से आती हरियाली ने उनके मन को सुकून और अपनापन दिया। दोनों मुसाफिरों ने महसूस किया कि कुछ रिश्ते केवल महसूस करने के लिए होते हैं, उन्हें शब्दों में कहना जरूरी नहीं। अधूरी कहानियाँ, अनजान मुसाफिर और खिड़की के बाहर का नज़ारा—सब कुछ मिलकर जीवन की सबसे प्यारी यादें बन गए।

अंततः, जब ट्रेन स्टेशन पर रुकी, और दोनों मुसाफिर उतरने लगे, उन्होंने केवल आँखों से एक-दूसरे को अलविदा कहा। उस अलविदा में भी जज़्बात थे, अपनापन था, और यह एहसास कि कुछ लम्हे अधूरे ही अच्छे होते हैं, क्योंकि वही सबसे ज्यादा दिल को छूते हैं।

“कुछ लम्हे अधूरे ही अच्छे लगते हैं, क्योंकि वही यादें हमेशा दिल को छूती हैं।”

"क्या आपने कभी सोचा है कि इंसान के कर्म उसका पीछा कभी नहीं छोड़ते? कभी न कभी वही लौटकर आते हैं और हिसाब बराबर कर जाते है...
02/10/2025

"क्या आपने कभी सोचा है कि इंसान के कर्म उसका पीछा कभी नहीं छोड़ते? कभी न कभी वही लौटकर आते हैं और हिसाब बराबर कर जाते हैं। यह कहानी सिर्फ परिवार और रिश्तों की नहीं, बल्कि उस सत्य की भी है जिसे कोई नकार नहीं सकता – समय सबको जवाब देता है। यकीन मानिए, इस कहानी को पढ़ने के बाद आप भी सोच में पड़ जाएंगे कि आखिर इंसान का असली धन क्या है – लालच से कमाई हुई संपत्ति या ईमानदारी से जीया गया जीवन?"

बात लगभग दो सौ साल पहले की है। राजस्थान की रेतीली धरती पर बसा छोटा सा कस्बा "खेतपुरा"। कस्बे के बाहर एक बड़े खेतों वाला परिवार रहता था। मुखिया थे भैरों सिंह, उम्र लगभग सड़सठ साल। भैरों सिंह मेहनतकश किसान थे, उनकी ईमानदारी और मेहनत की चर्चा दूर-दूर तक होती थी। उनकी पत्नी सावित्री देवी धार्मिक और समझदार महिला थीं।

भैरों सिंह के दो बेटे थे। बड़ा बेटा सुरेश, उम्र बत्तीस साल और छोटा बेटा राजवीर, उम्र सत्ताईस साल। दोनों भाई खेतों में कंधे से कंधा मिलाकर काम करते और लोग अक्सर कहते – "इन भाइयों जैसी आपसी समझ आजकल कहां मिलती है।"

समय के साथ दोनों भाइयों की शादी हो गई। सुरेश की पत्नी गौरी बहुत सीधी और सहनशील स्वभाव की थी। वहीं राजवीर की पत्नी कनक कुछ अलग किस्म की थी। वह आत्मविश्वासी और बोल्ड औरत थी। वह साफ कहती – "सिर्फ भावनाओं से पेट नहीं भरता। अगर आगे बढ़ना है तो समझदारी और मौके को पकड़ना सीखो।"

शादी के बाद घर में रौनक और बढ़ गई। खेतों में भरपूर अनाज उगता, बैल-गाड़ियां और नए सामान घर को सम्पन्न बनाते चले गए। भैरों सिंह को लगा कि अब उनका जीवन चैन और संतोष से गुजरेगा।

लेकिन जीवन की राह हमेशा सीधी नहीं होती। अचानक सुरेश की तबीयत बिगड़ने लगी। पहले सबने सोचा कि यह कमजोरी है लेकिन धीरे-धीरे उसकी हालत इतनी खराब हो गई कि वह बिस्तर से उठने में भी असमर्थ हो गया।

भैरों सिंह और सावित्री देवी ने अपने बड़े बेटे का इलाज करवाने के लिए आसपास के वैद्यों से लेकर दूर-दराज़ तक के उपचार करवाए। पूजा-पाठ, जड़ी-बूटियां, औषधियां, सब किया गया लेकिन कोई असर नहीं हुआ। इलाज का खर्च बढ़ता चला गया। खेतों से भी उतनी आमदनी नहीं हो रही थी क्योंकि अब पूरा बोझ छोटे बेटे राजवीर पर आ गया था।

शुरुआत में राजवीर को अपने भाई की हालत देखकर चिंता होती थी लेकिन समय के साथ उसकी चिंता झुंझलाहट और खीज में बदलने लगी। वह सोचने लगा – "भैया तो कब से बीमार पड़े हैं। न खेती में हाथ बंटाते हैं, न कोई कमाई करते हैं। उल्टा खर्च पर खर्च। अगर ऐसे ही चलता रहा तो घर खाली हो जाएगा।"

एक रात जब घर के सब लोग सो गए, राजवीर ने अपनी पत्नी कनक से मन की बात कही। उसने कहा – "कनक, हालात दिन-ब-दिन खराब होते जा रहे हैं। भैया का इलाज करते-करते घर की बचत खत्म हो गई है। अगर ये बीमारी ऐसे ही रही तो हमारा सब कुछ चला जाएगा। कभी-कभी लगता है अच्छा हो अगर भैया इस दुख से मुक्त हो जाएं।"

कनक ने उसकी आंखों में देखते हुए धीरे से कहा – "अगर तुम चाहते हो तो रास्ता निकाला जा सकता है। कोई ऐसा उपाय किया जा सकता है कि सबको यही लगे कि उनकी मौत बीमारी से हुई है।"

राजवीर कुछ पल चुप रहा, फिर धीरे से सिर हिलाकर बोला – "अगर यही एक रास्ता है तो ठीक है।"

अगले ही दिन राजवीर ने कस्बे के एक लालची वैद्य से बात की। सोने के सिक्कों के लालच में वैद्य तैयार हो गया और उसने दवा में गुपचुप ऐसा ज़हर मिला दिया जिससे धीरे-धीरे सुरेश की हालत और बिगड़ गई। कुछ ही दिनों में उसका देहांत हो गया।

घर में चीख-पुकार मच गई। गौरी रो-रोकर बेहाल हो गई, भैरों सिंह और सावित्री का दिल टूट गया। लेकिन भीतर ही भीतर राजवीर और कनक ने चैन की सांस ली। अब उनके सामने संपत्ति और जिम्मेदारी का रास्ता साफ हो गया था।

समय का पहिया घूमता रहा। भैरों सिंह और सावित्री भी वृद्धावस्था में एक-एक करके चल बसे। अब पूरा घर और खेत-खलिहान राजवीर और कनक के हाथों में था। कुछ वर्षों बाद कनक ने एक बेटे को जन्म दिया। उसका नाम रखा गया "वीरेंद्र"। घर में खुशियां लौट आईं।

वीरेंद्र बड़ा हुआ तो पढ़ाई-लिखाई में तेज और खेती-बाड़ी में भी चपल निकला। उसकी शादी भी बड़े धूमधाम से कर दी गई। अब घर में सबको लगा कि सुख-समृद्धि के दिन आ गए।

लेकिन किस्मत का खेल किसी ने रोका है? शादी के कुछ ही वर्षों बाद वीरेंद्र की तबीयत अचानक बिगड़ने लगी। वही मंजर दोहराने लगा, जो कभी सुरेश के साथ हुआ था। राजवीर और कनक जगह-जगह वैद्यों के पास दौड़े। पैसे की परवाह किए बिना हर उपाय कराया। आधी से ज्यादा जमीन इलाज में बिक गई लेकिन वीरेंद्र की हालत दिन-प्रतिदिन खराब होती गई।

आखिरकार एक दिन जब वीरेंद्र मृत्यु-शैया पर पड़ा था, उसने कमजोर स्वर में पिता से कहा – "छोटे भाई, हिसाब पूरा हो गया। बस अब विदाई की तैयारी बाकी है।"

राजवीर घबरा गया। उसने कहा – "बेटा, मैं तेरा पिता हूँ, भाई नहीं।"

वीरेंद्र ने निस्तेज आंखों से देखा और बोला – "पिताजी, मैं वही सुरेश हूँ। जिसे आपने लालच में आकर वैद्य से जहर दिलवाया था। आज वही हिसाब बराबर हो गया। जिस संपत्ति के लिए आपने मुझे मरवाया, वही आज मेरे इलाज में बिक चुकी है।"

यह सुनकर राजवीर का कलेजा कांप गया। उसकी आंखों से आंसू बह निकले।

वीरेंद्र ने आगे कहा – "और सुनिए, वह वैद्य भी अब इसी घर में है।"

राजवीर ने कांपते हुए पूछा – "कौन?"

वीरेंद्र ने अपनी पत्नी की ओर इशारा किया – "यह वही आत्मा है। मेरे जाने के बाद यह भी मेरे साथ जाएगी। यही उस कर्म का फल है जिसे आपने बोया था।"

इतना कहकर वीरेंद्र की सांसें थम गईं। कमरे में सन्नाटा और चीत्कार एक साथ गूंज उठे।

राजवीर और कनक का जीवन पश्चाताप से भर गया। उन्हें समझ आ गया कि समय सबका हिसाब बराबर करता है। जिस लालच के लिए उन्होंने भाई को खोया था, वही लालच उनके अपने बेटे के जीवन को भी ले डूबा।

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"क्या कभी आपने देखा है कि रिश्तों का असली चेहरा सबसे खुशी के मौके पर सामने आता है? जब लोग मुस्कुराते चेहरों के पीछे अपनी...
02/10/2025

"क्या कभी आपने देखा है कि रिश्तों का असली चेहरा सबसे खुशी के मौके पर सामने आता है? जब लोग मुस्कुराते चेहरों के पीछे अपनी सोच और स्वभाव को उजागर कर देते हैं. आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रहा हूँ, वह कुछ ऐसी ही है. यकीन मानिए, इसे पढ़ने के बाद आप भी सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि इज़्ज़त और आत्मसम्मान के आगे कोई रिश्ता टिक नहीं सकता."

दिल्ली के पास एक छोटे से कस्बे "सीकरी" में, सर्दियों की गुनगुनी दोपहर थी. तारीख थी 22 जनवरी 2018. मोहल्ले के हर घर से हंसी-ठिठोली और गीतों की आवाजें आ रही थीं, क्योंकि "मीना" की शादी की तैयारियां ज़ोरों पर थीं. मीना, उम्र लगभग 23 साल, तेज-तर्रार और बोल्ड स्वभाव की लड़की थी, जिसने हमेशा पढ़ाई में नाम कमाया था और आत्मविश्वास से अपने फैसले लिए थे. उसका परिवार भी सीधा-सादा था. पिता "रघुवीर प्रसाद", उम्र करीब पचपन साल, कस्बे के एक सम्मानित अध्यापक थे.

दूसरी तरफ लड़के का परिवार, "रोहित" का था. रोहित एक सरकारी दफ्तर में नौकरी करता था. उम्र 27 साल. देखने में गंभीर और शांत स्वभाव का. लेकिन उसके घर वाले, खासकर उसकी मां "कमला देवी", परंपराओं और शानो-शौकत में ज्यादा यकीन रखती थीं.

तिलक का दिन आया तो पूरा माहौल खुशियों से भर गया. चारों ओर गाने, रिश्तेदारों की भीड़, हंसी-मजाक का माहौल था. समधियों का मिलन चल रहा था, बुजुर्ग लोग अपने-अपने अनुभव सुना रहे थे और बच्चे तरह-तरह की शरारतों में लगे थे. तभी अचानक औरतों की तरफ से हलचल सी मची. पहले तो किसी ने ध्यान नहीं दिया, लेकिन जैसे ही शोर बढ़ा, पुरुषों का भी ध्यान उधर चला गया.

पूछने पर पता चला कि रोहित की बहन के पति के लिए कपड़े नहीं आए थे. बात मामूली थी, लेकिन रोहित की मां कमला देवी ने इसे मान-सम्मान का बड़ा मुद्दा बना लिया. वह ऊंची आवाज़ में बोलने लगीं. "कैसी तैयारियां की हैं लड़की वालों ने? अपने दामाद के लिए एक जोड़ी कपड़े तक नहीं भेज पाए? क्या यही हमारी इज्जत है?"

उनकी आवाज़ में इतनी तीखापन था कि कई लोग सन्न रह गए. रघुवीर प्रसाद ने बात को शांत करने की कोशिश की. रिश्तेदार भी बीच-बचाव करने लगे. किसी ने धीरे से रघुवीर को सलाह दी, "आप पैसों से ही निपटा दीजिए, कह दीजिए कि वो यहीं से कपड़े ले लेंगे."

लेकिन रघुवीर ने अपने दोनों हाथ जोड़कर बहुत शांति से कहा, "माफ कीजिएगा. काठ की हांडी सिर्फ एक बार चूल्हे पर चढ़ती है. आज अगर हम एक जोड़ी कपड़ों के लिए झुक गए, तो कल हर छोटी बात पर हमारी बेटी को ताने दिए जाएंगे. आज तो तिलक है, लेकिन शादी के बाद न जाने किस कमी का नाम लेकर हमारी बच्ची को बंदरनाच नचाया जाएगा."

उनकी आवाज़ गूंजदार लेकिन दृढ़ थी. पूरा माहौल बदल गया. हर कोई चुप हो गया. भीड़ में खड़े लोग आपस में फुसफुसाने लगे कि यह फैसला आसान नहीं था, लेकिन रघुवीर ने बेटी के लिए अपनी रीढ़ सीधी रखी.

उन्होंने सबके सामने साफ शब्दों में कहा, "आपको अपना बेटा मुबारक हो. जय रामजी की." और यही कहकर उन्होंने रिश्ता वहीं खत्म कर दिया.

इस अचानक लिए गए फैसले से रोहित और उसके परिवार का चेहरा उतर गया. लेकिन सबसे खास नज़ारा तब दिखा जब पर्दे के पीछे से यह सब देख रही मीना की आंखों में आंसू नहीं, बल्कि संतोष और खुशी की चमक थी. वह जानती थी कि उसके पिता ने आज केवल उसका ही नहीं, बल्कि हर उस लड़की का सम्मान बचाया है, जो रिश्तों की आड़ में अपने सपनों और आत्मसम्मान की कुर्बानी देती है.

मेहमानों और रिश्तेदारों में से लगभग हर किसी के मन में रघुवीर के लिए सम्मान और गर्व की भावना थी. वे सब जानते थे कि समाज में ऐसे फैसले लेना कितना मुश्किल है. लेकिन रघुवीर ने दिखा दिया कि रिश्तों की असली नींव सिर्फ आदर और भरोसे पर टिकी होती है, ना कि लालच और दिखावे पर.

उस शाम जब लोग घर लौटे, तो हर कोई यही कह रहा था, "रघुवीर प्रसाद ने सही किया. इज्जत से बड़ा कोई रिश्ता नहीं." और मीना ने भी अपने मन ही मन कहा, "धन्यवाद पापा. आपने साबित कर दिया कि आपकी बेटी किसी सौदे का हिस्सा नहीं है."

राहुल गांधी कह कह कर थक गए कि GST स्लैब कम कर दो जब ट्रंप ने टैरिफ लगाया तब इनको लोगों की याद आई
27/09/2025

राहुल गांधी कह कह कर थक गए कि GST स्लैब कम कर दो जब ट्रंप ने टैरिफ लगाया तब इनको लोगों की याद आई

सर्दी की सुबह थी। हल्की धुंध ने शहर को ढक रखा था और स्टेशन की हवा में एक अजीब सा सन्नाटा था। प्लेटफॉर्म पर सिर्फ कुछ मुस...
27/09/2025

सर्दी की सुबह थी। हल्की धुंध ने शहर को ढक रखा था और स्टेशन की हवा में एक अजीब सा सन्नाटा था। प्लेटफॉर्म पर सिर्फ कुछ मुसाफिर ही खड़े थे, अपनी-अपनी दुनिया में खोए हुए। घड़ी की टिक-टिक दूर तक गूंज रही थी, और कभी-कभार ट्रेन के इंजन की आवाज़ दूर से आती और फिर हवा में घुल जाती। वही आवाज़ जैसे किसी पुरानी याद की परछाईं लेकर आती।

प्लेटफॉर्म के एक कोने में, साधारण सा कपड़े पहने एक युवक, अजय, खड़ा था। उसके हाथ में छोटा सा बैग था और आँखें दूर तक फैली पटरी पर टिकी थीं। उसकी नजरें हर गुजरती ट्रेन को भांपने की कोशिश में थीं, लेकिन अंदर ही अंदर उसकी धड़कनें किसी और चीज़ को महसूस कर रही थीं। आज उसकी मुलाकात किसी खास से होने वाली थी, और उस ख्याल से उसके भीतर हल्की सी बेचैनी और गुनगुनी ताजगी दोनों झलक रही थी।

वहीं दूसरी ओर, प्लेटफॉर्म के दूसरे छोर पर, 30 साल की मधु खड़ी थी। साधारण सिल्क की साड़ी और टाइट ब्लाउज में वो इतनी सहज और आत्मविश्वासी दिख रही थी कि पास से गुजरने वाले भी उसकी तरफ़ अनजाने में देख लेते। उसकी आँखों में एक हल्की नर्मी थी, और उसके होंठों पर अधूरी मुस्कान। मधु ट्रेन का इंतजार कर रही थी, लेकिन उसकी नजरें बार-बार प्लेटफॉर्म की ओर टकरा रही थीं, जैसे किसी अज्ञात इंतजार की तलाश में।

अजय ने उसे देखा और उसके दिल की धड़कनें अचानक तेज़ हो गईं। वह जानता था कि यह मुलाकात उनकी ज़िन्दगी में एक मोड़ लेकर आएगी, लेकिन दोनों ही इस बात से अनजान थे कि क्या कहना है, कैसे शुरुआत करनी है। प्लेटफॉर्म पर धुंध और हल्की ध्वनि ने वातावरण को और भी मनोहर बना दिया था। दूर कहीं से चाय बेचने वाले की आवाज़ आती, हल्की सी मिट्टी की खुशबू हवा में घुली हुई थी, और ट्रेन की पटरी पर गिरती ओस की बूंदें प्लेटफॉर्म को चमका रही थीं।

मधु ने कदम बढ़ाए और अजय की तरफ़ बढ़ती चली गई। दोनों की नजरें टकराईं और एक अनकही कहानी की शुरुआत हो गई। उनके बीच कोई शब्द नहीं थे, सिर्फ़ उन आँखों की भाषा थी, जो कह रही थीं कि “मैं जानती हूँ, तुम भी मेरे लिए इंतजार कर रहे हो।” अजय ने हल्की मुस्कान दी और मधु ने भी वहीं प्रतिक्रिया दी। हवा में जैसे एक नई ताजगी घुल गई, और प्लेटफॉर्म पर खड़े लोग भी किसी अदृश्य सुकून की लहर को महसूस कर रहे थे।

दोनों ने धीरे-धीरे एक दूसरे के पास आकर खड़े होना शुरू किया। ट्रेन की आहट दूर से सुनाई दी, और उनके भीतर की बेचैनी को और गहरा कर गई। अजय ने अपनी झोली से एक छोटा सा नोट निकाला और उसे मधु की ओर बढ़ाया। मधु ने धीरे से उसे लिया, और उनके हाथों की हल्की छुअन ने दोनों के भीतर कुछ ऐसे भाव जागृत कर दिए, जो शायद वर्षों से दबे हुए थे।

ट्रेन प्लेटफॉर्म पर आती दिखी। उसकी आवाज़ और कम्पन दोनों ने माहौल को और भी जीवंत बना दिया। मधु ने अपनी साड़ी के किनारे को हल्का समेटा और अजय की तरफ़ देखा। दोनों के बीच कुछ कहना रह गया था, लेकिन उनके आँखों की गहराई ने सबकुछ बयाँ कर दिया। ट्रेन रुकी, दरवाज़े खुले, और मुसाफ़िर उतरे। अजय और मधु भी ट्रेन में चढ़ने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन प्लेटफॉर्म की हल्की ठंड और धुंध ने उनकी बातचीत को रोक दिया।

ट्रेन की खिड़की से दोनों एक दूसरे की ओर देखते रहे। मधु की आंखों में हल्का रोशनी का प्रतिबिंब था और अजय की नजरें उसमें डूब गईं। कोई शब्द नहीं, सिर्फ़ एहसास की भाषा। ट्रेन धीरे-धीरे चलने लगी, प्लेटफॉर्म की आवाज़ें पीछे छूट रही थीं, और धुंध ने उन्हें धीरे-धीरे अपनी गोद में समेट लिया।

अजय ने महसूस किया कि वह अपनी भावनाओं को खुलकर कह नहीं सका, और मधु भी वही महसूस कर रही थी। लेकिन उनके भीतर जो जुड़ाव था, वह किसी शब्द से नहीं, सिर्फ़ उनके दिल की धड़कनों से बयाँ हुआ। ट्रेन के गुजरते ही प्लेटफॉर्म की ओस और मिट्टी की खुशबू उनके दिलों में समा गई, जैसे यह मुलाकात हमेशा के लिए उनके भीतर बसी रहेगी।

ट्रेन दूर जाने लगी, और प्लेटफॉर्म खाली हो गया। लेकिन अजय और मधु की अधूरी दास्तान वहां रह गई। दोनों ने महसूस किया कि कुछ लम्हे अधूरे ही अच्छे लगते हैं, क्योंकि अधूरापन ही उन्हें यादों में अनंत बना देता है। यह मुलाकात किसी कहानी की तरह नहीं, बल्कि उनकी ज़िन्दगी की एक नर्म, भावुक याद बन गई, जो कभी धुंध और हवा में खोएगी, कभी किसी खिड़की से झांकते हुए लौट आएगी।

अजय ने खिड़की से आखिरी बार मधु की तरफ देखा। मधु ने भी हल्की मुस्कान दी और अपनी साड़ी की लहर को संभाला। दोनों जानते थे कि यह मुलाकात सिर्फ़ एक पल की थी, लेकिन वह पल उनके दिलों में हमेशा के लिए बसा रहेगा।

और इस तरह, स्टेशन की प्लेटफॉर्म पर अधूरी दास्तान ने उन्हें एक अनकही कहानी दे दी, जिसमें शब्दों की जगह एहसास ने सबकुछ कह दिया।

कहानी की सीख यही है कि कुछ लम्हे अधूरे ही अच्छे लगते हैं, क्योंकि वही हमारे दिलों में गहराई और यादें छोड़ जाते हैं।

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