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सरकारी नौकरी
07/07/2025

सरकारी नौकरी

06/07/2025
सरकारी नौकरी की तैयारी करना अलग विषय है और उसमें चयन हो जाना अलग।
05/07/2025

सरकारी नौकरी की तैयारी करना अलग विषय है और उसमें चयन हो जाना अलग।

सरकारी नौकरी की तैयारी करने वाले लोगों की बेहतरीन कहानी इस किताब में।
02/07/2025

सरकारी नौकरी की तैयारी करने वाले लोगों की बेहतरीन कहानी इस किताब में।

किताब : सरकारी चाय के लिए
02/07/2025

किताब : सरकारी चाय के लिए

हर सफल कहानी को जब किसी पर्दे या किताब में देखते हैं तो ऐसा लगता है कि सरकारी नौकरी का पूरा इकोसिस्टम उन लोगों की कहानी ...
01/07/2025

हर सफल कहानी को जब किसी पर्दे या किताब में देखते हैं तो ऐसा लगता है कि सरकारी नौकरी का पूरा इकोसिस्टम उन लोगों की कहानी है जो सफल हो गए हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। यह पूरी कहानी उन लोगों के प्रयासों और संघर्षों से मिलकर बनी है जिनका चयन नहीं हुआ लेकिन उन्होंने कोशिश पूरी की।

यह किताब सभी सरकारी नौकरी की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों के लिए है। उम्मीद है, इसे पढ़ते हुए आप अपने आप को किसी पात्र में ढूँढ़ पाएँ, किसी पन्ने पर अपना सुख या दुख ढूँढ़ पाएँ।

अब यह किताब आप सभी अभ्यर्थियों के हवाले है।

[1] ऐसा भी होता है किकभी कभी अच्छा-ख़ासा आदमी भीख़रगोश हो जाता हैजिसे लगता है किदुनिया में उसकेऔर शिकारियों के अलावा कोई...
26/06/2025

[1] ऐसा भी होता है कि
कभी कभी अच्छा-ख़ासा आदमी भी
ख़रगोश हो जाता है

जिसे लगता है कि
दुनिया में उसके

और शिकारियों के अलावा कोई
तीसरी प्रकार की जीवित चीज़ नहीं पाई जाती

यह बहुत आम बात है
कि ऐसा आदमी हर बात पर शक करता है

इस बात पर भी जब उसकी प्रेमिका
उसके गालों को चूमते हुए

बराबर कहती है कि वह अब भी
उसे प्यार करती है

उसे अक्सर अपने ही घर का दरवाज़ा
बुरा मानता प्रतीत होता है

वह अक्सर खिड़कियों से भीतर
बुदबुदाता है कि उसके और घर के बीच से

दरवाज़ा हटा लिया जाए
वह माँ का मुँह ताकता रह जाता है

जब माँ
घर में सिर्फ़ उसी से पूछती है

कि आज क्या खाने का मन है
जब पिता घर में प्राय: सोते हुए

मिलते हैं और बहनें
धूप में चोटियाँ सेंकती हुईं

ख़रगोश हुआ आदमी
नहाते समय बाल्टी के सामने

शर्मिंदा होता है
कि वह आख़िर इतना क्यों डरता है

पार्क में आलिंगनबद्ध एक जोड़े से।
दो

[2] आजकल
अकेले में पीनी पड़ती है चाय

टिफ़िन खोलना पड़ता है
बिना किसी आवाज़ के

सफ़र पर निकलना होता है
अकेले ही

प्रेमिका से बोलना पड़ता है
झूठ कि बहुत व्यस्त हूँ

बुख़ार को थकान
और बेकारी को मंदी कहना पड़ता है

रेज़गारी सँभालते हुए
एक परिचित की निगाह को

बतानी पड़ती है
महानगर में उसकी अहमियत

जबकि
शादी और जन्मदिन की पार्टियाँ

वाहियात लगती हैं
और अच्छे-ख़ासे दोस्त

आवारागर्द
कितना मुश्किल है आजकल

विनम्र बने रहना
और

प्रकट करना उदारता
नौकरी न होने के दिनों में।

- घनश्याम कुमार देवांश

साथ होना प्रेम में होने से अधिक ज़रूरी है।- रश्मि भारद्वाज
25/06/2025

साथ होना प्रेम में होने से अधिक ज़रूरी है।

- रश्मि भारद्वाज

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