28/11/2024
दस महाविद्याएं, भारतीय तंत्र परंपरा में देवी की दस महान शक्तियों का प्रतीक हैं।
इन शक्तियों में तीसरी हैं त्रिपुरसुंदरी देवी, जिन्हें श्रीविद्या, ललिता त्रिपुरसुंदरी, और राजराजेश्वरी भी कहा जाता है। वे सौंदर्य, ऐश्वर्य, और दिव्यता की प्रतीक हैं। उनकी उपासना से साधक को सभी सांसारिक और आध्यात्मिक सिद्धियां प्राप्त होती हैं।
त्रिपुरसुंदरी देवी का परिचय :-
"त्रिपुरसुंदरी" का अर्थ है "तीनों लोकों की सबसे सुंदर देवी।" वे त्रिलोक (स्वर्ग, पृथ्वी, पाताल) की अधीश्वरी हैं और संसार की सभी ऊर्जा और शक्ति की स्रोत मानी जाती हैं।
त्रिपुरसुंदरी को तंत्र परंपरा में श्रीचक्र का केंद्र माना जाता है, जो सृष्टि और ब्रह्मांड की सभी ऊर्जाओं का प्रतीक है। उनकी पूजा विशेष रूप से श्रीविद्या साधना के माध्यम से की जाती है।
आकृति और प्रतीक :-
त्रिपुरसुंदरी देवी को 16 वर्ष की किशोरी के रूप में दर्शाया गया है, जो उनके सौंदर्य और ऊर्जा का प्रतीक है। वे लाल या सुनहरे रंग के वस्त्र धारण करती हैं। उनके चार हाथ हैं, जिनमें पाश, अंकुश, नीलकमल, और अभयमुद्रा होती है। वे सिंहासन पर विराजमान रहती हैं, जो ब्रह्मा, विष्णु, महेश और ईश्वर द्वारा समर्थित होता है। श्रीचक्र या श्री यंत्र उनके प्रतीक हैं, जो साधना का केंद्र है।
त्रिपुरसुंदरी की कथा उनके ललिता सहस्रनाम और तंत्र ग्रंथों में विस्तृत रूप से वर्णित है।
पुराणों के अनुसार, असुर भंडासुर ने देवताओं को पराजित कर त्रिलोक पर अधिकार कर लिया।
देवताओं की प्रार्थना पर त्रिपुरसुंदरी देवी ने अवतार लिया और श्रीचक्र के माध्यम से भंडासुर और उसकी सेना का संहार किया।
उनकी इस विजय से संसार में धर्म, शांति और सौंदर्य की स्थापना हुई। इसलिए उन्हें राजराजेश्वरी और त्रिलोक विजयिनी भी कहा जाता है।
त्रिपुरसुंदरी की साधना का महत्व :-
त्रिपुरसुंदरी देवी की साधना से :-
1. आध्यात्मिक जागृति: साधक को आत्मज्ञान और ब्रह्मज्ञान प्राप्त होता है।
2. सौंदर्य और ऐश्वर्य: साधक के जीवन में सौंदर्य, धन, और वैभव का आगमन होता है।
3. सुख और शांति: साधना से मन में शांति और जीवन में सुख की प्राप्ति होती है।
4. सभी बाधाओं का नाश: उनकी कृपा से जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं।
पूजा विधि
त्रिपुरसुंदरी देवी की पूजा के लिए सुबह के समय श्रीचक्र या श्री यंत्र की स्थापना करें।
लाल वस्त्र पहनें और देवी को लाल पुष्प, कमल, और मिठाई अर्पित करें।
मंत्र : -
"ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौः श्री महात्रिपुरसुंदरीयै नमः"
का 108 बार जप करें।
श्रीसुक्तम और ललिता सहस्रनाम का पाठ करें।
आधुनिक संदर्भ में त्रिपुरसुंदरी,
आज के समय में त्रिपुरसुंदरी देवी की साधना न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए की जाती है, बल्कि जीवन में संतुलन, सफलता, और आत्मविश्वास के लिए भी की जाती है।
उनकी उपासना से व्यक्ति अपने भीतर छिपे दिव्य गुणों को जाग्रत कर सकता है।
निष्कर्ष
त्रिपुरसुंदरी देवी ब्रह्मांडीय शक्ति, सौंदर्य और ज्ञान की देवी हैं। उनकी साधना से जीवन के हर क्षेत्र में उन्नति संभव है।
उनकी कृपा से साधक को आत्मज्ञान के साथ-साथ भौतिक सुख-समृद्धि भी प्राप्त होती है।
"त्रिपुरसुंदरी देवी की उपासना, सौंदर्य और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करती है।"
🌷🌷 ऊं श्रीं श्रिये नमः🌷🌷
त्रिपुरे त्वं जगन्माता त्रिपुरे त्वं जगत्पिता।
त्रिपुरे त्वं जगत् धात्री त्रिपुरायै नमोनमः।। 🙏
श्री राजराजेश्वरी जगज्जननी आद्या शक्ति
🕉 श्री माहाबाला त्रिपुरसुन्दरी देवी नमो नम: 🌹🙏
🌷🌷“ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः “🌷🌷
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🔮सत्यम शिवम् सुंदरम🔮
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