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महाराष्ट्र के पुणे शहर के कोंढवा क्षेत्र में एक 19 वर्षीय युवती को इंस्टाग्राम पर ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ लिखने के आरोप में...
10/05/2025

महाराष्ट्र के पुणे शहर के कोंढवा क्षेत्र में एक 19 वर्षीय युवती को इंस्टाग्राम पर ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ लिखने के आरोप में पुलिस ने गिरफ्तार किया है। यह छात्रा पुणे के एक कॉलेज में पढ़ाई कर रही है और कौसरबाग इलाके की निवासी है।

कर्नल सोफिया कुरैशी भारतीय सेना की एक सम्मानित अधिकारी हैं, जिन्होंने अपने अद्वितीय साहस, नेतृत्व क्षमता और तकनीकी दक्षत...
10/05/2025

कर्नल सोफिया कुरैशी भारतीय सेना की एक सम्मानित अधिकारी हैं, जिन्होंने अपने अद्वितीय साहस, नेतृत्व क्षमता और तकनीकी दक्षता से सैन्य क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण मील के पत्थर स्थापित किए हैं।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

18 अप्रैल 1972 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश में जन्मी सोफिया कुरैशी के पिता मोहम्मद कुरैशी सिविल इंजीनियर थे, जबकि माता अमीना कुरैशी गणित की प्रोफेसर थीं। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लोरेटो कॉन्वेंट, लखनऊ से प्राप्त की और 1993 में IIT कानपुर से इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार इंजीनियरिंग में बी.टेक की डिग्री हासिल की।

सैन्य करियर

1994 में सेना की सिग्नल कोर में कमीशन प्राप्त करने के बाद, उन्होंने जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर में आतंकवाद विरोधी अभियानों में उल्लेखनीय योगदान दिया। 2001 में, वे सेना के पहले मोबाइल डिजिटल संचार नेटवर्क के विकास में प्रमुख भूमिका में रहीं।

2016 में, संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन के अंतर्गत कांगो में तैनात 500 से अधिक भारतीय सैनिकों का नेतृत्व कर उन्होंने इतिहास रच दिया। वे इस तरह की जिम्मेदारी संभालने वाली पहली भारतीय महिला अधिकारी बनीं। उनकी इकाई ने उत्तर किवु क्षेत्र में शांति स्थापना, निरस्त्रीकरण और मानवीय सहायता प्रदान करने में सराहनीय कार्य किया।

2017 से 2022 तक, उन्होंने भारत के साइबर डिफेंस कमांड में उप महानिदेशक के रूप में कार्य किया। इस भूमिका में उन्होंने साइबर प्रशिक्षण रेंज की स्थापना, सैन्य साइबर सिद्धांतों के विकास और खतरों की पहचान से जुड़े अभियानों का नेतृत्व किया।

ऑपरेशन सिंदूर और हालिया उपलब्धियाँ

2025 में भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान उन्होंने पश्चिमी मोर्चे पर एक साइबर-सक्षम त्वरित तैनाती इकाई का नेतृत्व किया, जिसने सैन्य संचार को सुरक्षित रखा और रणनीतिक प्रणालियों पर साइबर हमलों को नाकाम किया।

7 मई 2025 को, उन्होंने विंग कमांडर व्योमिका सिंह के साथ मिलकर ऑपरेशन सिंदूर की जानकारी मीडिया को दी। इस अभियान में पाकिस्तान और पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर में नौ आतंकी ठिकानों को सफलतापूर्वक नष्ट किया गया।

पुरस्कार और सम्मान

उनकी सेवाओं को कई प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाज़ा गया है, जिनमें शामिल हैं:

सेना मेडल (2025)

विशिष्ट सेवा मेडल (2019)

संयुक्त राष्ट्र शांति सेवा मेडल (2017)

COAS प्रशस्ति पत्र (2010)

पूर्वी कमान के GOC-in-C का प्रशस्ति पत्र (2003)

निजी जीवन

कर्नल कुरैशी का विवाह कर्नल ताजुद्दीन बगेवाड़ी से हुआ है और उनका एक पुत्र है। उनका परिवार भारतीय सेना की गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ा रहा है, जिसमें उनके पिता और दादा भी शामिल रहे हैं।

कर्नल सोफिया कुरैशी का जीवन भारतीय सेना में महिलाओं की उभरती भूमिका और तकनीकी सक्षमता के महत्व का प्रतीक है। उनकी उपलब्धियाँ आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।

जय हो 🙏
07/05/2025

जय हो 🙏

भारत के दो वीर एक साथ 🙏
07/05/2025

भारत के दो वीर एक साथ 🙏

कर्नल सोफिया कुरेशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंहहमारे देश का गौरव है और हमें इन पर नाज है।
07/05/2025

कर्नल सोफिया कुरेशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह
हमारे देश का गौरव है और हमें इन पर नाज है।

🙏🙏
07/05/2025

🙏🙏

गुजरात के शंखेश्वर क्षेत्र को कभी बंजर जमीन और कम वर्षा के कारण ‘मिनी रण’ के नाम से जाना जाता था। पर इसी सूखी ज़मीन पर द...
06/05/2025

गुजरात के शंखेश्वर क्षेत्र को कभी बंजर जमीन और कम वर्षा के कारण ‘मिनी रण’ के नाम से जाना जाता था। पर इसी सूखी ज़मीन पर दो शिक्षकों ने 25 वर्षों की अथक मेहनत से हरियाली और जीवन की एक नई कहानी लिख दी। दिनेशचंद्र ठाकर और उनकी पत्नी देविंद्रा ठाकर ने मिलकर इस सूने इलाके को एक हरे-भरे प्राकृतिक आश्रय में बदल दिया, जिसे आज लोग ‘निसर्ग निकेतन’ के नाम से जानते हैं।

इस प्रयास की शुरुआत 1999 में हुई, लेकिन इसकी प्रेरणा 1984 के अकाल के दौरान मिली, जब उन्होंने देखा कि प्यास और भूख से पक्षियों की मौत हो रही है। इसी संवेदना ने उन्हें यह प्रण लेने पर मजबूर किया कि वे इस क्षेत्र को पक्षियों और पेड़ों से भर देंगे।

शुरुआत उन्होंने बेर, इमली और कचनार जैसे स्थानीय लेकिन लुप्त होते पौधों को लगाकर की। वह खुद झोपड़ी बनाकर रह गए, मिट्टी की देखभाल की, पौधों को पानी दिया और समय के साथ हरियाली लौटने लगी। जैसे-जैसे पेड़ बड़े हुए, पक्षियों की चहचहाहट ने इस बंजर ज़मीन को जीवंत बना दिया।

आज ‘निसर्ग निकेतन’ में 200 से अधिक प्रजातियों के 6000 से भी ज्यादा पेड़ हैं और मोर, तोता, बुलबुल व चिड़िया जैसे सैकड़ों पक्षी बसेरा करते हैं। पक्षियों के लिए वे रोज़ाना 100 किलो अनाज और पानी की व्यवस्था करते हैं। इसके साथ ही उन्होंने ‘निसर्ग सेवा ट्रस्ट’ की स्थापना भी की है, जिसके माध्यम से वे पूरे गांव में हरियाली फैलाने का काम कर रहे हैं।

यह कहानी न सिर्फ प्रकृति से प्रेम की मिसाल है, बल्कि यह बताती है कि संकल्प और समर्पण से बंजर ज़मीन भी जीवन से भर सकती है।

अनाथ बेघर लोगों को अपना परिवार बनाने वाले इस व्यक्ति को नमन है।
06/05/2025

अनाथ बेघर लोगों को अपना परिवार बनाने वाले इस व्यक्ति को नमन है।

इस जज के लिए एक लाइक तो बनता है।
06/05/2025

इस जज के लिए एक लाइक तो बनता है।

ऐसी हो शादी — सादगी, सेवा और सद्भाव की मिसाल!जब ज़्यादातर शादियाँ भारी-भरकम लहंगों, आलीशान वेन्यू और शाही भोजों की चर्चा...
05/05/2025

ऐसी हो शादी — सादगी, सेवा और सद्भाव की मिसाल!

जब ज़्यादातर शादियाँ भारी-भरकम लहंगों, आलीशान वेन्यू और शाही भोजों की चर्चा में होती हैं, तब महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले के किसान श्रीकांत एकुडे ने अपनी शादी को समाजसेवा का माध्यम बना दिया।

श्रीकांत और अंजलि ने शादी पर खर्च करने के बजाय ₹50,000 की लागत से गांव के खेतों तक सड़क बनवा दी, ताकि बरसात में कीचड़ और फिसलन से जूझने वाले किसानों को राहत मिल सके।

उन्होंने मेहमानों से न तो नकद मांगा, न ही महंगे तोहफे — सिर्फ किताबें और पौधे मांगे। आज उनके खेत में 90 से ज़्यादा पेड़ लहलहा रहे हैं, जो उनकी सोच और रिश्ते की गहराई को दर्शाते हैं।

श्रीकांत एक प्रगतिशील किसान ही नहीं, बल्कि आदिवासी बच्चों के लिए “Bright Edge” नाम से एक एजुकेशन सेंटर भी चलाते हैं, जहां मुफ्त में पढ़ाई, लाइब्रेरी और रहने की सुविधा मिलती है।

इनकी शादी एक रस्म नहीं, बल्कि एक प्रेरणादायक उदाहरण बन गई है। ऐसे जोड़े समाज को नई दिशा दिखाते हैं — और वाकई सलाम के हकदार हैं।

दरअसल, इस गांव की कुल आबादी सिर्फ 1000 लोगों की है। कुछ युवा बेहतर जीवन की तलाश में विदेश या पास के बड़े शहरों में जाकर ...
05/05/2025

दरअसल, इस गांव की कुल आबादी सिर्फ 1000 लोगों की है। कुछ युवा बेहतर जीवन की तलाश में विदेश या पास के बड़े शहरों में जाकर बस गए हैं। यही वजह है कि गांव में अब ज्यादातर आबादी बुजुर्गों की है।

बुजुर्गों को अलग-अलग खाना बनाने की परेशानी न हो, इसलिए गांव के लोगों ने मिलकर एक अनोखी परंपरा शुरू की — जहां एक ही जगह पर सामूहिक रूप से खाना पकता है और सभी मिल-बांट कर साथ खाते हैं।

इसके अलावा, गांववाले एक-दूसरे के सुख-दुख में हमेशा साथ खड़े रहते हैं और मिलजुल कर किसी भी समस्या का हल निकाल लेते हैं।

यह अनोखा गांव है गुजरात के मेहसाणा जिले का चांदनकी, जिसे 'निर्मल गांव' और 'तीर्थ गांव' जैसे सम्मान भी मिल चुके हैं।

सच में, यह गांव एकता, सहयोग और भाईचारे की एक बेहतरीन मिसाल है!

मीनाक्षी अम्मा को कौन कौन लाइक करता है।
05/05/2025

मीनाक्षी अम्मा को कौन कौन लाइक करता है।

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