
15/07/2025
बहुत पुरानी एक तार्किक गुत्थी है।
एक आदमी अपने रास्ते से गुजर रहा है,
एक ब्राह्मण। सीधा-सादा आदमी है।
एक कसाई भागा हुआ आया है।
वह अपनी गाय को खोज रहा है,
जो उसके हाथ से छूटकर भाग गई है।
वह उस आदमी से पूछता है,
ब्राह्मण से कि यहां से एक गाय भागी गई है?
हाथ में उसके काटने की कुल्हाड़ी है।
ब्राह्मण देखता है, कसाई है। आंखें बताती हैं,
हाथ की कुल्हाड़ी बताती है, खून के धब्बे बताते हैं।
वह कहता है, गाय यहां से गई है?
गाय किस तरफ गई है?
वह ब्राह्मण मुश्किल में पड़ गया।
बड़ी मुश्किल में पड़ गया।
उसने किताब में पढ़ा है
कि झूठ बोलना निषिद्ध कर्म है।
लेकिन सच बोले,
तो यह कसाई गाय को
पकड़ लेगा और हत्या करेगा।
तो मैं भी भागीदार हो जाऊंगा।
और गोहत्या तो निषिद्ध है ही।
सभी हत्याएं निषिद्ध हैं।
फिर हत्या में भागीदार होना निषिद्ध है।
अब अगर झूठ बोलूं, तो भी निषिद्ध कर्म हो जाएगा;
सच बोलूं, तो भी निषिद्ध कर्म होकर रहेगा।
वह ब्राह्मण मुश्किल में पड़ गया।
उस कसाई ने कहा कि जल्दी बोलो।
पता हो, तो बोलो; नहीं पता हो,
तो कहो कि नहीं पता है।
उस ब्राह्मण ने कहा,
मैं बहुत मुश्किल में पड़ गया हूं।
जरा मुझे सोचने दो।
निषिद्ध कर्मों का सवाल है।
उस कसाई ने कहा, पागल, मैं पूछता हूं,
मेरी गाय कहां है?
निषिद्ध कर्मों का कोई सवाल नहीं है।
सिर्फ गाय का सवाल है। गाय कहां गई है?
तू जानता हो, देखा हो, बोल!
न जानता हो, न देखा हो, वैसा बोल!
उसने कहा कि अभी ठहरो।
सवाल निषिद्ध कर्मों का है।
जिंदगी जटिल है।
उसमें चीजें ऐसी नहीं होतीं,
जैसी शास्त्रों में होती हैं। शास्त्र सरल है,
हालांकि लोग शास्त्रों को जटिल समझते हैं
और जिंदगी को सरल समझते हैं।
शास्त्र बिलकुल सरल हैं;
जिंदगी बहुत जटिल है।
क्योंकि शास्त्रों के सब सवाल निर्णीत सवाल हैं;
जिंदगी के सब सवाल अनिर्णीत हैं।
वहां प्रतिपल तय करना पड़ता है
कि क्या करूं?
और ऐसे क्षण रोज आ जाते हैं,
जब कोई शास्त्र साथ नहीं देता,
स्वयं ही निर्णय करना पड़ता है।
#ओशो