8.00PM

8.00PM Owner-Manoj Says--> You never know what you have until you lose it, and once you lose it, you can never get it back.

"I miss you when something really good happens, because you're the one I want to share it with. I miss you when something is troubling me, because you're the one who understands me so well. I miss you when I laugh and cry, because I know that you are the one that makes my laughter grow, and my tears disappear. I miss you all the time, but I miss you the most when I lay awake at night, and think of

all the wonderful times that we spent with each other for those were some of the best and most memorable times of my life."

14/09/2024

ये कहानी झारखंड के धनबाद जिले के एक छोटे से शहर तोपचांची वाटर बोर्ड ,युगप्रवर्तक महावीर स्वामी जी धाम पारसनाथ पर्वत के आस – पास के गाँव की है। कुछ कही-अनकही बातें हैं।मगर सत्य घटना पर आधारित है। वाटर बोर्ड – जो झारखंड,बिहार का एक मात्र प्राकृतिक झील है। उसी झील का स्रोत पारसनाथ पर्वत है। जो उससे काफ़ी सटा हुआ है। उसी झील के पास एक गाँव,जिसका नाम झरियाडीह है। जैसा कि हम जानते हैं, हर गाँव का अपना नियम – कानून उस गाँव के बाहुबली लोग बनाते हैं। जिससे आम जन को काफी हद तक नुकसान होता है। कहानी के मुख्य पात्र हैं- उसी गाँव की निचली जाती में जन्मी सुगिया जो एक 19 वर्षीय लड़की है।
मँगरू जो एक 21 वर्ष का लड़का ऊँची जाती का है। इनकी कहानी इसलिए सुनी जा रही है क्योंकि इन दोनों के जीवन का अंत हो चुका है।जिसका कारण इनका समाज था। बात उन दिनों की है जब दोनों ने कक्षा दस की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली।दोनों की मित्रता इसी दौरान हुई । फिर दोनों प्रेम संबंध में आए। पहले मानसिक फिर शारीरिक रूप से एक हो गए। यूँ कहें कि दो जिस्म एक जान हो गए थे। देश आजाद होने के बाद भी जो बालिग हैं उन्हें संवैधानिक अधिकार नहीं है। जब ये समस्या बड़े – बड़े शहरों में आम बात होती है तो गाँव में तो अधिकारों का कोई मतलब ही नहीं,जो पंचायत कहे या घरवाले कहें वही सही है। इसी सोच के दुष्परिणाम को सुगिया और मँगरू जैसे जोड़ों को भुगतना पड़ा। जब उनका प्यार पनपा आगे बढ़ा तो गाँव वालों को खबर हुई। घरवालों ने लड़का और लड़की को बहुत मार – पीटकर समझाया लेकिन न तो सुगिया मानी और नाहीं मँगरू। समय बीतता गया। यही घटना बार – बार होने लगी वे दोनों मार खाते,ताना सुनते पर दोनों ने जैसे एक दूसरे से विवाह करने की जिद्द बना ली थी। बात पंचायत तक पहुँची तो पंच ठहरे ऊपरी जाती के उन्होनें भी लड़की वालों को ही गलत ठहराया और लड़के से दूर रहने को कहा। लेकिन मँगरू ,सुगिया का साथ नहीं छोड़ना चाहता था।उनदोनों का गाँव के चौराहे पर मिलना, चोरी छिपे झील में जाना सभी को पता था। उन दोनों की प्रेम कहानी हर एक की जुबानी बन गई थी। कुछ लोग उन्हें वासना के पुजारी कहते तो कुछ लोग राधा – कृष्ण का स्वरुप। दिन बीतता गया , साल बढ़ता गया। उनके प्रति गाँव वालों और घरवालों का घृणा चरम पर था। जैसे उन्होंने प्रेम नहीं भारत माता के दामन पर दाग लगा दिया हो ,कोई देशद्रोही वाला काम किया हो। उनके सभी दोस्त ,साथी-सहेली सभी ने उनको खुद से अलग कर दिया।
अंत में दोनों ने खुदखुशी करने का फ़ैसला किया। उन्होंने रणनीति तैयार कर एक – दूसरे को समयानुसार उसी झील पर बुलाया क्योंकि दोनों उसी में कूदकर आत्महत्या करने वाले थे।उन्होनें दिन तय किया । क्योंकि लड़का – लड़की एक – दूसरे के होकर मरना चाहते थे। वहीं एक मंदिर में दोनों ने शादी कर जान देने की योजना बनाई थी। कुछ दिन बाद तय किए समय पर सुगिया दुल्हन के वेश में शादी के पश्चात अपनी जान देने को तैयार थी। शायद ऊपरवाले को कुछ और ही मंजूर था क्योंकि मँगरू के घरवालों ने उसे खूब मार पीट कर घर मे ही बंद कर रखा था। वो रो रहा था,तड़प रहा था कि मुझे जाने दो पर उनके भाईयों ने उसकी एक न सुनी।वो घर पर ही अधमरा हो चुका था।इससे पहले मंगरु को कई बार जहर देकर घरवालों ने मारने की कोशिस की जो नाकामयाब रहा।सुगिया डैम पर समयानुसार पहुँच चुकी थी। लेकिन मँगरू नहीं आया फिर भी सुगिया ने उसका इंतजार किया। उससे बात करने के लिए वहाँ से जो लोग गुज़रते उनसे वो मोबाइल माँगती और मँगरू को फ़ोन लगाती पर उसका फ़ोन कहाँ लगने वाला था। उसका मोबाइल तो उसके घरवालों ने ले लिया था। सुगिया शाम तक वहीं रही और मोबाइल लोगों से माँग – माँग कर मँगरू को फ़ोन करती ।जब रात हुई तो उसने सोचा होगा कि मैं घर चली जाऊँ लेकिन वो घर भी किस मुँह से जाती किसी को घर में कहाँ कुछ फर्क पड़ने वाला था। उसने उसी जँगल में रात बिताई । फिर सुबह हुई तो,जो लोग वहाँ से पार हो रहे थे उन्हें फिर मोबाइल माँग कर मँगरू को फ़ोन करने की कोशिश करती,लेकिन न मँगरू आया और नाहीं उसका फ़ोन। वो पूरी तरह से टूट चुकी थी। रो – रो कर बुरा हाल था। उसी दौरान उसके घरवाले दुसरों के कहने पर सुगिया को खोजने आए तब सुगिया जंगल में न जाने कहा छुप गई कि उसे कोई खोज न पाया। सुगिया बिना खाए – पिए दो दिन से थी अब तो उसका शरीर भी जवाब दे रहा था। फिर भी वो रास्ते में किसी अजनबी से मोबाइल माँगती और मँगरू को फ़ोन करती । लेकिन सुगिया के प्रेमी मँगरू से उसकी बात न हुई। उस रात भी वह जँगल में रही भूखे – प्यासे लेकिन उसके इस हालत पर किसी को भी तरस न आयी। जँगल में छिपे माओवादियों ने उसका बलात्कार कर उसे पूरी तरह से बर्बाद कर दिया। उसके अगले ही सुबह सुगिया ने हिम्मत जुटा कर झील में कूदकर आत्महत्या कर ली । और वो इस ज़ालिम दुनिया को छोड़ कर चली गयी। बात यहीं खत्म नहीं हुई।अब कहानी में नया मोड़ आता है।सुगिया की मौत आग से भी तेज पूरे गाँव में फैल गई। थोड़ी देर से ही सही पर मँगरू को भी इस बात का पता चला।वो तो पहले से ही अधमरा था अब ये खबर सुनने के बाद वो पूरा मर गया। मानों जिंदा लाश बन गया हो।वो चीखने चिल्लाने लगा। अब तो घरवाले भी हार मान गए। कुछ दिन बाद जब ये सब शांत हुआ लोगों के दिमाग से खत्म हो चुका था लेकिन सुगिया ने ऐसा होने नहीं दिया। लगभग 7 दिन बाद उस रास्ते में जो भी जाते उसे सुगिया की आवाज़ सुनाई पड़ती”ओ भैया ज़रा मोबाइल दीजिए ना एक नं. पर कॉल करना है। लेकिन वहाँ कोई भी उस लड़की को नहीं देख पाता केवल उसकी आवाज़ सुनाई देती थी।इस बात की पुष्टि वहाँ के गाँव वालों ने की। साथ ही आते – जाते लोगों ने कई दफ़ा कुछ सुनी भी,कुछ लोग डरे, कुछ तो मौके पर बेहोश भी हो गए। बात यही खत्म नहीं हुई। अब सुगिया मँगरू को हु – बहु अपने आस – पास दिखाई देती ।कभी उसके सपनों में तो कभी उसको पुकारती हुई ,कि तुम आओ मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूँ। अंत में मँगरू पागल हो गया,वो सिर्फ सुगिया का ही नाम लेता ।अभी मँगरू राँची के पागलख़ाने में भर्ती है। फ़िलहाल उसका इलाज चल रहा है। पर शायद वो जीना नहीं चाहता अभी भी वो बस एक ही वाक्य कहता और रोता है कि सुगिया मैं आ रहा हूँ फिर चीखता और चिल्लाता है । मँगरू के इलाज़ में विज्ञान भी फेल हो गया।उसके झाड़ – फूक भी हुए।लेकिन वो ठीक नहीं हुआ। आज के जमाने में ऐसी घटनाएँ हो रहीं हैं जिससे युवा पिढ़ी टूट सकता है।
मैं पूरे भारत वर्ष के लोगों एवं महानुभवों ,मेरे माता – पिता और तमाम अभिभावकों से पूछना चाहता हूँ कि जब आप जवान थे,आप जब प्रेम संबंध में थे,तब आपको अपना प्रेम राधा – कृष्ण जैसी लगती थी किन्तु वर्तमान युवा पीढ़ी के प्रेम में आपको वासना दिखाई पड़ता है। इस सृष्टि के निर्माण का आधार ही प्रेम है।तो क्या हक़ बनता है किसी को झूठे शान के लिए सुगिया और मँगरू जैसे प्रेमियों की जिंदगी बर्बाद करने का। मेरी कहानी में तो लड़की खुदखुशी कर ली किंतु भारत में न जाने कितने ऐसे प्रेमी युगल को जिंदा जला दिया जाता है।उन्हें जान से मार दिया जाता है।घरवाले उसका बहिष्कार कर देते हैं। इसमें सबसे ज्यादा गुनहगार गाँव के पंच,खाप, और चौधरी लोग होते हैं जो झूठे शान में पगड़ी पहन कर इतराते हैं। शायद वो डॉ०अम्बेडकर जी के संविधान से भी खुद को उपर मानते हैं।कई मामलों में तो संवैधानिक लोग जैसे पुलिस ,न्यायालय भी गुनहगारों का ही साथ देते हैं।
विश्व की सबसे बड़ी युवा पीढ़ी भारत में है।अगर ये हाल रहा तो देश के भविष्य की कल्पना आप कैसे कर सकते हैं?झूठी परम्पराओं के लिए सच्चे प्रेमियों की बलि देना, क्या ये सही है ?जैसे पानी एक जगह ठहरा रहे तो गंदगी आ जाएगी,उसमें बदबू उत्पन्न हो जाएगा।वैसे ही परम्पराएँ भी बदलने चाहिए वरना लोग विद्रोह कर देंगें।सरकार कुछ करती नहीं ताकि उनका वोट बैंक कम न हो जाए।जवान लड़की जो प्रेम संबंध में रहती है उसको मार कर घरवाले कहते हैं कि मेरी इज़्ज़त का सवाल है।लेकिन जब कन्या भ्रूण हत्या करते हैं तब हम अपनी मर्दानगी और इज़्ज़त क्यों भूल जाते हैं?जब लड़की अपनी मर्ज़ी से शादी करती है तब ही हमें अपनी झुठी इज़्ज़त का ख़्याल आता है। बेटा अगर दूसरी घर की बेटी को लेकर आए तो हम माफ कर देते हैं।एक ही समाज में एक समान न्याय क्यों नहीं?वहीं पंजाब- हरियाणा में पूरे भारत से ही नहीं अपितु पूरे विश्व से लिंगानुपात कम है इसकी पूर्ति के लिए झारखंड, बिहार और उत्तर प्रदेश आदि राज्यों से लड़कियों को खरीद कर मुफ्त में शादी कर ले जाते हैं तब इनको जाती धर्म और मज़हब नहीं याद आता है।ये एक तरह का समाज का दोगलापन है,और कुछ नहीं। कहीं न कहीं दहेज प्रथा का कारण जाती में विवाह ही है।जिस दिन अंतर्जातीय विवाह शुरू हो गया मानों दहेजप्रथा खत्म हो जाएगी इसलिए प्रेमी युगल का सम्मान करना चाहिए। भारत में इतना प्रेमियों के विरोधियों के बावजूद भी इस देश में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो प्रेम करने वालों की रक्षा करते हैं जिनका नाम है – ‘लव कमांडों’ जिसके संस्थापक संजय सचदेव हैं जिन्होंने हजारों युगलों को होने वाली दुर्घटना से बचाया है।
जब एक 18 साल का लड़का या लड़की अपने भारत देश का प्रधानमंत्री चुन सकता है तो अपना जीवनसाथी क्यों नहीं चुन सकता।हमारे भारत के सर्वोच्चय न्यायालय ने साफ – साफ कहा है कि जाति प्रथा हमारे भारत देश को पूरी तरह से बाँट रही है।इस देश को नेता और सरकारें नहीं जोड़ सकती हैं सिर्फ ‘इंटरकास्ट मैरिज’ अर्थात प्रेम विवाह ही जोड़ सकता है।

06/09/2024

तीन महीने पहले हमारा ब्रेकअप हुआ है। जानते हैं कारण ? जेब खाली हो गई है। तकरीबन 24 हजार रुपए का कर्ज चुकाना है। दोस्तों से नजर नहीं मिला पा रहा। मकान मालिक से बोला है- पिताजी बीमार हैं। पिताजी को बोला था-मैं बीमार हूं, ज्यादा पैसे चाहिए। और अपनी गुस्सेबाज गर्लफ्रेंड से कहा था- बहुत पैसे हैं जो चाहिए ले लो। लेकिन ब्रेकअप की वजह सिर्फ कर्ज नहीं है! धोखा सिर्फ लड़के ही नहीं, लड़कियां भी देती हैं।
शुभम 19 साल की उम्र से प्यार में रूमानी ख्वाब देख रहा था। 21 साल का हुआ तो पहली नजर में ही मोहब्बत में डूब गया। जिस लड़की से पहला प्यार हुआ, वह साथ में पढ़ती है। इलाहाबाद से दिल्ली आए अभी दो ही साल हुए हैं। फाइव सेंस से लेकर लोधी गार्डन, इंद्रप्रस्थ पार्क से लेकर बुद्धा गार्डन, दिल्ली में कपल्स के लिए ऐसी कौन-सी जगह है जो शुभम ने न नापी हो।
शुभम का कहना है- 'मेरे दोस्तों में ही नहीं, पूरे इलाहाबाद में प्रसिद्ध है दिल्ली का कोना-कोना नापना हो तो शुभम को पकड़ लो। कहां ज्वैलरी अच्छी मिलती है? कहां कपड़े और कहां खाना? कहां सेल लगी है और कहां मूवी टिकट पर डिस्काउंट मिल रहा है? मुझसे बेहतर इस बात को मेरे जानने वालों में कोई नहीं जानता।'
रूआंसा होते हुए शुभम फिर कहता है- 'अब मुझे इन सारी जगहों से नफरत हो गई है। रह-रहकर एक ही ख्याल आ रहा है। हाथ की नस काट लूं क्या? लेकिन मैं इतना कमजोर नहीं जो ऐसा करूंगा। मैं अब इस बात को भलीभांति जान गया हूं कि मैं उसका बैंक बैलेंस था, वह मुझसे प्यार नहीं करती थी। बस एक ही दुख- सब चीजों को समझते और जानते हुए भी मैं बेवकूफ बनता रहा '
पांच महीने पहले उसने सबके सामने मुझे सिर्फ इसलिए थप्पड़ मारा क्योंकि मैंने जींस नहीं खरीदवाई! मेरा फोन छीनकर पटक दिया। मुझे भिखारी कहकर चल दी। मेरा पर्स भी ले गई। यह घटना साकेत मॉल की है। वहां से लोधी गार्डन तक मैं कैब में आया और फिर दोस्त से पैसे मांगकर ड्राइवर को दिए। थप्पड़ खाने से पहले हमने साथ में फिल्म देखी थी। साथ ही मैं खाना भी खाया था।
इस घटना से एक हफ्ते पहले ही मैंने उसे जमकर शॉपिंग करवाई थी। दो महीने से मैं किराए के पैसे कम दे रहा था और दोस्त इसकी भरपाई कर रहे थे। उसे मनाने के लिए मैं अपने दोस्तों से पैसे मांगकर फिर वापस साकेत आया और वही जींस खरीदी। मेरे ऊपर दिन ब दिन कर्जा बढ़ते जा रहा था। और वह खर्च कराने में पीछे नहीं हटती थी।
मुझे सब समझ आ रहा था, लेकिन आंखों पर प्यार की पट्टी जो चढ़ी थी, सोचता था- एक दिन वह समझेगी कि मैं उसके साथ क्यों घूमता हूं? उसकी हर बात क्यों मानता हूं? उसकी हर जिद को पूरा क्यों करता हूं? मुझे लगता था, वह मेरे भीतर की मोहब्बत को समझेगी।
लेकिन उसे इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता था। हमारा रिलेशनशिप ऐसा ही चलता आ रहा था। दोस्तों के साथ बैठने पर वे हंसते थे। गर्लफ्रेंड के साथ रहता तो कब भड़क जाए यह टेंशन बनी रहती। क्लास में भी वह अचानक मेरे ऊपर चिल्ला देती। गुस्सा हो जाती। उसकी वजह से मैं दोस्तों से बिल्कुल कट गया था।
उसके साथ शॉपिंग। उसका असाइनमेंट। उसका रिचार्ज। यहां तक की कई बार उसके दोस्तों के लिए भी मूवी टिकट मैं ही बुक कराता। जरा-सा मेरा फोन बिजी रहता तो वह इतना भड़क जाती और गालियां तक देने लगती। और उसका फोन घंटों बिजी रहने पर मैं यह भी नहीं पूछ सकता था किससे बात कर रही हो?
मेरे सारे दोस्त मुझे प्रताड़ित प्रेमी कहने लग गए थे। मुझे यह भी मंजूर था क्योंकि इलाहाबाद से दिल्ली आने पर मुझे पहली नजर में ही उससे प्यार हो गया था। और यह सब चलता रहता अगर मुझे शक नहीं होता।
दरअसल, रीना सिर्फ मुझे बेवकूफ बना रही थी। वह प्यार किसी और से करती थी। मैंने उसके सारे चैट पढ़ लिए थे। जिन में वह मेरे ऊपर जबरदस्ती पीछे पड़ने का इल्जाम लगा रही थी। जब मैंने उससे पूछा तो वह भड़क गई और हमारे बीच लड़ाई हुई। उसने मुझसे कहा- 'क्या मैंने कभी तुम्हें प्यार का इजहार किया?'
उसकी इस बात को मैं समझ नहीं पा रहा था। हजार बार से भी ज्यादा प्रेम का इजहार करने। हर दिन लव यू कहने।एक साल से रिलेशनशिप में होने के बाद भी वह यह पूछ रही थी। सारे दोस्तों को पता था कि वह मेरी गर्लफ्रेंड है। और वह अचानक मुझ पर बरस रही थी।
उसने मुझे एक और थप्पड़ जड़ा और मेरी शिकायत अपने ब्वॉयफ्रेंड से करने की धमकी देने लगी। उसकी इन बातों को सुनकर मैं हैरान था! मैंने उससे पूछा तो हमारे बीच कुछ नहीं है। वह गुस्से से बोल रही थी कुछ भी नहीं है। तुम्हें पता होना चाहिए मेरा ब्वॉयफ्रेंड है। मैंने कहा- कब से है? उसका जवाब था- स्कूल के वक्त से ही है।
एक साल से हमारी लड़ाई चल रही थी। अब वह वापस आ गया है। मैं तुम्हारे सारे पैसे दे दूंगी। अपने गिफ्ट वापस ले लेना। तुम मेरे टाइप नहीं हो। हमारे बीच प्यार कैसे हो सकता है?' और वह यह कहते हुए चले गई और मुझे कभी बात नहीं करने की धमकी भी दे गई।
एक घंटे बाद उसके ब्वॉयफ्रेंड का फोन आया और जमकर गालियों से मेरा स्वागत हुआ। इस वक्त मेरे ऊपर 24 हजार से ज्यादा का उधार है। किरायेदार के लिए मेरे पिता जी बीमार हैं और पिताजी के लिए दिल्ली में मैं बीमार हूं। और दोस्त मेरे ऊपर हंसते हैं। एक साल के पैसे का हिसाब आप खुद लगा लो जब दो महीने के इतने हैं तो..।
मैं हूं कि अब भी लगता है वह मुझे प्यार करती है!

01/09/2024

मेरी तरह ही ज्यादातर लड़कियां प्यार में हिंसा और जबरदस्ती की शिकार होती हैं। विरोध करने की जगह चुप्पी साध लेती हैं। बॉयफ्रेंड की जबरदस्ती को नियति मान बैठती हैं। रिलेशनशिप के शुरुआती दो साल मैंने भी वह सबकुछ झेला, सहन किया जो ज्यादातर लड़कियां करती हैं।

दरअसल, मैं उसे खुद से भी ज्यादा प्यार करती थी औ यही वजह थी कि उसकी हिंसक प्रवृत्ति भी मेरी आंखें नहीं खोल पा रही थी। बात-बात पर उसका गुस्सा हो जाना, एकदम से हाथ उठा देना और जबरदस्ती, शारीरिक संबंध बनाना व मेरे गुस्सा होने पर हर चीज का सरलीकरण कर देना। मैं यह सब झेल रही थी, क्योंकि मुझे लगता था धीरे-धीरे वह सुधर जाएगा और शादी के बाद सबकुछ ठीक हो जाएगा। लेकिन यह मेरी भूल थी और अपने ऊपर होने वाली ज्यादती के लिए मैं खुद जिम्मेदार थी।

हमारे रिश्ते की शुरुआत चंडीगढ़ से हुई। पढ़ाई के दौरान वो मुझे मिला। मिला क्या दरअसल वो मेरा सीनियर था और एक साल के भीतर ही हम रिलेशनशिप में आ गए। खूब बातें होने लगी। मैं जब भी बीमार पड़ती सबसे ज्यादा परवाह वो ही करता। मुझे डॉक्टर के पास ले जाने से लेकर दवाई लाने और छोटी-छोटी बातों पर हालचाल जानने तक, ऐसा लगता कि दुनिया में मेरे सिवाय उसके लिए कोई दूसरी चीज मायने ही नहीं रखती है।

मैं अपनी सहेली के साथ हॉस्टल में रह रही थी और वो दोनों एक ही जगह के थे। पता नहीं कब मेरी सहेली उसकी बहन बन गई और (हंसते हुए) उसने हर बात पर उसकी इतनी तारीफ की कि मेरी आंखों पर पट्टी बंध गई। रूम में जब भी कोई बात होती बिना राकेश (काल्पनिक नाम) के बात की शुरुआत ही नहीं होती थी। हर बात के केंद्र में वो ही रहता। उससे ही बातें शुरू होती और उस पर ही खत्म होती।

पता ही नहीं चला कि मेरे मन के भीतर वह एक नायक की भूमिका में कब बस गया? बाकी लड़कों से एकदम अलग लगने लगा। मैं अपनी हर छोटी-छोटी बातें शेयर करने लगी। एक दिन भी बात नहीं होती तो मेरे भीतर निराशा का भाव जागने लगता। अंदर से न जाने कैसी बिजली कौंध उठती कि मैं आतुर हो उठती बात करने और मिलने के लिए।

इस तरह मैं उसके साथ घंटों बिताने लगी। पता ही नहीं चला कब कॉलेज में उसका आखिरी साल आ गया। अभी आपके सामने उसकी बात कर रही हूं तो एक क्रूर गुंडे की तरह उसका चेहरा मेरे आंखों के आगे उभर आ रहा है जबकि उस वक्त ये ही वही चेहरा था जो मुझे बाकी सभी चेहरों से एकदम अलग और मासूम लगता था।

खैर, यादें काफी लंबी हैं। साल 2013 था हम रांझणा फिल्म देखकर लौट रहे थे। कोमल (बदला नाम) भी साथ थी। हम हॉस्टल न जाकर सीधे उसके कमरे पर चले गए। यह कोमल का ही प्लान था और मुझे भी कोई आपत्ति नहीं थी। खाना बाहर से ही पैक कराकर लाए थे।

ड्रिंक, खूब बातचीत और खाना खाने के बाद कोमल दूसरे कमरे में सोने चली गई। अब मैं और वो ही साथ थे। मैं उसकी बाहों में न जाने कितने सपने देखने लगी? वो कुछ और ही चाहता था और मैं तैयार नहीं थी। मैंने ऐसा कुछ सोचा भी नहीं था। इसलिए.. जब उसकी छेड़खानी बढ़ने लगी तो मैं एकदम से गुस्सा हो गई और कोमल के साथ दूसरे रूम में जाने लगी। उसको यह बात इतनी नागवार गुजरी की वो झटके से बौखला गया। उसने मेरे पूरे शरीर को झकझोरते हुए मुझे वापस खींच लिया और जोरों से एक चाटा जड़ दिया।

आंखों से बस आंसू ही बहते रहे। कुछ समझ में नहीं आया। दिमाग सन्न रह गया था। बिस्तर पर वो मेरे शरीर को नोंच रहा था और मैं बेजान और बेसुध पड़ी थी। एक मन होता जोर से चिल्लाऊं, खूब रोऊं और कोई भारी चीज उसके सिर में मारकर कोमल के पास चली जाऊं।

मैं अंदर से टूट गई थी और उसे बस अपनी भूख मिटानी थी। मेरे आंसू, बेसुध पड़ा शरीर और सिसकियां उसे किसी चीज से मतलब नहीं था। उस रात तीन बजे तक मैं रोती रही और उसने एक बार भी मुझे नहीं मनाया। उल्टा वो बिस्तर पर सो रहा था।

अगले दिन मैंने कोमल को सारी बातें बताई, उसने जो बोला मुझे अपने कानों पर यकीन ही नहीं हुआ। उसका कहना था रिलेशनशिप में यह आम बात है। भूल जाऊं। एक हफ्ते तक मैं इतना गुस्सा थी कि उसकी शक्ल भी देखना नहीं चाहती थी, लेकिन घर में कोमल, फोन और मैसेज में उसका भोलापन, माफी के मैसेज और बार-बार फोन। पता नहीं क्या हुआ- मैं उससे अपने रिलेशनशिप को खत्म नहीं कर पाई।

कई बार ऐसा ही हुआ। वैसे वह सामान्य रहता, लेकिन जब उसका मन शारीरिक संबंध बनाने का होता, वह खूंखार में तब्दील हो जाता। हाथ उठाने से भी गुरेज नहीं करता। गालियां देने लगता। ऐसा ही चलता रहा और वो दिन भी आ गया जब कॉलेज में उसकी विदाई की पार्टी थी। उस दिन भी उने वैसा ही किया जैसे राझणा फिल्म देखने के बाद। (मैं पूरी घटना बताना नहीं चाहती )। इसके बाद मैंने उससे दूरी बना ली। वो कई-कई फोन करता, मैं कम का ही जवाब देती। मुझे उससे नफरत हो गई थी। कॉलेज खत्म हुआ मैं दिल्ली आ गई और यहां एक प्राइवेट कंपनी में काम करने लगी।

फिर मेरी उससे कोमल की शादी में मुलाकात हुई। शादी मुंबई में थी और वह भी आया था। उसके और मेरे बीच दूरी थी, लेकिन वह ऐसा दिखा रहा था जैसे उसकी कोई गलती न हो, बेहद भोला हो। मैं उसकी शक्ल भी देखना नहीं चाहती थी लेकिन दोस्तों के बीच बेमन से उसकी बातों का जवाब दे रही थी।

अचानक फेरों के वक्त वह मेरे करीब आ गया और उसने मेरा हाथ पकड़ लिया। उसका स्पर्श होते ही मैं अंदर तक हिल गई। पूरा शरीर मानो पसीना-पसीना होने लगा। मैंने उसके हाथ को झटका और वहां से दूर हो गई। वह मुस्काराता रहा था। उसकी शक्ल अभी भी भोली लग रही थी लेकिन अंदर से वो किसी जानवर से कम नहीं था जो सिर्फ शरीर का भूखा हो।

28/08/2024

मेरा नाम सुमन है. मेरी शादी एक बड़े घर में हुई है. मेरे पति विनीत की फैमिली का अच्छा बिज़नेस है. विनीत एकलौते बेटे हैं।

सास-ससुर, मैं, और विनीत—हम चार लोगों का ही परिवार है. विनीत और पापा जी सारा बिज़नेस संभालते हैं, इसलिए उनके काम से वापस आने का कोई समय नहीं होता है. विनीत अब एक नया काम शुरू करने वाले हैं, जो एक नई जगह पर है. वहाँ पर हमारा एक फार्महाउस भी है, इसलिए हम दोनों कुछ दिन वहीं जाकर रहेंगे. फार्महाउस में समय बिताने के साथ विनीत अपना काम भी करते रहेंगे. सुबह जल्दी ही हम लोग फार्महाउस में पहुंच गए.

फार्महाउस की देखरेख के लिए एक नौकर, रामू, था. वह वहीं पास के एक कमरे में रहता था. हम जैसे ही पहुँचे, दूर से रामू दौड़ता हुआ हमारी कार के पास आया. आकर उसने ही कार का दरवाजा खोला और नमस्ते मालकिन कहते हुए हँसते हुए बोला. विनीत ने कहा, यह रामू है, हमारे फार्म की देखभाल करता है.

मैं अंदर जाकर बैठी. थोड़ी देर बाद विनीत अपने काम में बिजी हो गए. उन्होंने रामू से कहा कि मैडम को फार्म दिखा दो. रामू बोला, ठीक है साहब. वह मुझे फार्म दिखाने ले गया. फार्म में हम घूम रहे थे, तभी गेट के बाहर से एक लगभग 6-7 साल की लड़की ने रामू को आवाज लगाई, जो स्कूल से वापस जा रही थी. रामू बोला, मैडम, मैं आता हूँ. वह गेट पर खड़ा होकर उस लड़की से बात करने लगा. मेरी नजर पड़ी तो वह लड़की मेरी तरफ ही देखे जा रही थी.

फिर रामू वापस आकर बोला, मैडम, आप आराम करिये, मैं आता हूँ. ऐसा बोलकर वह चला गया. अगले दिन सुबह फिर विनीत अपने काम से जल्दी चले गए. मैं सुबह सोकर उठी तो मुझे दरवाजे पर रामू दिखाई दिया. मैंने पूछा, क्या कर रहे हो यहाँ पर? उसने बोला, मैडम, अभी आया हूँ चाय लेकर. मैंने कहा, ठीक है, यहाँ टेबल पर रख कर चले जाओ. फिर मैं नहा कर किचन में गई, तो रामू वहीँ था, और अपना कुछ काम कर रहा था. फिर उसने मुझसे बातें करने की कोशिश की, लेकिन मैं उसकी बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रही थी.

यहाँ का पुराना नौकर था, इसलिए मैं उसकी बातें सुन भी रही थी. अगर ऐसा नहीं होता, तो शायद मैं उसे डांट देती. यहाँ आये हुए मुझे 2-3 दिन हो गए थे और मैंने नोटिस किया कि वह मुझसे बातें करने की कोशिश लगातार करता ही रहता था. एक दोपहर मैं कमरे में अकेली बैठी थी, तभी अचानक रामू कमरे में आता है और बोलता है, मैडम, मुझे कुछ पूछना है. मैंने कहा, क्या? उसने कहा, मैडम, आप बुरा मत मानना, पर क्या मैं आपकी एक फोटो ले सकता हूँ? मेरे मुँह से निकला, क्या? बाहर निकलो अभी कमरे से!

रामू बोला, मैडम, आप गलत समझ रही हैं, मेरी बात तो सुनिए. मुझे अचानक गुस्सा आ गया, और मैंने कहा, बाहर निकलो, या अभी तुम्हारे साहब को फोन करूँ. इतना बड़ा घर, और मेरे लिए तो अनजान ही था. ऊपर से वह इस तरह की बातें कर रहा था. मुझे कुछ अजीब लगा. मैंने सोचा, शाम को विनीत आएंगे तो सबसे पहले उसकी छुट्टी करवा दूँगी.

शाम को विनीत आए तो मैंने उन्हें सब बताया. विनीत मानने को तैयार ही नहीं थे. बोले, "यह कई सालों से है, उसकी एक बच्ची भी है. तुम कुछ गलत समझ रही हो." उसकी बच्ची के बारे में मुझे पता नहीं था. मैंने कहा, "कई सालों से यहाँ कोई लड़की भी नहीं आई थी." विनीत ने कहा, "रुको, अभी उसे बुलाकर बात करते हैं."

विनीत ने रामू को आवाज लगाई. रामू आया तो विनीत ने कहा, "क्या हुआ, रामू? तुम्हारी मैडम कुछ कंप्लेंट कर रही हैं." रामू ने कहा, "साहब, मैंने सिर्फ फोटो लेने को कहा था." विनीत ने पूछा, "क्यों चाहिए तुम्हें फोटो?" रामू ने कहा, "साहब, आप तो जानते हैं, मेरी 7 साल की एक बच्ची है. उसकी माँ उसके पैदा होते ही चल बसी थी, और जब वह 2 साल की थी, तब हमारे घर में आग लग गई थी. भगवान की कृपा से हम तो बच गए, लेकिन उसकी माँ की सारी निशानियाँ खत्म हो गईं."

"बिना माँ की बच्ची को संभालना बड़ा मुश्किल होता है, साहब. मैडम, उस दिन जब मैं आपको फार्म दिखा रहा था, तब स्कूल से घर वापस जाते वक्त उसने हमें देख लिया. मेरा घर यहीं थोड़ी दूर पर है, उसकी दादी उसे संभालती है. हमेशा मुझसे पूछती रहती थी कि पापा, मेरी माँ कैसी दिखती थी, कैसी चलती थी, कैसे बातें करती थी. मैं उसे कहता था कि वह बहुत सुन्दर थी. यहाँ गाँव में उसके जैसा कोई नहीं है. जब उसने आपको देखा, तो उस दिन उसने यही पूछा कि पापा, मम्मी ऐसी थी? मैंने कहा, हाँ, ऐसी ही थी. तब से जिद पर अड़ गई कि मुझे मैडम से मिलना है. वह मेरी मम्मी जैसी है."

"वह अब स्कूल नहीं जा रही. इसीलिए मैंने आपसे बात करने की कोशिश की, ताकि आपको यह सब बता सकूँ. लेकिन आपका स्वभाव अलग है. फिर उसने आज सुबह से कुछ खाया नहीं. बोल रही है, 'पापा, फोटो लाना, मैं अपने स्कूल वाले दोस्तों को दिखाऊंगी कि मेरी मम्मी ऐसी थी.' तो मैंने कहा कि मैं तुझे फोटो लेकर दिखा दूँगा. वह बोली, पक्के से लाना."

इतना कहकर रामू फूट-फूट कर रोने लगा. रोते हुए ही बोला, "बच्ची है, मैडम, उसका नसीब ही ऐसा है. पैदा होते ही माँ मर गई और बाप मुझ जैसा मिला. मैडम, हम साहब से कुछ भी बोल देते थे. साहब का कभी मुझे डर नहीं लगा. यही आदत मुझे पड़ गई, और मैंने आपको भी अपना समझ कर बोल दिया. आप मुझे बताने देतीं, तो मैं आपको भी बता देता."

रामू की बातें सुनकर मुझे अपने आप पर गुस्सा आया. विनीत ने रामू को चुप कराया और कहा कि, "बच्ची को वहाँ क्यों रखते हो? उसे यहीं रखो. इतना बड़ा फार्महाउस है." अगले दिन सुबह रामू अपनी बच्ची को लेकर आया. वह बच्ची को दूर से ही मुझे दिखा रहा था, शायद अब भी झिझक रहा था. मैं खुद बच्ची के पास गई और कहा, "अरे, हम यहाँ 4 दिन से हैं, और आप अब आ रही हो?" मेरे ऐसा कहने पर बच्ची के चेहरे पर जो मुस्कान आयी, वह अनमोल थी. वह मुझसे लिपट गई.

जब तक मैं वहाँ रही, मैं उसके साथ खेलती और हँसती रही. एक अलग खुशी मिल रही थी. अब वह एक वजह बन गई थी, मेरे वहाँ बार-बार जाने की !

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24/08/2024

फेसबुक पर मौजूद सभी महिलाएं एक बार यह कहानी जरूर पढ़े....

सलोनी ने आज कई दिनों के बाद फेसबुक खोला था, एग्जाम के कारण उसने अपने स्मार्ट फोन से दूरी बना ली थी, फेसबुक ओपन हुआ तो उसने देखा की 35-40 फ्रेंड रिक्वेस्ट पेंडिंग पड़ी थीं,

उसने एक सरसरी निगाह से सबको देखना शुरू कर दिया, तभी उसकी नज़र एक लड़के की रिक्वेस्ट पर ठहर गई, उसका नाम राजशर्मा था,

बला का स्मार्ट और हैंडसम दिख रहा था अपनी डी पी में, सलोनी ने जिज्ञासावश उसके बारे मे पता करने के लिये उसकी प्रोफाइल खोल कर देखी तो वहाँ पर उसने एक बढ़कर एक रोमान्टिक शेरो शायरी और कवितायें पोस्ट की हुई थीं, उन्हें पढ़कर वो इम्प्रेस हुए बिना नहीं रह पाई, और फिर उसने राज की रिक्वेस्ट एक्सेप्टकर ली, अभी उसे राज की रिक्वेस्ट एक्सेप्ट किये हुए कुछ ही देर हुई होगी की उसके मैसेंजर का नोटिफिकेशनटिंग के साथ बज उठा, उसने चेक करा तो वो राज का मैसेज था, उसने उसे खोल कर

देखा तो उसमें राज ने लिखा था " थैंक यू वैरी मच ", वो समझ तो गई थी की वो क्यों थैंक्स कह रहा है फिर भी उससे मज़े लेने के लिये उसने रिप्लाई करा " थैंक्स किसलिये ?" उधर से तुरंत जवाब आया " मेरी रिक्वेस्ट एक्सेप्ट करने के लिये

सलोनी ने कोई जवाब नहीं दिया बस एक स्माइली वाला स्टीकर पोस्ट कर दिया और फिर मैसेंजर बंद कर दिया, वो नहीं चाहती थी की एक ही दिन में किसी अनजान से ज्यादा खुल जाये और फिर वो घर के कामों में व्यस्त हो गई, अगले दिन उसने अपना फेसबुक खोला तो उसे राज के मैसेज नज़र आये, राज ने उसे कई रोमान्टिक कवितायें भेज रखीं थीं, उन्हें पढ़ कर उसे बड़ा अच्छा लगा, उसने जवाब में फिर से स्माइली वाला स्टीकर सेंड कर दिया,

थोड़ी देर मे ही राज का रिप्लाई आ गया, वो उससे उसके उसकी होबिज़ के बारे मे पूँछ रहा था,

उसने राज को अपना संछिप्त परिचय दे दिया, उसका परिचय जानने के बाद राज ने भी उसे अपने बारे मे बताया कि वो एम बीए कर रहा है और जल्दी ही उसकी जॉब लग जायेगी, और फिर इस तरह से दोनों के बीच चैटिंग का सिलसिला चल

निकला,सलोनी को अब उसके मेसेज का इंतज़ार रहने लगा था, जिस दिन उसकी राज से बात नहीं हो पाती थी तो उसे लगता जैसे कुछ अधूरापन सा है, राज उसकी ज़िन्दगी की आदत बनता जा रहा था, आज रात फिर सलोनी राज से चैटिंग कर रही थी, इधर-उधर की बात होने के बाद राज ने सलोनी से कहा..

" यार हम कब तक यूंहीं सिर्फ फेसबुक पर बाते करते रहेंगे, यार मै तुमसे मिलना चाहता हूँ, प्लीज कल मिलने का प्रोग्राम बनाओ ना ",

सलोनी खुद भी उससे मिलना चाहती थी और एक तरह से उसने उसके दिल की ही बात कह दी थी लेकिन पता नहीं क्यों वो उससे मिलने से डर रही थी,

शायद अंजान होने का डर था वो, सलोनी ने यही बात राज से कह दी," अरे यार इसीलिये तो कह रहा हूँ की हमें मिलना चाहिये, जब हम मिलेंगे तभी तो एक दूसरे को जानेंगे "

राज ने उसे समझाते हुए मिलने की जिद्द की," अच्छा ठीक है बोलो कहाँ मिलना है, लेकिन मैं ज्यादा देर नहीं रुकुंगी वहाँ " सलोनी ने बड़ी मुश्किल से उसे हाँ की, "

ठीक है तुम जितनी देर रुकना चाहो रुक जाना " राज ने अपनी खुशी छिपाते हुए उसे कहा,

और फिर वो सलोनी को उस जगह के बारे मे बताने लगा जहाँ

उसे आना था,

अगले दिन शाम को 6 बजे, शहर के कोने मे एक सुनसान जगह पर एक पार्क, जहाँ पर सिर्फ प्रेमी जोड़े ही जाना पसंद करते थे, शायद एकांत के कारण, राज ने सलोनी को वहीँ पर बुलाया था,

थोड़ी देर बाद ही सलोनी वहाँ पहुँच गई,

राज उसे पार्क के बाहर गेट के पास अपनी कार से पीठ लगा के खड़ा हुआ नज़र आ गया,

पहली बार उसे सामने देख कर वो उसे बस देखती ही रह गई, वो अपनी फोटोज़ से ज्यादा स्मार्ट और हैंडसम था,

सलोनी को अपनी तरफ देखता हुआ देखकर उसने उसे अपने पास आने का इशारा करा, उसके इशारे को समझकर वो उसके पास आ गई और मुस्कुरा कर बोली "

हाँ अब बोलो मुझे यहाँ किसलिये बुलाया है "

'अरे यार क्या सारी बात यहीं सड़क पर खड़ी-2 करोगी,आओ कार मे बैठ कर बात करते हैं "

और फिर राज ने उसे कार मे बैठने का इशारा करके कार का पिछला गेट खोल दिया, उसकी बात सुनकर सलोनी मुस्कुराते हुए कार मे बैठने के लिये बढ़ी,

जैसे ही उसने कार मे बैठने के लिये अपना पैर अंदर रखा तो उसे वहाँ पर पहले से ही एक आदमी बैठा हुआ नज़र आया, शक्ल से वो आदमी कहीं से भी शरीफ नज़र नहीं आ रहा था, सलोनी के बढ़ते कदम ठिठक गये, वो पलट कर राज से पूँछने ही

जा रही थी की ये कौन है कि तभी उस आदमी ने उसका हाँथ

पकड़ कर अंदर खींच लिया और बाहर से राज ने उसे अंदरधक्का

दे दिया, ये सब कुछ इतनी तेजी से हुआ की वो संभल भी नहीं पाई, और फिर अंदर बैठे आदमी ने उसका मुँह कसकर दबा लिया ताकि वो चीख ना पाये और उसकेहाँथों को राज ने पकड़ लिया,

अब वो ना तो हिल सकती थी और ना ही चिल्ला सकती थी, और तभी कार से दूर खडा एक आदमी कार मे आ के ड्राइविंग सीट पर बैठ गया और कार स्टार्ट करके तेज़ी से आगे बढ़ा दी, और पीछे बैठा आदमी जिसने सलोनी का मुँह दबा रखा था वो हँसते हुए राज से बोला " वाह भाई वाह....... मज़ा आ गया....... आज तो तुमने तगड़े माल पर हाँथ साफ़ करा है....

शबनम बानो इसकी मोटी कीमत देगी "

उसकी बात सुनकर उर्फ़ राज मुँह ऊपर उठा कर ठहाके लगा के हँसा, उसे देख कर ऐसा लग रहा था जैसे कोई भेड़िया अपने पँजे मे शिकार को दबोच के हँस रहा हो, और वो कार तेज़ी से शहर के बदनाम इलाके जिस्म की मंडी की तरफ दौड़ी जा रही थी......

ये कोई कहानी नहीं बल्कि सच्चाई है छत्तीसगढ़ की सलोनी ।

जो मुम्बई से छुड़ाई गई है ।

ये सलोनी की कहानी उन लड़कियो को सबक देती है जो सोशल मीडिया से अनजान लोगो से दोस्ती कर लेती है और अपनी जिंदगी गवां लेती है ।

शेयर जरूर करे ताकि कोई और सलोनी ऐसी दलदल में ना फंस जाए...

23/08/2024

शीना अपने भाग्य पर इतराते नहीं थकती थी। किसी परी-कथा सी घटना थी उसकी शादी। एक शादी की पार्टी में उसे देखकर दीवाने हो गए अभि ने खुद उसके घर अपना रिश्ता भिजवाया था। अभि के पास सब कुछ था। जमा-जमाया बिजनेस, बंग्ला, सभी सुख-सुविधाएं, नौकर-चाकर। फिर भी उसके माता-पिता बड़े विनत भाव से रिश्ता लेकर आए थे। वे एक छोटे से शहर में बसे थे और अभि अपने बिजनेस की वजह से इस बड़े शहर में।
हनीमून भी किसी रोमांटिक फिल्म की तरह बीता। अभि के चुंबनो में वो पैशन और बांहों में कसने के अंदाज में वो रूमानियत थी कि शीना का तनमन मीठी सी झुरझुरी से सराबोर रहता। जब वे बाहर घूम रहे होते तो अभि की निगाहों को सिर्फ खुद पर जमी देख शीना खुशी से इतराती रहती। और कमरे में होने पर हर पल बिस्तर की सिलवटें गवाह रहतीं उस मीठे प्यार की जो नशे की तरह उनकी रगों में सिहरन बनकर दौड़ता रहता।

हनीमून से लौटे भी छह महीने हो गए थे, लेकिन अभि के प्यार में कोई कमी नहीं आई। वो ऑफिस जाता तो समय पर, लेकिन अक्सर अचानक जल्दी लौट आता। आते ही उसे बांहों में कसकर ऐसे चुंबनों की बौझार शुरू कर देता जैसे महीनों का बिछड़ा हो।

एक दिन ऑफिस में छुट्टी थी। अभी उसे बेडरूम से बाहर ही नहीं निकलने दे रहा था तो शीना ने कह दिया, “मुझे तकलीफ होती है। इतना प्यार मेरा शरीर बर्दाश्त नहीं कर सकता।”

अभि ने तुरंत उससे दूरी बना ली। फिर बड़े प्यार और शर्मिंदगी भरे भाव से बोला, “पहले क्यों नहीं बताया?”

एक दिन शीना के पास उसकी बड़ी बहन का फोन आया कि वो एक दिन के लिए मायके आ रही है, तो वह भी आ जाए। शीना बहुत खुश हुई। उसकी बहन दूसरे शहर में रहती थी। मायके में कुछ घंटे गुजारने के उत्साह में वह खुशी-खुशी तैयार हुई। अभि को मैसेज करके निकल गई कि वो ऑफिस से वहीं आ जाए। फिर शाम को उसके साथ ही वापस आ जाएगी।

जब अभि वहां पहुंचा तो सब बैठकर गप्पें लड़ा रहे थे। उसके आने से सब और खुश हो गए। पर वो शीना का हाथ पकड़कर बोला, “कुछ काम है, अलग कमरे में आओगी क्या?”

अलग कमरे में लाकर अभि ने उसे बांहों में भरकर प्यार करना शुरू कर दिया। उस दिन पहली बार शीना को अभि का ‘पैशन’ बिल्कुल पसंद नहीं आया। साथ गप्पें लड़ाते, चाय नाश्ता करते सबकी तिरछी मुस्कान उसे शर्म से भिगोती रही।

फिर एक दिन इंटीरियर डेकोरेटर और ऑर्किटेक्ट एक साथ आए। अभि ने खुशी से झूमते हुए बताया कि उसने बंग्ले के साथ वाली जमीन खरीद ली है और उसमें ऑफिस बनवा रहा है ताकि उसे शीना से दूर न जाना पड़े। सुनकर शीना को बिल्कुल खुशी नहीं हुई। अब वह इस प्यार से ऊबने लगी थी।

एक दिन उसने प्यार से अभि को समझाना चाहा, “मैं कुछ दिन के लिए मायके जाना चाहती हूं।”

“रोज़ जाओ, ड्राइवर और गाड़ी तो तुम्हारे लिए अलग से रखी ही है। और कोई दिक्कत?” अभि ने तुरंत जवाब दिया।

“मैं मायके में कुछ दिन रहना चाहती हूं।”

“ठीक है, हमारा सामान पैक कर लो।” अभि ने फिर दो टूक जवाब दे दिया।

अब शीना खीझ उठी, “समझा करो अभि, मेरे शरीर को प्यार से ब्रेक चाहिए। मैं थक गई हूं।”

“बस इतनी सी बात? अब से जब तक तुम नहीं कहोगी, मैं तुम्हारे शरीर को अपने प्यार से नहीं थकाउंगा। पर कभी-कभी तुम्हें हौले से बांहों में तो भर सकता हूं? ऑफिस जाते समय और लौटने पर माथे पर चुंबन चलेगा? खुद को मेरी निगाहों से दूर मत करो। मैं मर जाऊंगा।” शीना ने मन ही मन सिर पीट लिया।

वह कई दिनों तक अभि का टेस्ट लेती रही और अभि उसमें पास होता रहा। फिर एक रात उसे अभि पर दया आ गई। उसके कुछ दिनों बाद तक अभि कुछ ज्यादा ही पैशनेट रहा।

बड़ों ने सलाह दी बच्चे की प्लानिंग करने की। शीना ने अभि से कहा तो उसने बड़े प्यार से उसे बताया कि वो शादी से पहले ही नसबंदी करा चुका है ताकि उनके बीच कोई तीसरा न आए।

शीना शॉक्ड रह गई। एक दिन अभि के साथ शीना घूमने गई तो एक स्टेशनरी की दुकान पर निगाह टिक गई। शो-केस में सजे अलग शेप्स के कैनवास और रंगो को देखकर हसरत से बोली, “मुझे पेंटिंग करने का बड़ा शौक था। शादी से पहले मैंने अपना एक कलेक्शन तैयार किया था एग्जीबिशन के लिए, पर हॉल ही नहीं मिला।”

दूसरे दिन अभि उसकी आंखें अपनी हथेलियों से बंद कर एक कमरे में ले गया जहां पेंटिंग का सारा सामान और तरह-तरह के कैनवास सजे थे। फिर एक लिफाफा पकड़ाते हुए बोला, “मैंने तुम्हारे लिए एक एग्जीबिशन हॉल खरीद लिया है ताकि तुम जब चाहो अपनी चाहत पूरी कर सको।”

“एग्जीबिशन हॉल तो किराए पर ले लिया जाता है। उसे खरीदने की क्या जरूरत थी?” शीना ने चकित होकर पूछा।

“अगर मैं तुम्हारी इच्छा पूरी न कर पाऊं तो मैं पति किस काम का? मुझे तो अफसोस है कि मुझे तुम्हारी इच्छा पहले नहीं पता चली।” शीना ने अभि के माता-पिता को सब कुछ बताया तो वे उसके साथ रहने आ गए।

उन्हें लगा कि उनके घर में होने से जरूर कुछ फर्क पड़ेगा, पर हुआ इसका उलट। वे अभि को समझाने की जितनी कोशिश करते वो उतना ही बिछड़ने के डर से डरे बच्चे की तरह उससे लिपटता जाता।

शीना को समझ नहीं आया कि वह इतना प्यार पाकर चकित है, खुश है या डर गई है। धीरे-धीरे उसके मन में साफ हो गया कि उसे अपनी ‘स्पेस’ चाहिए ही चाहिए। यहां तक कि वह तलाक लेने की सोचने लगी। पर रीजन क्या देगी?

शादी के इन दो सालों में अभि ने एक बार भी उससे ऊंची आवाज में बात नहीं की, न उसकी मर्जी के खिलाफ उसके शरीर को छुआ, न कहीं जाने या कुछ करने से मना किया।

शीना की उलझन बढ़ती जा रही है। उसे इस प्यार की जकड़न से आजादी चाहिए। प्यार की इस अति से उसे घुटन होने लगी है। वह खुलकर जीना चाहती है, जहां उसके पास कुछ समय अपने लिए भी हो।

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