Vijay Ki Yatra

Vijay Ki Yatra भगवदगीता अर्थ एवं लघु भावार्थ

02/10/2025

BG/14/3
हे भरतपुत्र! ब्रह्म नामक समग्र भौतिक वस्तु जन्म का स्रोत है और मैं इसी ब्रह्म को गर्भस्थ करता हूं, जिससे समस्त जीवों का जन्म संभव होता है।
भगवान् कहते हैं कि सबके पिता ब्रह्मा हैं, और मैं ब्रह्मा को जन्म देने वाला हूं।
। हरे कृष्ण 🙏।

01/10/2025

BG/14/2
इस ज्ञान में स्थिर होकर मनुष्य मेरी जैसी दिव्य प्रकृति को प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार स्थित हो जाने पर वह न तो सृष्टि के समय उत्पन्न होता है और न प्रलय के समय विचलित होता है।
पूर्ण दिव्य ज्ञान प्राप्त कर लेने बाद मनुष्य भगवान् से गुणात्मक समता प्राप्त कर लेता है और जन्म मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है।
। हरे कृष्ण 🙏।

30/09/2025

BG/14/1
प्रकृति के तीन गुण
भगवान् ने कहा अब मैं तुमसे समस्त ज्ञानों में सर्वश्रेष्ठ इस परम ज्ञान को पुनः कहूंगा, जिसे जान लेने पर समस्त मुनियों ने परम सिद्धि प्राप्त की है।
सातवें अध्याय से लेकर बारहवें अध्याय तक श्री कृष्ण परम सत्य भगवान् के विषय में विस्तार से बताते हैं। अब भगवान् स्वयं अर्जुन को और आगे ज्ञान देने की कह रहे हैं।
। हरे कृष्ण 🙏।

29/09/2025

BG/13/35
जो लोग ज्ञान के चक्षुओं से शारीर तथा शरीर के ज्ञाता के अंतर को देखते हैं और भव बंधन से मुक्ति की विधि को भी जानते हैं, उन्हें परमलक्ष्य प्राप्त होता है।
इस तेरहवें अध्याय का तात्पर्य यही है कि मनुष्य को शरीर, शरीर के स्वामी तथा परमात्मा के अंतर को समझना चाहिए।
। हरे कृष्ण 🙏।

28/09/2025

BG/13/34
हे भरतपुत्र! जिस प्रकार सूर्य अकेले इस सारे ब्रह्माण्ड को प्रकाशित करता है, उसी प्रकार शरीर के भीतर स्थित एक आत्मा सारे शरीर को चेतना से प्रकाशित करता है।
जिस प्रकार सूर्य एक स्थान पर स्थित रहकर ब्रह्मांड को आलोकित करता है, उसी तरह आत्मा रूप सूक्ष्म कण शरीर के हृदय में स्थित होकर चेतना द्वारा सारे शरीर को आलोकित करता है।
। हरे कृष्ण 🙏।

27/09/2025

BG/13/33
यद्यपि आकाश सर्वव्यापी है, किन्तु अपनी सूक्ष्म प्रकृति के कारण, किसी वस्तु से लिप्त नहीं होता। इसी तरह ब्रह्मसृष्टि में स्थित आत्मा, शरीर में स्थित रहते हुए भी, शरीर से लिप्त नहीं होता।
वायु जल, कीचड़, मल तथा अन्य वस्तुओं में प्रवेश करती है, फिर भी वह किसी वस्तु से लिप्त नहीं होती। इसी प्रकार से जीव विभिन्न प्रकार के शरीरों में स्थित होकर भी अपनी सूक्ष्म प्रकृति के कारण उनसे पृथक बना रहता है। अतः इन भौतिक आंखों से यह देख पाना असंभव है कि जीव किस प्रकार इस शरीर के संपर्क में है और शरीर के विनिष्ट हो जाने पर वह उससे कैसे विलग हो जाता है।
। हरे कृष्ण 🙏।

26/09/2025

BG/13/32
शाश्वत दृष्टि संपन्न लोग यह देख सकते हैं कि अविनाशी आत्मा दिव्य, शाश्वत तथा गुणों से अतीत है। हे अर्जुन! भौतिक शरीर के साथ संपर्क होते हुए भी आत्मा न तो कुछ करता है और न लिप्त होता है।
ऐसा प्रतीत होता है कि जीव उत्पन्न होता है, क्योंकि भौतिक शरीर का जन्म होता है। लेकिन वास्तव में जीव शाश्वत है, वह उत्पन्न नहीं होता और शरीर में स्थित रहकर भी, वह दिव्य तथा शाश्वत रहता है। इस प्रकार वह विनष्ट नहीं किया जा सकता। वह स्वभाव से आनंदमय है। वह किसी भौतिक कार्य में प्रवृत नहीं होता।
। हरे कृष्ण 🙏।

25/09/2025

BG/13/31
जब विवेकवान व्यक्ति विभिन्न भौतिक शरीरों के कारण विभिन्न स्वरूपों को देखना बंद कर देता है, और यह देखता है कि किस प्रकार से जीव सर्वत्र फैले हुए हैं, तो वह ब्रह्म बोध को प्राप्त होता है।
जब मनुष्य यह देखता है कि विभिन्न जीवों के शरीर उस जीव की विभिन्न इच्छाओं के कारण उत्पन्न हुए हैं और आत्मा से किसी तरह से संबद्ध नहीं हैं, तो वह वास्तव में देखता है। देहात्मबुद्धि के कारण हम किसी को देवता, किसी को मनुष्य, कुत्ता, बिल्ली आदि के रूप में देखता है। यह भौतिक दृष्टि है, वास्तविक दृष्ट नहीं है।
। हरे कृष्ण 🙏।

25/09/2025

🎙 Talk Show: Sidhi Baat Prabhu Ji Ke Sath (Hindi) 😇🔊

📌 Join us for our Live Talkshow on Thursday, 25th September 2025 at 8:00 PM (IST) onwards

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🔶 Topic: How to practice bhakti in family life?
🎙️Speaker: Sanatana Dharma Das

When we begin our journey in Bhakti, it is natural to face resistance or challenges from family members. Sometimes, this may feel toxic and emotionally unsettling. How can we rise above such obstacles?
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🔹 Our guide HG Sanatana Dharma Das (NIT, Ex. Manager Tata Moters) who is a monk and teacher of Higher Vedic studies and Applied Sciences at ISKCON, A Youth Counselor and spiritual mentor.

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24/09/2025

BG/13/30
जो यह देखता है कि सारे कार्य शरीर द्वारा संपन्न किये जाते हैं, जिसकी उत्पत्ति प्रकृति से हुई, और जो देखता है कि आत्मा कुछ भी नहीं करता, वही यथार्थ में देखता है।
यही शरीर परमात्मा के निर्देशानुसार प्रकृति द्वारा बनाया गया है और मनुष्य के शरीर के जितने भी कार्य संपन्न होते हैं, वे उसके द्वारा नहीं किए जाते हैं। मनुष्य जो भी करता है, चाहे सुख के लिए करे या दुख के लिए, वह शारीरिक रचना के कारण उसे करने के लिए बाध्य है। लेकिन आत्मा इन शारीरिक कार्यों से विलग है। यह शरीर मनुष्य को पूर्व इच्छाओं के अनुसार प्राप्त होता है। इच्छाओं की पूर्ति के लिए शरीर मिलता है। इस तरह से शरीर एक यंत्र की तरह कार्य करता है।इच्छाओं के कारण ही मनुष्य सुख एवं दुःख भोगता है।
। हरे कृष्ण 🙏।

20/09/2025

BG/13/29
जो व्यक्ति परमात्मा को सर्वत्र तथा प्रत्येक जीव में समान रूप से विद्यमान देखता है, वह अपने मन के द्वारा अपने आपको भ्रष्ट नहीं करता। इस प्रकार वह दिव्य गंतव्य को प्राप्त करता है।
जीव, अपना भौतिक अस्तित्व स्वीकार करने के कारण, अपने आध्यात्मिक अस्तित्व से पृथक स्थित हो गया है। किन्तु यदि वह यह समझता है कि परमेश्वर अपने परमात्मा स्वरूप से सर्वत्र स्थित हैं, अर्थात् यदि वह भगवान् की उपस्थिति प्रत्येक वस्तु में देखता है, तो वह विघटनकारी मानसिकता से अपने आपको नीचे नहीं गिराता, और इसलिए वह क्रमशः वैकुंठ लोक की ओर बढ़ता जाता है।
। हरे कृष्ण 🙏।

19/09/2025

BG/13/28
जो परमात्मा को समस्त शरीरों में आत्मा के साथ देखता है और जो यह समझता है कि इस नश्वर शरीर के भीतर न तो आत्मा, न ही परमात्मा कभी भी विनिष्ट होता है, वही वास्तव में देखता है।
जो व्यक्ति सत्संगति से तीन वस्तुओं को शरीर, शरीर का स्वामी या आत्मा तथा आत्मा के मित्र को एक साथ संयुक्त देखता है वह ही सच्चा ज्ञानी है।
। हरे कृष्ण 🙏।

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