Vijay Ki Yatra

Vijay Ki Yatra भगवदगीता अर्थ एवं लघु भावार्थ

05/09/2025

BG/13/15
परमात्मा समस्त इंद्रियों के मूल श्रोत हैं, फिर भी वे इंद्रियों से रहित हैं। वे समस्त जीवों के पालनकर्ता होकर भी अनासक्त हैं। वे प्रकृति के गुणों से परे हैं, फिरभी वे भौतिक प्रकृति के सभी गुणों के स्वामी हैं।
यद्यपि परमेश्वर समस्त जीवों की समस्त इंद्रियों के स्रोत हैं, फिर भी जीवों की तरह उनके भौतिक इंद्रियां नहीं होती। वास्तव में जीवों में आध्यात्मिक इन्द्रियां होती हैं, लेकिन बद्ध जीवन में वे भौतिक तत्वों से आच्छादित रहती हैं। परमेश्वर की इंद्रियां इस तरह आच्छादित नहीं रहती हैं। उनकी इंद्रियां दिव्य होती हैं, अतएव निर्गुण कहलाती हैं। गुण का अर्थ है, भौतिक गुण।
। हरे कृष्ण 🙏।

03/09/2025

BG/13/14
उनके हाथ, पांव, आंखें,सिर तथा मुंह तथा उनके कान सर्वत्र हैं। इस प्रकार परमात्मा सभी वस्तुओं में व्याप्त होकर अवस्थित है।
भगवान् ब्रह्म के बारे में बताते हुए कहते हैं जिस प्रकार सूर्य अपनी अनंत रश्मियों को विकीर्ण करके स्थित हैं, उसी प्रकार परमात्मा या भगवान् भी हैं। वे अपने सर्वव्यापी रूप में स्थित रहते हैं। और उनमें आदि शिक्षक ब्रह्मा से लेकर छोटी सी चींटी तक के सारे जीव स्थित हैं।
। हरे कृष्ण 🙏।

02/09/2025

BG/13/13
अब में तुम्हें ज्ञेय के विषय में बताऊंगा, जिसे जानकार तुम नित्य ब्रह्म का आस्वादन कर सकोगे। यह ब्रह्म या आत्मा, जो अनादि है और मेरे अधीन है, इस भौतिक जगत के कार्य कारण से परे स्थित है।
अब भगवान् ब्रह्म के बारे में बताने वाले हैं।
। हरे कृष्ण 🙏।

01/09/2025

BG/13/10,11,12
वैराग्य, संतान, स्त्री, घर तथा अन्य वस्तुओं की ममता से मुक्ति, अच्छी तथा बुरी घटनाओं के प्रति समभाव, मेरे प्रति निरन्तर अनन्य भक्ति, एकांत स्थान में रहने की इच्छा, जन समूह से विलगाव, आत्म साक्षात्कार की महत्ता को स्वीकारना, तथा परम सत्य की दार्शनिक खोज इन सबको मैं ज्ञान घोषित करता हूं और इनके अतिरिक्त जो भी है, वह सब अज्ञान है।
भगवान् ने इन श्लोकों में ज्ञान एवं अज्ञान के बिंदु कहे हैं।
। हरे कृष्ण 🙏।

31/08/2025

BG/13/8,9
विनम्रता, दंभहीनता, अहिंसा, सहिष्णुता, सरलता, प्रामाणिक गुरु के पास जाना, पवित्रता, स्थिरता, आत्मसंयम, इंद्रियतृप्ति के विषयों का परित्याग, अहंकार का अभाव, जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था तथा रोग के दोषों की अनुभूति,
उपर्युक्त सभी को भगवान् ज्ञान बताते हुए आगे के श्लोकों में भी बता रहे हैं।
। हरे कृष्ण 🙏।

30/08/2025

BG/13/6,7
पंच महाभूत, अहंकार, बुद्धि, अव्यक्त ( तीनों गुणों की अप्रकट अवस्था) , दसों इंद्रियां तथा मन, पांच इंद्रियविषय, इच्छा, द्वेष, सुख, दुख, संघात, जीवन के लक्षण तथा धैर्य इन सब को संक्षेप में कर्म का क्षेत्र तथा उसकी अन्तःक्रियाएं ( विकार) कहा जाता है।
वेदांत सूत्रों के अनुसार,
पांच महाभूत _ पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा आकाश, फिर अहंकार, बुद्धि तथा तीनों गुणों की अव्यक्त अवस्था।
पांच ज्ञानेंद्रियां_ नेत्र, कान, नाख, जीभ तथा त्वचा।
पांच कर्मेंद्रियां _ वाणी, पांव, हाथ, गुदा तथा मूत्र द्वार, इन इंद्रियों के ऊपर मन होता है।
पांच इंद्रियविषय _ गंध, स्वाद, रूप, ध्वनि तथा स्पर्श। सब मिलाकर 24 तत्वों का समूह कार्यक्षेत्र कहलाता है।
। हरे कृष्ण 🙏।

29/08/2025

BG/13/5
विभिन्न वैदिक ग्रंथों में विभिन्न ऋषियों ने कार्यकलापों के क्षेत्र तथा उन कार्यकलापों के ज्ञाता के ज्ञान का वर्णन किया है। इसे विशेष रूप से वेदांत सूत्र में कार्य कारण के समस्त तर्क समेत प्रस्तुत किया गया है।
इस ज्ञान की व्याख्या करने में भगवान् कृष्ण सर्वोच्च प्रमाण है। फिर भी विद्वान तथा प्रमाणिक लोग सदैव पूर्ववर्ती आचार्यों का साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं।
। हरे कृष्ण 🙏।

28/08/2025

BG/13/4
अब तुम मुझसे यह सब संक्षेप में सुनो कि कर्मक्षेत्र क्या है, यह किस प्रकार बना है, इसमें क्या परिवर्तन होते हैं, यह कहां से उत्पन्न होता है, इस कर्मक्षेत्र को जानने वाला कौन है और उसके क्या प्रभाव है।
अब भगवान् क्षेत्र तथा क्षेत्रज्ञ के बारे में बता रहे हैं।
। हरे कृष्ण 🙏।

27/08/2025

BG/13/3
हे भरतवंशी! तुम्हें ज्ञात होना चाहिए कि मैं ही समस्त शरीरों में ज्ञाता भी हूं और इस शरीर तथा इसके ज्ञाता को जन लेना ज्ञान कहलाता है। ऐसा मेरा मत है।
भगवान् कहते हैं कि, मैं प्रत्येक शरीर के कर्मक्षेत्र का ज्ञाता हूं। व्यक्ति भले ही अपने शरीर का ज्ञाता हो, किंतु उसे अन्य शरीरों का ज्ञान नहीं होता। समस्त शरीरों का ज्ञान नहीं होता। समस्त शरीरों में परमात्मा रूप में विद्यमान भगवान् समस्त शरीरों के विषय में जानते हैं। वे जीवन की विविध योनियों के समस्त शरीरों को जानने वाले हैं।
। हरे कृष्ण 🙏।

26/08/2025

BG/13/2
श्री भगवान् ने कहा हे कुंतीपुत्र ! यह शरीर क्षेत्र कहलाता है और इसको चलाने वाला क्षेत्रज्ञ है।
भगवान् कहते हैं शरीर क्षेत्र कहलाता है।यह शरीर बद्ध जीव के लिए कर्म क्षेत्र है । बद्ध जीव इस संसार में बंधा हुआ है। और वह भौतिक प्रकृति पर अपना प्रभुत्व प्राप्त करने का प्रयत्न करता है।
। हरे कृष्ण 🙏।

25/08/2025

अध्याय 13 /1
प्रकृति, पुरुष तथा चेतना
अर्जुन ने कहा _हे कृष्ण! मैं प्रकृति एवं पुरुष ( भोक्ता) , क्षेत्र एवं क्षेत्रज्ञ तथा ज्ञान एवं ज्ञेय के विषय में जानने का इच्छुक हूं।
यहां पर अर्जुन ने अपनी कुछ और जिज्ञासा प्रस्तुत की है , जैसे प्रकृति, पुरुष, क्षेत्र, क्षेत्रज्ञ, ज्ञान तथा ज्ञेय।
‌ । हरे कृष्ण 🙏।

24/08/2025

BG/12/20
जो इस भक्ति के अमर पथ का अनुसरण करते हैं, और जो मुझे ही अपना चरम लक्ष्य बनाकर श्रद्धासहित पूर्णरूपेण संलग्न रहते हैं, वे भक्त मुझे अत्यधिक प्रिय हैं।
भगवान् कहते हैं कि जो भक्ति मार्ग में रहते हुए मुझे अपना अंतिम लक्ष्य मानता है। ऐसा भक्त मुझे अति प्रिय है।
अध्याय 12 भक्तियोग सम्पूर्ण।
। हरे कृष्ण 🙏।

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