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90 साल की औरत ने 25 साल के लड़के से शादी कर ली, फिर क्या हुआ?कोई भी नहीं जानता था कि कबीर शर्मा की जिंदगी एक दिन यूं बदल...
25/10/2025

90 साल की औरत ने 25 साल के लड़के से शादी कर ली, फिर क्या हुआ?

कोई भी नहीं जानता था कि कबीर शर्मा की जिंदगी एक दिन यूं बदल जाएगी। 22 साल का ये नौजवान, अपने जीवन की सबसे कठिन घड़ी से गुजर रहा था। उसकी माँ की मौत के बाद पूरा घर, बूढ़े बीमार पिता और छोटी बहन अनुष्का की जिम्मेदारी उसी के कंधों पर आ पड़ी थी। कबीर की जिंदगी में खुशियाँ मानो वक्त से पहले ही खत्म हो गई थीं। चेहरे पर चिंता की लकीरें, आँखों के नीचे गहरे काले घेरे और मन में हर वक्त एक बोझ।

कबीर दिन में पढ़ाई करता, रात में छोटे-मोटे काम करके घर का खर्च चलाता। उसके पिता राजीव मल्होत्रा एक घातक बीमारी से जूझ रहे थे। इलाज पर जितना पैसा था, सब खत्म हो गया। बहन अनुष्का स्कूल में पढ़ती थी, उसकी किताबों और फीस के लिए पैसे जुटाना भी मुश्किल था। ऊपर से कर्जदारों की धमकियाँ आम हो गई थीं। कबीर के पास अब कोई रास्ता नहीं बचा था।

एक दिन, कबीर सस्ते नाश्ते की दुकान पर गया। जेब से पैसे निकालकर गिनने लगा, तभी उसकी नजर सामने खड़ी एक बुजुर्ग महिला पर पड़ी। वह उसे गौर से देख रही थी। उसकी आँखों में एक अजीब सी गहराई थी, जैसे वह कबीर की पूरी जिंदगी जानती हो। उसका नाम सोनिया वर्मा था – कारोबारी दुनिया की मशहूर शख्सियत। महंगी साड़ी, कीमती गहने, रौबदार अंदाज।
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बेटी पहुंची बाप को छुड़ाने.. लेकिन सिग्नेचर देख IPS अफसर का रंग उड़ गया! फिर जो हुआ.शहर के एक कोने में, गरीबों के मोहल्ल...
25/10/2025

बेटी पहुंची बाप को छुड़ाने.. लेकिन सिग्नेचर देख IPS अफसर का रंग उड़ गया! फिर जो हुआ.

शहर के एक कोने में, गरीबों के मोहल्ले में, 70 वर्षीय राम किशोर वर्मा अपनी पुश्तैनी जमीन पर खेती कर जीवन यापन कर रहे थे। उनकी जिंदगी में सादगी थी, लेकिन हालात ने उन्हें कठिनाइयों में डाल रखा था। उनकी जमीन पर एक प्रभावशाली स्थानीय नेता, सुभाष शर्मा, की नजर थी, जो उस जमीन पर एक मॉल बनवाना चाहता था। जब राम किशोर ने मॉल के लिए अपनी जमीन देने से मना किया, तो नेता ने एसीपी राकेश चौधरी से साठगांठ कर ली।

एसीपी साहब ने राम किशोर को एक झूठे मामले में फंसा कर जेल भेज दिया, और थाने में उनकी पिटाई भी की। राम किशोर की बेटी, श्रुति वर्मा, एक होनहार आईपीएस अधिकारी थीं। जब राम किशोर की बेटी जमानत के लिए थाने पहुंची, तो एसीपी साहब घबरा गए। उन्हें पता चला कि यह कोई साधारण लड़की नहीं, बल्कि एक आईपीएस अधिकारी है।

यह कहानी रेलवे स्टेशन के पास की बस्ती से शुरू होती है, जहां धीरे-धीरे अंधेरा उतर रहा था। दिनभर की गर्मी के बाद हवा में कुछ नरमी आ गई थी। लेकिन राम किशोर वर्मा के जीवन में मानो सर्द हवाएं हर पल बहती थीं। उनके सफेद झकबाल, झुर्रियों से भरा चेहरा और कांपते हुए हाथों में एक पुराना डंडा था। वह अपने कच्चे घर के सामने बैठे आसमान को ताक रहे थे जैसे किसी जवाब की तलाश में हों। शायद वह पूछ रहे थे कि उनकी ईमानदारी का यह फल क्यों मिला?
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ग़रीब समझकर पत्नी ने शो रूम से भगाया तलाक़शुदा पति ने अगले ही दिन खरीद लियाशाम के करीब 6:00 बजे थे। शहर की सबसे व्यस्त स...
25/10/2025

ग़रीब समझकर पत्नी ने शो रूम से भगाया तलाक़शुदा पति ने अगले ही दिन खरीद लिया

शाम के करीब 6:00 बजे थे। शहर की सबसे व्यस्त सड़क पर रिवरा मोटर्स नाम का नया कार शोरूम खुला था। चमचमाती लाइट्स, एयर कंडीशनिंग की ठंडक और अंदर खड़ी लग्जरी कारें हर गाड़ी पर एक सपना लिखा था। पर उसी सपनों के बीच आज एक ऐसा इंसान दाखिल हुआ था, जिसे किसी ने सपनों के लायक नहीं समझा था। वो था राहुल मेहता, लगभग 35 साल का। साधारण सी शर्ट, पैट में जूते, धूल भरे, बाल थोड़े बिखरे हुए। लेकिन आंखों में वह ठहराव था जो एक लंबी जिंदगी का अनुभव बता रहा था।

शोरूम के अंदर लोग आते-जाते रहे। सेल्स एग्जीक्यूटिव मुस्कुराते ग्राहकों को नमस्ते करते। लेकिन राहुल के दाखिल होते ही माहौल थोड़ा बदल गया। रिसेप्शनिस्ट ने सिर से पैर तक देखा। फिर नकली मुस्कान के साथ पूछा, "जी सर, कुछ पूछना था?" राहुल ने कहा, "मुझे एक कार देखनी थी। एसयूवी मॉडल।" लड़की ने हल्का सा हंसते हुए कहा, "सर, एसयूवी की रेंज 25 लाख से शुरू होती है। शायद आप स्मॉल कार सेक्शन में देख लें।"

राहुल ने शांत स्वर में कहा, "नहीं, मुझे वही मॉडल देखना है जो सामने शीशे के पीछे खड़ी है।" रिसेप्शनिस्ट ने आंखों से इशारा किया। एक सेल्समैन आगे बढ़ा। चमकदार सूट में नाम था विक्रम। वो राहुल के पास आया। "जी सर, इस मॉडल में इंटरेस्ट है लेकिन यह काफी प्रीमियम रेंज की कार है। ईएमआई प्लान चाहिए क्या?" राहुल ने हल्की मुस्कान दी। "नकद पेमेंट करूंगा।"

विक्रम के चेहरे पर अजीब सा भाव आया जैसे किसी मजाक पर यकीन ना कर पा रहा हो। उसने आधे मन से कहा, "जी, देख लेते हैं।" और फिर वह कार की तरफ बढ़ गया। कार के पास खड़ी एक महिला ग्राहक ने ध्यान से राहुल को देखा। फिर धीरे से विक्रम से बोली, "यह आदमी थोड़ा जाना पहचाना नहीं लग रहा।" विक्रम बोला, "नहीं मैडम, शायद कोई आम आदमी है बस देखने आया है।" महिला मुस्कुराई। "सही कहा, यह तो हमारे मोहल्ले में काम करता था शायद।"
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अमेरिकन CEO ने कहा-अगर इंजन ठीक कर दिया तो शादी कर लूंगी फिर भारतीय लड़के ने कर दिखाया😱न्यूयॉर्क शहर की ऊंची इमारतों के ...
25/10/2025

अमेरिकन CEO ने कहा-अगर इंजन ठीक कर दिया तो शादी कर लूंगी फिर भारतीय लड़के ने कर दिखाया😱

न्यूयॉर्क शहर की ऊंची इमारतों के बीच खड़ा था एक चमकदार ग्लास टावर, ब्लैक मोबिलिटी का मुख्यालय। वहां की हवा में एक अजीब सी ठंडक थी। जैसे हर सांस के साथ प्रतिस्पर्धा और अहंकार भी बह रहा हो। सुबह के 9:00 बजे थे और इसी वक्त वहां पहुंचा था आरव मेहरा। भारत का एक युवा इंजीनियर। उसके हाथ में टूलकट थी। कपड़ों पर मशीन के तेल के हल्के निशान और चेहरे पर सादगी भरी आत्मविश्वास की झलक। वह जानता था कि इस दफ्तर में उसके जैसे लोग आम नहीं हैं। यहां तो सिर्फ सूटबूट में सजे हुए अधिकारी आते हैं। जिनकी बातों में आंकड़े और शब्दों में आदेश होते हैं।

कॉन्फ्रेंस रूम के बीचोंबीच एक बड़ी सी कार का इंजन रखा था। वो इंजन महीनों से ब्लैक मोबिलिटी के लिए सिर दर्द बना हुआ था। कंपनी के सबसे बड़े इंजीनियर उसे ठीक नहीं कर पाए थे। सबका मानना था कि यह मशीन अब बस कबाड़ है। कमरे में बैठे कुछ अमेरिकी अधिकारी और सामने खड़ी कंपनी की सीईओ क्रिस्टना ब्लक, सबकी निगाहें उसी इंजन पर थी। क्रिस्टना अपने तेज निर्णयों और घमंडी स्वभाव के लिए जानी जाती थी। उसकी आंखों में एक अजीब सा आत्मविश्वास था। जैसे दुनिया की हर चीज उसके आदेश से चलती हो।

उसी समय आरव कमरे में दाखिल हुआ। सबकी नजरें एक पल को उसके ऊपर टिक गई। कोई उसे हल्के में देख रहा था। कोई तंज भरी मुस्कान से। मगर आरव के चेहरे पर कोई झिझक नहीं थी। वह सीधे इंजन के पास गया और उसका निरीक्षण करने लगा। क्रिस्टना के होठों पर मुस्कान आई। उसे यह सब एक खेल जैसा लग रहा था। उसने मजाक में सबके सामने कह दिया कि अगर यह भारतीय लड़का इंजन ठीक कर दे तो वो उससे शादी कर लेगी। कमरे में ठहा के गूंज उठे। सबको लगा जैसे यह बस एक कॉर्पोरेट मजाक है। लेकिन उस मजाक के पीछे जो अपमान छिपा था, आरव ने महसूस कर लिया। वो चुपचाप काम में लग गया।

घंटों बीत गए। लोग आते जाते रहे। क्रिस्टना बार-बार दूर से देखती रही कि वो आखिर कर क्या रहा है। रात गहराती गई। मगर आरव की एकाग्रता नहीं टूटी। वो वायरिंग, सेंसर और कोड्स की परतें खोलता रहा। उसे समस्या उस जगह मिली जहां किसी ने देखने की कोशिश ही नहीं की थी। इंजन के सॉफ्टवेयर में एक खराब लॉक। सुबह तक वह इंजन चल पड़ा। उसकी गड़गड़ाहट ने कमरे में सन्नाटा भर दिया। जो लोग मजाक कर रहे थे, वे अब आवाग खड़े थे। क्रिस्टना के चेहरे की मुस्कान धीरे-धीरे गंभीरता में बदल गई। इंजन चल चुका था और उसके साथ किसी की सोच भी।
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जब दरोगा ने डीएम मैडम को भरे बाजार में सबके सामने मारा जोरदार थपड़ फिर जो हुआ सब हैरान।जिले की डीएम, काजल वर्मा, एक साधा...
24/10/2025

जब दरोगा ने डीएम मैडम को भरे बाजार में सबके सामने मारा जोरदार थपड़ फिर जो हुआ सब हैरान।

जिले की डीएम, काजल वर्मा, एक साधारण दिन की शुरुआत कर रही थीं। वह हमेशा अपने काम को लेकर गंभीर रहती थीं, लेकिन आज उन्होंने सोचा कि कुछ समय बाहर जाकर लोगों के बीच रहकर उनकी समस्याओं को समझेंगी। उन्होंने अपने ऑफिस से निकलने का फैसला किया और सीधे बाजार की ओर बढ़ीं।

बाजार में पहुंचते ही काजल ने देखा कि लोग अपनी रोजमर्रा की चीजें खरीदने में व्यस्त हैं। जलेबी की खुशबू उन्हें अपनी ओर खींचने लगी। उन्होंने सोचा, "क्यों न थोड़ी देर के लिए जलेबी खा ली जाए?" उन्होंने एक छोटी सी जलेबी की रेहड़ी पर जाकर गरमागरम जलेबी का ऑर्डर दिया।

जलेबी खाते हुए, काजल ने देखा कि अचानक वहां बाजार का दरोगा, अमित सिंह, अपनी वर्दी में पहुंचा। वह हमेशा की तरह घमंड से भरा हुआ था। उसने बिना किसी शिष्टाचार के एक प्लेट जलेबी उठाई और खाने लगा। काजल ने सोचा कि शायद वह बाद में पैसे देगा, लेकिन जब अमित ने जलेबी खत्म की और जाने लगा, तो काजल ने उसे रोका।

"साहब, पैसे दीजिए। जलेबी फ्री में नहीं आती," काजल ने कहा। अमित सिंह ने हंसते हुए जवाब दिया, "पैसे किस बात के? तुम मुझे जानती नहीं। मैं इस इलाके का दरोगा हूं। मुझसे पैसे मांग रही हो?"

काजल ने शांत स्वर में कहा, "साहब, यहां जो भी खाता है, पैसे देता है। चाहे वह कोई भी हो।" यह सुनकर अमित का चेहरा लाल हो गया। उसे लगा जैसे इस औरत ने उसके सामने उसकी इज्जत उछाल दी। धीरे-धीरे भीड़ इकट्ठा होने लगी थी, और सब तमाशा देखने लगे थे।

काजल ने दोबारा कहा, "साहब, मैं आराम से कह रही हूं। मेरे पैसे दीजिए।" अमित ने गुस्से में आकर अचानक काजल के गाल पर जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। पूरा बाजार सन्न रह गया। लोग दबी जुबान में कहने लगे, "यह तो हद हो गई। दरोगा साहब ने एक औरत को सबके सामने मार दिया।"
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कचरा उठाने वाली लड़की को कचरे में मिले किसी के घर के कागज़ात, लौटाने गई तो जो हुआ वो आप सोच भी नहीदिल्ली, भारत का दिल। ए...
24/10/2025

कचरा उठाने वाली लड़की को कचरे में मिले किसी के घर के कागज़ात, लौटाने गई तो जो हुआ वो आप सोच भी नही

दिल्ली, भारत का दिल। एक ऐसा शहर जो कभी सोता नहीं। जहां एक तरफ चमचमाती इमारतें, आलीशान कोठियां हैं, वहीं दूसरी ओर झुग्गी बस्तियों में लाखों जिंदगियां हर रोज बस एक और दिन जीने के लिए संघर्ष करती हैं। ऐसी ही एक बस्ती जीवन नगर में, टीन की छत और त्रिपाल से बनी एक छोटी सी झोपड़ी में रहती थी 17 साल की आशा किरण अपनी मां शांति के साथ। उनका घर बेहद साधारण था – एक कोने में मिट्टी का चूल्हा, दूसरे में पुरानी चारपाई, और बारिश में टपकती छत, जो उनके सपनों में भी खलल डाल देती थी।

आशा के पिता सूरज एक ईमानदार मजदूर थे, जिनका सपना था कि उनकी बेटी एक दिन अफसर बने और बस्ती में रोशनी लाए। लेकिन तीन साल पहले एक हादसे में सूरज का देहांत हो गया। मां शांति बीमारी और ग़म के बोझ से टूट गईं। अब घर की सारी जिम्मेदारी आशा के कंधों पर आ गई थी। उसे आठवीं कक्षा में पढ़ाई छोड़नी पड़ी और अब उसकी दुनिया थी – एक बड़ा सा बोरा, जिसे वह हर सुबह पीठ पर लादकर कचरा बीनने निकल पड़ती थी। दिन भर की मेहनत के बाद जो भी पैसे मिलते, उसी से घर चलता और मां की दवाइयां आतीं।

आशा के हाथ सख्त हो चुके थे, मगर दिल बहुत नरम था। पिता का सपना उसकी आंखों में अब भी जिंदा था। वह हर रात अपनी पुरानी किताबें पढ़ती थी, लेकिन हालात ने उसके हाथों में किताब की जगह कचरे का बोरा थमा दिया था।

एक दिन, आशा वसंत विहार की गलियों में कचरा बीन रही थी। एक सफेद कोठी के बाहर उसे एक मोटी लेदर की फाइल मिली। वह फाइल आमतौर पर कचरे में नहीं फेंकी जाती। आशा ने सोचा, शायद इसमें कुछ रद्दी कागजात होंगे। दिन के अंत में जब वह अपनी झोपड़ी लौटी, तो मां की खांसी सुनकर उसका दिल बैठ गया। रात में, जब मां सो गई, तो आशा ने वह फाइल खोली। उसमें सरकारी मोहर लगे कई कागजात थे। आशा को अंग्रेजी पढ़नी नहीं आती थी, मगर उसने नाम पढ़ा – सुरेश आनंद। और एक शब्द – प्रॉपर्टी रजिस्ट्री। उसे समझ आ गया कि ये किसी की जमीन के असली कागजात हैं।
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पुलिस ने माँ को मारा फिर आया फौजी बेटा आर्मी से छुट्टी लेकर पूरा थाना हिला दिया गाजियाबाद के छोटे से मोहल्ले में एक साधा...
24/10/2025

पुलिस ने माँ को मारा फिर आया फौजी बेटा आर्मी से छुट्टी लेकर पूरा थाना हिला दिया

गाजियाबाद के छोटे से मोहल्ले में एक साधारण सी महिला, सुशीला देवी, अपने बेटे अवान के साथ रहती थीं। सुशीला देवी एक रिटायर्ड टीचर थीं और अपने बेटे से बेइंतहा प्यार करती थीं। अवान, जो आर्मी ऑफिसर था, अपनी मां को बहुत मानता था और हर महीने उनसे मिलने जरूर जाता था। लेकिन अवान की मां को इस बात का पता नहीं था कि उनका बेटा असल में किस काम में लगा हुआ है। अवान ने अपनी मां को कभी अपनी असली ताकत और जिम्मेदारियों के बारे में नहीं बताया था। वह नहीं चाहते थे कि उनकी मां को किसी भी प्रकार की चिंता हो।

एक दिन, अवान अपने ऑफिस में बैठा था, जब उसे अचानक एक वीडियो मिला। वीडियो में उसकी मां गाजियाबाद के एक थाने में दिखाई दे रही थीं। वह परेशान और रोती हुई लग रही थीं। अवान का दिल धड़कने लगा। उसने वीडियो को ध्यान से देखा और पाया कि एक मोटा थानेदार, राघव सिंह, उसकी मां को परेशान कर रहा था। राघव सिंह उसकी मां से बुरी तरह बात कर रहा था और उसे अपमानित कर रहा था। अवान का खून खौल उठा। उसने तुरंत अपनी मां को फोन किया, लेकिन फोन बंद आया।

गुस्से में, अवान ने अपनी सबसे भरोसेमंद साथी मेजर तान्या शर्मा को फोन किया। उसने तान्या को गाजियाबाद के सराय इंद्र थाने की पूरी जानकारी जुटाने का आदेश दिया। तान्या ने कहा, "सर, 15 मिनट में सब कुछ पता कर दूंगी।" अवान ने अपनी वर्दी पहन ली और गाजियाबाद की ओर रवाना हो गया। वह जानता था कि अब जो होने वाला था, वह इस थाने की हिस्ट्री में हमेशा के लिए दर्ज हो जाएगा।

गाजियाबाद पहुंचने के बाद, अवान ने अपनी खुफिया टीम से थाने की पूरी जानकारी और सुरक्षा की डिटेल्स मांगी। तान्या ने बताया, "सर, थाने में अभी आठ लोग हैं। राघव सिंह और मुखिया राजेश यादव दोनों मौजूद हैं। आपकी मां को एक कोठरी में बंद किया गया है, जो बिल्कुल गैरकानूनी है।" अवान ने मन में ठान लिया कि वह अपनी मां की सुरक्षा पहले सुनिश्चित करेगा और फिर उन लोगों को सबक सिखाएगा।
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देखो एक साँप ने एहसान का बदला कैसे चुकाया?घने जंगल की गहराई में एक पुराना पेड़ खड़ा था, जिसके नीचे एक लड़की बैठी थी। उसक...
24/10/2025

देखो एक साँप ने एहसान का बदला कैसे चुकाया?

घने जंगल की गहराई में एक पुराना पेड़ खड़ा था, जिसके नीचे एक लड़की बैठी थी। उसका नाम आलिया था। उसकी आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे, जैसे हर बूंद उसके दिल के दर्द को बयां कर रही हो। वह यूं ही नहीं रो रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे उसके भीतर कुछ टूट चुका हो, कुछ ऐसा जो शायद कभी जुड़ नहीं सकेगा। वह अकेली थी, अपने दुखों के साथ, जंगल की सन्नाटे में डूबी हुई।

तभी झाड़ियों से एक सरसराहट हुई। आलिया ने डर के मारे सिर उठाया तो देखा एक सांप उसकी ओर रेंगता आ रहा था। वह डर गई और पीछे हटने लगी, लेकिन सांप ने इंसानी आवाज़ में कहा, “रुको लड़की, डरो मत। मैं तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा। बस मुझे अपने पल्लू में छुपा लो। एक सपेरा मेरा पीछा कर रहा है, अगर उसने मुझे पकड़ लिया तो मेरी जान ले लेगा।”

आलिया सन्न रह गई। एक बोलता हुआ सांप! यह तो किसी कहानी जैसा था। पर जब उसने देखा कि सच में एक सपेरा उसी दिशा से भागता हुआ आ रहा है, तो उसके भीतर का डर दया में बदल गया। उसने जल्दी से सांप को उठा लिया और अपने पल्लू में छुपा लिया। कुछ देर बाद सपेरा हाफते हुए उसके सामने आया और पूछा, “अरे ओ लड़की, क्या तूने कोई सांप इधर भागते देखा?”

आलिया ने घबराते हुए सिर हिलाया, “नहीं बाबा, मैंने तो कोई सांप नहीं देखा।” सपेरा बिना कुछ कहे आगे बढ़ गया। पल्लू के अंदर से सांप बाहर निकला और बोला, “धन्यवाद, तुमने मेरी जान बचाई। तुम्हारा यह एहसान मैं कभी नहीं भूलूंगा। लेकिन तुम यहां अकेली क्यों हो, और वो भी इस हालत में? तुम तो गर्भवती लगती हो।”

यह सुनकर आलिया की आंखों में फिर आंसू भर आए। उसने कहा, “तुम नहीं जानते। मैंने अपनी ही जिंदगी बर्बाद कर दी है। अपनी ही खुशियों का दरवाजा खुद बंद कर लिया। अब इस जंगल में बस खुद को सजा दे रही हूं।” सांप ने धीरे से पूछा, “क्या हुआ था? बताओ मुझे।”

यह सुनकर आलिया की आंखों में फिर आंसू भर आए। उसने कहा, “तुम नहीं जानते। मैंने अपनी ही जिंदगी बर्बाद कर दी है। अपनी ही खुशियों का दरवाजा खुद बंद कर लिया। अब इस जंगल में बस खुद को सजा दे रही हूं।” सांप ने धीरे से पूछा, “क्या हुआ था? बताओ मुझे।”
आलिया ने गहरी सांस ली और बताना शुरू किया, “मैं अपने मां-बाप की इकलौती औलाद थी। उन्होंने मुझे बहुत प्यार दिया, शायद जरूरत से ज्यादा। हर ज़िद पूरी होती थी, हर गलती माफ। और इसी प्यार ने मुझे बिगाड़ दिया। हमारे गांव में मेरी दो सहेलियां थीं। रोज़ उन्हीं से मिलने जाती, बातें करती, हंसती। एक दिन जब मैं सिलाई सीखने अपनी सहेली के घर जा रही थी, तो मैंने देखा कि रास्ते में एक लड़का मुझे हर रोज़ देखता है। पहले तो मैं नजरअंदाज करती रही, लेकिन हर रोज़ वो वहीं खड़ा रहता और धीरे-धीरे उसकी मौजूदगी मुझे महसूस होने लगी। वो बस खड़ा रहता, ना कुछ कहता ना पास आता। लेकिन जब मैं वहां से गुजरती, वो बस मुझे देखता और मुस्कुरा देता। पर जाने क्यों अगर वह किसी दिन ना दिखे तो मुझे बेचैनी होने लगती। कुछ महीनों तक यह सिलसिला चलता रहा।”
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गरीब लड़की ने अपाहिज करोड़पति को रोटी के बदले चलने सीखाने का वादा किया फिर... सड़क के किनारे एक छोटी सी गली में राधा बैठी ...
24/10/2025

गरीब लड़की ने अपाहिज करोड़पति को रोटी के बदले चलने सीखाने का वादा किया फिर...

सड़क के किनारे एक छोटी सी गली में राधा बैठी थी। उसके फटे-पुराने कपड़े, उलझे बाल और हाथ में एक छोटी थाली जिसमें दो सूखी रोटियां और आधा अचार रखा था, उसे देखकर कोई यह नहीं सोच सकता था कि उसके अंदर कितनी बड़ी उम्मीद की लौ जल रही है। राधा का चेहरा धूल-धूसरित था, लेकिन उसकी आंखों में एक चमक थी, जो किसी भी विपरीत परिस्थिति को झेलने की ताकत देती थी। वह गरीबी में पली-बढ़ी थी, पर कभी हार नहीं मानी थी।

उस दिन सुबह की धूप मोहल्ले की संकरी गलियों में फैल रही थी, और मंदिर के पास बने चौराहे पर लोग रोजाना की भाग-दौड़ में व्यस्त थे। कुछ लोग यहां रुकते, कुछ अपनी थाली में खाना खाते और फिर भाग जाते। राधा भी वहीं बैठी थी, जैसे हर रोज़। लेकिन आज कुछ अलग था। उसकी नजरें एक चमक लिए हुए थीं, जैसे उसने अपने भीतर कोई बड़ा फैसला कर लिया हो।

उसी चौराहे पर अचानक एक चमचमाती काली कार आई। कार इतनी महंगी और आलीशान थी कि वहां खड़े हर शख्स की नजरें उसी पर टिक गईं। ड्राइवर ने फुर्ती से दरवाजा खोला और अंदर से शहर के सबसे बड़े बिजनेस टाइकून मनोहर अग्रवाल को बाहर निकालने में मदद की। मनोहर अग्रवाल करोड़ों का साम्राज्य खड़ा करने वाला शख्स था, लेकिन आज वह अपनी ही टांगों का गुलाम था। दस साल पहले हुए एक भयानक एक्सीडेंट ने उसे चलने-फिरने से वंचित कर दिया था। दुनिया के सबसे बड़े अस्पतालों और डॉक्टरों ने उसे ठीक करने से मना कर दिया था। अब व्हीलचेयर ही उसकी दुनिया थी, और उसके चेहरे पर कड़वाहट और निराशा की छाप थी।
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फ्लाइट में लोग जिसे फटीचर गरीब समझ रहे थे...उसकी सच्चाई जानकर सभी लोग दंग रह गए रात के लगभग नौ बजे थे। मुंबई एयरपोर्ट का...
24/10/2025

फ्लाइट में लोग जिसे फटीचर गरीब समझ रहे थे...उसकी सच्चाई जानकर सभी लोग दंग रह गए

रात के लगभग नौ बजे थे। मुंबई एयरपोर्ट का रनवे चमक रहा था, और एयर इंडिया की प्रीमियम फ्लाइट 708 टेक ऑफ की तैयारी में थी। यह फ्लाइट लखनऊ से दुबई जा रही थी। फ्लाइट के अंदर यात्रियों की हलचल थी, कोई वीडियो कॉल में व्यस्त था, कोई अपनी फोटो खींच रहा था, तो कोई सोशल मीडिया पर स्टोरी डाल रहा था। लेकिन सीट नंबर 18 पर बैठा एक युवक पूरी तरह से शांत और खामोश था। उसके जूते धूल से भरे हुए थे, बैग सस्ता था, उसकी शर्ट झुर्रियों से भरी हुई थी, लेकिन उसकी आंखों में एक ऐसा सुकून था जो अमीरी में भी शायद कम ही मिलता है।

एयर होस्टेस मुस्कुराते हुए उसके पास आई, लेकिन उसे देखकर उसकी भौंहें तनीं। उसने कहा, “एक्सक्यूज मी सर, यह इकॉनमी क्लास है। क्या आप सुनिश्चित हैं कि आप सही फ्लाइट पर हैं?” युवक ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “हां, टिकट सही है। आप चेक कर सकती हैं।” एयर होस्टेस ने टिकट देखा और धीरे से बोली, “ओ ठीक है।” फिर वह पीछे मुड़ी और अपनी साथी से फुसफुसाई, “यकीन नहीं होता कि कोई ऐसे कपड़ों में फ्लाइट पकड़ सकता है।”

आसपास बैठे कुछ लोग हंसने लगे। एक बच्चा अपनी मां से बोला, “मम्मी, यह अंकल तो जैसे कहीं से भाग कर आए हैं।” युवक ने बस एक बार मुस्कुरा कर खिड़की के बाहर देखा। बादलों के पीछे सूरज धीरे-धीरे छिप रहा था, और शायद उसी के साथ वह भी अपने सच को छिपा रहा था। वह दिखने में साधारण था, लेकिन अगर किसी ने उसकी आंखों में देखा होता तो समझ जाता कि वहां एक अलग ही गहराई है। जैसे जिंदगी ने हर ताना, हर अपमान, हर चुनौती में आग भर दी हो।

उस युवक का नाम था आर्यन वर्मा। उम्र मात्र तीस साल। लेकिन उसकी कहानी दुनिया की किसी भी किताब में नहीं लिखी गई थी क्योंकि वह वही शख्स था जिसे एयरलाइन इंस्ट्रूमेंटल इंजीनियर कहा जाता था। वह वही इंसान था जिसने तीन साल पहले लंदन में गिरते हुए विमान को अपनी तकनीक से बचाया था। पर आज कोई नहीं जानता था कि वही आदमी इस फ्लाइट में एक आम पैसेंजर बनकर बैठा है। क्योंकि उसने अपनी पहचान छुपाई थी। एक कारण से, एक सच्चाई से जो दुनिया को अब तक पता नहीं थी।
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IPS मैडम की उस रात ऑटो वाले ने मदद की थी...जब ऑटो वाले पर मुसीबत आई — IPS मैडम खुद थाने पहुँच गई!पुणे रेलवे स्टेशन पर रा...
24/10/2025

IPS मैडम की उस रात ऑटो वाले ने मदद की थी...जब ऑटो वाले पर मुसीबत आई — IPS मैडम खुद थाने पहुँच गई!

पुणे रेलवे स्टेशन पर रात के करीब दस बज चुके थे। प्लेटफार्म नंबर तीन पर हलचल अभी भी जारी थी। ऑटो स्टैंड पर लगभग आठ सौ दस ऑटो वाले खड़े थे। कोई पान चबा रहा था, कोई मोबाइल में व्यस्त था, तो कोई खाली सवारी का इंतजार कर रहा था। उन्हीं में से एक था गोपाल। उम्र लगभग बत्तीस साल, साधारण कपड़े पहने, हल्की दाढ़ी लिए, थके हुए चेहरे पर भी आत्मसम्मान की चमक साफ झलक रही थी। गोपाल का दिन काफी लंबा रहा था, लेकिन उसकी आंखों में नींद नहीं थी। वह परेशान था। उसके पिता अस्पताल में भर्ती थे और इलाज के लिए हर दिन के कुछ सौ रुपये उसके लिए बेहद कीमती थे।

तभी एक महिला प्लेटफार्म से बाहर आई। कंधे पर बैग, हाथ में दो थैले और एक सूटकेस जिसे वह खींचती आ रही थी। चेहरे पर थकान थी, लेकिन आंखों में आत्मविश्वास। उसने कुछ ऑटो वालों से पूछा, लेकिन बाहरी सामान देखकर सभी ने मना कर दिया। गोपाल ने एक पल के लिए देखा, फिर बिना सोचे आगे बढ़ा। "मैडम, ऑटो चाहिए? कहां जाना है?" महिला ने गर्दन घुमा कर देखा, "कात्रज जाना है। बैग थोड़े ज्यादा हैं।" गोपाल मुस्कुराया, "मैडम, यह सामान आपका नहीं। अब मेरा जिम्मा है। बैठिए आराम से।" महिला थोड़ी चौकी, फिर हल्का मुस्कुराई। ऑटो चल पड़ा।

थोड़ी देर खामोशी रही। फिर गोपाल ने पूछा, "आप पुणे में नहीं हैं क्या, मैडम?" महिला ने सिर हिलाया, "अभी पोस्टिंग आई है मेरी।" गोपाल ने फिर पूछा, "कौन सी पोस्टिंग है? अगर बुरा ना माने तो।" महिला बोली, "मैं आईपीएस हूं। ट्रेनिंग पूरी की है और पहली पोस्टिंग यही पुणे में मिली है।" गोपाल कुछ पल चुप रहा, फिर हल्के स्वर में बोला, "बहुत अच्छा। सुनकर अच्छा लगा। मेरा भी सपना था पढ़ने का, लेकिन बाबूजी बीमार हो गए थे, सब कुछ छोड़ना पड़ा।" महिला ने उसकी तरफ देखा, "आपका नाम?" "गोपाल यादव।" महिला ने जेब से मोबाइल निकाला और नंबर सेव किया, "कभी जरूरत हो तो बताइएगा, मैं यहीं शहर में हूं।" गोपाल मुस्कुरा कर बोला, "शुक्रिया मैडम। शायद किस्मत दोबारा मिलने दे।"

रात की हवा और सन्नाटा दोनों गवाह बने उस छोटी सी बातचीत के। छह महीने बीत चुके थे। गोपाल की जिंदगी अब भी वैसे ही चल रही थी, मगर बाबूजी की बीमारी ने हालात और बदतर बना दिए थे। दवाइयों का खर्च, अस्पताल की फीस और दिन भर की कमाई, सब कुछ जैसे एक ताने-बाने में उलझ गया था। उस दिन भी गोपाल स्टेशन से दो सवारी छोड़कर लौट रहा था। तभी बीच रास्ते में दो हवलदारों ने उसे रोका। "अबे, बहुत तेज चला रहा था। कागज दिखा।" गोपाल ने विनम्रता से सारे कागजात दिखा दिए—लाइसेंस, आरसी, परमिट सब कुछ। फिर भी एक हवलदार गुर्राया, "हफ्ता नहीं दिया तूने दो हफ्तों से, भूल गया क्या नियम?" गोपाल ने हाथ जोड़ लिए, "सर, बाबूजी अस्पताल में हैं, पिछले हफ्ते बहुत खर्चा हो गया, इस बार पक्का दे दूंगा।" दूसरा हवलदार बोला, "बहुत बोल रहा है यह, थप्पड़ पड़ेगा तभी समझेगा।" गोपाल कुछ कहता, इससे पहले ही एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर पड़ा। ऑटो जब्त कर लिया गया। भीड़ खड़ी थी, लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा। एक ईमानदार इंसान की गरिमा को यूं सरेआम रौंदा गया जैसे वह कोई गलती ही नहीं थी।
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एक कचरा उठाने वाली लड़की को कचरे में किसी के घर के दस्तावेज़ मिले। जब वह उन्हें लौटाने गई, तो जो हुआ वह आपकी कल्पना से प...
23/10/2025

एक कचरा उठाने वाली लड़की को कचरे में किसी के घर के दस्तावेज़ मिले। जब वह उन्हें लौटाने गई, तो जो हुआ वह आपकी कल्पना से परे था...

दिल्ली, वह महानगर जो कभी सोता नहीं, जहाँ चमचमाती ऊँची इमारतों के बीच लाखों लोगों की जिंदगी संघर्ष में गुजरती है। जीवन नगर की एक छोटी सी झुग्गी में रहती थी 17 वर्षीय आशा किरण अपनी माँ शांति के साथ। उनका घर बेहद साधारण था—टीन की छत, पुरानी चारपाई, और बारिश में टपकती छत के नीचे गुज़र बसर।

आशा के पिता सूरज एक मेहनती और ईमानदार मजदूर थे। उनका सपना था कि उनकी बेटी पढ़-लिखकर अफसर बने और पूरे मोहल्ले की तकदीर बदल दे। लेकिन तीन साल पहले एक हादसे ने सब कुछ बदल दिया। सूरज का देहांत हो गया, और माँ शांति बीमारी और ग़म के बोझ तले दब गईं। अब आशा के कंधों पर घर की सारी ज़िम्मेदारी आ गई। पढ़ाई छोड़कर वह कचरा बीनने लगी, ताकि माँ की दवाइयाँ और घर चल सके।

दिन-रात की मेहनत से उसके हाथ कठोर हो गए थे, पर दिल हमेशा नर्म और सपनों से भरा था। पिता के सपने की रोशनी उसकी आँखों में आज भी जलती थी।

एक दिन, वसंत विहार की गलियों में कचरा बीनते हुए आशा को एक मोटी लेदर की फाइल मिली। वह फाइल कचरे में मिलने वाली साधारण चीज़ नहीं थी। जब उसने फाइल खोली, तो उसमें सरकारी मोहर लगे कागजात थे। अंग्रेज़ी नहीं आती थी, लेकिन नाम पढ़ा—“सुरेश आनंद” और शब्द—“प्रॉपर्टी रजिस्ट्री”। समझ गई कि ये किसी की कीमती ज़मीन के दस्तावेज़ हैं।
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