23/10/2025
कैसे इस भिखारी लड़के ने दिया इस करोड़पति लड़की को जीवनदान
राजू, एक 10-11 साल का बच्चा, मुंबई की गलियों में अकेला भटकता रहता था। न तो उसकी मां थी और न पिता। वह फटे-पुराने मैले कपड़े पहने, बिना चप्पल के, गली-मोहल्ले में भीख मांगकर दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर लिया करता। राजू का जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ था, लेकिन वह मनमौजी और खुश रहने वाला बच्चा था। उसे नाचने का बहुत शौक था। जब भी कहीं डीजे पर गाना बजता या मोहल्ले में शोभा यात्रा निकलती, वह अपनी सारी चिंताओं को भूलकर मस्त होकर नाचने लग जाता।
भाग 2: सुनील अग्रवाल का बंगला
उसी शहर में एक आलीशान बंगला था, जिसके मालिक सुनील अग्रवाल थे। सुनील एक नामी बिजनेसमैन थे और करोड़ों के मालिक थे। उनके साथ उनकी 9 साल की बेटी हिमांशी रहती थी। हिमांशी की मासूमियत और चंचलता से यह बंगला हमेशा जीवंत रहता था। लेकिन चार साल पहले एक दुखद घटना ने इस परिवार को बुरी तरह प्रभावित किया।
भाग 3: दुखद घटना
चार साल पहले, हिमांशी अपनी मां सुनीता के साथ किसी रिश्तेदार की पार्टी से घर लौट रही थी। रात का वक्त था और उनकी कार को एक पुराना ड्राइवर चला रहा था। अचानक एक बेकाबू ट्रक उनकी कार से टकरा गया। इस दर्दनाक हादसे में सुनीता की मौत हो गई, जबकि हिमांशी गंभीर रूप से घायल हो गई।
भाग 4: हिमांशी की हालत
हिमांशी का पैर बुरी तरह से घायल हो गया था और वह व्हीलचेयर पर बैठने लगी। सुनील ने अपनी बेटी के इलाज के लिए हर संभव कोशिश की, लेकिन कोई भी डॉक्टर उसकी हालत में सुधार नहीं कर पाया। चार सालों तक हिमांशी ने अपनी मां की यादों में खोई रही और हंसना भी भूल गई।
भाग 5: राजू का बगीचा
एक दिन, जब हिमांशी अपने बगीचे में बैठी थी, उसने झाड़ियों के पीछे हलचल सुनी। वह देखने गई तो वहां राजू था। राजू आम के पेड़ पर चढ़ने की कोशिश कर रहा था, लेकिन फिसलकर बगीचे में गिर गया। हिमांशी ने उसे देखा और उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई। चार साल में यह पहली बार था जब वह मुस्कुराई।
भाग 6: राजू का प्रयास
राजू ने देखा कि हिमांशी मायूस है। उसने उसे हंसाने का प्रयास किया। वह गोल-गोल घूमने लगा और अजीब-अजीब हरकतें करने लगा। हिमांशी की हंसी सुनकर सुनील और रघु काका भी आश्चर्यचकित रह गए।
भाग 7: सुनील का गुस्सा
तभी सुनील ने राजू को बगीचे में देखा और गुस्से में सिक्योरिटी गार्ड को बुलाया। लेकिन हिमांशी ने राजू का बचाव किया। उसने कहा, "पापा, यह बस यहां नाच रहा है। इसे कुछ मत करो।" यह सुनकर सुनील का गुस्सा ठंडा हो गया और उन्होंने राजू को जाने दिया।
भाग 8: नई शुरुआत
राजू के आने से हिमांशी की जिंदगी में एक नया बदलाव आया। वह धीरे-धीरे हंसने लगी और राजू के साथ समय बिताने लगी। सुनील ने राजू को अपने घर बुलाना शुरू कर दिया। राजू और हिमांशी के बीच एक गहरी दोस्ती हो गई।
भाग 9: हिमांशी का संघर्ष
एक दिन, जब राजू हिमांशी को हंसाने की कोशिश कर रहा था, उसने देखा कि हिमांशी अचानक मायूस हो गई। उसने पूछा, "क्या हुआ हिमांशी?" हिमांशी ने कहा, "मैं भी दौड़ना चाहती हूं, लेकिन मैं खड़ी भी नहीं हो पाती।" राजू ने उसे हिम्मत दी, "तुम चिंता मत करो, मैं तुम्हें चलने में मदद करूंगा।"
भाग 10: राजू का समर्थन
राजू ने हिमांशी को सहारा दिया और उसे खड़े होने के लिए प्रेरित किया। उसने कहा, "तुम कर सकती हो, बस खुद पर विश्वास करो।" धीरे-धीरे, हिमांशी ने अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश की।
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