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कैसे इस भिखारी लड़के ने दिया इस करोड़पति लड़की को जीवनदानराजू, एक 10-11 साल का बच्चा, मुंबई की गलियों में अकेला भटकता रहता ...
23/10/2025

कैसे इस भिखारी लड़के ने दिया इस करोड़पति लड़की को जीवनदान

राजू, एक 10-11 साल का बच्चा, मुंबई की गलियों में अकेला भटकता रहता था। न तो उसकी मां थी और न पिता। वह फटे-पुराने मैले कपड़े पहने, बिना चप्पल के, गली-मोहल्ले में भीख मांगकर दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर लिया करता। राजू का जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ था, लेकिन वह मनमौजी और खुश रहने वाला बच्चा था। उसे नाचने का बहुत शौक था। जब भी कहीं डीजे पर गाना बजता या मोहल्ले में शोभा यात्रा निकलती, वह अपनी सारी चिंताओं को भूलकर मस्त होकर नाचने लग जाता।

भाग 2: सुनील अग्रवाल का बंगला

उसी शहर में एक आलीशान बंगला था, जिसके मालिक सुनील अग्रवाल थे। सुनील एक नामी बिजनेसमैन थे और करोड़ों के मालिक थे। उनके साथ उनकी 9 साल की बेटी हिमांशी रहती थी। हिमांशी की मासूमियत और चंचलता से यह बंगला हमेशा जीवंत रहता था। लेकिन चार साल पहले एक दुखद घटना ने इस परिवार को बुरी तरह प्रभावित किया।

भाग 3: दुखद घटना

चार साल पहले, हिमांशी अपनी मां सुनीता के साथ किसी रिश्तेदार की पार्टी से घर लौट रही थी। रात का वक्त था और उनकी कार को एक पुराना ड्राइवर चला रहा था। अचानक एक बेकाबू ट्रक उनकी कार से टकरा गया। इस दर्दनाक हादसे में सुनीता की मौत हो गई, जबकि हिमांशी गंभीर रूप से घायल हो गई।

भाग 4: हिमांशी की हालत

हिमांशी का पैर बुरी तरह से घायल हो गया था और वह व्हीलचेयर पर बैठने लगी। सुनील ने अपनी बेटी के इलाज के लिए हर संभव कोशिश की, लेकिन कोई भी डॉक्टर उसकी हालत में सुधार नहीं कर पाया। चार सालों तक हिमांशी ने अपनी मां की यादों में खोई रही और हंसना भी भूल गई।

भाग 5: राजू का बगीचा

एक दिन, जब हिमांशी अपने बगीचे में बैठी थी, उसने झाड़ियों के पीछे हलचल सुनी। वह देखने गई तो वहां राजू था। राजू आम के पेड़ पर चढ़ने की कोशिश कर रहा था, लेकिन फिसलकर बगीचे में गिर गया। हिमांशी ने उसे देखा और उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई। चार साल में यह पहली बार था जब वह मुस्कुराई।

भाग 6: राजू का प्रयास

राजू ने देखा कि हिमांशी मायूस है। उसने उसे हंसाने का प्रयास किया। वह गोल-गोल घूमने लगा और अजीब-अजीब हरकतें करने लगा। हिमांशी की हंसी सुनकर सुनील और रघु काका भी आश्चर्यचकित रह गए।

भाग 7: सुनील का गुस्सा

तभी सुनील ने राजू को बगीचे में देखा और गुस्से में सिक्योरिटी गार्ड को बुलाया। लेकिन हिमांशी ने राजू का बचाव किया। उसने कहा, "पापा, यह बस यहां नाच रहा है। इसे कुछ मत करो।" यह सुनकर सुनील का गुस्सा ठंडा हो गया और उन्होंने राजू को जाने दिया।

भाग 8: नई शुरुआत

राजू के आने से हिमांशी की जिंदगी में एक नया बदलाव आया। वह धीरे-धीरे हंसने लगी और राजू के साथ समय बिताने लगी। सुनील ने राजू को अपने घर बुलाना शुरू कर दिया। राजू और हिमांशी के बीच एक गहरी दोस्ती हो गई।

भाग 9: हिमांशी का संघर्ष

एक दिन, जब राजू हिमांशी को हंसाने की कोशिश कर रहा था, उसने देखा कि हिमांशी अचानक मायूस हो गई। उसने पूछा, "क्या हुआ हिमांशी?" हिमांशी ने कहा, "मैं भी दौड़ना चाहती हूं, लेकिन मैं खड़ी भी नहीं हो पाती।" राजू ने उसे हिम्मत दी, "तुम चिंता मत करो, मैं तुम्हें चलने में मदद करूंगा।"

भाग 10: राजू का समर्थन

राजू ने हिमांशी को सहारा दिया और उसे खड़े होने के लिए प्रेरित किया। उसने कहा, "तुम कर सकती हो, बस खुद पर विश्वास करो।" धीरे-धीरे, हिमांशी ने अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश की।
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$500M का Deal बस साइन होने ही वाला था, तभी नौकरानी की बेटी ने सबको हैरान कर दिया…कभी-कभी जिन लोगों को हम बिल्कुल बेकार स...
23/10/2025

$500M का Deal बस साइन होने ही वाला था, तभी नौकरानी की बेटी ने सबको हैरान कर दिया…

कभी-कभी जिन लोगों को हम बिल्कुल बेकार समझते हैं, वही इंसान हमारी पूरी दुनिया बचा सकते हैं। यह कहानी है रिया वर्मा की, जो सिर्फ 12 साल की एक छोटी लड़की है, लेकिन उसके दिमाग में बहुत ज्ञान था। रिया अपने मां, सुनीता जी के साथ एक छोटे से किराए के घर में रहती थी। सुनीता जी एक सफाईकर्मी थीं और रिया उनकी मदद करती थी।

एक दिन, रिया अपने स्कूल से लौटकर अपने मां के साथ कुरैशी साहब के ऑफिस में सफाई करने गई। मिस्टर कुरैशी एक बड़े बिजनेसमैन थे, और उनके ऑफिस में हमेशा चहल-पहल रहती थी। रिया ने देखा कि मिस्टर कुरैशी गुस्से में थे और अपने असिस्टेंट से कुछ बातें कर रहे थे। उन्होंने कहा, "हम इन बेवकूफ भारतीयों को आसानी से धोखा दे सकते हैं।" रिया ने ध्यान से सुना और समझा कि वह किसी बड़े धोखे की योजना बना रहे हैं।

भाग 2: रिया की समझदारी

जब रिया घर आई, तो उसने अपनी मां से कहा, "मां, आज मिस्टर कुरैशी बहुत बुरी बातें कर रहे थे। वह कह रहे थे कि वह 500 करोड़ रुपये चुराने वाले हैं।" सुनीता जी ने चौंककर पूछा, "तुमने यह कैसे सुना?" रिया ने बताया कि उसने अरबी भाषा में बातें सुनीं और समझी। सुनीता जी को यकीन नहीं हुआ, लेकिन रिया के चेहरे पर दृढ़ता देखकर उन्होंने उसकी बात मान ली।

रिया ने कहा, "मां, अगर वह ऐसा करते हैं, तो कई गरीब परिवारों को नुकसान होगा। हमें कुछ करना चाहिए।" सुनीता जी ने सोचा कि उनकी बेटी कितनी समझदार है। उन्होंने रिया को प्रोत्साहित किया और कहा, "अगर तुम सच में ऐसा कर सकती हो, तो हमें इसे रोकना चाहिए।"

भाग 3: योजना बनाना

अगली सुबह, रिया ने अपने स्कूल जाने से पहले ठान लिया कि वह इस मामले को सुलझाएगी। उसने अपने फोन पर कुछ वीडियो देखे और अरबी भाषा के कुछ शब्द सीखे। वह जानती थी कि उसे मिस्टर कुरैशी की योजना को रोकने के लिए सही जानकारी की जरूरत है।

उसने अपने स्कूल में एक प्रोजेक्ट तैयार किया, जिसमें उसने बताया कि कैसे वह अरबी भाषा में बातचीत कर सकती है। उसने अपने दोस्तों से मदद मांगी और उन्हें बताया कि कैसे वे मिलकर इस धोखे को रोक सकते हैं। सभी दोस्तों ने उसका साथ दिया और वे एक टीम बन गए।

भाग 4: ऑफिस में घुसपैठ

रिया और उसके दोस्त ने योजना बनाई कि वे मिस्टर कुरैशी के ऑफिस में जाएंगे। रिया ने अपने दोस्तों से कहा, "हमें वहां जाकर सब कुछ सुनना होगा। हम उन्हें रोकने का एक मौका नहीं छोड़ेंगे।"

एक दिन, रिया ने अपनी मां से कहा कि उसे स्कूल के प्रोजेक्ट के लिए कुछ रिसर्च करनी है। सुनीता जी ने उसे ऑफिस जाने की अनुमति दी। रिया ने अपने दोस्तों को बुलाया और वे सभी मिस्टर कुरैशी के ऑफिस में पहुंच गए।

भाग 5: सुनने का मौका

जब वे ऑफिस पहुंचे, तो रिया ने ध्यान से सुना कि मिस्टर कुरैशी और उनके असिस्टेंट क्या बात कर रहे हैं। उन्होंने कहा, "अगर हम इस डील को जल्दी से पूरा कर लें, तो हम 500 करोड़ रुपये कमा सकते हैं।" रिया ने तुरंत समझ लिया कि यह कितना बड़ा धोखा है।

उसने अपने दोस्तों को इशारा किया कि वे चुप रहें और सब कुछ सुनें। उन्होंने देखा कि मिस्टर कुरैशी ने एक नकली एग्रीमेंट पर दस्तखत करने की योजना बनाई थी। रिया ने अपने दोस्तों से कहा, "हमें इसे रोकना होगा। हमें सबूत इकट्ठा करने होंगे।"

भाग 6: सबूत इकट्ठा करना

रिया ने अपने फोन पर रिकॉर्डिंग शुरू की और उन सभी बातों को रिकॉर्ड किया जो मिस्टर कुरैशी और उनके असिस्टेंट कह रहे थे। उसने सोचा कि अगर वह सबूत इकट्ठा कर लेगी, तो वह इसे अधिकारियों के पास ले जा सकती है।

जब वे ऑफिस से बाहर निकले, तो रिया ने अपने दोस्तों से कहा, "हमें इसे तुरंत रिपोर्ट करना होगा। हमें यह सबूत किसी को दिखाना होगा।" सभी ने सहमति जताई और रिया ने तय किया कि वह अपने मां को बताएगी।

भाग 7: मां का समर्थन

रिया ने घर आकर अपनी मां को सब कुछ बताया। सुनीता जी ने कहा, "बेटा, यह बहुत गंभीर मामला है। अगर तुम सच में ऐसा कर सकती हो, तो हमें इसे रोकना चाहिए।" रिया ने अपने मां को दिखाया कि उसने क्या रिकॉर्ड किया है।

सुनीता जी ने कहा, "हमें इसे अधिकारियों के पास ले जाना होगा।" रिया ने हिम्मत जुटाई और वे दोनों अगले दिन पुलिस स्टेशन गईं।
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फांसी से पहले बस अपने कुत्ते को देखना चाहता था | फिर जो हुआ…राहुल एक छोटे से शहर में रहता था। उसका जीवन साधारण था, लेकिन...
23/10/2025

फांसी से पहले बस अपने कुत्ते को देखना चाहता था | फिर जो हुआ…

राहुल एक छोटे से शहर में रहता था। उसका जीवन साधारण था, लेकिन उसमें एक खास बात थी—उसका कुत्ता, शेरू। शेरू सिर्फ एक जानवर नहीं था, वह राहुल का सबसे अच्छा दोस्त, साथी और परिवार का हिस्सा था। दोनों का रिश्ता इतना गहरा था कि वे एक-दूसरे की भावनाओं को बिना कहे समझते थे। जब भी राहुल किसी परेशानी में होता, शेरू हमेशा उसके पास होता।

राहुल की जिंदगी में एक दिन ऐसा मोड़ आया जब उसे झूठे आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। उसे हत्या के मामले में फंसाया गया और अदालत ने उसे 7 साल की सजा सुनाई। उस समय राहुल ने महसूस किया कि उसे सबसे ज्यादा जरूरत किसकी थी—शेरू की। जब वह जेल गया, तो शेरू ने उसकी तलाश नहीं छोड़ी। हर दिन वह जेल के बाहर बैठता, राहुल की वापसी का इंतजार करता।

भाग 2: जेल की जिंदगी

जेल की जिंदगी कठिन थी। हर दिन राहुल को अपने जीवन के बारे में सोचते हुए बिताना पड़ता था। वह अपने परिवार से दूर था और हर कोई उसे एक अपराधी मानता था। लेकिन शेरू की यादें उसे हमेशा मजबूत रखती थीं। जब भी वह अकेला महसूस करता, वह शेरू के साथ बिताए गए समय के बारे में सोचता।

राहुल की जिंदगी में एक दिन ऐसा आया जब उसे फांसी की सजा सुनाई गई। यह सुनकर उसके दिल में डर और निराशा का साया छा गया। लेकिन उसने एक आखिरी इच्छा जताई—"मुझे सिर्फ शेरू को देखना है।" यह सुनकर सभी लोग हैरान रह गए। एक इंसान जो अपनी अंतिम घड़ियों में था, वह अपने कुत्ते को देखना चाहता था।

भाग 3: शेरू का आगमन

जेल के अधिकारियों ने राहुल की इस इच्छा को पूरा करने का फैसला किया। उन्होंने शेरू को जेल में लाने का आदेश दिया। जब शेरू जेल के मैदान में आया, तो उसका काला और भूरा रंग सुबह की रोशनी में चमक रहा था। उसकी दुम खुशी से हिल रही थी। राहुल ने अपने घुटनों पर बैठकर शेरू को गले लगाया।

लेकिन अचानक शेरू का व्यवहार बदल गया। उसने दारोगा शर्मा को देख लिया और घुर्राने लगा। राहुल ने समझा कि कुछ तो गड़बड़ है। शेरू की यह घुर्राहट किसी कारण से थी। वह जानता था कि दारोगा शर्मा उस रात वहां मौजूद था जब राहुल को गिरफ्तार किया गया था।

भाग 4: सच्चाई की खोज

राहुल ने अपने कुत्ते की समझ पर विश्वास किया। उसने तय किया कि वह इस बार चुप नहीं रहेगा। उसने शेरू की आंखों में झलकती वफादारी को महसूस किया और समझ गया कि उसे अपनी बेगुनाही साबित करनी होगी।

जेल के अधिकारियों ने दारोगा शर्मा से सवाल किए। शर्मा ने कहा कि वह उस रात छुट्टी पर था, लेकिन राहुल को यकीन नहीं हुआ। उसे पता था कि शर्मा झूठ बोल रहा है। तभी एक सिपाही वर्मा ने कहा, "सर, एक नया गवाह आया है जिसने बताया है कि शर्मा उस रात वहां था।"

भाग 5: नया गवाह

नए गवाह ने कहा कि उसने एक आदमी को देखा था जो बिलकुल शर्मा जैसा दिखता था, वह राहुल के घर से निकल रहा था। यह सुनकर बड़े अधिकारी ने तुरंत जांच शुरू करने का आदेश दिया। राहुल का दिल तेजी से धड़कने लगा।

जांच के दौरान, पुलिस ने उंगलियों के निशान फिर से देखे। यह पता चला कि वे राहुल के नहीं, बल्कि दारोगा शर्मा के थे। यह सब सुनकर राहुल की आंखों में आंसू आ गए। उसे लगा जैसे उसकी जिंदगी में एक नई रोशनी आई है।

भाग 6: सच्चाई का सामना

जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, यह साफ हो गया कि दारोगा शर्मा ही असली गुनहगार था। उसने सबूतों के साथ छेड़छाड़ की थी ताकि राहुल को फंसाया जा सके। अब राहुल के खिलाफ लगे सभी आरोप हटाए जाने लगे।

शर्मा को गिरफ्तार किया गया और उस पर आरोप लगाया गया कि उसने राहुल को फंसाने के लिए सबूत तैयार किए थे। इस दौरान राहुल ने अपने कुत्ते की वफादारी को महसूस किया। शेरू ने उसे कभी नहीं छोड़ा, और अब वह उसे सच की ओर ले जा रहा था।

भाग 7: आजादी का अहसास

अंततः, राहुल को रिहा कर दिया गया। जेल के दरवाजे खुलते ही शेरू बाहर खड़ा था, उसकी दुम जोर से हिल रही थी। राहुल ने बाहर आकर जमीन पर घुटने मोड़ दिए और शेरू को गले लगा लिया। "हमने कर दिखाया, मेरे दोस्त," उसने कहा।

राहुल ने अब खुला आसमान देखा, और उसे एहसास हुआ कि वह अब पहले से ज्यादा मजबूत हो चुका है। उसने अपने कुत्ते की वफादारी को समझा और यह महसूस किया कि सच्चाई हमेशा अपना रास्ता ढूंढ लेती है।
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जिसे लड़की ने गरीब समझ कर मजाक उड़ाया, 3 दिन में उसके लिए रोने लगी। फिर जो हुआकानपुर की रश्मि जब अपनी ऑफिस कलीग प्रिया क...
23/10/2025

जिसे लड़की ने गरीब समझ कर मजाक उड़ाया, 3 दिन में उसके लिए रोने लगी। फिर जो हुआ

कानपुर की रश्मि जब अपनी ऑफिस कलीग प्रिया की शादी में शामिल होने राजस्थान के एक गांव पहुंची, तो उसके चेहरे पर असंतोष साफ झलक रहा था। गाड़ी से उतरते ही उसने नाक पर रुमाल रख लिया। "यह कैसी जगह है यार? धूल ही धूल, सड़क भी ढंग की नहीं," उसने कहा। प्रिया मुस्कुराते हुए बोली, "अरे रश्मि, यही मेरा घर है। थोड़ा एडजस्ट कर ले।"

"एडजस्ट? मैं तो बस तेरी खातिर आई हूं। वरना इतनी दूर पिछड़े इलाके में कौन आता?" रश्मि ने अपना डिजाइनर बैग संभालते हुए कहा। शादी के घर में चहल-पहल थी। रिश्तेदार इकट्ठे थे, महिलाएं गीत गा रही थीं। रश्मि जैसे ही अंदर दाखिल हुई, सबकी नजरें उस पर टिक गईं। उसका फैशनेबल अंदाज, महंगे कपड़े और शहरी ठाट-बाट देखकर लोग फुसफुसाने लगे। गांव के कुछ युवक उसके इर्दगिर्द मंडराने लगे। कोई अंग्रेजी में बात करने की कोशिश कर रहा था, कोई अपनी नई बाइक की तारीफ कर रहा था।

भाग 2: विवेक का परिचय

रश्मि ने एक लड़के को देखा और मजाक में बोली, "तुम्हारी अंग्रेजी सुनकर लगता है जैसे हिंदी भी भूल गए हो।" सब हंस पड़े। वह लड़का शर्मिंदा होकर चला गया। तभी आंगन में विवेक आया। उसके कपड़े सादे थे, हाथों में काम के निशान थे, चेहरा धूप से तपा हुआ। वह चुपचाप एक कोने में बैठकर मेहमानों के लिए पानी के गिलास सजाने लगा।

"यह कौन है? नौकर है क्या?" रश्मि ने प्रिया से पूछा। प्रिया ने तुरंत कहा, "अरे नहीं, यह विवेक है। मेरे भाई जैसा बहुत अच्छा लड़का है।" "अच्छा," रश्मि ने नागभ सिकोड़ते हुए कहा, "देखने से तो बस मजदूर लग रहा है।" विवेक ने यह सुना पर कुछ नहीं बोला, बस मुस्कुराकर अपने काम में लग गया।

भाग 3: संगीत की रस्म

शाम को संगीत की रस्म थी। सब नाच-गाना कर रहे थे। रश्मि अपने फोन में व्यस्त थी, Instagram पर फोटो अपलोड कर रही थी। तभी बिजली चली गई। पूरा घर अंधेरे में डूब गया। रश्मि चिल्लाई, "हे भगवान, यह क्या बैकवर्ड जगह है? यहां जनरेटर भी नहीं है क्या?"

"जनरेटर है पर खराब हो गया है," किसी ने कहा। "तो फिर ठीक करवाओ ना। क्या यहां कोई मैकेनिक भी नहीं मिलता?" रश्मि ने गुस्से से कहा। तभी विवेक ने आगे बढ़कर कहा, "मैं देखता हूं।" उसने टॉर्च ली और बाहर गया। 10 मिनट में जनरेटर की आवाज गूंजी और बत्ती जल उठी। सब खुश हो गए। रश्मि ने बेमन से कहा, "हां, थोड़ा काम तो आया।"

भाग 4: खाने की व्यवस्था

रात को खाने की व्यवस्था थी। रश्मि ने थाली देखी और मुंह बनाया। "यह क्या है? इतना घी तेल। मैं तो सिर्फ ग्रिल्ड चिकन खाती हूं।" प्रिया की मां ने प्यार से कहा, "बेटा, यहां शुद्ध घी में बनता है। स्वाद आएगा।" "आंटी, मुझे हेल्थ का ध्यान रखना पड़ता है। यह सब गांव के लोग खा सकते हैं, मैं नहीं," रश्मि ने साफ मना कर दिया। विवेक चुपचाप सब सुन रहा था।

उसने प्रिया की मां से कहा, "काकी, मैं कुछ इंतजाम करता हूं।" वह बाहर गया और आधे घंटे में वापस आया। उसके हाथ में एक डिब्बा था। "यह पनीर टिक्का है। बिना ज्यादा मसाले के। पास के होटल से मंगवाया है।" रश्मि ने हैरानी से देखा, "तुमने? मेरे लिए?" "हां, मेहमान को भूखा नहीं रहना चाहिए," विवेक ने सहजता से कहा।

भाग 5: बुखार का आना

अगली सुबह रश्मि को तेज बुखार आ गया। गांव में बड़ा अस्पताल नहीं था। प्रिया परेशान हो गई। तभी विवेक ने कहा, "मैं एक दोस्त डॉक्टर को बुलाता हूं।" उसने तुरंत शहर से एक अच्छे डॉक्टर को बुलवाया। डॉक्टर ने जांच की और दवाई दी। रश्मि ने कमजोर आवाज में पूछा, "इतनी जल्दी डॉक्टर कैसे आ गया?" विवेक ने मुस्कुरा कर कहा, "वो मेरा दोस्त है। साथ पढ़ते थे।"

"तुम पढ़े-लिखे हो?" रश्मि हैरान रह गई। "हां, इंजीनियरिंग की थी। पर गांव में वापस आ गया। यहां काम ज्यादा जरूरी था," विवेक ने सादगी से जवाब दिया। रश्मि ने और कुछ नहीं पूछा पर उसके मन में हलचल मची हुई थी। विवेक ने उसकी दवाई का पूरा ध्यान रखा। समय पर दवा दी, गर्म पानी दिया।

भाग 6: विवेक की मेहनत

शाम तक उसका बुखार उतर गया। वह बाहर आई तो देखा विवेक खेत से लौट रहा था। उसके कपड़े मिट्टी से सने थे, चेहरे पर पसीना था। रश्मि ने मन में सोचा, "इंजीनियर होकर भी खेत में काम कर रहा है। कितना पिछड़ा हुआ सोच है इसका।" रात को प्रिया ने रश्मि से कहा, "देख रश्मि, विवेक भाई बहुत अच्छे हैं।"

"तू उनके बारे में गलत मत सोच," प्रिया ने कहा। "अच्छे हैं तो क्या? गांव में रहकर मिट्टी में लौटते रहेंगे। कोई एंबिशन नहीं, कोई सपना नहीं। ऐसे लोगों से मुझे सख्त नफरत है," रश्मि ने साफ शब्दों में कहा। प्रिया कुछ नहीं बोली, बस उदास हो गई। रश्मि को फर्क नहीं पड़ा।

भाग 7: विवेक की मदद

उस रात रश्मि को नींद नहीं आई। उसके मन में विवेक की छवि घूम रही थी। पर वह अपने आप को समझा रही थी, "नहीं, ऐसे लोग मेरे लायक नहीं। मुझे तो शहरी, अमीर और स्मार्ट लड़का चाहिए।" बुखार उतरने के बाद रश्मि फिर से अपनी पुरानी आदतों में लौट आई। सुबह देर से उठी। नाश्ते में नखरे किए।

"यह परांठा इतना तेल युक्त है। मैं तो सिर्फ ब्राउन ब्रेड खाती हूं," रश्मि ने कहा। प्रिया की मां ने प्यार से कहा, "बेटा, गांव में ब्राउन ब्रेड नहीं मिलती।" रश्मि ने मुंह बिगाड़ा और चाय पीकर रह गई।

भाग 8: विवेक का धैर्य

दोपहर को जब विवेक खेत से लौटा तो रश्मि ने मजाक बनाते हुए कहा, "अरे वाह, किसान साहब आ गए। इंजीनियर बनकर भी खेत में मिट्टी खोद रहे हो? क्या बात है?" विवेक ने शांति से मुस्कुराकर कहा, "जो काम करना पड़े, वह कर लेता हूं।"

"बहुत महान हो तुम," रश्मि ने ताना मारा। "शहर में लाखों की नौकरी छोड़कर यहां गांव में मजदूरी कर रहे हो। वाह वाह!" प्रिया ने उसे चुप कराने की कोशिश की पर वह नहीं मानी। "प्रिया, सच बोलूं तो तुम्हारे इस भाई को समझ नहीं आती। इतना पढ़-लिखकर भी कोई गांव में रहता है।" विवेक कुछ नहीं बोला। बस अपने काम में लग गया।
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पुलिसवाले ने दीये बेच रही बूढ़ी मां को बाल पकड़कर घसीटा, लेकिन फिर पुलिसवाले का क्या हुआ...लगभग 10:00 बजे का समय था। बाज...
22/10/2025

पुलिसवाले ने दीये बेच रही बूढ़ी मां को बाल पकड़कर घसीटा, लेकिन फिर पुलिसवाले का क्या हुआ...

लगभग 10:00 बजे का समय था। बाजार में सड़क के किनारे राधा देवी टोकरा लेकर दीपक बेच रही थी। वैसे तो उनकी दोनों बेटियां आर्मी ऑफिसर थीं, इसलिए उन्हें किसी भी चीज की कोई कमी नहीं थी। लेकिन फिर भी आज राधा देवी अपना मन बहलाने और दिवाली पर शहर की चमक देखने के लिए सड़क किनारे दीपक बेचने बैठ गई थी। उनकी दोनों बेटियां, दीक्षा और निशा, दूर बॉर्डर पर देश की सेवा में तैनात थीं। उन्हें जरा भी अंदाजा नहीं था कि आज उनकी मां के साथ ऐसा कुछ होने वाला है जो उनकी रूह को हिला देगा।

भाग 2: अपमान का सामना

राधा देवी चुपचाप दीपक बेचने में लगी थी कि तभी एक इंस्पेक्टर जिसका नाम विजय शर्मा था, मोटरसाइकिल से आया। उसने बाइक सड़क किनारे रोकी और गुस्से में बोला, "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई सड़क किनारे दीपक बेचने की? तुम्हारे चलते यहां जाम लग सकता है। जल्दी से यहां से हटो।" इतना कहकर वह अचानक टोकरा पर जोर से लात मार देता है। दीपक जमीन पर बिखर जाते हैं और कुछ दीपक फूट भी जाते हैं। लोग रुक कर तमाशा देखने लगते हैं।

इंस्पेक्टर और भड़क कर चिल्लाता है, "यह तुम्हारे बाप की सड़क है क्या? जहां मन किया बैठ गई दीपक बेचने। अगर बेचना है तो अपनी जगह पर बेचो।" राधा देवी चुपचाप उसकी बातें सुनती रही। अपमान सहती रही। उनकी आंखों में आंसू थे और मन में विचार आया, "मैं तो शहर की चमक देखने के लिए आज बैठ गई थी।" लेकिन वह बिना कुछ कहे जमीन पर गिरे दीपक उठाने लगी। भीड़ में खड़े लोग सिर्फ तमाशा देख रहे थे। ना किसी ने आवाज उठाई, ना किसी ने मदद की।

भाग 3: सोशल मीडिया का असर

भीड़ में एक लड़का था जो सोशल मीडिया पर मशहूर था। उसने मोबाइल निकाला और पूरा वाक्या रिकॉर्ड करने लगा। इंस्पेक्टर लगातार उन्हें डांट रहा था, अपमानित कर रहा था और लोग बस हंसते देखते रह गए। राधा देवी मन ही मन सोच रही थी, "अगर मेरी दोनों बेटियों को यह सब पता चल गया तो ना जाने क्या हो जाएगा। काश उन्हें यह बात कभी ना पता चले वरना तूफान आ जाएगा।" आंखों में आंसू लिए दीपक वापस टोकरा में डालकर वह धीरे-धीरे घर की ओर चल पड़ी। मन में विचार थे, "इससे अच्छा तो मैं अपने घर पर ही थी।"

भाग 4: वायरल वीडियो

उधर जिस लड़के ने वीडियो बनाया था, उसने घर पहुंचकर उसे सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया। कैप्शन में लिखा था, "इस बूढ़ी औरत की कोई गलती नहीं थी। लेकिन इंस्पेक्टर ने इसके दीपक गिरा दिए और सड़क पर बेइज्जत किया। क्या यह सही है?" दिवाली के इस पावन त्यौहार पर ऐसा व्यवहार वीडियो तेजी से वायरल हो गया। लोग शेयर करने लगे, कमेंट करने लगे। हर कोई इस घटना को गलत बता रहा था।

कुछ देर बाद यह वीडियो निशा के मोबाइल में पहुंचा। वीडियो देखते ही उसका खून खौल उठा। वह सोच भी नहीं सकती थी कि उसकी मां के साथ ऐसा बर्ताव हुआ है। लोगों के सामने बेइज्जत किया गया। थप्पड़ तक मारा गया। निशा ने तुरंत वीडियो अपनी बड़ी बहन दीक्षा को भेज दिया। दीक्षा ने वीडियो देखा तो गुस्से से लाल हो गई। आंखों में आंसू भर आए। मन ही मन उसने सोचा, "काश पापा होते तो हमें यह दिन नहीं देखना पड़ता। हमने इतनी मेहनत करके यह मुकाम पाया फिर भी मां को सुख नहीं दे पाए। लेकिन मैं उस इंस्पेक्टर को छोड़ूंगी नहीं। बदला लेकर रहूंगी। दिवाली की रौनक के बीच यह अपमान बर्दाश्त नहीं करूंगी।"

भाग 5: बहनों का संकल्प

वीडियो देखने के बाद दीक्षा ने तुरंत निशा को कॉल किया। आवाज में गुस्सा साफ झलक रहा था। "निशा तुम यहीं रहो। मैं घर जा रही हूं और उस इंस्पेक्टर से अपना बदला लेकर रहूंगी।" निशा ने तुरंत कहा, "नहीं दीदी, मैं भी आपके साथ चलूंगी। मां के साथ जो हुआ, वह मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती। उसे उसकी औकात दिखानी ही पड़ेगी।" दीक्षा ने समझाया, "तुम्हें यहीं रहना चाहिए। मैं मां को लेकर वापस आऊंगी और हम यही कहीं आसपास उन्हें रख लेंगे।" कुछ देर तक बहस चली लेकिन आखिरकार निशा मान गई। "ठीक है दीदी, आप जाइए। लेकिन मां को साथ लेकर जरूर लौटना।"

भाग 6: दीक्षा की तैयारी

दीक्षा ने फोन रख दिया। वर्दी उतारी और दिवाली के पीले रंग का सलवार सूट पहन लिया। अब वह एक साधारण गांव की लड़की लग रही थी। बस में बैठकर कुछ ही घंटों में घर पहुंच गई। घर पहुंचते ही उसने दरवाजा खटखटाया। राधा देवी उस समय किचन में सब्जियां काट रही थी। दरवाजे की आवाज सुनकर उन्होंने पुकारा, "कौन है? मैं हूं मां। दीक्षा लौट आई हूं आपसे मिलने।" आवाज सुनते ही राधा देवी के हाथ रुक गए। आंखों में नमी आ गई। उनके मन में डर भी था कि कहीं दीक्षा को इस घटना का पता तो नहीं चल गया।

भाग 7: मां-बेटी की मुलाकात

वह जानती थी कि उनकी बेटियां कितनी ईमानदार और जिद्दी हैं। अपनी मां के लिए कुछ भी कर गुजरेंगी। दिवाली के इस मौके पर तो और भी। उन्होंने जल्दी से दरवाजा खोला। सामने खड़ी बेटी को देखते ही मां-बेटी गले लग गईं। जैसे सालों की दूरी एक पल में मिट गई हो। राधा देवी ने पूछा, "बेटी निशा कहां है?" दीक्षा ने जवाब दिया, "नहीं मां। मैंने उसे मना कर दिया था। बहुत जिद कर रही थी, लेकिन मैं साथ नहीं लाई।"

भाग 8: दीक्षा का संकल्प

"अच्छा पहले अंदर तो आओ।" दीक्षा किचन में गई और सब्जियां देखकर बोली, "मां, आप बैठिए, खाना मैं बना देती हूं।" थोड़ी देर में खाना बनकर तैयार हो गया। मां-बेटी ने साथ बैठकर खाना खाया और फिर बातें शुरू हुईं। दीक्षा ने सीधा सवाल किया, "मां, आपके साथ जो हुआ आपने मुझे क्यों नहीं बताया? यह बहुत गलत है। मैं उस इंस्पेक्टर को सस्पेंड करवा कर ही मानूंगी। उसने कानून के खिलाफ किया है और मैं उसे दिखाऊंगी कि कानून की ताकत क्या होती है। दिवाली के त्यौहार पर दीपक बेचने वाली मां को ऐसा अपमान।"

भाग 9: राधा देवी का डर

राधा देवी ने डरते-डरते कहा, "बेटा, छोड़ो, पुलिस वाले हैं। क्या हो गया अगर उसने ऐसी बातें कर दी? जाने दो।" दीक्षा ने सख्ती से कहा, "नहीं मां, आप चुप रहिए। मैं जानती हूं मुझे क्या करना है। उसने जो किया, उसकी सजा उसे जरूर मिलेगी।" इतना कहकर दीक्षा ने लाल रंग की साड़ी पहनी। साधारण गांव की लड़की की तरह तैयार हुई और सीधे थाने की ओर निकल पड़ी। यह वही थाना था जहां इंस्पेक्टर विजय शर्मा तैनात था।

भाग 10: थाने में दीक्षा का सामना

थाने पहुंचकर उसने देखा विजय वहां मौजूद नहीं था। केवल दो हवलदार और एसओ अजय कुमार वहां बैठे थे। दीक्षा सीधे एसओ अजय कुमार के पास गई और बोली, "मुझे इंस्पेक्टर विजय शर्मा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवानी है। उन्होंने मेरी मां के साथ सड़क पर बदतमीजी की। दीपकों की टोकरी गिरा दी। थप्पड़ मारा और लोगों के सामने अपमानित किया। दिवाली के बाजार में ऐसा व्यवहार मैं चाहती हूं कि उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई हो।"

भाग 11: अजय कुमार की प्रतिक्रिया

अजय कुमार चौंक कर बोला, "क्या इंस्पेक्टर विजय शर्मा के खिलाफ रिपोर्ट और तुम कौन होती हो रिपोर्ट लिखवाने वाली? क्या तुम उस बूढ़ी औरत की बेटी हो? तुम्हें लगता है कि मैं अपने इंस्पेक्टर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर लूंगा? उन्होंने कोई गलत नहीं किया और अगर थप्पड़ मार भी दिया तो क्या हुआ? वह सड़क पर दीपक बेच रही थी। गलत तो वही थी।"

भाग 12: दीक्षा का साहस

दीक्षा की आंखों में गुस्सा भड़क उठा। "देखिए, हमें कानून मत सिखाइए। हमने कानून पढ़ा है और अच्छी तरह जानते हैं कि इसमें क्या लिखा है। मैं उसी कानून की मदद से उसे सजा दिलवाऊंगी। अगर आपने रिपोर्ट नहीं लिखी तो मैं आपके खिलाफ भी एक्शन लूंगी।" अजय कुमार हैरान रह गया। यह साधारण सी गांव की लड़की इतनी आत्मविश्वास से और बिना डरे बात कर रही थी जैसे कोई बड़ी ताकत उसके पीछे हो।

भाग 13: आईडी कार्ड का असर

वह बोला, "तुम कौन हो और तुम्हारी इतनी औकात कि हमें सस्पेंड करवाओगी। हम चाहे तो अभी तुम्हें अंदर करवा सकते हैं।" दीक्षा ने बिना कुछ कहे अपना सरकारी आईडी कार्ड मेज पर रख दिया। आईडी देखते ही अजय कुमार की आंखें फटी रह गईं। घबराते हुए बोला, "आप आर्मी ऑफिसर हैं। सॉरी मैडम। बताइए क्या करना होगा?" दीक्षा ने सख्त लहजे में कहा, "इस थाने की हालत खराब है। यहां न्याय नाम की कोई चीज नहीं है। सॉरी से कुछ नहीं होगा। अब मैं डायरेक्ट आपके खिलाफ और आपके इंस्पेक्टर के खिलाफ कार्रवाई करवाऊंगी।"
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दिवाली की रात एक अरबपति की खोई हुई बेटी सड़क पर दीये बेचती मिली। दिल को छू लेने वाली...दिवाली की दोपहर थी। पूरा शहर रौनक...
22/10/2025

दिवाली की रात एक अरबपति की खोई हुई बेटी सड़क पर दीये बेचती मिली। दिल को छू लेने वाली...

दिवाली की दोपहर थी। पूरा शहर रौनक में डूबा हुआ था। हर तरफ दुकानें सजी थीं। मिठाइयों की खुशबू हवा में फैली थी और लोग खुशियों के इंतजाम में लगे थे। लेकिन उसी भीड़भाड़ के बीच सड़क के किनारे सूरज की तेज धूप में तपती जमीन पर अपनी पुरानी टोकरी में मिट्टी के दिए सजाए बैठी थी एक छोटी सी बच्ची। उसकी उम्र मुश्किल से 10 साल रही होगी। फटे पुराने कपड़ों में लिपटी, चेहरा धूल और पसीने से भरा। वो बार-बार सड़क पर गुजरते लोगों को देखती। हर चेहरे में उम्मीद तलाश रही थी कि शायद कोई रुक जाए। शायद कोई उसके दिए खरीद ले। शायद आज की रात उसे भी दो वक्त का खाना नसीब हो जाए। वह भी अपने घर पर दिवाली मना पाए।

भाग 2: उम्मीद की किरण

वो हर आने-जाने वाले से कहती, "दिए ले लो। अच्छे दिए हैं। ₹5 के दो दिए हैं।" उसकी धीमी सी आवाज भीड़ में खो जाती। लोग गुजरते रहे। कोई हंस दिया, कोई झिड़क कर चला गया। लेकिन वह फिर भी मुस्कुराती रही। जैसे उसे उम्मीद हो कि यह नहीं तो कोई और हमारे दिए जरूर खरीदेगा। कभी-कभी वह अपना पसीना पोंछती और सामने रखे दियों को ठीक करती। वो दियों को ऐसे सहलाती जैसे वह दिए ही उसके सब कुछ हो। जैसे हर दिया उसकी अपनी उम्मीद का टुकड़ा हो।

भाग 3: टूटा हुआ सपना

एक बच्चा पास से भागता हुआ गुजरा। उसकी टोकरी से एक दिया गिर गया और टूट गया। वो कुछ नहीं बोली। बस टूटा हुआ दिया उठाया। उसे देखती रही और फिर धीरे से बुदबुदाई, "तू भी टूटा जैसे मैं टूटी हूं।" फिर उसने टूटे हुए टुकड़े अपने झोले में रख लिए। शायद उसे हर टूटी चीज में अपना अक्स दिखता था। पास ही मिठाई की दुकान से आवाज आई, "भैया, 2 किलो जलेबी देना।" उसने वहां देखा और वह अनजाने में मुस्कुरा दी। लेकिन उसी पल पेट से एक हल्की सी कराह निकली जो भूख की आवाज थी।

भाग 4: संघर्ष का सफर

वह अपनी झोली में हाथ डालती है और दो सूखे चने निकालकर खाने लगती है और पानी की तलाश में इधर-उधर देखने लगती है। पास के नल पर जाकर पानी पीती है। ठंडा नहीं था मगर उसे जैसे अमृत लग रहा था। लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही थी। हर कोई किसी काम में व्यस्त था। किसी के हाथ में गिफ्ट, किसी के हाथ में मिठाई और उसी भीड़ में वह बच्ची जो किसी की नजर में थी ही नहीं। कभी-कभी कोई महिला उसके दिए पर नजर डालती कहती, "बेटा, यह तो बहुत महंगे हैं।" तो वह जल्दी से जवाब देती, "नहीं मैडम, आप जितना देंगी उतने में ले जाइए।" पर फिर भी वह दिए वहीं रह जाते।

भाग 5: उम्मीद की रात

सड़क का कोना धीरे-धीरे धूल और धूप से भर रहा था। उसके पैरों के नीचे जमीन जल रही थी। लेकिन वह बैठी रही क्योंकि उसे उम्मीद थी कि शाम होते-होते शायद कुछ दिए बिक जाएंगे और वह भी इस बार एक दिया अपने लिए जला पाएगी। करीब 4:00 बजे का समय था। शहर की सड़कें भीड़ से भरी थीं। तभी एक काली गाड़ी धीरे-धीरे उसके सामने आकर रुकी। गाड़ी से एक आदमी उतरा। सूट पहने, देखने में कोई बड़ा बिजनेसमैन लग रहा था। वह मार्केट दिवाली के लिए सामान खरीदने आया था।

भाग 6: पहचान का एहसास

उसने इधर-उधर दुकानों को देखा। लेकिन तभी उसकी नजर उस बच्ची पर पड़ी जो दिए बेचने में लगी थी। वो उसके पास गया और उसके पास जाकर बैठ गया। उसने पूछा, "बेटा, दिए कितने के हैं?" बच्ची ने सिर उठाया। मुस्कुराई और बोली, "साहब, ₹5 के दो दिए हैं। पर अगर आप चार भी देंगे तो भी चलेगा।" आदमी मुस्कुराया। पर कुछ पल बाद उसका चेहरा बदल गया। उसकी नजर उस बच्ची के चेहरे पर ठहर गई। जैसे कुछ पहचानने की कोशिश कर रहा हो।

भाग 7: अतीत की यादें

वो दियों की बजाय उसके चेहरे को देख रहा था। उसकी आंखों को, उसके गालों पर जमी धूल को, उसकी मुस्कान को और फिर कुछ देर के लिए सन्नाटा छा गया। वो सोचने लगा, "यह आंखें, यह चेहरा, यह मुस्कान ऐसा क्यों लग रहा है जैसे मैं इसे पहले कहीं देख चुका हूं?" उसके सीने में पुरानी यादों का तूफान उठने लगा। कुछ छवियां, कुछ हंसी की आवाजें और एक छोटी बच्ची जो उसकी गोद में हंसती थी, वह पल जिस दिन वह खो गई थी, जिस दिन उसकी दुनिया उजड़ गई थी।

भाग 8: टूटे सपनों की कहानी

लेकिन नहीं, वो सोच झटक देता है। "नहीं, यह कैसे हो सकता है? वो तो सालों पहले चली गई थी।" वो धीरे से गाड़ी के पास लौटने लगा। लेकिन पीछे से एक छोटी सी आवाज आई, "साहब, एक दिया ले लीजिए ना। अपने घर की रोशनी बढ़ जाएगी।" विक्रम रुक गया। उसके कदमों की रफ्तार थम गई। वह पलट कर देखता है। बच्ची मुस्कुरा रही थी, लेकिन उसकी आंखों में थकान थी।

भाग 9: एक पुरानी पहचान

तभी कुछ हुआ। एक दिया उसके हाथ से गिरा और मिट्टी में टूट गया। वो बच्ची झुककर उसे उठाने लगी और उसकी कलाई से एक पुरानी टूटी हुई चैन लटक रही थी। जिस पर नाम खुदा था "आर्या।" विक्रम के हाथ कांपने लगे। उसकी आंखें चौड़ी हो गई। वो उस नाम को देखता रह गया। "आर्या," वो नाम जिसे उसने पिछले आठ सालों से हर मंदिर, हर अनाथालय और हर अखबार में ढूंढा था। उसके होंठ कांप उठे। "नहीं, यह कैसे हो सकता है?"

भाग 10: उम्मीद का दीप

धीरे-धीरे सूरज ढलने लगा था। लेकिन विक्रम मल्होत्रा के दिल के भीतर अंधेरा गहराने लगा था। उसकी निगाहें उस छोटी बच्ची की कलाई पर टिकी थीं। वही टूटी हुई चैन जिस पर लिखा था "आर्या।" वो नाम जो उसके सीने में जख्म बनकर धड़कता था। विक्रम के होंठों से आवाज तक नहीं निकल रही थी। वो कुछ कहने को बढ़ा पर गला सूख गया। वो बस उस बच्ची को देखता रहा जो टूटा हुआ दिया उठाकर उसे झाड़ रही थी। जैसे वह किसी टूटी हुई उम्मीद को फिर से जोड़ रही हो।

भाग 11: यादों का जाल

वो पल विक्रम के लिए किसी सपने जैसा था। कभी ऐसा लगता जैसे वह सच में उसकी आर्या है। कभी लगता शायद यह किसी और की बच्ची हो। लेकिन दिल के भीतर कुछ कह रहा था, "यही है। यही मेरी आर्या है।" वह बच्ची फिर से मुस्कुराई। "साहब, यह दिया ले लीजिए ना। मोल नहीं दूंगी। बस आप जलाइएगा तो मुझे अच्छा लगेगा।" विक्रम ने थरथराते हाथों से जेब में हाथ डाला। नोट निकालना चाहा। पर जेब से एक पुराना फोटो गिर पड़ा।

भाग 12: पुरानी यादें

जिसे वह हमेशा अपने पास रखता था। जिसमें एक छोटी बच्ची हंस रही थी। वो फोटो की ओर देखता रहा और फिर उस बच्ची की ओर चेहरा, आंखें, मुस्कान सब एक जैसे। उसकी सांसें भारी हो गईं। उसने कुछ कहा नहीं। बस दिया खरीदा और कुछ कदम दूर जाकर खड़ा हो गया। दूर से उसे देखता रहा। बच्ची अब अपने सारे दिए सजाकर लोगों को बुला रही थी। "दिए ले लो। लक्ष्मी जी के लिए सस्ते दिए।" कभी उसकी आवाज थकान में बदल जाती।
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15 साल बाद जब कॉलेज का प्यार मिला... उसकी हालत देखकर आंखें भर आईं फिर जो हुआसुबह का वक्त था। लखनऊ शहर की गोमती किनारे वा...
22/10/2025

15 साल बाद जब कॉलेज का प्यार मिला... उसकी हालत देखकर आंखें भर आईं फिर जो हुआ

सुबह का वक्त था। लखनऊ शहर की गोमती किनारे वाली सड़क पर भीड़भाड़ के बीच सड़क किनारे एक छोटी सी चाय की दुकान थी। टीन की छत, लकड़ी की बेंचे और चूल्हे पर उबलती हुई केतली से उठती भाप। उस दुकान में खड़ी थी मीरा। साधारण सी साड़ी में माथे पर बिंदी, चेहरे पर थकान की हल्की लकीरें। लेकिन आंखों में अजीब सी दृढ़ता और सादगी। उसके हाथ लगातार चल रहे थे। चाय बनाना, कुल्हड़ सजाना, ग्राहकों को चाय थमाना, उसकी थकी हुई उंगलियां मेहनत का बोझ ढो रही थी। पर चेहरे पर आत्मसम्मान का भाव अब भी जिंदा था।

भाग 2: अचानक मुलाकात

उसी समय सड़क पर एक चमचमाती काली एसयूवी रेड सिग्नल पर आकर रुकी। गाड़ी के शीशे के पीछे बैठा था आदित्य। आज वह करोड़पति बिजनेसमैन था। लाखों की गाड़ियों और करोड़ों के बिजनेस का मालिक। पर उस वक्त उसकी आंखें गहरी सोच में डूबी हुई थी। उसने अनजाने में बाहर देखा और नजर उस चाय की दुकान पर जाकर ठहर गई। जैसे ही उसकी आंखें मीरा पर पड़ी, उसका दिल जोरों से धड़क उठा। होंठ कांप गए और उसने अनजाने में बुदबुदाया, "मीरा।"

सिग्नल हरा हुआ तो बाकी गाड़ियां आगे बढ़ गई। लेकिन आदित्य ने ड्राइवर से कहा, "गाड़ी यहीं साइड में लगाओ।" ड्राइवर ने चौंक कर पूछा, "सर, सब ठीक है?" आदित्य ने धीमी आवाज में कहा, "बस 2 मिनट।" गाड़ी किनारे लग गई और आदित्य उतरा। महंगे सूट और चमकते जूतों में उसकी पहचान साफ झलक रही थी। पर चेहरा तनाव और बेचैनी से भरा हुआ था। उसके कदम धीरे-धीरे उस चाय की दुकान की ओर बढ़ रहे थे। जैसे बरसों का बोझ पैरों में पहला दाराहा बंध गया हो।

भाग 3: मीरा की पहचान

मीरा ने सिर उठाया। उसकी नजर सामने खड़े शख्स पर पड़ी। हाथ में पकड़ी चम्मच ठहर गई। आंखें फैल गई। चेहरा शून्य रह गया। 15 बरसों बाद सामने वही चेहरा था। वही आदित्य। होठ कांप उठे और धीमे स्वर में उसके मुंह से निकला, "आदित्य।" आदित्य ने कुछ कदम और बढ़ाए। उसकी आंखों में बरसों की जुदाई का सैलाब उमड़ पड़ा। "हां मीरा, मैं ही हूं। सोचा नहीं था, किस्मत मुझे यहां ले आएगी।"

मीरा ने अपनी पलकों को झुका लिया। दिल कांप रहा था। पर आवाज को संभालते हुए बोली, "चाय बना दूं?" उसकी आवाज में वही सादगी थी। लेकिन भीतर का दर्द साफ झलक रहा था। आदित्य ने सिर हिलाया। मीरा ने केतली से चाय निकाली और कुल्हड़ में डालकर उसके सामने रख दी। आदित्य ने कांपते हाथों से कुल्हड़ थामा। जैसे ही पहला घूंट गले से उतरा, उसके दिल में भूली बिसरी यादों का सैलाब उमड़ पड़ा।

भाग 4: कॉलेज के दिन

लखनऊ का डीएवी कॉलेज, बड़ा सा कैंपस, बड़े-बड़े क्लासरूम और जब नया सेशन शुरू हुआ था, भीड़ में ढेरों नए चेहरे थे। लेकिन आदित्य की नजर ठहर गई थी। सिर्फ एक पर, मीरा पर। वह सफेद सलवार कुर्ते में हाथों में किताबों का ढेर लिए तेज-तेज कदमों से क्लास की ओर भाग रही थी। माथे पर हल्का पसीना और चेहरे पर मासूमियत। तभी अचानक उसकी किताबें जमीन पर बिखर गई। सब लोग आगे बढ़ते गए। कोई पलट कर रुका तक नहीं। आदित्य आगे झुका, किताबें उठाई और मुस्कुरा कर कहा, "यह आपकी है।"

मीरा ने नजर उठाई। उसकी आंखों में झिझक थी, पर होठों पर हल्की सी मुस्कान भी थी। "थैंक यू।" बस उसी पल से आदित्य के दिल में कुछ नया अंकुर फूट गया। धीरे-धीरे उनकी मुलाकातें बढ़ने लगीं। कभी लाइब्रेरी में, कभी गलियारे में तो कभी कैंटीन में।

भाग 5: कैंटीन में पहली मुलाकात

एक बार कैंटीन में मीरा अकेली बैठी थी। उसने चाय का कप उठाया तो देखा बगल में आदित्य पहले से खड़ा था। "कप खाली है। अगर बुरा ना मानो तो साथ बैठ सकता हूं?" आदित्य ने सहज भाव से कहा। मीरा ने सिर झुका लिया पर होठों पर मुस्कान आ गई। उस दिन से दोनों अक्सर साथ चाय पीने लगे। मीरा पढ़ाई में अच्छी थी। पर मंच पर जाने से डरती थी।

भाग 6: डिबेट प्रतियोगिता

एक बार कॉलेज में डिबेट प्रतियोगिता हुई। उसका नाम लिखा गया लेकिन मंच पर कदम रखते ही उसकी आवाज कांपने लगी। लोग हंसने लगे। तभी पीछे से आदित्य ने जोर से ताली बजाई और कहा, "तुम बोल सकती हो मीरा, मुझे पता है तुम सबसे अच्छी हो।" वो शब्द मीरा के लिए जैसे जादू बन गए। उसने कांपते होंठ खोले और धीरे-धीरे बोलना शुरू किया। पूरी ऑडियंस खामोश हो गई। जब उसका भाषण खत्म हुआ, तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी। वह प्रतियोगिता जीत गई।

भाग 7: सपनों की बातें

मंच से उतरते समय उसने सबसे पहले आदित्य की तरफ देखा। उसकी आंखों में गर्व साफ छलक रहा था। उस नजर ने मीरा को पहली बार यह यकीन दिलाया कि कोई है जो उस पर भरोसा करता है। दिन बीतते गए। अब उनकी बातें किताबों से निकलकर सपनों तक पहुंच गई थी। गोमती किनारे बैठना उनकी आदत बन गया था। मीरा अक्सर पानी की लहरों में कंकड़ फेंकती और पूछती, "आदित्य, तुम्हारे सपने क्या हैं?" आदित्य आसमान की तरफ देखता और कहता, "सपने बड़े हैं। लेकिन अगर तुम साथ हो तो हर सपना पूरा कर लूंगा।"

भाग 8: मोहब्बत का इजहार

धीरे-धीरे यह दोस्ती मोहब्बत में बदल गई। मगर दोनों ने कभी सीधे-सीधे इजहार नहीं किया। वे सिर्फ आंखों से बातें करते, मुस्कानों से एहसास जताते। बरगद की छांव, क्लास की खिड़कियां और कैंटीन की चाय हर जगह उनकी खामोश मोहब्बत गूंजती थी। लेकिन जिंदगी हमेशा एक सी नहीं रहती। आदित्य का परिवार गरीब था। पिता ने साफ कह दिया, "अब पढ़ाई छोड़कर कमाने जा। घर चलाने के लिए पैसे चाहिए।" आदित्य का दिल टूटा।

भाग 9: अंतिम विदाई

एक शाम गोमती किनारे जब सूरज ढल रहा था। उसने मीरा से कहा, "अगर कभी मैं दूर चला जाऊं तो याद रखना, लौटकर जरूर आऊंगा।" मीरा की आंखें भर आई। उसने पहली बार उसका हाथ थाम कर कहा, "कभी मत कहना कि हमारी राहें अलग हो सकती हैं। मैं इंतजार करूंगी, चाहे जितना वक्त लगे।" हवा भारी हो गई थी। गोमती की लहरें जैसे उनकी कस्मों को अपने साथ बहा ले गईं।

भाग 10: बिछड़ने का दुख

पर किस्मत ने बेरहम मोड़ लिया। कुछ महीनों बाद मीरा की शादी गांव में कर दी गई। आदित्य दूसरे शहर चला गया था। संघर्ष और सपनों की उस दुनिया में जहां रिश्तों की जगह जिम्मेदारियों ने ले ली थी। समय ने रफ्तार पकड़ी। देखते-देखते 15 साल बीत गए।

भाग 11: पुनर्मिलन

खैर, अब आदित्य की चाय खत्म हो चुकी थी। स्वाद जुबान से मिट गए थे और उसकी आंखों में नमी उतर आई थी। उसने धीरे से नजरें उठाकर देखा। सामने वही मीरा थी। पर अब कॉलेज की लड़की नहीं बल्कि सड़क किनारे चाय बेचती मजबूत औरत। और तभी दुकान के भीतर से एक मासूम आवाज आई, "मां।" आदित्य का दिल धक से रह गया।

भाग 12: नए रिश्ते की शुरुआत

आदित्य उस मासूम आवाज को सुनकर जैसे पत्थर का हो गया। उसके कानों में "मां" शब्द बार-बार गूंज रहा था। धीरे-धीरे उसकी नजर दुकान के भीतर की ओर गई। वहां खड़ा था 8-9 साल का एक बच्चा। दुबला पतला शरीर, साफ लेकिन पुराने कपड़े, पीठ पर किताबों से भरा बैग। उसकी आंखों में मासूम चमक थी। चेहरे पर वही निश्चल मुस्कान जो कभी मीरा के चेहरे पर दिखा करती थी।

बच्चा दौड़कर मीरा के पास आया और उसका आंचल पकड़ते हुए बोला, "मां, स्कूल देर हो रही है। चलो ना।" आदित्य की सांसे थम सी गई। उसने कांपती आवाज में पूछा, "मीरा, यह तुम्हारा बेटा है?" मीरा ने चुपचाप बेटे के सिर पर हाथ फेरा और धीमी आवाज में बोली, "हां, यही मेरी दुनिया है।" उसकी आंखें नम थीं लेकिन चेहरे पर आत्मसम्मान की वही रेखा बनी हुई थी।
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