Bollywood's Timeless Diva

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हर रात, मेरी बेटी रोते हुए घर फ़ोन करती और मुझे उसे लेने आने के लिए कहती। अगली सुबह, मैं और मेरे पति घर गए और अपनी बेटी ...
09/09/2025

हर रात, मेरी बेटी रोते हुए घर फ़ोन करती और मुझे उसे लेने आने के लिए कहती। अगली सुबह, मैं और मेरे पति घर गए और अपनी बेटी को एकांतवास में रखने के लिए उसे लेने के लिए कहा। अचानक, जैसे ही हम गेट पर पहुँचे, आँगन में दो ताबूत देखकर मैं बेहोश हो गई, और फिर सच्चाई ने मुझे पीड़ा पहुँचाई।
हर रात, लगभग 2-3 बजे, मुझे मेरी बेटी काव्या का फ़ोन आता था। उसने अभी 10 दिन पहले ही बच्चे को जन्म दिया था और वह एकांतवास में रहने के लिए उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के भवानीपुर गाँव में अपने पति के घर पर रह रही थी। फ़ोन पर उसकी आवाज़ रुँध गई:
– "माँ, मैं बहुत थक गई हूँ... मुझे बहुत डर लग रहा है... आकर मुझे ले जाओ, मैं अब और बर्दाश्त नहीं कर सकती..."
हर बार जब मैं यह सुनती, तो मेरा दिल मानो टुकड़ों में बँट रहा होता, लेकिन मेरे पति - श्री शंकर - की ओर देखते हुए उन्होंने बस आह भरी:
– "धैर्य रखो। तुम्हारी बेटी की शादी है, उसके ससुराल वालों के लिए मुश्किलें मत बढ़ाओ। घर में बंद रहना सामान्य बात है, उसका रोना कोई अजीब बात नहीं है।"
मैं बेचैन थी। लगातार कई रातों तक फ़ोन बजता रहा, बच्ची टूटे दिल की तरह रोती रही, मैं भी सीने से लगाकर रोई, लेकिन आलोचना के डर से उसे लेने जाने की हिम्मत नहीं हुई।
उस सुबह तक, मैं इसे और बर्दाश्त नहीं कर सकी। मैंने अपने पति को जगाया और दृढ़ता से कहा:
– ​​"आज मुझे वहाँ जाना है। अगर मेरे ससुराल वाले मुझे इजाज़त नहीं देते, तो मैं अपनी बच्ची को हर हाल में घर ले जाऊँगी।"
दंपत्ति लखनऊ से ससुराल के लिए 30 किलोमीटर से भी ज़्यादा की दूरी जल्दी-जल्दी तय करके निकले। लेकिन जैसे ही वे लाल टाइलों वाले घर के गेट पर पहुँचे, मैंने एक ऐसा दृश्य देखा जिससे मुझे चक्कर आ गया, मेरा चेहरा काला पड़ गया और मैं आँगन में ही गिर पड़ी।
आँगन के ठीक बीचों-बीच, दो अर्थी (पालक) एक-दूसरे के बगल में रखी हुई थीं, जो सफ़ेद कपड़ों और गेंदे की मालाओं से ढकी हुई थीं; वेदी पर अगरबत्ती का धुआँ उठ रहा था और अंतिम संस्कार के तुरही की शोकपूर्ण ध्वनि गूँज रही थी।
मेरे पति मुझे उठाते हुए काँप उठे, मेरी तरफ देखा और चिल्लाए:
– "हे भगवान... काव्या!"
पता चला कि उस रात मेरी बेटी की मौत...
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जिस पिता को बेटा-बहू बोझ समझते थे… वही निकला करोड़ों का मालिक, फिर जो हुआ | Hindi storyउत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले का ए...
08/09/2025

जिस पिता को बेटा-बहू बोझ समझते थे… वही निकला करोड़ों का मालिक, फिर जो हुआ | Hindi story
उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले का एक साधारण किसान परिवार था। उस परिवार के मुखिया रामनाथ प्रसाद थे, जो उम्र के आखिरी पड़ाव पर थे। सफेद बाल, झुर्रियों से भरा चेहरा और पैरों में एक पुराना घाव, जो उनकी जिंदगी को दर्द से भर चुका था। यह घाव महीनों से था, लेकिन इलाज न मिलने के कारण नासूर बन चुका था। चलने-फिरने में उन्हें बहुत तकलीफ होती थी। लेकिन बेटे अजय और बहू रीमा के लिए यह सिर्फ एक परेशानी थी, चिंता नहीं।

एक दोपहर की बात है। रामनाथ जी आंगन के दरवाजे तक आए क्योंकि उनके कमरे में रखा मिट्टी का घड़ा खाली हो चुका था। उन्होंने बहू रीमा को आवाज दी, “बहू, जरा पानी दे दो। सूखी रोटियां बिना पानी के गले से नहीं उतर रही।” रीमा, जो कमरे में बैठी थी, झटके से उठी और चिल्लाकर बोली, “कितनी बार कहा है कि बाहर मत निकला करो। खुद बीमार हो, हमें भी बीमारी दे दोगे क्या? जाओ अंदर, अभी पानी लाती हूं।”
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एक फटेहाल बुज़ुर्ग कबाड़ बीनने वाली महिला अपने पोते की स्कूल फीस भरने के लिए 7,000 रुपये निकालने बैंक गई, और पूरा लेन-दे...
08/09/2025

एक फटेहाल बुज़ुर्ग कबाड़ बीनने वाली महिला अपने पोते की स्कूल फीस भरने के लिए 7,000 रुपये निकालने बैंक गई, और पूरा लेन-देन कार्यालय सन्नाटा छा गया। लखनऊ में शुरुआती गर्मी का मौसम था, दोपहर का समय था, गर्म हवा दम घोंट रही थी। सफ़ेद बालों वाली, झुकी हुई कद-काठी वाली, और हाथ में जूट का एक फीका सा बोरा लिए एक बुज़ुर्ग महिला अलीगंज कस्बे में स्थित एक सरकारी बैंक के लेन-देन कार्यालय में दाखिल हुई।
उसने फटे-पुराने कपड़े पहने थे, जो धूल और कागज़ के टुकड़ों से सने थे; उस रद्दी के थैले की गंध अभी भी बनी हुई थी, जिससे इंतज़ार कर रहे कुछ ग्राहक भौंहें चढ़ा रहे थे और उससे दूर भाग रहे थे। फिर भी उसने रिसेप्शनिस्ट से धीरे से कहा:
— मैं 7,000 रुपये निकाल रही हूँ... अपने पोते की स्कूल फीस भरने के लिए। आज की आखिरी तारीख है...
रिसेप्शनिस्ट ने सिर से पैर तक देखा, अपनी झुंझलाहट छिपा नहीं पाई:
— क्या आपके पास कतार का नंबर है? वहीं बैठिए और इंतज़ार कीजिए।
वह उलझन में थी:
— मैं... मुझे नहीं पता इसे कैसे पाऊँ...
और इस तरह वह बिना किसी मार्गदर्शन के अकेली रह गई। एक भी सहानुभूति भरी नज़र नहीं। तीन घंटे बीत गए। वह अभी भी वहीं बैठी रही, न कुछ खा रही थी, न पी रही थी, उसकी आँखें इलेक्ट्रॉनिक बोर्ड पर लगी थीं, अपने नंबर के आने का इंतज़ार कर रही थीं—यह जानते हुए भी कि किसी ने उसका नंबर नहीं डाला था।
तीन घंटे... एक बुज़ुर्ग के लिए, यह एक थका देने वाली दोपहर थी। वह प्यास से व्याकुल थी, लेकिन पानी लेने बाहर जाने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी, अपनी सीट खोने और अपनी बारी गँवाने के डर से। कभी-कभी, वह अपने पुराने कपड़े के थैले की ओर देखती: बचत खाते के अलावा, कुछ सिक्के और उसके पोते की ट्यूशन का बिल भी था।
उसे वहाँ बैठा देखकर, एक युवा सुरक्षा गार्ड उत्सुकता से वहाँ से गुज़रा और पूछा कि क्या हो रहा है। यह सुनकर, वह चौंक गया—पता चला कि उसने अभी तक नंबर नहीं लिया था, इसलिए किसी ने उसे फ़ोन नहीं किया था। उसने जल्दी से उसे बुज़ुर्गों के लिए प्राथमिकता वाले काउंटर तक पहुँचाया।
जब पासबुक मेज़ पर रखी गई, तो टेलर पहले तो उदासीन रही, लेकिन जब उसने खाताधारक का नाम देखा, तो वह दंग रह गई। उसने ऊपर देखा, उसकी आँखें उलझन में थीं: उसका मुँह हकला रहा था...
— तुम... हो
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SP मैडम का पति पंचरवाला, SP मैडम की आँखें फटी रह गई, जब पंचरवाला निकला उनका पति आखिर क्या थी सच्चाईशहर की सुबह हमेशा चहल...
08/09/2025

SP मैडम का पति पंचरवाला, SP मैडम की आँखें फटी रह गई, जब पंचरवाला निकला उनका पति आखिर क्या थी सच्चाई
शहर की सुबह हमेशा चहल-पहल से भरी रहती थी। हॉर्न की आवाजें, स्कूटी और बाइक की रफ्तार, दुकानों के शटर खुलने की कटरपटर, और लोग अपनी-अपनी मंजिलों की ओर भागते हुए नजर आते थे। इसी बीच एक महिला तेज़ कदमों से अपनी स्कूटी चलाती हुई अपने दफ्तर की ओर बढ़ रही थी। वह कोई और नहीं, बल्कि सीमा — शहर की सख्त, तेजतर्रार और ईमानदार पुलिस अफसर, यानी एसपी साहिबा थीं।

सीमा की सख्ती से अपराधी कांपते थे और आम जनता उन्हें देवता समान मानती थी। उनका व्यक्तित्व दमदार था, सफेद शर्ट और काली पट्टी में वह किसी से कम नहीं लगती थीं। उस दिन भी सीमा मीटिंग के लिए जल्दी पहुंचना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने सोचा सीधे दफ्तर जाकर तैयारी कर लेंगी। लेकिन किस्मत ने कुछ और ही सोचा था।

रास्ते में उनकी स्कूटी से अचानक अजीब सी आवाज आने लगी। धीरे-धीरे आवाज बढ़ने लगी और स्कूटी हिलने लगी। सीमा ने तुरंत साइड लगाकर देखा तो पता चला पीछे का टायर पंचर हो चुका था। उन्होंने चारों ओर देखा और सड़क के कोने पर एक पुरानी पंचर की दुकान नजर आई। दुकान के बाहर एक आदमी धूप में बैठा था और किसी की साइकिल का टायर ठीक कर रहा था।
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रेलवे टीटी बनी पत्नी… स्टेशन पर चाय बेचते मिले तलाकशुदा पति को देखकर रो पड़ी, फिर जो हुआजीवन में कभी-कभी किस्मत ऐसे मोड़...
08/09/2025

रेलवे टीटी बनी पत्नी… स्टेशन पर चाय बेचते मिले तलाकशुदा पति को देखकर रो पड़ी, फिर जो हुआ

जीवन में कभी-कभी किस्मत ऐसे मोड़ ले आती है, जहां पुरानी यादें, अधूरी कहानियां और टूटे रिश्ते अचानक सामने आ जाते हैं। ऐसी ही एक कहानी है सविता और रोहन की, जिनकी ज़िंदगी में कई उतार-चढ़ाव आए, लेकिन एक रेलवे स्टेशन पर उनकी मुलाकात ने उनकी जिंदगी की धड़कन फिर से जोड़ दी।

सविता और रोहन की शादी हुई थी, लेकिन उनकी जिंदगी में खुशियों के बजाय संघर्ष और मतभेद ज्यादा थे। रोहन एक छोटे से दूध की डेयरी चलाता था, जबकि सविता पढ़ाई में आगे बढ़ना चाहती थी। लेकिन रोहन के घमंड और सोच ने उनकी राहें जुदा कर दीं। उसने सविता की पढ़ाई पर हमेशा रोक लगाई, उसे सपनों से दूर रखा। धीरे-धीरे उनके बीच दरारें बढ़ने लगीं और अंततः तलाक हो गया।

रोहन का कारोबार भी ठीक नहीं चल पाया। डेयरी में मिलावट पकड़ी गई, उस पर छापा पड़ा और वह जेल भी गया। जेल से बाहर आने के बाद उसकी जिंदगी बिखर चुकी थी। अब वह रेलवे स्टेशन पर चाय बेचता था। वहीं दूसरी ओर, सविता ने हार नहीं मानी। उसने अपनी पढ़ाई पूरी की और रेलवे में टीटी (टिकट परीक्षक) बन गई।
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Shilpa Shetty and Raj Kundra Face Serious Legal Challenges Amid Rs 60 Crore Cheating AllegationsBollywood actress Shilpa...
08/09/2025

Shilpa Shetty and Raj Kundra Face Serious Legal Challenges Amid Rs 60 Crore Cheating Allegations

Bollywood actress Shilpa Shetty and her husband Raj Kundra are once again under the scanner of law enforcement agencies in Mumbai. The Mumbai Police have issued a lookout notice against the couple in connection with a cheating case involving Rs 60 crore. This latest development adds to the growing list of legal troubles faced by the duo, raising serious questions about their business dealings.
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क्या हुआ उन बेटियों का जिन्होंने अपनी मां को जिंदा दफना दिया? अल्लाह का कहर उनके ऊपर टूटामेरे प्यारे दोस्तों, कभी आपने स...
08/09/2025

क्या हुआ उन बेटियों का जिन्होंने अपनी मां को जिंदा दफना दिया? अल्लाह का कहर उनके ऊपर टूटा

मेरे प्यारे दोस्तों, कभी आपने सोचा है कि जब औलाद की बेरुखी इतनी बढ़ जाए कि वह अपने ही हाथों से अपनी माँ को जिंदा मिट्टी में दफना दे? यह कहानी है एक ऐसी माँ और उसकी बेटियों की, जिनके साथ कुछ ऐसा हुआ कि सुनकर रूह कांप उठे।

मैं उस दिन सिर्फ 14 साल की थी। मेरी आँखों के सामने मेरी माँ सांस ले रही थी, उसकी आँखें खुली थीं, होंठ कांप रहे थे। मैं बार-बार कह रही थी, "माँ अभी जिंदा है," लेकिन मेरी बड़ी बहनों ने मेरी बात को वहम समझकर दबा दिया। उस वक्त मेरे दिल में इतना डर और खौफ था कि मैं चीख भी नहीं सकी। मेरी जुबान जैसे पत्थर हो गई थी। मिट्टी के हर फावड़े के साथ मुझे ऐसा लग रहा था जैसे माँ की चीखें मेरे कान फाड़ रही हों।

माँ को आखिरी उम्र में कैंसर हो गया था। इलाज कराने के बजाय मेरी बहनों ने उसे घर के आंगन में जिंदा दफना दिया और खुद शहर की चमक-दमक में खो गईं। तीनों बहनों ने खूब पैसा कमाया, शादियां कर लीं, लेकिन जब कारोबार तबाह हुआ तो उन्होंने माँ की जमीन बेचने का मन बनाया। जब वे घर पहुँचीं तो वहां पुराना घर नहीं, बल्कि एक आलीशान बंगला था। दरवाज़ा खुलते ही सबके मुंह हैरानी से खुले रह गए क्योंकि उस बंगले के नाम पर मेरा नाम लिखा था — जिया। मैं सबसे छोटी थी, लेकिन सबसे ज्यादा बिगड़ी हुई और लाडली भी।
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Patni Ne kidni dekar Pati ki jaan bachai,hosh mein aate hi Diya patni ko talaq,wajah Samne I toअस्पताल के सन्नाटे भरे कम...
08/09/2025

Patni Ne kidni dekar Pati ki jaan bachai,hosh mein aate hi Diya patni ko talaq,wajah Samne I to
अस्पताल के सन्नाटे भरे कमरे में जब मालती की आंखें खुलीं, तो उसे पेट के बाएं ओर तेज चुभता हुआ दर्द महसूस हुआ। दर्द इतना तीव्र था कि उसका शरीर कांप उठा। फिर भी उसके दिमाग में एक ही नाम गूंज रहा था — विकास। “विकास ठीक है न?” उसने कमजोर आवाज़ में पूछा। पास खड़ी नर्स ने उसका माथा पोंछते हुए मुस्कुराते हुए कहा, “चिंता मत कीजिए, मालती जी। ऑपरेशन पूरी तरह सफल रहा। आपके पति खतरे से बाहर हैं, बस अभी उन्हें होश नहीं आया है।”

मालती के लिए यह शब्द किसी अमृत से कम नहीं थे। उसका दिल जो कई घंटों से डर और बेचैनी में डूबा था, अब हल्का महसूस कर रहा था। “मुझे उनसे मिलना है,” उसने जिद भरी आवाज़ में कहा। लेकिन डॉक्टर ने कमरे में आकर नरम लेकिन दृढ़ स्वर में कहा, “अभी नहीं, मालती जी। आपने अपनी एक किडनी दान की है। आपका शरीर अभी ऑपरेशन से गुजरा है। आपको और विकास दोनों को आराम की जरूरत है। आप दोनों अलग-अलग रिकवरी रूम में हैं और हम आपकी निगरानी कर रहे हैं।”
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रिश्तेदार कर रहे थे बाप की बेइज्जती फिर लड़के ने जो किया किसी ने सोचा भी नहीं थाशादी का भव्य आयोजन था, पूरा शहर इस रस्म ...
08/09/2025

रिश्तेदार कर रहे थे बाप की बेइज्जती फिर लड़के ने जो किया किसी ने सोचा भी नहीं था
शादी का भव्य आयोजन था, पूरा शहर इस रस्म में शामिल होने के लिए उमड़ पड़ा था। दूल्हे के घर की भव्यता और आलीशान सजावट हर किसी का ध्यान खींच रही थी। लेकिन इस भरी-पूरी बारात में एक ऐसा नजारा देखने को मिला, जो किसी के सपने में भी नहीं था। रिश्तेदार, जो खुद को बड़े और समझदार समझते थे, वे एक गरीब दिखने वाले आदमी की, जो कि बारात में दूल्हे के पिता थे, बेइज्जती करने से बाज नहीं आ रहे थे।

विजय और उनका बेटा आर्यन शादी के गेट पर पहुंचे ही थे कि गेट पर खड़ा गार्ड उन्हें देखकर ठिठक गया। उसने कड़क आवाज़ में कहा, "नाम बताइए, अगर गेस्ट लिस्ट में नाम होगा तभी एंट्री मिलेगी, वरना नहीं।" विजय ने हिचकिचाते हुए कहा, "बेटा, बुलावा आया था। दूल्हे के पिता हमारे पुराने रिश्तेदार हैं।" गार्ड ने ऊपर से नीचे तक विजय को देखा, एक तिरछी मुस्कान के साथ कहा, "बुलावा तो सबको आता है साहब, लेकिन लिस्ट में नाम होगा तभी अंदर जाओगे। इस तरह के कपड़ों में तो हमारे स्टाफ भी अंदर नहीं जाते।"
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मालिक जब मजदूरों के बीच पहुँचा,तो भूख का सच देखकर उसकी रूह कांप गई।सेठ किशन लाल शहर के सबसे प्रसिद्ध और धनी बिल्डरों में...
08/09/2025

मालिक जब मजदूरों के बीच पहुँचा,तो भूख का सच देखकर उसकी रूह कांप गई।
सेठ किशन लाल शहर के सबसे प्रसिद्ध और धनी बिल्डरों में से एक थे। उनकी बनाई इमारतें, भव्य महल और आलीशान बंगले पूरे शहर की शान माने जाते थे। लोग उनका नाम सुनते ही सम्मान से सिर झुकाते थे, लेकिन यह सम्मान केवल उनकी दौलत और ताकत के लिए था, उनके व्यवहार के लिए नहीं। किशन लाल एक कठोर, अहंकारी और स्वार्थी इंसान थे। उनका मानना था कि पैसे ही दुनिया की सबसे बड़ी ताकत हैं, और बाकी सब कुछ बेकार है। मजदूर उनके लिए केवल काम करने वाली मशीनें थीं, जिन्हें वे कम मेहनत और कम मजदूरी पर काम पर लगाते थे। वे अक्सर मजदूरों को डांटते और उनकी मेहनत को कम आंकते थे।

एक दिन किशन लाल अपने सबसे बड़े प्रोजेक्ट, 50 मंजिला इमारत, का निरीक्षण करने गए। वहां काम धीमी गति से चल रहा था। किशन लाल को लगा कि मजदूर जानबूझकर काम में ढील दे रहे हैं ताकि ज्यादा दिनों तक मजदूरी मिल सके। उनका गुस्सा सातवें आसमान पर था। उन्होंने मन ही मन सोचा कि मजदूर मेहनत का दिखावा करते हैं, पर असल में कामचोर हैं। वे उनकी असलियत जानना चाहते थे।
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रोजाना लेट आने पर छात्र को स्कूल में मिलती थी सजा ,एक दिन टीचर को उसकी असली वजह पता चली तो उसके होशकहानी शुरू होती है लख...
08/09/2025

रोजाना लेट आने पर छात्र को स्कूल में मिलती थी सजा ,एक दिन टीचर को उसकी असली वजह पता चली तो उसके होश

कहानी शुरू होती है लखनऊ के एक पुराने मध्यमवर्गीय इलाके से, जहां आदर्श विद्या मंदिर नाम का एक स्कूल था। यह स्कूल अपनी कड़ी पढ़ाई और अनुशासन के लिए पूरे इलाके में मशहूर था। इस स्कूल में 10वीं कक्षा की क्लास टीचर, श्रीमती शारदा यादव, अपनी सख्ती और नियमों के लिए जानी जाती थीं। पिछले 20 सालों से विज्ञान पढ़ाने वाली शारदा जी का मानना था कि जीवन में सफलता का एकमात्र रास्ता अनुशासन है। उनके लिए नियम कानून से ऊपर कुछ नहीं था।

उनकी कक्षा में साहिल नाम का एक 15 वर्षीय लड़का था, जो उनकी सख्ती का सबसे बड़ा शिकार था। साहिल एक दुबला-पतला, शर्मीला लड़का था, जिसकी आंखें अक्सर झुकी रहती थीं और चेहरे पर एक गहरी खामोशी छाई रहती थी। साहिल की सबसे बड़ी आदत थी रोज स्कूल लेट आना। यह कोई एक दिन की गलती नहीं थी, बल्कि रोज का सिलसिला था। स्कूल की पहली घंटी 8 बजे बजती थी, लेकिन साहिल अक्सर 8:10 या 8:15 बजे पसीने से तरबतर होकर क्लास के दरवाजे पर खड़ा होता।
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वार्ड बॉय की दर्दनाक सच्चाई | करोड़ों का मालिक बना वार्ड बॉय, अपने ही अस्पताल का सच देखकर काँप उठा .डॉ. आदित्य मेहरा भार...
07/09/2025

वार्ड बॉय की दर्दनाक सच्चाई | करोड़ों का मालिक बना वार्ड बॉय, अपने ही अस्पताल का सच देखकर काँप उठा .
डॉ. आदित्य मेहरा भारत के सबसे बड़े और मशहूर अस्पताल, मेहरा सुपर स्पेशलिटी के मालिक थे। उनके पास करोड़ों की दौलत थी, हर तरह की सुविधाएं थीं, और नाम-शोहरत की कोई कमी नहीं थी। लेकिन एक दिन उन्होंने सब कुछ छोड़कर खुद को एक साधारण वार्ड बॉय बना लिया। क्यों? क्योंकि वे अपने ही बनाए हुए अस्पताल की सच्चाई जानना चाहते थे। एक ऐसी सच्चाई जहाँ मरीजों का दर्द केवल एक व्यापार था और इंसानियत की कोई कीमत नहीं थी।

यह कहानी सिर्फ एक डॉक्टर की नहीं, बल्कि हर उस इंसान की है जो अस्पताल के गलियारों में बेबसी से भटकता है। यह कहानी उस दर्द की है जिसे वार्ड बॉयज, मरीज और उनके परिवार हर दिन महसूस करते हैं।
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