06/05/2025
महाभारत का छठा पर्व — भीष्म पर्व — सरल भाषा में
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1. युद्ध की शुरुआत
कुरुक्षेत्र में दोनों सेनाएँ आमने-सामने खड़ी थीं।
सूर्य देवता अपनी लालिमा फैला रहे थे।
घोड़ों की हिनहिनाहट, रथों की गड़गड़ाहट, सैनिकों के हुंकारों से पूरा क्षेत्र गूंज उठा था।
युद्ध से पहले युधिष्ठिर ने रथ से उतरकर भीष्म, द्रोणाचार्य और कृपाचार्य जैसे बड़ों के पास जाकर आशीर्वाद माँगा।
उन्होंने कहा:
> "मैं धर्मयुद्ध कर रहा हूँ, इसलिए आपसे आशीर्वाद चाहता हूँ।"
भीष्म और द्रोण ने आशीर्वाद देते हुए कहा:
> "जाओ, विजय तुम्हारी होगी, क्योंकि तुम्हारा उद्देश्य धर्म पर आधारित है।"
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2. अर्जुन का मोह
युद्ध शुरू होने से ठीक पहले अर्जुन ने जब अपनी ही कुल के बड़े-बुजुर्ग, गुरुजन और भाई-बंधु दोनों ओर देखे, तो उसका हृदय भर आया।
अर्जुन ने गांडीव नीचे रख दिया और श्रीकृष्ण से कहा:
> "हे केशव! मैं अपने ही बंधु-बांधवों को कैसे मार सकता हूँ?
मुझे राज्य, सुख या विजय नहीं चाहिए।"
उसकी आँखों में आँसू थे।
उसके हाथ काँपने लगे।
वह युद्ध करने से इंकार करने लगा।
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3. श्रीकृष्ण का गीता उपदेश
तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को धर्म का सच्चा ज्ञान दिया।
यही उपदेश आज भगवद गीता के नाम से अमर है।
कृष्ण ने कहा:
> "हे अर्जुन! तू शरीर नहीं है, आत्मा है। आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है।
तू अपने स्वधर्म का पालन कर।
युद्ध धर्म का कर्तव्य है — अधर्म के विरुद्ध धर्म की स्थापना के लिए।"
उन्होंने यह भी कहा:
> "कर्म कर, फल की इच्छा मत कर।"
कृष्ण ने अर्जुन को विराट रूप भी दिखाया —
जिसमें संपूर्ण ब्रह्मांड उनके अंदर समाया हुआ दिखाई दिया।
यह अद्भुत दर्शन देखकर अर्जुन का मोह भंग हो गया।
उसने अपना गांडीव उठाया और कहा:
> "हे माधव! अब मेरा सारा संशय दूर हो गया।
मैं आपके आदेश से युद्ध करूँगा।"
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4. युद्ध का आरंभ
शंखनाद हुआ।
भीष्म ने अपनी सेना को आगे बढ़ने का आदेश दिया।
पांडवों और कौरवों की सेनाएँ आमने-सामने भिड़ गईं।
चारों ओर अस्त्र-शस्त्र चलने लगे।
धरती काँपने लगी।
भीम और अर्जुन ने शत्रु दल में भारी संहार मचाया।
कौरव पक्ष में भी कर्ण, दु:शासन, अश्वत्थामा ने भयंकर युद्ध किया।
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5. भीष्म का विकराल रूप
भीष्म ने युद्ध के मैदान में प्रचंड विकराल रूप धारण कर लिया।
उन्होंने अकेले ही पांडवों की सेना के हजारों योद्धाओं का संहार कर दिया।
भीष्म के सामने कोई टिक नहीं पा रहा था।
अर्जुन, भीम, धृष्टद्युम्न, शिखंडी — सभी प्रयास करते रहे, लेकिन भीष्म को पराजित करना असंभव हो रहा था।
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6. युद्ध के नियम
युद्ध के पहले नियम तय हुए थे:
सूरज ढलने के बाद युद्ध नहीं होगा।
घायल योद्धा पर वार नहीं किया जाएगा।
निहत्थे पर हमला नहीं होगा।
लेकिन धीरे-धीरे जैसे-जैसे युद्ध आगे बढ़ा, क्रोध और प्रतिशोध की भावना नियमों को भुला देने लगी।
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7. प्रथम दिन का युद्ध
पहले दिन कौरव सेना ने पांडव पक्ष पर भयंकर आक्रमण किया।
भीष्म के नेतृत्व में कौरवों ने पांडवों को बहुत हानि पहुँचाई।
लेकिन भीम और अर्जुन ने भी कौरव पक्ष के कई महत्त्वपूर्ण योद्धाओं को घायल कर दिया।
दिन के अंत में दोनों पक्ष भारी हानि के साथ लौटे।
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8. संजय का वर्णन
धृतराष्ट्र ने संजय से युद्ध का हाल पूछा।
संजय ने दिव्य दृष्टि से युद्ध का पूरा हाल देखा और धृतराष्ट्र को सुनाया।
संजय ने कहा:
> "हे राजन! धर्म पांडवों के पक्ष में है।
भीष्म का प्रताप अद्भुत है, लेकिन पांडव भी पराक्रमी हैं।
युद्ध में भारी संहार हो रहा है।"
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9. दिन-प्रतिदिन युद्ध की स्थिति
हर दिन युद्ध और अधिक उग्र होता गया।
भीष्म के प्रचंड आक्रमणों के बावजूद पांडवों ने भी साहस नहीं छोड़ा।
भीम ने अपने गदा प्रहार से अनेक कौरव सैनिकों को मार गिराया।
अर्जुन ने अपनी दिव्य अस्त्र विद्या से शत्रुओं को घेर लिया।
धृष्टद्युम्न, शिखंडी, अभिमन्यु, नकुल, सहदेव भी वीरता से लड़ते रहे।
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10. शिखंडी की भूमिका
भीष्म ने शिखंडी को युद्ध में देखा तो शस्त्र नहीं उठाए।
क्योंकि भीष्म ने प्रतिज्ञा ली थी कि वे शिखंडी पर अस्त्र नहीं चलाएंगे (क्योंकि शिखंडी स्त्री रूप से जन्मा था)।
अर्जुन ने इस अवसर का लाभ उठाया।
शिखंडी को आगे कर भीष्म पर बाणों की वर्षा की।
अर्जुन ने भीष्म पर इतने तीखे बाण चलाए कि उनका शरीर छलनी हो गया।
भीष्म रथ से गिर पड़े, लेकिन पृथ्वी पर नहीं गिरे।
उनके शरीर में इतने बाण लगे थे कि वे बाणों की शय्या (सेज) पर टिके रहे।
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11. भीष्म का पतन
भीष्म पृथ्वी पर नहीं गिरे।
उनका शरीर बाणों पर अटका रहा।
सारा युद्ध रुक गया।
भीष्म ने कहा:
> "मैं इच्छा मृत्यु वाला हूँ।
मैं तब तक प्राण नहीं छोड़ूँगा जब तक सूर्य उत्तरायण में प्रवेश नहीं करेगा।"
भीष्म ने अर्जुन से जल मांगा।
अर्जुन ने एक बाण चलाया, जिससे गंगा जल निकल आया और भीष्म के मुख में प्रवेश किया।
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12. भीष्म का उपदेश
भीष्म ने अंतिम समय में युधिष्ठिर को धर्म का गहरा उपदेश दिया।
उन्होंने कहा:
> "धर्म का पालन करो, न्याय और सत्य के मार्ग पर चलो।
क्रोध और लोभ से दूर रहो।
राज्य उसी का टिकता है जो प्रजा की भलाई के लिए कार्य करता है।"
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13. युद्ध जारी
भीष्म के गिरने से पांडवों का उत्साह बढ़ा, लेकिन युद्ध रुका नहीं।
अब द्रोणाचार्य को कौरव सेना का सेनापति बनाया गया।
युद्ध और भी भयंकर होता गया।
द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह जैसी दिव्य व्यूह रचनाएँ बनानी शुरू कर दीं।
(यह चक्रव्यूह आगे चलकर अभिमन्यु की वीरगति का कारण बना।)
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14. युद्ध का बढ़ता विकराल रूप
कृष्ण की रणनीति से पांडव सेना धीरे-धीरे विजय की ओर बढ़ने लगी थी।
लेकिन अभी भी कर्ण, अश्वत्थामा, दु:शासन जैसे योद्धा कड़े प्रतिरोध कर रहे थे।
भीम ने अनेक कौरव भाइयों को मार गिराया।
अर्जुन ने कई रथियों और हाथियों को नष्ट कर दिया।
रक्त की नदियाँ बहने लगीं।
मृतकों के शव से युद्ध भूमि पट गई थी।
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