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बधाई:  #पौड़ी_गढ़वाल की शीतल बिष्ट बनी इसरो में वैज्ञानिक मूलरूप से पौड़ी गढ़वाल जिले के गगवाड्स्यूं पट्टी के बणगांव मल्...
04/11/2025

बधाई: #पौड़ी_गढ़वाल की शीतल बिष्ट बनी इसरो में वैज्ञानिक
मूलरूप से पौड़ी गढ़वाल जिले के गगवाड्स्यूं पट्टी के बणगांव मल्ला की शीतल का परिवार दून के क्लेमनटाउन में रहता है।
शीतल के पिता संतोष कुमार बिष्ट सेना से रिटायर्ड हैं और माता अंजना ग्रहणी हैं। शीतल की प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा दून में हुई है। उन्होंने ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय से कंप्यूटर साइंस में बीटेक किया है।

इस दौरान कैंपस सलेक्शन में उन्हें विप्रो व इंफोसिस जैसी कंपनियों ने जॉब ऑफर किया था, लेकिन उन्होंने एमटेक को अहमियत दी। इस बीच इसरो से आइसीआरबी परीक्षा का फार्म भरा और पहले ही प्रयास में उन्हें सफलता मिल गई। आपको बता दें कि ऑल इंडिया स्तर पर होने वाले इसरो की इस परीक्षा में सिर्फ 44 युवाओं को सफलता मिली थी, जिनमें शीतल भी सम्मिलित थी।
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03/11/2025

🙏🙏
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भारतीय क्रिकेट टीम , को बधाई नहीं देना चाहेंगे 🙏🙏 🎉👏💖      ゚viralシypシ゚viralシhtag          #2025シ
03/11/2025

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आप सभी को पावन पर्व देवउठनी एकादशी एवं तुलसी विवाह की हार्दिक बधाई एवं अनंत शुभकामनाएं ...सृष्टि के पालनहार भगवान श्री ह...
02/11/2025

आप सभी को पावन पर्व देवउठनी एकादशी एवं तुलसी विवाह की हार्दिक बधाई एवं अनंत शुभकामनाएं ...

सृष्टि के पालनहार भगवान श्री हरि विष्णु और माता तुलसी की कृपा सभी पर अनवरत बरसती रहे, हर घर-आँगन धन-धान्य से भरा रहे, सबके जीवन में अपार सुख, समृद्धि, खुशहाली और आनंद हो, सबकी मनोकामनाएं पूर्ण हो; यही प्रार्थना है।

आज के दिन से देव उठने के साथ ही ख़त्म हो जाएगा चातुर्मास और शुरू हो जाएंगे विवाह सहित तमाम मांगलिक कार्य, देवउठनी एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी भी कहते हैं, जिस दिन भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं और सृष्टि का संचालन फिर से शुरू करते हैं।

💥देव प्रबोधिनी एकादशी की पूजा से मिलता है अक्षय फल

⚡ तुलसी माता का स्तुति मंत्र

देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः,
नमो नमस्ते तुलसी पाप हर हरिप्रिये..

✨ मां तुलसी का पूजन मंत्र

तुलसी श्रीमहालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी.
धर्मया धर्मानना देवी देवीदेवमनः प्रिया..
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत
तुलसी भूर्महालक्ष्मीः पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया..

🌿 शिव पुराण

चार महीने बाद योग निद्रा से जागते हैं भगवान विष्णु शिवपुराण के मुताबिक, भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु ने दैत्य शंखासुर को मारा था। भगवान विष्णु और दैत्य शंखासुर के बीच युद्ध लंबे समय तक चलता रहा। युद्ध समाप्त होने के बाद भगवान विष्णु बहुत अधिक थक गए। तब वे क्षीरसागर में आकर सो गए, उन्होंने सृष्टि का कार्यभार भगवान शिव को सौंप दिया, इसके बाद कार्तिक शुक्लपक्ष की एकादशी को जागे, तब शिवजी सहित सभी देवी-देवताओं ने भगवान विष्णु की पूजा की और वापस सृष्टि का कार्यभार उन्हें सौंप दिया।

इसी वजह से कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवप्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है।

✅ वामन पुराण

4 महीने पाताल में रहने के बाद क्षीर सागर लौटते हैं भगवान वामन पुराण के मुताबिक, भगवान विष्णु ने वामन अवतार में राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी थी. उन्होंनें विशाल रूप लेकर दो पग में पृथ्वी, आकाश और स्वर्ग लोक ले लिया. तीसरा पैर बलि ने अपने सिर पर रखने को कहा. पैर रखते ही राजा बलि पाताल में चले गए. भगवान ने खुश होकर बलि को पाताल का राजा बना दिया और वर मांगने को कहा. बलि ने कहा आप मेरे महल में निवास करें.
भगवान ने चार -महीने तक उसके महल में रहने का वरदान
दिया.

धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्ण देवशयनी एकादशी से देवप्रबोधिनी एकादशी तक पाताल में बलि के महल में निवास करते हैं. फिर कार्तिक महीने की इस एकादशी पर अपने लोक लक्ष्मीजी के साथ रहते हैं.

⚡ वृंदा के श्राप से भगवान विष्णु बने पत्थर के शालिग्राम इस साल देवउठनी एकादशी आज 1 नवंबर को पड़ रही है. इस दिन तुलसी विवाह की भी परंपरा है. भगवान शालिग्राम के साथ तुलसीजी का विवाह होता है. इसके पीछे एक पौराणिक कथा है, जिसमें जालंधर को हराने के लिए भगवान विष्णु ने वृंदा नामक अपनी भक्त के साथ छल किया था. इसके बाद वृंदा ने विष्णु जी को श्राप देकर पत्थर का बना दिया था, लेकिन लक्ष्मी माता की विनती के बाद उन्हें वापस सही करके सती हो गई थीं।

उनकी राख से ही तुलसी के पौधे का जन्म हुआ और उनके साथ शालिग्राम के विवाह का चलन शुरू हुआ. देवउठनी एकादशी पर गन्ने का मंडप सजाकर उसमें भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित कर पूजन किया जाएगा.

एकादशी से विवाह समेत सभी मंगल कार्यों की भी शुरुआत हो जाएगी. भगवान विष्णु और लक्ष्मी के साथ तुलसी पूजा
करने का भी विधान है.

💥 सजेगा गन्नों का मंडप... ऋतु फलों का लगेगा भोग

देवउठनी एकादशी पर घरों और मंदिरों में गन्नों से मंडप सजाकर उसके नीचे भगवान विष्णु की प्रतिमा विराजमान कर मंत्रों से भगवान विष्णु को जगाएंगे और पूजा-अर्चना करेंगे. पूजा में भाजी सहित सिंघाड़ा, आंवला, बेर, मूली, सीताफल, अमरुद और अन्य ऋतु फल चढाएं जाएंगे.

पं. मिश्रा के मुताबिक जल्दी शादी और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना से ये पूजा अविवाहित युवक-युवतियां भी खासतौर से करते हैं. तुलसी की खासियत वनस्पति शास्त्रियों के मुताबिक तुलसी नेचुरल एयर प्यूरिफायर है. यह करीब 12 घंटे ऑक्सीजन छोड़ता है. तुलसी का पौधा वायु प्रदूषण को कम करता है. इसमें यूजेनॉल कार्बनिक यौगिक होता है जो मच्छर, मक्खी व कीड़े भगाने में मदद करता है।

तुलसी- शालिग्राम विवाह की परंपरा इस पर्व पर वैष्णव मंदिरों में तुलसी- शालिग्राम विवाह किया जाता है. धर्मग्रंथों के जानकारों का कहना है कि इस परंपरा से सुख और समृद्धि बढ़ती है.

देव प्रबोधिनी एकादशी पर तुलसी विवाह से अक्षय पुण्य
मिलता है और हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं.

✨ कन्यादान का पुण्य

जिन घरों में कन्या नहीं है और वो कन्यादान का पुण्य पाना चाहते हैं तो वह तुलसी विवाह कर के प्राप्त कर सकते हैं. ब्रह्मवैवर्त पुराण का कहना है कि सुबह तुलसी का दर्शन
करने से अक्षय पुण्य फल मिलता है.

साथ ही इस दिन सूर्यास्त से पहले तुलसी का पौधा दान करने से भी महा पुण्य मिलता है।

प्रबोधिनी एकादशी भी हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र और
महत्वपूर्ण तिथि मानी जाती है. यह कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को आती है (दीपावली के ठीक दस दिन बाद), इस दिन
भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा (शयन अवस्था) से जागते हैं.

💥 भगवान विष्णु का जागरण दिवस

ऐसा माना जाता है कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी (देवशयनी एकादशी) के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं और चार महीने बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी की जागते हैं. इसीलिए इसे देव उठनी या प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है.

✨ मांगलिक कार्यों की शुरुआत
● इस दिन के बाद सभी शुभ और मांगलिक कार्य
जैसे - विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, नामकरण आदि शुरू किए जा सकते हैं. कहा जाता है कि चतुरमास का समापन इसी दिन होता है.

✨ तुलसी विवाह का विशेष पर्व

इस दिन भगवान विष्णु और तुलसी माता का विवाह किया जाता है, जिसे तुलसी विवाह कहते हैं, इसे घर या मंदिरों में धूमधाम से मनाया जाता है. यह विवाह धार्मिक दृष्टि से बहुत शुभ माना
जाता है.

✨ पुण्य प्राप्ति और मोक्ष का मार्ग

इस दिन उपवास और भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति की पिछले जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है, कहा गया है-

एकादशर्या उपवासेन सर्वपापैः प्रमुच्यते.

✨ प्रकृति से जुड़ाव और सकारात्मक ऊर्जा

देव उठनी एकादशी का पर्व सर्दी की शुरुआत का संकित भी देता है. यह समय प्रकृति के जागरण और नये उत्साह से भरे मौसम की शुरुआत का प्रतीक है,

✨पारंपरिक रीति-रिवाज

घरों और मंदिरों में भगवान विष्णु की मूर्ति के सामने दीपक जलाकर उन्हें जगाया जाता है, भक्त उठो, देव उठो या देव उठो जागो जैसे भजन गाते हैं।

तुलसी विवाह किया जाता है।

कई लोग उपवास रखते हैं।

आप सभी सनातनीयो को देव उठनी एकादशी की मंगल कामना, आपका दिन शुभ हो ...

🌿 जय तुलसी मैया, जय शालिग्राम जी, जय जगदीश 🌿
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देवउठनी एकादशी व्रत का महत्वआषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक का समय भगवान विष्णु की शयन अवधि यानी चातु...
31/10/2025

देवउठनी एकादशी व्रत का महत्व
आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक का समय भगवान विष्णु की शयन अवधि यानी चातुर्मास कहलाता है। इस दौरान विवाह और मांगलिक कार्य वर्जित रहते हैं।देवउठनी एकादशी को भगवान विष्णु के जागरण के साथ ही सभी शुभ कार्यों का आरंभ माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इस व्रत का फल हजारों अश्वमेध यज्ञों और सैकड़ों राजसूय यज्ञों के बराबर होता है। यह व्रत पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति कराने वाला माना गया है।
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31/10/2025
31/10/2025
राष्ट्रीय एकता दिवस की शुभकामना 💐💐‐‐------------------------------‐-------------------लोह पुरुष की ऐसी छविना देखी, ना सो...
31/10/2025

राष्ट्रीय एकता दिवस की शुभकामना 💐💐
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लोह पुरुष की ऐसी छवि
ना देखी, ना सोची कभी
आवाज में सिंह सी दहाड़ थी
ह्रदय में कोमलता की पुकार थी
एकता का स्वरूप जो इसने रचा
देश का मानचित्र पल भर में बदला
गरीबो का सरदार था वो
दुश्मनों के लिए लोहा था वो
आंधी की तरह बहता गया
ज्वालामुखी सा धधकता गया
बनकर गाँधी का अहिंसा का शस्त्र
महकता गया विश्व में जैसे कोई ब्रहास्त्र
इतिहास के गलियारे खोजते हैं जिसे
ऐसे सरदार पटेल अब ना मिलते पुरे विश्व में
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रात के ग्यारह बज चुके थे। पूरा घर गहरी नींद में था, बस रसोई से आती धीमी सी छन-छन की आवाज़ उस सन्नाटे को तोड़ रही थी। टेब...
31/10/2025

रात के ग्यारह बज चुके थे। पूरा घर गहरी नींद में था, बस रसोई से आती धीमी सी छन-छन की आवाज़ उस सन्नाटे को तोड़ रही थी। टेबल पर आधी भरी थाली रखी थी—सब्ज़ी ठंडी हो चुकी थी, रोटी सख्त, और उसके पास बैठी अनाया चुपचाप थाली को देख रही थी। उसकी आँखों में नींद नहीं, बस थकावट और नमी थी। दरवाज़े के पार से किसी ने झाँका—पर उसे देखने वाला कोई नहीं था…

सुबह के पाँच बजते ही घर के बाकी लोग करवटें बदल रहे थे, और अनाया रसोई में झाड़ू लगा रही थी। गैस पर दूध चढ़ चुका था, सास के लिए चाय बन रही थी, बच्चों के टिफ़िन में आलू पराठे जा रहे थे, और पति रोहन का शर्ट प्रेस हो रहा था।

“इतनी देर क्यों लगा दी, माँ जी की चाय ठंडी हो गई!”
सास के ये शब्द रोज़ की तरह कानों में पड़े। अनाया ने कुछ नहीं कहा। बस सिर झुकाकर दोबारा चाय बनाई, जैसे उसने अपनी जुबान भी किसी अलमारी में बंद कर दी हो।

रोहन ऑफिस जाते वक्त बस इतना बोला,
“कपड़े ठीक से रख देना, मीटिंग है, देर हो जाएगी।”

ना “अलविदा” कहा, ना “ध्यान रखना”।
बस चाबियाँ टेबल पर पटक दीं और निकल गया।

दोपहर तक पूरे घर की सूरत चमक रही थी, बस वह खुद फीकी पड़ गई थी।
सास अपने कमर दर्द का रोना रो रही थीं, ससुर टीवी पर समाचार देख रहे थे, बच्चे स्कूल में थे—और वह खुद को दीवारों में टांग चुकी थी।

थकान उसकी उँगलियों में उतर आई थी, पर फिर भी उसने सबके खाने की तैयारी की।
जब खुद खाने बैठी तो सब्ज़ी ठंडी और रोटी सूख चुकी थी।

उसी वक्त दरवाज़े की घंटी बजी।
पड़ोसन माधवी दीदी थीं।

“अरे अनाया, तू तो दिनभर काम में घुसी रहती है! कभी अपने लिए भी वक्त निकाल लिया कर।”
अनाया ने मुस्कुराने की कोशिश की—वो वही मुस्कान थी जो चेहरे पर होती है पर दिल में नहीं।

“समय... मेरे हिस्से में बस झाड़ू और बर्तन लिखे हैं दीदी,”
उसने धीरे से कहा।

शाम को जब बच्चे लौटे, तो उनके लिए दूध, स्नैक्स, और होमवर्क का पहाड़ तैयार था।
रोहन आया तो फोन पर किसी से हँस रहा था।
“आज ऑफिस में बहुत काम था?”
अनाया ने पूछा।

वह बोला, “हाँ, थक गया हूँ।”
और सीधा टीवी ऑन कर दिया।

अनाया कुछ कहना चाहती थी, कि — “मैं भी थक गई हूँ, रोहन”,
पर उसने होंठों को चुप करा दिया।
क्योंकि उसे मालूम था —
उसके थकने का हक़ इस घर में किसी ने दिया ही नहीं।

रात गहराने लगी।
बच्चे सो चुके थे, सास-ससुर अपने कमरों में।
अनाया अभी भी रसोई में थी। गैस बंद कर रही थी, सिंक साफ़ कर रही थी, अगले दिन की सब्ज़ी काट रही थी।

अचानक उसका सिर चकराया। उसने दीवार का सहारा लिया।
गला सूख गया था, आँखें भारी हो गईं।
वो कुर्सी पर बैठ गई — और पता ही नहीं चला, कब उसकी आँख लग गई।

रात के करीब 2 बजे रोहन की नींद खुली।
रसोई की लाइट जल रही थी।
वह झुँझलाया—“यह अभी तक क्या कर रही है?”
वो वहाँ गया तो देखा — अनाया सिर झुकाए बैठी है, बिल्कुल स्थिर।

“अरे अनाया, सो गई क्या?”
कोई जवाब नहीं।

वो पास गया, उसका कंधा हिलाया—
शरीर ठंडा था।

रोहन के हाथ से पानी का गिलास गिर पड़ा।
वो घबरा गया, चिल्लाया—“माँ! माँ!”

पूरा घर दौड़ा आया।
डॉक्टर बुलाया गया, पर देर हो चुकी थी।

डॉक्टर ने बस इतना कहा,
“शरीर पूरी तरह थक चुका था… शायद कई दिनों से बुखार में थी, पर आराम नहीं किया।”

रोहन के कानों में जैसे किसी ने हथौड़ा मार दिया हो।
वो बड़बड़ाने लगा —
“पर उसने तो कभी कहा ही नहीं कि वो बीमार है…”

डॉक्टर ने गहरी साँस ली,
“कहने के लिए सुनने वाला भी तो चाहिए था।”

सुबह सूरज निकला, पर उस घर में सन्नाटा था।
रसोई की मेज़ पर वही आधी खाई हुई थाली रखी थी —
ठंडी, सूनी और खामोश।

सास अब चाय बनाते हुए रो रही थीं,
“कभी सोचा ही नहीं था कि वो इतना कुछ झेल रही थी…”

बच्चे स्कूल से लौटकर पूछ रहे थे,
“माँ कहाँ है?”

रोहन बस चुप था।
उसने उस थाली को देखा,
जहाँ अब किसी के हाथ की रोटी नहीं रखी जाएगी।

दिन बीतते गए।
रसोई अब साफ़ रहती थी, पर उसमें वो खुशबू नहीं थी जो अनाया के हाथों से आती थी।
घर चल रहा था, मगर जीवन रुक गया था।

एक शाम, जब रोहन ऑफिस से लौटा, तो उसे अलमारी में एक डायरी मिली।
उस पर लिखा था —
“मेरी खामोशियाँ”

उसने खोला —
पहला पन्ना पढ़ते ही आँसू बह निकले।

“आज बुखार है, पर काम तो फिर भी करना है।
अगर मैं रुक गई तो ये घर रुक जाएगा।
कोई पूछेगा क्या कि मैं ठीक हूँ? शायद नहीं...
मैं बस एक ‘सिस्टम’ बन गई हूँ,
जो सुबह शुरू होता है और रात को टूट जाता है।”

अगले पन्ने पर लिखा था —

“मुझे डर है कि किसी दिन मैं गिर जाऊँगी,
और कोई ध्यान नहीं देगा।
शायद उन्हें तब एहसास होगा कि
घर सिर्फ दीवारों से नहीं,
एक औरत की साँसों से चलता है।”

डायरी की आख़िरी लाइन पर रोहन रुक गया।

“अगर कभी मेरी जगह कोई और आए,
तो उससे यह ज़रूर पूछ लेना —
‘थक गई क्या?’
बस यही शब्द किसी का जीना आसान कर सकते हैं।”

रोहन के हाथ काँप रहे थे।
वह रोया — पहली बार, शायद सच्चे मन से।
उसने खुद से वादा किया कि अब किसी और औरत को उस खामोशी का बोझ नहीं उठाना पड़ेगा।

उस दिन के बाद उसने रसोई की लाइट के नीचे वो थाली संभालकर रख दी —
याद दिलाने के लिए कि एक औरत की मेहनत कभी हल्की नहीं होती,
भले ही उसकी आवाज़ कोई सुन न पाए।

अंत:
हर घर में एक “अनाया” होती है —
जो सबका ध्यान रखती है, मगर खुद भुला दी जाती है।
वो बोलती नहीं, पर उसके हाथ, उसकी आँखें और उसकी थकान रोज़ चीखती हैं।

कभी उसके पास बैठकर बस इतना पूछ लेना —
“थक गई क्या?”
क्योंकि यही सवाल किसी की जान बचा सकता है।

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