05/09/2025
*कहानी का नाम: "दीवार के उस पार"*
*किरदार:*
– *रामप्रसाद:* सेवानिवृत्त शिक्षक, पिता
– *विनय:* बड़ा बेटा, नौकरीपेशा
– *मीनू:* बहू
– *अंकित:* छोटा बेटा, कॉलेज छात्र
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*कहानी:*
रामप्रसाद जी का घर कभी हँसी-ठिठोली से भरा रहता था। उनके दोनों बेटे — विनय और अंकित — आपस में घुले-मिले थे। लेकिन समय बदला।
विनय की शादी हुई, और मीनू बहू बनकर घर आई। धीरे-धीरे घर का माहौल बदलने लगा।
छोटी-छोटी बातें तकरार में बदलने लगीं —
*“किचन कौन साफ करेगा?”*
*“बिजली का बिल किसने बढ़ाया?”*
*“पापा हमेशा अंकित का पक्ष लेते हैं।”*
धीरे-धीरे विनय और मीनू ने अपने लिए *अलग रसोई* बना ली —
फिर अलग कमरा...
फिर *दीवार खड़ी हो गई उस एक ही घर में।*
रामप्रसाद जी हर दिन उस दीवार को देख कर सोचते —
**"जिस घर को जीवनभर जोड़ा,
वो अब दो हिस्सों में बँट गया।"**
अंकित भी अब चुप रहने लगा। और एक दिन वो भी कह गया —
*"पापा, अब मैं हॉस्टल में रहूँगा, यहाँ घुटन है।"*
रामप्रसाद जी अकेले रह गए —
दीवार के दोनों ओर रिश्ते थे, पर पास कोई नहीं।
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*अंत में:*
रामप्रसाद जी ने एक चिट्ठी लिखकर दीवार पर चिपका दी —
**"रिश्तों में दरारों को वक्त रहते मत रोको...
वरना एक दिन तुम्हें दीवार खड़ी करनी पड़ेगी —
और शायद तब कोई तुम्हारे साथ खड़ा न हो।