06/11/2024
चाक्षुषी विद्या स्तोत्र मंत्र साधना
(चाक्षुषोपनिषद स्तोत्र हिन्दी भावार्थ सहित )
( नेत्र रोग निवारण एवं नेत्रज्योति बढ़ाने हेतु)
साधना विधि -
पूर्व दिशा की तरफ मुख करके इस स्तोत्र का पाठ करें । वस्त्र/आसन पीले हों ।
इस स्तोत्र के 1 लाख 25 हजार जप नेत्रहीन को भी ज्योति प्रदान करने में समर्थ हैं।
यदि इतना अधिक जप ना कर सकें तो नित्य ११ बार पाठ करने पर नेत्ररोगों से की मुक्ति मिलती ही है, साथ ही नेत्र ज्योति में भी वृद्धि होने लगती है।
चाक्षुषोपनिषद स्तोत्र हिन्दी भावार्थ सहित
( नेत्र रोग निवारण एवं नेत्रज्योति बढ़ाने हेतु)
(नेत्ररोग का हरण करने वाला तथा पाठ मात्र से सिद्ध होने वाला चाक्षुषी विधा मन्त्र है जिसे करने से सभी प्रकार के नेत्र रोगों का सम्पूर्णतया नाश हो जाता है, और नेत्र तेज युक्त हो जाते है। इस मन्त्र का वर्णन कृष्ण यजुर्वेदीय चाक्षुषोपनिषद में वर्णित है ।)
~ चाक्षुषोपनिषद (चाक्षुषी विद्या) स्तोत्र के नियमित जप से न केवल नेत्र ज्योति ठीक हो सकती हैं, ब्लकि किसी भी प्रकार के नेत्र रोग के निवारण हेतु अचूक रामबाण सिद्ध होती है ।
~ आँखों से सम्बंधित कोई बीमारी मे एक ताम्बे के लोटे में जल भरकर, पूजा स्थान में रखकर उसके सामने नियमित इस स्तोत्र के २१ बार पाठ करने के उपरान्त उस जल से दिन में ३-४ बार आँखों को छींटे मारने पर कुछ ही समय में नेत्र रोग से मुक्ति मिल जाती है ।
~ ऐसा माना गया है, कि चाक्षुषी विद्या का नियमित रूप से तथा विधिपूर्वक पाठ करने वाले के कुल मे भी कोई नेत्ररोग से पीडित अथवा अंधा नही होता । पाठ आरंभ करने से पहले विनियोग तथा अंत मे सूर्यदेव को अर्ध्य अवश्य दे ।
~ चाक्षुषी विद्या को किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष रविवार को सूर्योदय के आसपास आरम्भ करके रोज इस स्तोत्र के ५ पाठ करें। सर्वप्रथम भगवान सूर्य नारायण का ध्यान करके दाहिने हाथ में जल, अक्षत, लाल पुष्प लेकर विनियोग मंत्र पढ़े।
🍁विनियोग
ॐ अस्याश्चाक्षुषीविद्याया अहिर्बुध्न्य ऋषिः, गायत्री छन्दः, सूर्यो देवता, ॐ बीजम् नमः शक्तिः, स्वाहा कीलकम्, चक्षुरोग निवृत्तये जपे विनियोगः
चक्षुष्मती विद्या ॐ चक्षुः चक्षुः चक्षुः तेज स्थिरो भव।
मां पाहि पाहि। त्वरितम् चक्षुरोगान् शमय शमय। ममाजातरूपं तेजो दर्शय दर्शय।
यथा अहमंधोनस्यां तथा कल्पय कल्पय ।
कल्याण कुरु कुरु यानि मम् पूर्वजन्मो पार्जितानि चक्षुः प्रतिरोधक दुष्कृतानि सर्वाणि निर्मूलय निर्मूलय।
ॐ नमः चक्षुस्तेजोदात्रे दिव्याय भास्कराय।
ॐ नमः कल्याणकराय अमृताय।
ॐ नमः सूर्याय। ॐ नमो भगवते सूर्याय अक्षितेजसे नमः। खेचराय नमः महते नमः। रजसे नमः। तमसे नमः ।
ॐ असतो मा् सदगमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मा
अमृतम् गमय्।
उष्णो भगवान्छुचिरूपः। हंसो भगवान् शुचि प्रतिरूपः ।
ॐ विश्वरूपं घृणिनं जातवेदसं हिरण्मयं ज्योतिरूपं तपन्तम्। सहस्त्र रश्मिः शतधा वर्तमानः पुरः प्रजानाम् उदयत्येष सूर्यः ।। ॐ नमो भगवते श्रीसूर्याय आदित्याया अक्षि तेजसे अहो वाहिनि वाहिनि स्वाहा।।
ॐ वयः सुपर्णा उपसेदुरिन्द्रं प्रियमेधा ऋषयो नाधमानाः। अप ध्वान्तमूर्णहि पूर्धि - चक्षुम् उग्ध्यस्मान्निधयेव बद्धान् ।।
ॐ पुण्डरीकाक्षाय नमः। ॐ पुष्करेक्षणाय नमः।
ॐ कमलेक्षणाय नमः। ॐ विश्वरूपाय नमः।
ॐ श्रीमहाविष्णवे नमः। ॐ सूर्यनारायणाय नमः।।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।
य इमां चाक्षुष्मतीं विद्यां ब्राह्मणो नित्यम् अधीयते न तस्य अक्षिरोगो भवति। न तस्य कुले अंधो भवति। न तस्य कुले अंधो भवति।
अष्टौ ब्राह्मणान् ग्राहयित्वा विद्यासिद्धिः भवति। विश्वरूपं घृणिनं जातवेदसं हिरण्मयं पुरुषं ज्योतिरूपमं तपतं सहस्त्र रश्मिः।
शतधावर्तमानः पुरः प्रजानाम् उदयत्येष सूर्यः। ॐ नमो भगवते आदित्याय ।। ।। इति स्तोत्रम् ।।
🍁 चाक्षुषी विद्या स्तोत्र का हिन्दी भावार्थ 🍁
हे सूर्यदेव! हे चक्षु के अभिमानी सूर्यदेव! आप आंखों में चक्षु के तेजरूप् से स्थिर हो जाएं. मेरी रक्षा करें, रक्षा करें। मेरी आँख के रोगों का शीघ्र नाश करें, शमन करें। मुझे अपना सुवर्ण जैसा तेज दिखला दें, दिखला दें। जिससे मैं अंधा न होऊं, कृपया ऐसे उपाय करें। मेरा कल्याण करें, कल्याण करें। दर्शन शक्ति का अवरोध करने वाले मेरे पूर्वजन्म के जितने भी पाप हैं, सबको जड़ से समाप्त कर दें, उनका समूल नाश करें। ॐ नेत्रों के प्रकाश भगवान् सूर्यदेव को नमस्कार है।
ॐ आकाशविहारी को नमस्कार है. परम श्रेष्ठ स्वरूप को नमस्कार है. सब में क्रिया शक्ति उत्पन्न करने वाले रजो गुणरूप भगवान् सूर्य को नमस्कार है. अन्धकार को अपने भीतर लीन कर लेने वाले तमोगुण के आश्रयभूत भगवान् सूर्य को नमस्कार है. हे भगवान् ! आप मुझे असत् से सत् की ओर ले चलिए. मृत्यु से अमृत की ओर ले चलिए. ऊर्जा स्वरूप भगवान् आप शुचिरूप हैं. हंस स्वरूप भगवान् सूर्य आप शुचि तथा अप्रतिरूप हैं- आपके तेजोमय स्वरूप की कोई बराबरी नहीं कर सकता.
जो सच्चिदानन्द स्वरूप हैं, सम्पूर्ण विश्व जिनका रूप है, जो किरणों में सुशोभित एवं जातवेदा (भूत आदि तीनों कालों की बातें जानने वाला) हैं, जो ज्योति स्वरूप, हिरण्मय (स्वर्ण के समान पुरूष के रूप में तप रहे हैं, इस सम्पूर्ण विश् पत्ति स्थान हैं, उस प्रचण्ड प्रतापवाले भगवान ए हम नमस्कार करते हैं. वे सूर्यदेव समस्त प्रजाओं के समक्ष अदत हो रहे हैं.
षड्विध ऐश्वर्यसम्पन्न भगवान् आदित्य को नमस्कार है. उनकी प्रभा दिन का भार वहन करने वाली है, हम उन भगवान् को उत्तम आहुति अर्पित करते हैं. जिन्हें मेधा अत्यन्त प्रिय है, वे ऋषिगण उत्तम पंखों वाले पक्षी के रूप में भगवान् सूर्य के पास गए और प्रार्थना करने लगे- 'भगवन्! इस अन्धकार को छिपा दीजिये, हमारे नेत्रों को प्रकाश से पूर्ण कीजिये तथा अपना दिव्य प्रकाश देकर मुक्त कीजिए.
ॐ पुण्डरीकाक्षाय नमः। ॐ पुष्करेक्षणाय नमः।
ॐ कमलेक्षणाय नमः। ॐ विश्वरूपाय नमः।
ॐ श्रीमहाविष्णवे नमः। ॐ सूर्यनारायणाय नमः।।
_जो व्यक्ति इस चक्षुष्मतिविद्या का नित्य पाठ करता है उसे कभी नेत्र सम्बन्धी रोग नहीं होता है। उसके कुल में कोई अन्धा नहीं होता। कहा जाता है कि आठ योग्य व्यक्तियों को इस विद्या का दान देने (सिखाने) पर इस विद्या की सिद्धि प्राप्त हो जाती है।
(इतिश्री)
हमारे जीवन में शरीर की आरोग्यता का होना बहुत महत्वपूर्ण है। आज की भौतिक व रासायनिक जीवन शैली ने शरीर में सूर्य द्वारा संचालित शरीर की शक्ति पर बहुत जल्दी दुस्प्रभाव डालना शुरु कर दिया है। जिसके अनेक कारण हैं। जिसमें सूर्य का लग्न कुण्डली में नीच का होना, शत्रु राशि में होना, ग्रह योग आदि ज्योतीषिय कारण होते हैं। सूर्य को पिता रुप मान, सम्मान राज्य का रोजगार-व्यवसाय सम्बन्धित व नेत्र ज्योति का अस्थियों का कारक मानते हुए पूर्व दिशा के स्वामी आत्मा रुप कहा गया है। ऊगते सूर्य के प्रकाश में इतनी शक्ति होती है कि वो पीलियाग्रस्त छोटे बच्चों को पीलिया से मुक्त करा देते है साथ ही सूर्य से निकलने वाली सुबह की किरणें हमारे सम्पूर्ण शरीर पर होने वाले अनेक रोगों से हमारी रक्षा करती हैं व कई प्रकार के विटामिन हमें प्रदान करती हैं।
सभी नेत्र रोगियों के लिए चाक्षुषोपनिषद् प्राचीन ऋषि मुनियों का अमूल्य उपहार है। इस गुप्त धन का स्वतंत्र रूप से उपयोग करके अपना कल्याण करें। यह स्तोत्र पाठ नेत्ररोग होने पर भगवान सूर्यदेव की रामबाण उपासना है। इसके अदभुत मंत्र से सभी नेत्ररोग आश्चर्यजनक रीति से अत्यंत शीघ्रता से ठीक होते हैं। सैंकड़ों साधकों ने इसका प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त किया है।
अगर आपकी नेत्र ज्योति कमजोर है और बचपन में ही आपको चश्मा पहनना पड़ गया है तो इस चाक्षुषोपनिषद स्तोत्र के नियमित जप से आप भी अपनी नेत्र ज्योति (Eye Sight) ठीक कर सकते हैं। यह चाक्षुषोपनिषद स्तोत्र इतना प्रभाव शाली है की यदि आपको आँखों से सम्बंधित कोई बीमारी है तो अगर एक ताम्बे के लोटे में जल भरकर, पूजा स्थान में रखकर उसके सामने नियमित इस स्तोत्र के 21 बार पाठ करने के उपरान्त उस जल से दिन में 3-4 बार आँखों को छींटे मारने पर कुछ ही समय में नेत्र रोग से मुक्ति मिल जाती है। बस आवश्यकता है , श्रद्धा, विश्वास एवं अनुष्ठान आरम्भ करने की। आईये इस स्तोत्र की विधि को जानते हैं।
शुभ तिथि के शुभ नक्षत्रवाले रविवार को इस उपनिषद् का पठन करना प्रारंभ करें। पुष्य नक्षत्र सहित रविवार हो तो वह रविवार कामनापूर्ति हेतु पठन करने के लिए सर्वोत्तम समझें। प्रत्येक दिन चाक्षुषोपनिषद् का कम से कम बारह बार पाठ करें। बारह रविवार (लगभग तीन महीने) पूर्ण होने तक यह पाठ करना होता है। रविवार के दिन भोजन में नमक नहीं लेना चाहिए।
प्रातःकाल उठें। स्नान आदि करके शुद्ध होवें। आँखें बन्द करके सूर्यदेव के सामने खड़े होकर भावना करें कि ‘मेरे सभी प्रकार के नेत्ररोग भी सूर्यदेव की कृपा से ठीक हो रहे हैं।’ लाल चन्दनमिश्रित जल ताँबे के पात्र में भरकर सूर्यदेव को अर्घ्य दें। संभव हो तो षोडशोपचार विधि से पूजा करें। श्रद्धा-भक्तियुक्त अन्तःकरण से नमस्कार करके ‘चाक्षुषोपनिषद्’ का पठन प्रारंभ करें।
इस संदर्भ में एक घटना का जिक्र करना बहुत महत्वपूर्ण है । साल 2016 की बात है जब घर में किसी ऐसे अतिथि का आगमन हुआ जो हमारे बड़े भाईसाहब के रिश्ते में श्वसुर लगते हैं तो, मन में जिज्ञासा हुई कि क्या बात है । मेरी तो मुलाकात भी पहली बार ही हुई थी । अपने 8 – 10 साल के पुत्र के साथ वह घर पर विराजे थे । कारण पूछने पर बताया कि इसकी एक आंख में चोट लग गयी थी और अब इसमें रोशनी बहुत कम हो गयी है । सीधे शब्दों में कहें तो एक 10 साल का बच्चा एक आंख से अंधा होने के कगार पर था ।
जिस अस्पताल का उन्होंने रेफरेंस दिया था वह था चित्रकूट का नामी रामजानकी अस्पताल । बड़े से बड़े नेत्र रोगों का वहां इलाज आसानी से हो जाता था, वहां पर डॉक्टरों ने ऑपरेशन की सलाह दी थी, लेकिन चेतावनी भी दी थी कि कोई जरुरी नहीं कि बच्चे की आंख की रोशनी वापस आ ही जाए । इसलिए वह चित्रकूट से चले आये और एक उम्मीद में अलीगढ़ चले आये कि शायद यहां कुछ समाधान मिल जाए ।
बड़े भाई साहब फार्मासिस्ट हैं तो उन्होंने कई नामी डॉक्टरों से उनका परिचय करवाया जो अलीगढ़ में ही नेत्र रोग विशेषज्ञ हैं। डॉक्टरों से मेल – मुलाकात का दौर चल ही रहा था । हम भी कुशल क्षेम जानने की कोशिश ही कर रहे थे, और कर भी क्या सकते थे । पर एक दिन सुबह के समय जब वो सूर्यदेव को अर्घ्य दे रहे थे तो मैं भी छत पर ही मौजूद था । उन्होने मुझसे पूछा कि क्या चाक्षुष्मति साधना मेरे पास मिल सकती है? मैंने सदगुरुदेव की पुस्तक लाकर उनको दे दी कि इसमें आपको प्रामाणिक रुप से चाक्षुष्मति स्तोत्र प्राप्त हो सकता है । हमारी बात यहीं पर समाप्त हो गयी लेकिन उन्होंने उसी समय कुछ संकल्प अपने मन में लेकर भगवान सूर्यदेव को जल अर्पित कर दिया । कुछ अन्य ब्राह्मण जनों को फोन पर ही इस स्तोत्र का पाठ करने के लिए कहा कि इस स्तोत्र का 1.25 लाख जप करना है । वह स्वयं भी साधना में बैठे और उनके साथी भी अपने – अपने स्थानों पर ही साधना रत हो गये ।
ऐसा होता हुआ देखना ही मेरे लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था कि 1 महीने के भीतर ही उस बच्चे की आंख की रोशनी पूरी तरह से वापस आ गयी थी । लेकिन इसके पीछे साधना की शक्ति काम कर रही थी और साथ ही भगवान सूर्यदेव का आशीर्वाद । साधना की शक्ति का इस तरह से प्रत्यक्ष प्रमाण मेरे मन के किसी भी प्रकार के संशय दूर करने के लिए काफी था ।