03/04/2024
कभी - कभी विध्वंस भी इतिहास बदलने का कारण होता है
1986 में कर्नाटक गुलबर्ग जिले में सनाथी ( सन्नति )है,मंदिर में चंद्रलांबा देवी की मूर्ति है
संयोगवश मंदिर की छत ढहकर मूर्ति पर आ गिरी मूर्ति टूट गई, फर्श भी टूटा और असोक के चार शिलालेख सामने आए इन्हीं शिलालेखों से मंदिर का फर्शऔर फाउण्डेशन बने हुए थे इनमें से एक शिलालेख का इस्तेमाल मूर्ति रखने की चौकी के रूप में किया गया था
फिर पुरातत्व विभाग ने आसपास के क्षेत्र में खुदाई आरंभ की एक विराट बौद्ध भारत सामने आया। बड़ा - सा महास्तूप ... अनेक वोटिव स्तूप चैत्यगृह अनेक खड़ी बैठी बुद्ध की मूर्तियाँ धम्मचक्र,सैकड़ों ब्राह्मी अभिलेख जातक कथाओं का अंकन सिक्के रेलिंग के ध्वंसावशेष
यहीं से अशोक की वो मूर्ति भी मिली है, जिसके ऊपर बतौर शीर्षक दक्षिण की ब्राह्मी लिपि
में " राया असोक " लिखा है
मतलब बौद्ध सभ्यता और उसके इतिहास को दबाने के लिए अनेको मंदिरों का निर्माण किया गया ।इतिहास बताता है असोक सम्राट ने 84000स्तूप का निर्माण करवाया था सम्राट असोक द्वारा निर्मित 84,000 स्तूपों ,चैत्य, वेहार वह भी पत्थरों से निर्मित कहां गायब हो गए
असली इतिहास आज भी जमीन के नीचे दफ़न है, जिसे निकालने नहीं दिया जाता, जो निकला है उसे पढ़ने नहीं दिया जाताl