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**हमारी गाँव की संस्कृति और प्रकृति से जुड़ाव**हमारे गाँव की संस्कृति हमें प्रकृति से जोड़ना सिखाती है। प्रकृति ही सबकुछ...
22/06/2024

**हमारी गाँव की संस्कृति और प्रकृति से जुड़ाव**

हमारे गाँव की संस्कृति हमें प्रकृति से जोड़ना सिखाती है। प्रकृति ही सबकुछ है, और पंच तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) से हमारा जीवन उत्पन्न होता है और अंततः इन्हीं में विलीन हो जाता है। हमारी संस्कृति, परंपराएँ और विरासत हमें सदैव प्रकृति से जुड़े रहने की प्रेरणा देती हैं।

हर फसल को हम अपने इष्टदेव को अर्पित करते हैं, उसके बाद ही उसका दैनिक उपयोग करते हैं। यह रिवाज न केवल धार्मिक आस्था को प्रकट करता है बल्कि यह भी सिखाता है कि हम प्रकृति की उपहारों का सम्मान और आभार व्यक्त करें। यह भावना लोगों को प्रकृति से गहरे रूप से जोड़ती है, जिससे वे उसकी महत्ता को समझते हैं और उसकी रक्षा के प्रति जागरूक रहते हैं।

इस प्रकार, हमारी संस्कृति और परंपराएँ हमें सिखाती हैं कि प्रकृति का सम्मान और संरक्षण करना आवश्यक है, क्योंकि वही हमारे अस्तित्व का मूल आधार है।

कुमाऊँ संस्कृति के संदर्भ में, धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथाओं में भुकोर एक संगीत वाद्ययंत्र के रूप में महत्वपूर्ण स्थान र...
19/06/2024

कुमाऊँ संस्कृति के संदर्भ में, धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथाओं में भुकोर एक संगीत वाद्ययंत्र के रूप में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसके महत्व को उजागर करने वाले कुछ मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:

# # # सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व:
1. **देवताओं का आह्वान:** धार्मिक समारोहों और त्यौहारों के दौरान देवताओं का आह्वान करने के लिए भुकोर का उपयोग किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसकी अनूठी ध्वनि देवी-देवताओं का ध्यान आकर्षित करती है, और उन्हें अनुष्ठानों में भाग लेने के लिए आमंत्रित करती है।
2. **कृपा का प्रतीक:** भुकोर बजाना अक्सर किसी देवता की उपस्थिति और कृपा को इंगित करने के साथ जुड़ा होता है। यह समुदाय के लिए आशीर्वाद और सुरक्षा प्राप्त करने के लिए ईश्वर से संवाद करने का एक माध्यम है।
3. **चयनित कलाकार:** परंपरागत रूप से, भुकोर को एक चयनित व्यक्ति द्वारा बजाया जाता है, अक्सर ऐसा व्यक्ति जिसे वाद्ययंत्र और उससे जुड़े अनुष्ठानों की गहरी समझ होती है। आध्यात्मिक प्रथाओं में अपनी भूमिका के कारण यह व्यक्ति समुदाय में एक सम्मानित स्थान रखता है।

# # # सांस्कृतिक संरक्षण:
1. **ज्ञान का हस्तांतरण:** भुकोर बजाने का कौशल और इससे जुड़ी रस्में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही हैं, जो कुमाऊँ की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करती हैं। ज्ञान का यह हस्तांतरण सुनिश्चित करता है कि पारंपरिक प्रथाएँ फलती-फूलती रहें।
2. **सांस्कृतिक पहचान:** भुकोर कुमाऊँ की पहचान का प्रतीक है। इसकी ध्वनि और इससे जुड़ी रस्में इस क्षेत्र के लिए अद्वितीय हैं, जो कुमाऊँ की सांस्कृतिक प्रथाओं को अन्य क्षेत्रों से अलग करती हैं।
# # # सामाजिक एकता:
1. **सामुदायिक समारोह:** त्योहारों और धार्मिक समारोहों के दौरान भुकोर बजाने से समुदाय एक साथ आता है। यह सांस्कृतिक कार्यक्रमों में एकता और सामूहिक भागीदारी की भावना को बढ़ावा देता है।
2. **उत्सव और त्यौहार:** भुकोर कई स्थानीय त्योहारों और समारोहों का एक केंद्रीय तत्व है, जो उत्सव के माहौल को बढ़ाता है और सामुदायिक अनुभव को बढ़ाता है।

# # # चुनौतियाँ और संरक्षण के प्रयास:
1. **आधुनिकीकरण:** कई पारंपरिक प्रथाओं की तरह, भुकोर के उपयोग को आधुनिकीकरण और बदलते सामाजिक गतिशीलता से चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। समकालीन समाज में इसकी प्रासंगिकता सुनिश्चित करने के लिए प्रयासों की आवश्यकता है।
2. **दस्तावेजीकरण और प्रचार:** इस सांस्कृतिक प्रथा को संरक्षित करने के लिए, दस्तावेज़ीकरण और प्रचार की आवश्यकता है। इसमें संगीत को रिकॉर्ड करना, अनुष्ठानों का दस्तावेजीकरण करना और सांस्कृतिक कार्यक्रमों और शैक्षिक पहलों के माध्यम से वाद्य यंत्र को बढ़ावा देना शामिल हो सकता है।

# # # निष्कर्ष:
एक संगीत वाद्ययंत्र के रूप में भुकोर कुमाऊँ क्षेत्र के सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसका महत्व संगीत से परे आध्यात्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आयामों को शामिल करता है। कुमाऊँ की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को बनाए रखने के लिए इस परंपरा को संरक्षित और बढ़ावा देना आवश्यक है।

कुमाऊँ संस्कृति के संदर्भ में, धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथाओं में भुकोर एक संगीत वाद्ययंत्र के रूप में महत्वपूर्ण स्थान र...
19/06/2024

कुमाऊँ संस्कृति के संदर्भ में, धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथाओं में भुकोर एक संगीत वाद्ययंत्र के रूप में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसके महत्व को उजागर करने वाले कुछ मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:

# # # सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व:
1. **देवताओं का आह्वान:** धार्मिक समारोहों और त्यौहारों के दौरान देवताओं का आह्वान करने के लिए भुकोर का उपयोग किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसकी अनूठी ध्वनि देवी-देवताओं का ध्यान आकर्षित करती है, और उन्हें अनुष्ठानों में भाग लेने के लिए आमंत्रित करती है।
2. **कृपा का प्रतीक:** भुकोर बजाना अक्सर किसी देवता की उपस्थिति और कृपा को इंगित करने के साथ जुड़ा होता है। यह समुदाय के लिए आशीर्वाद और सुरक्षा प्राप्त करने के लिए ईश्वर से संवाद करने का एक माध्यम है।
3. **चयनित कलाकार:** परंपरागत रूप से, भुकोर को एक चयनित व्यक्ति द्वारा बजाया जाता है, अक्सर ऐसा व्यक्ति जिसे वाद्ययंत्र और उससे जुड़े अनुष्ठानों की गहरी समझ होती है। आध्यात्मिक प्रथाओं में अपनी भूमिका के कारण यह व्यक्ति समुदाय में एक सम्मानित स्थान रखता है।

# # # सांस्कृतिक संरक्षण:
1. **ज्ञान का हस्तांतरण:** भुकोर बजाने का कौशल और इससे जुड़ी रस्में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही हैं, जो कुमाऊँ की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करती हैं। ज्ञान का यह हस्तांतरण सुनिश्चित करता है कि पारंपरिक प्रथाएँ फलती-फूलती रहें।
2. **सांस्कृतिक पहचान:** भुकोर कुमाऊँ की पहचान का प्रतीक है। इसकी ध्वनि और इससे जुड़ी रस्में इस क्षेत्र के लिए अद्वितीय हैं, जो कुमाऊँ की सांस्कृतिक प्रथाओं को अन्य क्षेत्रों से अलग करती हैं।
# # # सामाजिक एकता:
1. **सामुदायिक समारोह:** त्योहारों और धार्मिक समारोहों के दौरान भुकोर बजाने से समुदाय एक साथ आता है। यह सांस्कृतिक कार्यक्रमों में एकता और सामूहिक भागीदारी की भावना को बढ़ावा देता है।
2. **उत्सव और त्यौहार:** भुकोर कई स्थानीय त्योहारों और समारोहों का एक केंद्रीय तत्व है, जो उत्सव के माहौल को बढ़ाता है और सामुदायिक अनुभव को बढ़ाता है।

# # # चुनौतियाँ और संरक्षण के प्रयास:
1. **आधुनिकीकरण:** कई पारंपरिक प्रथाओं की तरह, भुकोर के उपयोग को आधुनिकीकरण और बदलते सामाजिक गतिशीलता से चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। समकालीन समाज में इसकी प्रासंगिकता सुनिश्चित करने के लिए प्रयासों की आवश्यकता है।
2. **दस्तावेजीकरण और प्रचार:** इस सांस्कृतिक प्रथा को संरक्षित करने के लिए, दस्तावेज़ीकरण और प्रचार की आवश्यकता है। इसमें संगीत को रिकॉर्ड करना, अनुष्ठानों का दस्तावेजीकरण करना और सांस्कृतिक कार्यक्रमों और शैक्षिक पहलों के माध्यम से वाद्य यंत्र को बढ़ावा देना शामिल हो सकता है।

# # # निष्कर्ष:
एक संगीत वाद्ययंत्र के रूप में भुकोर कुमाऊँ क्षेत्र के सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसका महत्व संगीत से परे आध्यात्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आयामों को शामिल करता है। कुमाऊँ की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को बनाए रखने के लिए इस परंपरा को संरक्षित और बढ़ावा देना आवश्यक है।

कुमाऊँ संस्कृति के संदर्भ में, धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथाओं में भुकोर एक संगीत वाद्ययंत्र के रूप में महत्वपूर्ण...

25/02/2024

सार्वजनिक पूजाओं में सहयोगात्मक भावना और साझा भागीदारी सुंदर परंपराओं की तरह लगती है जो सामुदायिक एकता और सद्भाव को बढ़ावा देती है। सामूहिक उत्सव मनाने के लिए एक साथ आना, प्रत्येक अपने घरों से योगदान देना एक अद्भुत अनुभव होना चाहिए।
जय हो इष्टदेव 🙏🙏❤️❤️

रांथी लाइव मौसम तापमान: 3.4 डिग्री सेल्सियस साफ आकाश आर्द्रता: 28% हवा: पूर्वोत्तर की ओर 3.89 मीटर/सेकंड स्टेशन का नाम: ...
25/02/2024

रांथी लाइव मौसम
तापमान: 3.4 डिग्री सेल्सियस
साफ आकाश
आर्द्रता: 28%
हवा: पूर्वोत्तर की ओर 3.89 मीटर/सेकंड
स्टेशन का नाम: "धौ\u0081र्चुला"
1 घंटे पहले रांथी पर अगले 5 दिनों के लिए मौसम का पूर्वानुमान देखा गया
26-02-2024
7.8°C से 16.0°C
साफ़ आकाश, बिखरे हुए बादल, टूटे हुए बादल, घटाटोप बादल

27-02-2024
8.2°C से 20.5°C
टूटे हुए बादल, घिरे बादल, हल्की बारिश

28-02-2024
9.9°C से 15.4°C
घने बादल, हल्की बारिश

29-02-2024
8.5°C से 20.7°C
बिखरे हुए बादल, थोड़े बादल, साफ़ आकाश

01-03-2024
9.6°C से 23.0°C
साफ आसमान, कुछ बादल

स्वर्ग❤️
23/02/2024

स्वर्ग❤️

31/01/2024

ग्रामीण क्षेत्रों मे आजकल कुछ ठग घूम रहे हैं जो 200/300 रुपये के कूपन या लॉटरी का लालच देकर ब्रांडेड प्रोडक्ट जितने की बात कह्ते हैं ऐसे लोगों से उनकी पहचान एवं कार्य करने की अनुमति पूछना चाहिए जो कि उनके पास ना ही कोई अनुमति होती है ना ही कोई पंजीकृत कंपनी|
**शीर्षक:** ग्रामीण क्षेत्रों में घोटालों से सावधान रहें: पुरस्कार वितरणकर्ता के रूप में धोखाधड़ी करने वाले जालसाज निवासियों को निशाना बना रहे हैं

**उपशीर्षक:** स्थानीय समुदायों से भ्रामक योजनाओं को विफल करने के लिए पहचान सत्यापित करने और कार्य अनुमति की मांग करने का आग्रह किया गया

हाल के दिनों में, ग्रामीण क्षेत्रों में धोखाधड़ी की गतिविधियों में वृद्धि देखी गई है, क्योंकि चालाक व्यक्ति 200/300 रुपये के कूपन या लॉटरी जीतने के लुभावने प्रस्तावों के साथ निवासियों से संपर्क करते हैं, ब्रांडेड उत्पादों का वादा करते हैं। इन घोटालेबाजों के पास उचित पहचान का अभाव है और ये बिना किसी पंजीकृत कंपनी संबद्धता के काम करते हैं।

अधिकारी निवासियों को ऐसे वादे करने वाले व्यक्तियों की पहचान पूछकर और क्षेत्र में व्यापार करने की उनकी अनुमति की पुष्टि करके सावधानी बरतने की सलाह दे रहे हैं। उचित क्रेडेंशियल्स या पंजीकरण की कमी से लाल झंडे उठ सकते हैं, जिससे स्थानीय अधिकारियों को तत्काल रिपोर्ट करने को कहा जा सकता है।

समुदाय को सतर्क रहने और साथी निवासियों को भ्रामक रणनीति का शिकार होने से बचाने के लिए इन घोटालों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

कथा हमारे ईष्ट देव कीकथा छिपला केदार की 🙏🙏पिथौरागढ़ जनपद के सीमान्त क्षेत्र के दर्जनों गाँवों में अधिशासित आराध्य देव छि...
08/01/2024

कथा हमारे ईष्ट देव की
कथा छिपला केदार की 🙏🙏
पिथौरागढ़ जनपद के सीमान्त क्षेत्र के दर्जनों गाँवों में अधिशासित आराध्य देव छिपलाकेदार धारचूला तहसील के बरम से लेकर खेत तक के सभी गाँवों के इष्ट देव के रूप में स्थापित है. प्रति दो वर्ष में छिपलाकेदार की यात्रा का आयोजन होता उक्त सभी ग्रामों में आयोजित होती है, जिसमें ग्रामों की छिपलाकोट से दूरी के अनुसार यात्रा 3-5 दिनों की होती है.

छिपलाकेदार का निवास स्थान नाजुरी कोट के रूप में जाना जाता है. छिपला केदार यात्रा जिसे स्थानीय लोग केवला छिपला के नाम से पुकारते है सभी ग्राम अपने-अपने गाँवों से निकलकर नाजुरी कोट तक का सफर तय करती है जहाँ छिपला ताल है जिस ताल में स्नानादि करके नवयुवकों का मुण्डन इत्यादि कर्म सम्पन्न होता है. इस कुण्ड का जल प्रसाद स्वरूप वहां गये लोग घरों में लाते है. यह यात्रा कम मेला होता है जिसमें आखिरी के दिन ग्राम वापसी पर सम्बन्धित ग्राम में मेले का आयोजन किया जाता है. यह यात्रा जितने भी दिन की जिस गांव में हो नंगे पैरों से की जाती है.

अब बात करें नाजुरीकोट या छिपला केदार की तो प्रचलित जागरों के अनुसार छिपला केदार स्थायी रूप से यहां के निवासी नहीं थे. उनका प्रारम्भिक जीवन खलछाना (पत्थरकोट) जो कि नेपाल की राजधानी काठमांडु के समीप नुवाकोट में स्थित है में बीता. नुवाकोट वर्तमान में नेपाल का एक जिला है. केदार देव नौ भाई थे जो बासुकी नाग की सन्तान माने जाते है, क्षेत्र में प्रचलित जागरों के अनुसार छिपला केदार सबसे छोटे भाई थे इनके बडे़ भाईयों में उदायन, मुदायन, देव, मंगल, घ्वजकेदार, थल केदार, बूड़केदार तथा बालकेदार थे. घर में सबसे छोटे होने के कारण छिपला केदार भाभियों के लाड़ले थे, किन्तु उनके बड़े भाईयों को उनके साथ हँसना-बोलना नापसंद था. बड़े भाई छिपला केदार पर शक किया करते थे फलतः उन्होनें छिपला को मरवाने की योजना बनानी प्रारम्भ कर दी किन्तु कोई भी भाई भातृहत्या का पाप स्वयं लेने को तैयार नहीं था. अतः छिपला को अन्य विधियों से मारे जाने की साजिश शुरू हो गई.

पहली योजना उनके भाईयों ने बनाई तराई के जंगल में छोड़ आने की जहां जंगली जानवर छिपला केदार को मार डालते. दूसरी ओर छिपला केदार निष्पाप भाव से भाईयों तथा भाभियों का सम्मान करते थे. प्रथम योजना के तहत भाई उन्हें तराई के जंगलों में छोड़ आते है पर वो कुछ ही दिनों में वापस घर पहुँच जाते है. दूसरी योजना तराई क्षेत्र में आंतक के प्रयाय डाकुओं से मरवाने की थी, उन्हें मिल-बाँटकर खाने वाले राज्य कहकर वहां छोड़ दिया जाता है, किन्तु यहां से भी वे बचकर बाहर निकल पड़ते है.

इस प्रकार कई प्रकार के षड़यंत्रों के असफल होने के बाद वे बकरियों के साथ तराई पार कर काली के निकट के जंगलों की तरफ ले जाते हैं जहां यार्मी-च्यार्मी नामक दुष्ट शासक का क्षेत्र था. कहा जाता है कि वर्तमान नाजुरी कोट में तब यार्मी-च्यार्मी नामक शासक का महल था, क्रूर व अत्याचारी शासक था. छिपलाकेदार को अंततः छोड़ दिया जाता है च्यार्मी के राज्य में जहाँ 12 लड़कों, 12 बहुओं, बाहरबीसी(240) शिकारी कुत्ते जिन्हें मार्का कहा जाता था के साथ शासन करता था. उस समय च्यार्मी की सीमा पर कोई बाहरी आदमी किसी भी रूप में प्रवेश नहीं कर सकता था इतना खौफ था पूरे क्षेत्र में उसका.

छिपलाकेदार ऐसे समय में राज्य में प्रवेश करते है जबकि च्यार्मी के बेटे और शिकारी कुत्ते शिकार हेतु बाहर होते हैं तब महल में एक ब्राह्मण का वेश बनाकर छिपलाकेदार अन्दर घुसते है. च्यार्मी की पत्नी उन्हें सचेत करती है कि हे ब्राह्मण तू जो भी है जल्दी यहां से निकल जा अभी मेरे बेटे-बहु शिकार पर गये है वो आते ही होंगे अगर वे आयेंगे तो तूझे मार डालेंगे. छिपला केदार तो पूर्व से ही स्थिति से भिज्ञ थे. थोड़ी देर बाद धूल उड़ाते शिकार करे आये च्यार्मी के पुत्र एवं बारहबीसी शिकारी कुत्ते घर पहुँचते है और ब्राह्मण भेष में खड़े युवा की तरफ ध्यान जाते ही कानाफुसी शुरू करते है कि ये कौन है यहां कैसे आया \ पर चूंकि वे शिकार से भूखे आये थे और खाना तैयार था उन्होंने फैसला किया कि पहले भोजन करेंगे फिर इस ब्राह्मण को देखेंगे.

यह कहते हुए सब पाण (पहाड़ी घरों में डाइनिंग रूम का काम करता है चूंकि बनावट के हिसाब से भोजन बनाने का स्थान घर में सबसे ऊपर होता है) में गये, जो सम्भवतः तिमंजिता इमारत के बराबर की ऊंचाई पर था. उनकी मनोदशा को भांप गये थे छिपला केदार कि भोजन के पश्चात् उनकी हत्या की योजना बनाई गई है. अतः छिपला केदार ने पाण की सीढ़ियों को उलट दिया. जैसे-जैसे च्यार्मी और भोजन पश्चात् नीचे आते गये सबका वध करते गये छिपला केदार. च्यार्मी की सबसे छोटी बहु गर्भवती थी, जिसकी हत्या के समय ही बालक का जन्म हुआ और छिपला केदार से चिपट गया. जागरों के मुताबिक12 दिन तक वह नवजात केदार की छाती से चिपटा रहा.

11वीं रात को छिपला की भाभियों को सपने में दिखा कि छिपला केदार मुसीबत में है तो उन्होंने कौव्वे को भेज कर संदेश भिजवाया 12वें दिन जब कौव्वा वहां पहुँचा तो बोलने लगा ‘क्या भूलि रैछे छिपला केदार, छोलिंगा बिजौरा’ यानि कि क्या भूल रहा है छिपला बिजौरा (यह नींबू प्रजाति का फल है जो आकार में बड़ा होता है) किससे छिलता था? तब केदार को याद आता है कि उसकी पीठ में छुरी हैं जिससे वे उस नवजात को छुड़ा पाते है. उस बालक के खून के छींटे आज भी नाजुरी कोट में राता पौड़ (लाल चट्टन) के रूप में विद्यमान है. उस नवजात के टुकड़े करके छिपला ने बिखेर दिये थे, उसकी जीभ के रूप में नारायण आश्रम-तवाघाट मार्ग पर आज भी जीभ के आकार की चट्टान मौजूद है, जिसकी विशेषता है कि अमावस्या के दिन एक अंगूल से हिलाने पर हिलती है अन्यथा नहीं. इस प्रकार यहां से यार्मी-च्यार्मी के अत्याचार पूर्ण शासन का अन्त हुआ. छिपलाकेदार वापस अपने गृहनगर न जाकर यहीं बस गये.

हमारी ग्राम सभा   कीसमान्य जानकारी :-रांथी गांव पिथौरागढ जिले के धारचूला ब्लॉक और धारचूला तहसील में स्थित है । यह रांथी ...
07/01/2024

हमारी ग्राम सभा की
समान्य जानकारी :-रांथी गांव पिथौरागढ जिले के धारचूला ब्लॉक और धारचूला तहसील में स्थित है । यह रांथी ग्राम पंचायत के अंतर्गत आता है। रांथी गांव का भौगोलिक क्षेत्रफल 1334.49 हेक्टेयर है।
रांथी गांव, पिथौरागढ जिले का जनसंख्या डेटा
पिथौरागढ़ जिले के रांथी गांव की कुल आबादी 4,932 है, जिसमें रांथी गांव में रहने वाले 1043 परिवार शामिल हैं । गांव में पुरुषों की आबादी 2,463 और महिलाओं की आबादी 2,469 है। रांथी गांव का लिंगानुपात 1002 है जो उत्तराखंड के औसत 963 से अधिक है। रांथी गांव में 0-6 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों की जनसंख्या 889 है। रांथी गांव का बाल लिंगानुपात 954 है जो कि अधिक है उत्तराखंड का औसत 890।

जनसंख्या 4,932
पुरुषों 2,463
महिलाओं 2,469
लिंग अनुपात 1002
बच्चे (0-6) वर्ष 889
बच्चे - पुरुष 455
बच्चे - स्त्री 434
बाल लिंग अनुपात 954
साक्षरता 72.47%
परिवारों 1,043
अनुसूचित जाति जनसंख्या 783
एसटी जनसंख्या 294
आपको ऐसी कुछ रोचक जानकारी चाहिए तो पेज को लाइक करें कमेन्ट भी करें 👍

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