30/06/2023
सुन्दर केकड़ा !!!
एक समय की बात है एक गाँव में एक ब्राह्मण खेती की बब्री थी। वह ब्राह्मण खेती बाबडी करता था। उसके पास के कुछ खेत में भी रेन अच्छी बनी हुई थी और मजे में उसका गुजरात-बसर हो गया था। उसके सिद्धांत के पास ही एक तालाब था।
एक दिन खूब गर्मी पड़ रही थी। ब्राह्मण अधर्म में काम कर रहा था। दोपहर को काम बंद करके वह नहाकर ठंडा होने के लिए तालाब के जल में उतरा। नहाते-नहाते उसकी नजर एक केकड़े पर पड़ी। उसे वह केकड़ा बहुत प्यारा लगा।
उसने केकड़े को हाथों में लेकर पुचकारा। केकड़ा भी उससे प्यार करने लगा। वह अपने जंबूर जैसे पंजों से कभी ब्राह्मण की नाक तो कभी मूंछ या कान की आकृति से धीरे-धीरे खींचते हैं। ब्राह्मण को केकड़े का यह विज्ञापन अच्छा लगा।
इंस्टालेशन के बाद तालाब के किनारे का शीशा गाड़कर अपना नमकीन अंगोछा उस पर तंकर छोटा-सा तंपू बनाया और केकड़े को शामिल कर दिया। ताकि गर्मी से बचाव हो। शाम को काम खत्म होने के बाद ब्राह्मण तालाब के किनारे अंगोछा ले लिया गया।
केकड़ा उसकी अंगोछे की छांव में आराम से सो रहा था। यह देखकर वह बहुत खुश हुई। ब्राह्मण अंगोछा लेकर चलता लगा तो केकड़ा उसका पीछे चलता रहा। उसने केकड़े को ऊपर ने अंगोछे से लपेटकर पूछा: “मित्र, तुम मेरे घर चलना चाहते हो न?” चलो।
शादी के बंधन में बंधी भाभी से मिलावा हूं।" इस प्रकार केकड़े से बतियाता हुआ वह घर पहुंचाता है। घर की स्थापना केकड़ा अपनी पत्नी को ख़त्म वह बोला: “यह सोना केकड़ा मेरा दोस्त है।” ब्राह्मणी हँसी: "जहाँ आदमी और केकड़े में भी दोस्ती हुई है?"
उसने बोला : ”क्यों नहीं ? दोस्ती किन्ही के बीच भी हो सकती है। बस प्यार और विश्वास होना चाहिए ।” इस प्रकार अब वह ब्राह्मण रोज रात को केकड़े को घर ले आता है और सुबह काम पर साथ ले जाता है। गलत पर पचाक केकड़े के नाममात्र में छोड़ दें।
उसी ब्राह्मण के पास एक ताड़ का पेड़ था। उस पर एक कौआ और कौड़ीवी थे। कौवा लालची और पेटू स्वभाव की थी। वह रोज ब्राह्मण को ईश्वर की आज्ञा देता है और जाते हुए पूछता है तो सोचता है, कितनी बड़ी-बड़ी जगहें हैं उस आदमी की। चर्बी भरी होगी।
खाने में कितनी स्वादिष्ट चीजें। एक दिन कुछ ऐसा कहा ही दिया: “मैं उस आदमी का ठीक से खाना चाहता हूं।” कौए ने उसे समझाना चाहा, पर कौवी ने हट दंड ली कि किसी भी तरह उसकी आंखें देखीं। जब भी ब्राह्मण नीचे से देवता, कीवी की लार टपकने लगा।
कौआ कौवी की जिद पूरी तरह से चाहती थी, क्योंकि कौवी अंडे देने वाली थी। माँ बनने वाली माँ का दिल नहीं दुखाना चाहिए। एक दिन कौआ उड़ रहा था कि उसके नीचे एक भयंकर नाग अपने बिल में पुस्ता नजर आया। नाग को देखो के दिमाग में आया कि अगर यह नाग दोस्त बन जाए तो काम बन सकता है।
यह ब्राह्मण को दसेगा। जब उसने एबम किया तो मैं उसकी औखें चोंच से खोदूंगा। कौआ शहर के बाहर पाड़े भंडार के ढेर पर नष्ट हो गया। कूड़े में चूहेदानी ही हैं। उसने एक मोटा-सा चूहा पकड़ा और उसे लेकर नाग के बिल के पास के पंजे में चूहे को पकड़कर 'कन-कान' करने लगा।
शोर सुना नाग बाहर आया तो कौने ने अपना चूहा फेंक दिया। नाग घप से चूहा गया खा। अब कौन सा रोज केश ग्लास नाग को लगा। दोनों में दोस्ती हो गई। एक दिन कौने ने अपने दोस्त नाग में कहा: "नाग भाई, शादीशुदा भाभी को एक आदमी की आंखें बड़ी पसंद हैं।"
आप मदद करो तो काम बन सकते हैं। उसे तुम दसना। जब वह गिरेगी तो मैं उसकी आखिरी सांस लूंगा। नाग बोला: “ये कौन-सी बड़ी बात है।” फ़ायदे के लिए तो मैं जान भी दे सकता हूँ।” बस, दूसरे ही दिन प्रात: अपने मार्गदर्शन में जाने के लिए ब्राह्मण उधर से गुजरा तो घास में ताक में बैठे नाग ने उसे दस ले लिया।
नाद द्वारा दसे जत्था ही ब्राह्मण चिल्लाकर गिर फेड। उसका अंगोछा एक ओर जा गिरा। अंगोछे में उसका मित्र केकड़ा था। ब्राह्मण संप्रदाय के प्रभाव से प्रभावित हो गया तो उसके अवशेषों को छाती पर और पेट के लिए निकाला गया। केकड़ा ये सब देखकर सारा माजरा समझ गया।
केकड़े ने उछलकर कौए की गर्दन को अपने जंबूर जैसे पंजों में पकड़ लिया। कउआ 'कां कं' कर पंख फड़फड़ाने लगा। पर केकड़े ने खप को खत्म नहीं किया। काउ को डेथपाश में फंस देखकर नाग उसकी मदद करने आया तो केकड़े ने दूसरे साथियों से नाग की गर्दन पकड़ ली और बोला: “तू मित्र मेरे दोस्त को जहां तूने दसा है, वहां से विष पकड़ ले, वरना दोनों की धरोहरें तोड़ डालो।”
ऐसा खुला अपना वह जम्बूरी पंजा नीचे सरकाकर साप को पूंछ की ओर से पकड़ा गया ताकि वह भाग न सके, पर मुंह से विष चूस सके। मरता क्या न करता, नागको विष चोदना। जैसे ही उसने विष भोचा, केकड़े ने कोए और नाग की गर्दन दबाई, उन्हें धड़ों से अलग कर दिया और बोला: "तुम जैसे दुष्टों का जीवित रहना सबके लिए खतरनाक होगा।"
ब्राह्मण को सच आया तो केकड़े, मेरे सपने और कौए को देखकर वह सारी कहानी समझ गई। तब तक और किसान भी ज्ञान तमाशा देखने लगे थे। ब्राह्मण ने अपने मित्र केकड़े को छाती से लगा लिया।
सीखिए:>> मित्रता किन्हीं भी दो मिश्टेरों के बीच हो सकती है। बस प्रेम और विश्वास होना चाहिए।