23/09/2025
⚖️ क्या न्यायाधीशों को जवाबदेही से ऊपर माना जाना चाहिए?
देरी से मिला न्याय, अन्याय के बराबर है
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में न्यायपालिका को आम जनता की आखिरी उम्मीद माना जाता है। लेकिन जब वही उम्मीद सालों की प्रतीक्षा में बदल जाए, और पीड़ित की मौत के बाद फैसला आए — तो इसे हम न्याय कैसे कह सकते हैं?
एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में मैंने अनगिनत परिवारों को दशकों तक न्याय के इंतज़ार में देखा है। पीड़ित मर जाते हैं, गवाह गायब हो जाते हैं, सबूत मिट जाते हैं — लेकिन केस चलता ही रहता है। और दूसरी तरफ, न्यायपालिका अपनी पुरानी लय में चलती रहती है — बिना किसी जवाबदेही के।
⸻
न्यायपालिका की सबसे बड़ी समस्या: जवाबदेही का अभाव
देश में हर संस्था — सरकार, पुलिस, अफसरशाही — किसी न किसी रूप में जवाबदेह है। नेता हटाए जा सकते हैं, पुलिस सस्पेंड हो सकती है, अफसर का ट्रांसफर हो सकता है। लेकिन जजों के लिए कोई कार्यवाही नहीं होती, चाहे भ्रष्टाचार हो या जानबूझकर देरी।
क्या न्याय देने वाले खुद कभी कटघरे में खड़े नहीं हो सकते?
⸻
लंबित मामलों का पहाड़
• देशभर में 5 करोड़ से ज़्यादा केस लंबित हैं
• सुप्रीम कोर्ट में ही 70,000 से अधिक मामले पेंडिंग हैं
• हजारों लोग सालों से जेल में सड़ रहे हैं, बिना किसी सज़ा के
• कई मामलों में निर्णय पीड़ित की मौत के बाद आता है, जो न्याय का मखौल है
और इन सबके बीच, अदालतें हर साल 2 महीने की गर्मी की छुट्टियों पर जाती हैं। क्या कोई और संस्थान ऐसा कर सकता है जब पूरे सिस्टम में आग लगी हो?
⸻
क्या न्यायाधीशों को सज़ा मिलनी चाहिए?
हां — लेकिन प्रक्रिया के साथ
यह कोई व्यक्तिगत हमला नहीं है। यह मांग है पारदर्शिता, सुधार और ईमानदारी की।
1. एक स्वतंत्र न्यायिक शिकायत प्राधिकरण की स्थापना हो
2. जजों की संपत्ति और वित्तीय जानकारी सार्वजनिक हो
3. जिन न्यायाधीशों पर भ्रष्टाचार के प्रमाण हों, उनके खिलाफ त्वरित अनुशासनात्मक कार्रवाई हो
4. न्यायाधीशों का प्रदर्शन मूल्यांकन (केवल केस की संख्या नहीं, बल्कि गुणवत्ता और समयबद्धता पर भी)
⸻
स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं कि जवाबदेही न हो
कुछ लोग कहते हैं कि जजों की स्वतंत्रता जरूरी है। बिल्कुल सही है। लेकिन स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं कि उन्हें कोई छू न सके।
डॉक्टर से गलती हो तो उस पर कार्रवाई होती है। शिक्षक, अफसर, यहां तक कि सैनिक भी जवाबदेह होते हैं। तो जज क्यों नहीं?
न्यायपालिका की गरिमा जवाबदेही से बढ़ेगी — कम नहीं होगी।
⸻
निष्कर्ष
हमें अब और न्याय के खोखले वादों की जरूरत नहीं है, हमें एक ऐसा सिस्टम चाहिए जो समय पर, निष्पक्ष और पारदर्शी हो।
न्याय अगर वास्तव में सभी के लिए है, तो इसकी शुरुआत सबसे ऊपर से होनी चाहिए।
काले कोट को छूने से डरने का समय अब चला गया है।
अब वक्त है कि न्यायपालिका भी जनता को जवाब दे