Manoj Kumar

Manoj Kumar I support Manoj Thakur

मनोज सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष राष्ट्रीय बजरंग दल https://youtu.be/Ks05F9rqLLE रजनी ठुकराल
31/03/2025

मनोज सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष राष्ट्रीय बजरंग दल https://youtu.be/Ks05F9rqLLE
रजनी ठुकराल

Episode 03 ।। Podcast with Manoj kumar ji ।। Podcast Host Harsh*t Shrivastava Channel - Veer Partab...

20/12/2024

अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशी घुसपैठियों को 24 घंटे में इनका गिरेबान पकड़ के इनको बाहर खदेड़ना होना चाहिए

23/07/2024
   #पूर्ण  #स्वराज  #के  #उद्घोषक  #महान  #स्वतंत्रता  #संग्राम  #सेनानी  #समाज  #सुधारक  #एवं  #विचारक  #लोकमान्य  #बाल...
23/07/2024

#पूर्ण #स्वराज #के #उद्घोषक #महान #स्वतंत्रता #संग्राम #सेनानी #समाज #सुधारक #एवं #विचारक #लोकमान्य #बाल #गंगाधर #तिलक #जी #की #जयंती #पर #कोटिशः #स्वदेशी #स्वराज #व #के #ध्वजवाहक #तिलक #जी #का

चित्तौड़ में अकबर से हुए युद्ध में जयमाल राठौड़ पैर जख्मी होने की वजह से कल्ला जी के कंधे पर बैठ कर युद्ध लड़े थे। ये दे...
04/07/2024

चित्तौड़ में अकबर से हुए युद्ध में जयमाल राठौड़ पैर जख्मी होने की वजह से कल्ला जी के कंधे पर बैठ कर युद्ध लड़े थे। ये देखकर सभी युद्ध-रत साथियों को चतुर्भुज भगवान की याद आ गयी थी, जंग में दोनों के सर काटने के बाद भी धड़ लड़ते रहे और राजपूतों की फौज ने दुश्मन को मार गिराया । अंत में अकबर ने भी उनकी वीरता से प्रभावित हो कर जयमाल और कल्ला जी की मूर्तियाँ आगरा के किले में लगवायी थी। @

सम्राट असोक महान मौर्य ने सिर्फ 84,000 स्तूप चैत्य ही नही बनाया, उन्होंने  52 ,00,000 लाख स्क्वायर किलोमीटर भारत का क्षे...
21/06/2024

सम्राट असोक महान मौर्य ने सिर्फ 84,000 स्तूप चैत्य ही नही बनाया, उन्होंने 52 ,00,000 लाख स्क्वायर किलोमीटर भारत का क्षेत्रफल भी बनाया जिसे अखंड भारत कहां जाता था

नालंदा तक्षशिला विक्रमशिला जैसे कई विश्वविद्यालय बनावाए
थे जिससे विदेश से लोग शिक्षा ग्रहण करने भारत आते थे !

ईसा पूर्व भारत में 500 BC से बौद्ध सभ्यता थी कोई भी भारत पर आंख उठाकर देखने की हिम्मत नही करता था.!

सिकंदर आया लेकिन सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य से डर कर भाग गया. सम्राट असोक महान के दौर में भारत पर हमला करना तो छोड़ो, विदेशी राजाओं को यह डर सताए रहता था कहीं सम्राट असोक महान उनके साम्राज्य पर आक्रमण ना कर दें

सेंट्रल एशिया पूरा गंधारा, अफ़ग़ानिस्तान, ईरान, नेपाल, म्यांमार, सब भारत का अभिन्न अंग थे.!

इसलिए कहा जाता है 👇
था सूर्य चमकता मौर्यो का घनघोर बदरिया डरती थी
था शेर गरजता सीमाओ पर बिजली भी आहें भरती थी

जय सम्राट............................🦁
Great Samrat Ashoka
#मराठा #राजपूताना

@   #हिन्दूवीर_राजा_दाहिरसेन... 🙏🏻आज बलिदान दिवस है एक ऐसे हिन्दू राजा की जिनके बारे में इतिहासकार लिखते ही नहीं, वो चीज...
20/06/2024

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#हिन्दूवीर_राजा_दाहिरसेन... 🙏🏻

आज बलिदान दिवस है एक ऐसे हिन्दू राजा की जिनके बारे में इतिहासकार लिखते ही नहीं, वो चीजों को बड़ी ही मक्कारी से छिपाते है, दाहिर सेन जो की सिंधुपति थे, सिन्धु राज्य के राजा थे, जिनका जन्म 663 इसवी में हुआ था, और 712 इसवी में आज ही के दिन 20 जून को भूमि की रक्षा करते हुए उन्होंने बलिदान दे दिया था ।

आज के बलोचिस्तान ईरान कराची और पुरे सिन्धु इलाके के राजा थे दाहिर सेन । मोहम्मद के मरने के बाद सुन्नियों और शियाओं में संघर्ष शुरू हो गया की मोहम्मद के बाद मुसलमानों का नेता कौन होगा।मोहम्मद के परिवार वालो को सुन्नियों ने निशाना बनाना शुरू कर दिया, अली इत्यादि की हत्या की गयी, और मोहम्मद के कई और परिजन थे उनकी भी हत्या की गयी, मोहम्मद के कई परिजनों को सिंधुपति दाहिर सेन ने बचाया और अपने सिन्धु देश में शरण दी । दाहिरसेन का शायद नाम भी नही जानते होंगे कई लोग सामान्य लोग तो दूर, खुद इतिहास के छात्र और कई शिक्षक भी। क्योंकि पुस्तको में नाम आता तो खतरे में आ जाती तथाकथित धर्मनिरपेक्षता क्योंकि बोलना पड़ता सच और सच मे ये भी था कि मुहम्मद बिन कासिम नाम के एक आक्रांता का भी जिक्र करना होगा जिसने अपने जीवन को लूट हत्या और बलात्कार में बिता दिया …

भारत को लूटने और इस पर कब्जा करने के लिए पश्चिम के रेगिस्तानों से आने वाले मजहबी हमलावरों का वार सबसे पहले सिन्ध की वीरभूमि को ही झेलना पड़ता था। इसी सिन्ध के राजा थे दाहिरसेन, जिन्होंने युद्धभूमि में लड़ते हुए प्राणाहुति दी। उनके बाद उनकी पत्नी, बहिन और दोनों पुत्रियों ने भी अपना बलिदान देकर भारत में एक नयी परम्परा का सूत्रपात किया..

कलियुग में ईसवी शताब्दी प्रारम्भ होने के छह सौ वर्ष के बाद के इतिहास पर नजर डालते हैं तो सिंधु देश पर राजपूत वंश के राजा राय साहसी का राज्य था, जिन्होंने अपने पिता राजा राय साहरस की ईरान के राजा शाह नीमरोज के साथ युद्ध में मृत्यु के बाद 624 ई. में सिंधी कलेंडर के स्थापना की थी। राजा राय साहसी की मृत्यु लम्बी बीमारी के बाद हुई। राय साहसी का कोई उत्तराधिकारी नहीं था। अत: उन्होंने अपने प्रधानमंत्री, कश्मीरी ब्राह्मण चच को अपना राज्य सौंपा । राजा दाहिर चच के पुत्र थे। राजा चच की मृत्यु के बाद उनका शासन उनके भाई चन्दर ने संभाला, जो कि उनके राजकाल में प्रधानमंत्री थे।

राजा चन्दर ने ब्राह्मण समाज का होने के बाद बौद्ध धर्म स्वीकार किया ओर बौद्ध धर्म को राजधर्म घोषित किया। राजा चन्दर ने सात वर्षों तक सिंध पर राज्य किया।

राज्य की बागडोर संभालते समय ही महाराजा दाहिर को कई प्रकार के विरोधों का सामना करना पड़ा। अपने पिता द्वारा पदच्युत किए गए गुर्जर, जाट और लोहाणा समाज शासन से नाराज थे तो ब्राह्मण समाज बौद्ध धर्म को राजधर्म घोषित करने के कारण नाराज थे। राजा दाहिर ने सभी समाजों को अपने साथ लेकर चलने का संकल्प लिया। महाराजा दाहिर ने सिंध का राजधर्म सनातन हिन्दू धर्म को घोषित कर ब्राह्मण समाज की नाराजगी दूर कर दूरदर्शिता का परिचय दिया। साथ ही संदेश दिया कि देश में बौद्ध मत के मानने वालों को अपने विहार व मन्दिर बनाने की पूर्ण छूट होगी। इस निर्णय से उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि वे सभी को अपने साथ लेकर चलने में विश्वास करते हैं।

सिंध का समुद्री मार्ग पूरे विश्व के साथ व्यापार करने के लिए खुला हुआ था। सिंध के व्यापारी उस काल में भी समुद्र मार्ग से व्यापार करने दूर देशों तक जाया करते थे और इराक-ईरान से आने वाले जहाज सिंध के देवल बन्दर होते हुए अन्य देशों की तरफ जाते थे। ईरानी लोगों ने सिंध की खुशहाली का अनुमान व्यापारियों की स्थिति और आने वाले माल अस्बाब से लगा लिया था। हालांकि जब कभी वे व्यापारियों से उनके देश के बारे में जानकारी लेते तो उन्हें यहीं जवाब मिलता कि पानी बहुत खारा है, जमीन पथरीली है, फल अच्छे नहीं होते ओर आदमी विश्वास योग्य नहीं है। इस कारण उनकी इच्छा देश पर आक्रमण करने की नहीं होती, किन्तु मन ही मन वे सिंध से ईर्ष्या अवश्य करते थे।

महाराजा दाहिर अपना शासन राजधानी अलोर से चलाते थे और देवल बन्दरगाह पर प्रशासन की दृष्टि से अलग सूबेदार नियुक्त किया हुआ था। एक बार एक अरबी जहाज देवल बन्दरगाह पर विश्राम के लिए आकर रुका। जहाज में सवार व्यापारियों के सुरक्षा कर्मियों ने देवल के शहर पर बिना कारण हमला कर दिया और शहर से कुछ बच्चों ओर औरतों को जहाज में कैद कर लिया। जब इसका समाचार सूबेदार को मिला तो उसने अपने रक्षकों सहित जहाज पर आक्रमण कर अपहृत औरतों ओर बच्चों को बंधनमुक्त कराया। अरब जान बचा कर अपना जहाज लेकर भाग छूटे।
उन दिनों ईरान में धर्मगुरू खलीफा का शासन था। हजाज उनका मंत्री था। खलीफा के पूर्वजों ने सिंध फतह करने के मंसूबे बनाए थे, लेकिन अब तक उन्हें कोई सफलता नहीं मिली थी। अरब व्यपारी ने खलीफा के सामने उपस्थित होकर सिंध में हुई घटना को लूटपाट की घटना बताकर सहानुभूति प्राप्त करनी चाही। खलीफा स्वयं सिंध पर आक्रमण करने का बहाना ढूंढ़ रहा था। उसे ऐसे ही अवसर की तलाश थी। खलीफा ने हजाज को सिंध पर आक्रमण का आदेश दिया। हजाज धर्म गुरू के आदेश की पालना करने को मजबूर था। उसे अब्दुल्ला नामक व्यक्ति के नेतृत्व में अरबी सैनिकों का दल सिंध विजय करने के लिए रवाना किया।

जब देवल के सूबेदार ने अरब जहाज पर सवार व्यापारियों के कारनामे का समाचार महाराजा दाहिर को भेजा तो वे तुरन्त समझ गए कि इसी बहाने अरब सेना सिंध पर आक्रमण अवश्य करेगी। उन्होंने अपनी सेना को तैयार रहने का आदेश दिया। दरबार में उपस्थित राजकुमार जयशाह के नेतृत्व में सेना की एक टुकड़ी देवल बन्दरगाह पर पहुंच गई। अनुमान के मुताबिक अरबी सेना ने देवल के बन्दरगाह पर आक्रमण किया। सिंधी वीरों की सेना ने अरबी सैनिकों के युद्ध भूमि में छक्के छुड़ा दिए। अरब उलटे पांव लौटे। युद्ध में अरब सेनापति अब्दुल्ला को जान से हाथ धोना पड़ा। नेतृत्वहीन सेना को उलटे लौटने के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं था। सिंधी वीर राजकुमार जयशाह मातृभूमि की जयजयकार करता हुआ महल की ओर लौटा। रास्ते में सिंधी वीरों की आरती उतार कर स्वागत किया गया।

खलीफा अपनी हार से तिलमिला उठा और हजाज को काटो तो खून नहीं। दोनों ने कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि उनकी सेना की ऐसी गति हो सकती है। खलीफ ने खुदा को याद करते हुए कहा कि क्या इस भूमि पर ऐसा कोई वीर नहीं जो महाराजा दाहिर का सिर ओर छत्र लाकर मेरे कदमों में डाल सके। हजाज के दरबार में उपस्थित दरबारियों में से एक नवयुवक मौहम्मद बिन कासिम ने इस काम का बीड़ा उठाया और खुदा को हाजिर नाजिर मान कर कसम खाई कि वह दाहिर को अवश्य परास्त करेगा। दरबार में उपस्थित एक दरबारी ने महाराज दाहिर के शरणागत गए एक अरब सरदार अलाफी की याद दिलाते हुए उससे धर्म के नाम पर मदद की मांग की। तजवीज पेश की, जिसे स्वीकार कर एक गुप्तचर सिंध देश को रवाना किया गया। दस हजार सैनिकों का एक दल ऊंट, घोड़ों के साथ सिंध पर आक्रमण करने के लिए भेजा गया। सिंध पर ईस्वी सन् 638 से 711 ई. तक के 74 वर्षों के काल में नौ खलीफाओं ने 15 बार आक्रमण किया। पन्द्रहवें आक्रमण का नेतृत्व मौहम्मद बिन कासिम ने किया। सुसज्जित और दस हजार सैनिकों की सेना के साथ हमले का समाचार जब सिंध में पहुंचा तो महाराजा दाहिर ने भी अपनी सेना को तैयार रहने का हुक्म दिया। पदच्युत किए गए गुर्जर, जाट और लोहाणों को पुन: सामाजिक अधिकार देते हुए सेना में सम्मिलित किया गया। महाराजा दाहिर की दोनों पुत्रियों राजकुमारी परमाल और सूर्यकुमारी ने सिंध के गांव-गांव में घूम कर सिंधी शूरवीरों को सेना में भर्ती होने ओर मातृभूमि की रक्षा करने के लिए सर्वस्व अर्पण करने का आह्वान किया। कई नवयुवक सेना में भर्ती किए गए।
देवल का सूबेदार बौद्धमत के ज्ञानबुद्ध को नियुक्त किया गया था। जब ज्ञानबुद्ध को अरबी आक्रमण का समाचार महाराज से मिला तो वे उदास हो गए। बौद्धमत हिंसा में विश्वास नहीं करता। धर्म उसे लडऩे की इजाजत नहीं देता और कर्तव्य युद्ध भूमि से विमुख होने की इजाजत नहीं देता। महाराज के दूत को वह युद्ध की तैयारी से मना नहीं कर सकता था। उसे एक युक्ति सूझी। उसने धर्म गुरू का सहारा लिया, जिनसे वार्ता कर युद्ध नहीं करने के निर्णय के तर्क को सुसंगत बनाने का प्रयास किया। किन्तु सन्यासी सागरदत ने उपदेश देते हुए कहा कि बौद्धमत मैत्री, करुणा का उपासक है, जिन कर्मों से मैत्री नष्ट हो, करुणा के स्थान पर अत्याचार घर कर ले, उन्हें कभी भी ठीक नहीं समझा जा सकता। भगवान बुद्ध ने विश्व बन्धुत्व का सन्देश दिया है। अरबियों ने मकरान प्रदेश में बौद्ध मठों का नाश कर दिया है। इसलिए वे यहां आकर भी ऐसा ही विनाश करने वाले हैं, उनके राज्य में हम भी सुरक्षित नहीं रहेंगे। अत: सुख और शान्ति के लिए महाराजा दाहिर का साथ देना ही श्रेयस्कर है। किन्तु ज्ञानबुद्ध की बुद्धि मंद पड़ गई थी और उसने अपने मंत्री मोक्षवासव से समझौता करके खलीफा से सिंध के देवल और अलोर की राजगद्दी के बदले में उन्हें सहायता देने के सन्देश भेजा। शत्रु के खेमे में विश्वासघाती से अरब सरदार फूले नहीं समाए और हजाज ने सकारात्मक संदेश ज्ञानबुद्ध के पास भेजा।

अरब सेना देवल के निकट आने का समाचार मिलते ही, महाराज दाहिर ने अपनी सेना को सुसज्जित होकर कूच करने का आदेश दिया। सिंधी वीरों ने राजकुमार जयशाह के नेतृत्व में युद्धभूमि की ओर प्रस्थान किया। सिंधु देश की जय, महाराज दाहिर की जय, राजकुमार जयशाह की जय के नारे बुलन्द करते हुए सिंधी वीर देवल के तट पर आ पहुंचे। सिंधी वीरों को अपने शौर्य का प्रदर्शन करने के लिए अधिक समय तक इन्तजार नहीं करना पड़ा। अरबी सेना देवल के किले के बाहर ही डेरा डाले हुए थी। दोनों सेनानायक आक्रमण करने के लिए तैयार थे। रणभेरी के बजते ही दोनों ओर से आक्रमण प्रारम्भ हो गया। एक-एक सिंधी वीर दो-दो अरबों पर भारी पडऩे लगा। सूर्यास्त तक अरबी सेना हार के कगार पर खड़ी थी। सूर्यास्त के समय युद्ध विराम हुआ। दोनों सेनाऐं अपने-अपने शिविरों को लौट गई। रात्रि विश्राम का समय था। रात्रि के काले अंधेरे में ज्ञानबुद्ध और मोक्षवासव ने मानवता के मुख पर कालिख पोतने का काम कर दिया और देवल किले के पीछे के द्वार से पूर्व योजना अनुसार अरब सैनिकों का प्रवेश करा सिंधी वीरों पर आक्रमण करा दिया। सिंधी वीर बिस्तर छोड़ शस्त्र संभाले तब तक काफी देर हो चुकी थी। देवल पर दुश्मनों का कब्जा हो गया। राजकुमार जयशाह घायल हो गए। उन्हें मजबूरन देवल का किला छोड़ जंगलों की ओर जाना पड़ा।

अलोर मे बैठे महाराज दाहिर को जब देवल पर दुश्मनों के कब्जे का समाचार मिला तो अलोर के किले की जिम्मेदारी रानी लाडीबाई के कंधों पर डालकर तुरन्त अपनी सेना को तैयार कर युद्ध भूमि की ओर प्रस्थान किया। अपने महाराज को युद्धभूमि में पाकर सिंधी वीरों में नई उर्जा संचारित हुई। युद्ध के मैदान में हा-हाकार मच गया। अरबी सैनिकों के पांव उखडऩे लगे, वे पीछे हटे तो उन्हीं के साथियों ने उन पर हमला बोल दिया। विश्वासघातियों ने यहां भी घात लगाई!
सीधी लड़ाई में बार-बार हारने पर कासिम ने धोखा किया। 20 जून, 712 ई. को उसने सैकड़ों सैनिकों को हिन्दू महिलाओं जैसा वेश पहना दिया। लड़ाई छिड़ने पर वे महिला वेशधारी सैनिक रोते हुए राजा दाहरसेन के सामने आकर मुस्लिम सैनिकों से उन्हें बचाने की प्रार्थना करने लगे। राजा ने उन्हें अपनी सैनिक टोली के बीच सुरक्षित स्थान पर भेज दिया और शेष महिलाओं की रक्षा के लिए तेजी से उस ओर बढ़ गये, जहां से रोने के स्वर आ रहे थे।

इस दौड़भाग में वे अकेले पड़ गये। उनके हाथी पर अग्निबाण चलाये गये, जिससे विचलित होकर वह खाई में गिर गया। यह देखकर शत्रुओं ने राजा को चारों ओर से घेर लिया। राजा ने बहुत देर तक संघर्ष किया; पर अंततः शत्रु सैनिकों के भालों से उनका शरीर क्षत-विक्षत होकर मातृभूमि की गोद में सदा को सो गया। इधर महिला वेश में छिपे मुस्लिम सैनिकों ने भी असली रूप में आकर हिन्दू सेना पर बीच से हमला कर दिया। इस प्रकार हिन्दू वीर दोनों ओर से घिर गये और मोहम्मद बिन कासिम का पलड़ा भारी हो गया।

राजा दाहिर को मृत देख सिंध की सेनाओं का मनोबल टूट गया और सारी सेना हतोत्साहित हो गयी तथा लड़ते -लड़ते मरी गयी | छल से प्राप्त विजय के उन्माद में अरब सेनाएं सिंध की राजधानी देवल में प्रवेश कर गयी और उन्होंने सिंध की निर्दोष जनसाधारण का जमकर कत्ले आम किया तथ्यों के अनुसार अरब सेनाओं में लगभग सभी मंदिरों और बोध विहारों को नष्ट कर दिया और बोध मठों के उन सभी हजारों निहत्थे बोधों को गाजर-मुली की तरह काट दिया जिन्होंने उनका साथ दिया था | पूरा का पूरा नगर जला दिया गया सारी सम्पति लूट कर इराक भिजवा दी गयी हजारों महिलाओं का शील भंग किया गया अधिकतर पुरुषों ,बच्चों व् वृद्धों का वध कर दिया गया या बलात धर्मपरिवर्तन करा कर मुसलमान बना दिया हजारों हिन्दू और बोध किशोरों और कन्याओं को गुलाम बनाकर खलीफा के पास हज्जाज (इराक) भेज दिया गया|

महाराज की वीर गति और अरबी सेना के अलोर की ओर बढऩे के समाचार से रानी लाडी सावचेत हो गई। सिंधी वीरांगनाओं ने अरबी सेनाओं का स्वागत अलोर में तीरों ओर भालों की वर्षा के साथ किया। कई वीरांगनाओं ने अपने प्राण मातृभूमि की रक्षार्थ दे दिए। जब अरबी सेना के सामने सिंधी वीरांगनाएं टिक नहीं पाई तो उन्होंने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए जौहर किया।

दोनों राजकुमारियां युद्ध क्षेत्र में दोनों ओर के घायल सैनिकों की सेवा में लगी हुई थी, तभी उन्हें दुश्मनों ने पकड़ कर कैद कर लिया। सेनानायक मोहम्मद बिन कासिम ने अपनी जीत की खुशी में दोनों राज कन्याओं को भेंट के रूप में खलीफा के पास भेज दिया। खलीफा दोनों राजकुमारियों की खूबसूरती पर मोहित हो गया और दोनों कन्याओं को अपने जनानखाने में शामिल करने का हुक्म दिया। राजकुमारियों के दिल में बदले की ज्वाला पहले ही धधक रही थी। खलीफा के इस आदेश ने आग में घी का काम किया। राजकुमारी परमाल ने रोते हुए शिकायत की कि हुजूर आपके पास भेजने से पहले आपके सेना नायक ने हमारा शील भंग किया है। यह सुनते ही खलीफा आग बबूला हो गया। खलीफे ने सेनानायक मौहम्मद बिन कासिम को चमड़े के बोरे में कैद कर मांगवाने का आदेश दे दिया।
खलीफा का आदेश लेकर सेना की टुकड़ी सिंध रवाना हुई। अरब सैनिक देवल और अलोर को कब्जे में करने के बाद उत्तर की तरफ बढ़ रहे थे। खलीफा के आदेश ने उनके कदम रोक दिए। मौहम्मद बिन कासिम को चमड़े के बोरे में कैद कर खलीफ के सामने पेश किया गया। हजाज ने मौहम्मद बिन कासिम को कैद करके लाए गए सैनिकों से खलीफा के आदेश पर सेनापति के व्यवहार की दास्तान सुनाने का आदेश दिया । सैनिकों ने बताया कि हुजूर सेनानायक ने घुटने टेक कर हुक्म पर अपना सिर झुका दिया। हमने उनके हाथ पैर और मुह बांध कर बोरे में बन्द कर दिया। रास्ते में ही कहीं इसने अपने प्राण छोड़ दिए। यह वाक्य सुनते ही खलीफा दंग रह गया। उसने गुस्से में दोनों राजकुमारियों से सच बोलने का आदेश दिया। प्रसन्न मुद्रा में खड़ी राजकुमारी सूर्य और परमाल ने कहा कि हमने अपने देश पर आक्रमण करने वाले और हमारे माता-पिता और देशवासियों के कातिल से अपना बदला ले लिया। खलीफा ने दोनों राजकुमारियों का कत्ल करने का आदेश दिया। जब तक अरब सैनिक उन तक पहुंचते, अपने कपड़ों में छुपाए खंजर को निकाला और दोनों बहिनों ने एक दूसरे के पेट में घोंप कर आत्म बलिदान दिया। एक परिवार की अपनी मातृभूमि पर बलिदान की यह गाथा इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है। ऐसे बलिदानों से प्रेरित होकर ही सिंधी लेखक ने यह पंक्तियां लिखी हैं-
हीउ मुहिजो वतन मुहिजो वतन मुहिजो वतन,
माखीअ खां मिठिड़ो, मिसरीअ खां मिठिड़ो,
संसार जे सभिनी देशनि खां सुठेरो।
कुर्बान तंहि वतन तां कयां पहिंजो तन बदन,
हीउ मुंहिजो वतन मुहिजों वतन मुहिजो वतन।

#नमन..🙏
#हिन्दूवीर_राजा_दाहिरसेन

सिकंदर को हराने वाली कठगणराज्य की राजकुमारी कार्विकाराजकुमारी कार्विका सिंधु नदी के उत्तर में कठगणराज्य की राजकुमारी थी।...
12/06/2024

सिकंदर को हराने वाली कठगणराज्य की राजकुमारी कार्विका

राजकुमारी कार्विका सिंधु नदी के उत्तर में कठगणराज्य की राजकुमारी थी। राजकुमारी कार्विका बहुत ही कुशल योद्धा थी। रणनीति और दुश्मनों के युद्ध चक्रव्यूह को तोड़ने में पारंगत थी। राजकुमारी कार्विका ने अपने बचपन की सहेलियों के साथ फ़ौज बनाई थी।
जिस उम्र में लड़कियाँ गुड्डे गुड्डी का शादी रचना खेल खेलते थे उस उम्र में कार्विका को शत्रु सेना का दमन कर के देश को मुक्त करवाना, शिकार करना इत्यादि ऐसे खेल खेलना पसंद थे। राजकुमारी धनुर्विद्या के सारे कलाओं में निपुण थी, दोनो हाथो से तलवारबाजी करते मां कालीका प्रतीत होती थीं।
कुछ साल बाद जब भयंकर तबाही मचाते हुए सिकंदर की सेना नारियों के साथ दुष्कर्म करते हुए हर राज्य को लूटते हुए कठगणराज्य की ओर आगे बढ़ रही थी, तब अपनी महिला सेना जिसका नाम राजकुमारी कार्विका ने चंडी सेना रखी थी जो कि ८००० से ८५०० विदुषी नारियों की सेना थी, के साथ युद्ध करने का ठाना।
३२५ (इ.पूर्व) में सिकन्दर के अचानक आक्रमण से राज्य को थोडा बहुत नुक्सान हुआ पर राजकुमारी कार्विका पहली योद्धा थी जिन्होंने सिकंदर से युद्ध किया था। सिकन्दर की सेना लगभग १,५०,००० थी और कठगणराज्य की महज आठ हज़ार वीरांगनाओं की सेना थी जिसमें कोई पुरुष नहीं जो कि ऐतिहासिक है।
सिकंदर ने पहले सोचा "सिर्फ नारी की फ़ौज है, मुट्ठीभर सैनिक काफी होंगे” पहले २५००० की सेना का दस्ता भेजा गया उनमे से एक भी ज़िन्दा वापस नहीं आ पाया। राजकुमारी की सेना में ५० से भी कम वीरांगनाएँ घायल हुई थी पर मृत्यु किसी को छु भी नहीं पायी थी।
दूसरी युद्धनीति के अनुसार सिकंदर ने ४०,००० का दूसरा दस्ता भेजा उत्तर पूरब पश्चिम तीनों और से घेराबन्दी बना दिया परंतु राजकुमारी सिकंदर जैसे कायर नहीं थी खुद सैन्यसंचालन कर रही थी उनके निर्देशानुसार सेना ने तीन भागो में बंट कर लड़ाई किया और सिकंदर की सेना पस्त हो गई।
तीसरी और अंतिम ८५,०००० दस्ताँ का मोर्चा लिए खुद सिकंदर आया। नंगी तलवार लिये राजकुमारी कार्विका ने अपनी सेना के साथ सिकंदर को अपनी सेना लेकर सिंध के पार भागने पर मजबूर कर दिया। इतनी भयंकर तबाही से पूरी तरह से डर कर सैन्य के साथ पीछे हटने पर सिकंदर मजबूर हो गया।
सिकंदर की १,५०,००० की सेना में से २५,००० के लगभग सेना शेष बची थी, हार मान कर प्राणों की भीख मांग लिया सिकंदर ने और कठगणराज्य में दोबारा आक्रमण नहीं करने का लिखित संधी पत्र दिया राजकुमारी कार्विका को।
इस महाप्रलयंकारी अंतिम युद्ध में कठगणराज्य के ८,५०० में से २७५० साहसी वीरांगनाओं ने भारत माता को अपना रक्ताभिषेक चढ़ा कर वीरगति को प्राप्त कर लिया। जिसमे से इतिहास के दस्ताबेजों में गरिण्या, मृदुला, सौरायमिनि, जया यह कुछ नाम मिलते हैं।
नमन है ऐसी वीरांगनाओं को

जननायक, महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, अद्भुत योद्धा, आदिवासी समाज में क्रांतिकारी नवचेतना के सूत्रधार, "जल, जंगल और जम...
09/06/2024

जननायक, महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, अद्भुत योद्धा, आदिवासी समाज में क्रांतिकारी नवचेतना के सूत्रधार, "जल, जंगल और जमीन" की रक्षा हेतु अंग्रेजों के विरुद्ध 'उलगुलान' आंदोलन के महानायक 'धरती आबा' भगवान बिरसा मुंडा जी को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धापूर्ण नमन।

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01/06/2024

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सिद्धि ,साधना और सिद्ध साधक
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हमारा यह लेख अनेक मिथक तोड़ने वाला है ,आपके भ्रम को मिटाने वाला है ,इसे बहुत गंभीरता से देखें और समझें कहीं आप भी इनमे ही तो नहीं फंसे हैं |आप लोगों में से बहुत से लोग रोज ही पूजा ,प्रार्थना ,आराधना ,उपासना ,भक्ति और साधना करते हैं किन्तु अधिकतर को इनके बीच का अंतर ही नहीं पता होता |कुछ लोग रोज की पूजा को साधना समझ लेते हैं तो कुछ लोग भक्ति को साधना मान लेते हैं ,कुछ लोग प्रार्थना करते हुए साधक समझ लेते हैं खुद को तो कुछ लोग वास्तव में साधना करते हैं |पूजा ,प्रार्थना ,आराधना ,उपासना और साधना में भारी अंतर होता है इसी तरह सिद्धि ,साधना और सिद्ध व्यक्ति में बड़ा अंतर होता है |हर मंत्र जप करने वाला साधक नहीं होता ,हर साधक सिद्ध नहीं होता और हर मंत्र जप करने वाले को सिद्धि नहीं मिलती |जिसे सिद्धि मिली वह साधक हो जरुरी नहीं या जिसे सिद्धि मिली वह भी सिद्ध हो गया बिलकुल भी जरुरी नहीं |in बातों को सामान्य व्यक्ति तो नहीं ही समझता बड़े बड़े मान्त्रिक ,तांत्रिक और साधना जगत से जुड़े लोग या पंडित भी नहीं समझते |बिना इन्हें जाने समझे आप बड़े भ्रम में रहते हैं |
सबसे पहले तो आप पूजा को समझिये |पूजा वह प्रक्रिया है जिसमे किसी भी देवी देवता को उसकी ऊर्जा के अनुकूल पदार्थों के साथ पूजन करते हुए उसको उर्जा दी जाती है अर्थात प्रसन्न करने की कोशिश होती है ताकि उसकी ऊर्जा से आपको लाभ हो सके |इसमें अक्षत अथवा तिल ,जल ,विशेष फूल ,विशेष फल ,विशेष नैवेद्य अर्पित किये जाते हैं ताकि उसकी उर्जा के अनुकूल पदार्थो से उसकी उर्जा बढे ,उस स्थान पर उर्जा उत्पन्न हो ,उस उर्जा से आपको लाभ हो |पूजा पदार्थों के साथ दैवीय उपचार है |अब प्रार्थना को समझते हैं |प्रार्थना वह प्रक्रिया है जिसमे आप अपने ह्रदय और भाव से ,अपनी भाषा में किसी दैवीय शक्ति से अपनी इच्छा और मनोकामना कहते हैं |यहाँ भाव ,श्रद्धा ,आतंरिक जुड़ाव और तन्मयता मुख्या शक्ति होती है जो ला आफ अट्रेक्शन की तरह दैवीय शक्ति को आकर्षित करती है |
तीसरी प्रक्रिया अध्यात्म जगत में दैवीय कृपा पाने की उपासना होती है |उपासना में आप किसी भी शक्ति के स्तोत्र ,कवच ,सहस्त्रनाम ,ह्रदय आदि का पाठ करते हैं |इसमें पूजा सम्मिलित होती है और संकल्प आवश्यक अंग हो जाता है |इस प्रक्रिया में आप देवता से सुरक्षा के साथ उसकी विभिन्न नामों ,गुणों ,बीजों के साथ प्रशंशा करते हुए मनोकामना पूर्ती की इच्छा व्यक्त करते हैं |चौथी क्रिया दैवीय कृपा पाने की आराधना होती है |आराधना ,प्रार्थना के बाद सबसे सरलतम क्रिया है |पूजा ,उपासना और साधना में मार्गदर्शन की जरुरत होती है किन्तु प्रार्थना और आराधना में विशिष्ट मार्गदर्शन जरुरी नहीं होता |आराधना में देवी -देवता के भजन ,चालीसा पाठ आदि आते हैं जो भी सरलतम रूप से किये जा सकें और जिनमे बीज मंत्र ,शपथ आदि न हों |आराधना में स्वरुप ,कार्य और गुणों का बखान करते हुए देवता से अपने ऊपर कृपा करने की कामना व्यक्त की जाती है |इसकी मुख्या शक्ति भक्ति और श्रद्धा होती है |
दैवीय शक्ति की कृपा पाने का सबसे शक्तिशाली माध्यम साधना है किन्तु अधिकतर को तो यही नहीं पता होता की वास्तव में साधना कहते किसको हैं |लोग कहते हैं की वह अमुक शक्ति को ,अमुक देवता को साध रहे ,उनकी साधना कर रहे |आप अपने घर में किसी को तो साध ही नहीं पाते की वह आपकी हर बात मान ही ले ,आप देवी देवता को क्या साधोगे |एक सबसे छोटी शक्ति भूत तो सिद्ध करने में कई महीने लग जाते हैं वह भी आप उसे साधते नहीं ,उसे वचन बढ करते हैं पहले प्रसन्न करने के बाद |देवी देवता को साधना आसान नहीं |ऐसा नहीं की कोई देवी देवता को साध नहीं सकता पर वह स्थिति बहुत बाद में आती है |पहले तो साधना उसे ही कहा जाता है जब खुद को साधा जाता है ताकि कोई देवी देवता आपसे जुड़े |अर्थात खुद को ऐसा बनाया जाता है की कोई शक्ति आपको अनुकूल पाकर आपसे जुड़े |इसे ही साधना कहते हैं |मतलब आप खुद को साधते हैं विशेष देवी देवता के अनुकूल खुद को बनाकर |वैसे तो देवी देवताओं के भी कई स्तर होते हैं जो उनकी शक्ति और उर्जा के आधार पर बने हैं जिनमे कुछ को उच्च स्तर के साधक साध लेते हैं किन्तु सामान्यतया जिसे कहते हैं की देवी देवता को साध रहे वह वास्तव में देवी देवी को न साध उनकी उर्जा का नियंत्रण होता है अपने उद्देश्य के अनुसार |उसी देवता को उसी समय कोई और भी साध रहा हो सकता है ,तो मतलब हैं एक ही देवता की उर्जा को कई लोग सिद्ध कर सकते हैं अर्थात देवता को नहीं साधा जाता ,सामान्यतया उनकी उर्जा के एक छोटे अंश को साधा जाता है अपने को उसके अनुकूल कर |
अब आप पूजा ,प्रार्थना ,आराधना ,उपासना और साधना का अर्थ समझ गए होंगे |अब हम आपको सिद्ध ,सिद्धि और साधक में अंतर भी बता देते हैं |जो व्यक्ति किसी भी प्रकार से स्वयं को किसी भी शक्ति या ऊर्जा के अनुकूल बनाकर उसे अपने से जोड़ने का प्रयास करता है उसे साधक कहते हैं अर्थात वह साधना कर रहा की कोई शक्ति उससे जुड़े |यह साधक जब उस शक्ति को खुद से जोड़ लेता है अर्थात जब वह शक्ति उस साधक के अनुसार क्रिया करने लगती है तब वह उस साधक की सिद्धि हो जाती है |जिसके पास कई प्रकार की सिद्धि होती है उस साधक को सिद्ध कहते हैं |पुजारी ,कर्मकांडी ,प्रवचन कर्ता आदि अक्सर एक विशेष कर्म करने वाले होते हैं साधक नहीं जबकि सन्यासी ,विरक्त ,बैरागी ,साधू आदि मानसिक अवस्थाएं हैं जिनमे भावानुसार शक्ति हो सकती है |इन विषयों को हम किसी और लेख में समझेंगे
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नदी से पानी नहीं, रेत चाहिएपहाड़ से ओषधि नहीं, पत्थर चाहिएवृक्ष से छाया नहीं, लकड़ी चाहिएखेत से अन्न नहीं, नक़द फ़सल चाह...
31/05/2024

नदी से पानी नहीं, रेत चाहिए
पहाड़ से ओषधि नहीं, पत्थर चाहिए

वृक्ष से छाया नहीं, लकड़ी चाहिए
खेत से अन्न नहीं, नक़द फ़सल चाहिए

रेत से पक्की सड़क, मकान बनाकर,
नक्काशीदार दरवाजे सजाकर,
अब भटक रहे हैं।

उलीच ली रेत, खोद लिए पत्थर,
काट दिए वृक्ष, तहस-नहस कर दी मेड़ें;

अब भटक रही सभ्यता !!

सूखे कुओं में झाँकते,
खाली नदियाँ ताकते,
झाड़ियां खोजते लू के थपेड़ों में,
बिना छाया ही हो जाती सुबह से शामें....

बूँद-बूँद बिक रही जल की।
साँस लेने हवा भी बिकेगी।
कल्पना करें उस कल की
🙏

महान शिवभक्त एवं वीरांगना, 'लोकमाता' पूज्य देवी अहिल्याबाई होल्कर की जयंती पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि!उन्होंने न केवल ...
31/05/2024

महान शिवभक्त एवं वीरांगना, 'लोकमाता' पूज्य देवी अहिल्याबाई होल्कर की जयंती पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि!

उन्होंने न केवल राजनीतिक व प्रशासनिक क्षेत्र में, बल्कि धर्म-संस्कृति के उत्थान, मानवता के कल्याण एवं शिक्षा के विकास के जो मानदंड स्थापित किए हैं, वे सदैव अनुकरणीय रहेंगे।

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