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1816 में खोजा, अब फिर मलबे में दफन!"
कल्प केदार मंदिर की दुर्दांत कहानी

यह लेख उत्तराखंड के धराली गांव में स्थित कल्प केदार मंदिर की ऐतिहासिक और वर्तमान त्रासदी से जुड़ी एक महत्वपूर्ण कहानी को...
06/08/2025

यह लेख उत्तराखंड के धराली गांव में स्थित कल्प केदार मंदिर की ऐतिहासिक और वर्तमान त्रासदी से जुड़ी एक महत्वपूर्ण कहानी को दर्शाता है। आइए इसको एक सुंदर, जानकारीपूर्ण तरीके से पूरा करें:

खुदाई में निकला था फिर मलबे में समा गया! धराली के कल्प केदार मंदिर का इतिहास
उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में स्थित कल्प केदार मंदिर एक बार फिर प्रकृति की मार का शिकार हो गया। मंगलवार को बादल फटने की घटना के बाद, खीर गंगा नदी उफान पर आ गई और मंदिर मलबे में दब गया। इसके साथ ही पूरा धराली बाजार भी तबाह हो गया, जिससे इलाके में भारी जन-धन की हानि हुई है।

कल्प केदार मंदिर का इतिहास काफी पुराना और रहस्यमय है। माना जाता है कि यह मंदिर 19वीं सदी की शुरुआत से पहले भी यहां मौजूद था, लेकिन उस समय खीर गंगा नदी में आई बाढ़ के चलते यह मंदिर मलबे में दब गया था। बाद में जब गांव में खुदाई हुई, तो यह मंदिर फिर से बाहर आया।

इतिहास के पन्नों में कल्प केदार
1816 में प्रसिद्ध अंग्रेज अन्वेषक जेम्स विलियम फ्रेजर जब गंगा-भागीरथी के उद्गम की खोज में उत्तरकाशी पहुंचे, तो उन्होंने अपने यात्रा-वृत्तांत में धराली का उल्लेख किया और लिखा कि उन्होंने वहां के मंदिरों में विश्राम किया था। इससे स्पष्ट होता है कि उस समय यह मंदिर क्षेत्र ऐतिहासिक और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण था।

1869 में अंग्रेज खोजकर्ता और फोटोग्राफर सैमुअल ब्राउन भी गंगोत्री-गोमुख तक की यात्रा पर निकले थे। उन्होंने अपने लेखन और फोटोग्राफी में धराली में तीन प्राचीन मंदिरों का उल्लेख किया, जिनमें से एक कल्प केदार मंदिर भी था। यह मंदिर वास्तुकला और शिल्प के दृष्टिकोण से भी अद्वितीय था।

मंदिर से जुड़ी मान्यता
स्थानीय मान्यता है कि यह मंदिर भगवान केदारनाथ के एक रूप को समर्पित था, जिसे "कल्प काल के शिव" के रूप में पूजा जाता है। कहा जाता है कि यहां तपस्या करने से मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैं, और यह स्थल "कल्पवृक्ष" के समान इच्छापूर्ति का केंद्र है।

फिर से मलबे में समा गया इतिहास
2025 की इस त्रासदी में मंदिर एक बार फिर मलबे में समा गया, जिससे स्थानीय लोगों के लिए यह एक भावनात्मक क्षति भी है। वर्षों से लोग यहां पूजा-अर्चना के लिए आते रहे हैं और मंदिर क्षेत्र धार्मिक पर्यटन का भी एक प्रमुख केंद्र था।

अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि प्रशासन इस ऐतिहासिक धरोहर को कैसे संरक्षित करता है और क्या इस मंदिर को फिर से बाहर लाकर संरक्षित विरासत घोषित किया जाएगा।

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