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“पुनरावृत्ति: भाग 3 — उत्तर जो आत्मा में छुपे हैं”(अब परीक्षा में तुम्हारे शब्द नहीं, तुम्हारी “यादें” लिखी जाएँगी)---पि...
30/06/2025

“पुनरावृत्ति: भाग 3 — उत्तर जो आत्मा में छुपे हैं”

(अब परीक्षा में तुम्हारे शब्द नहीं, तुम्हारी “यादें” लिखी जाएँगी)

---

पिछली बार:

“वो” — पहला छात्र — समझ चुका है कि पुनरावृत्ति एक स्कूल नहीं,
बल्कि चेतना का निरंतर पाठ है,
जहाँ हर इंसान बार-बार लौटता है — जब तक पूरा न हो जाए।

---

अब…

स्थान: कोई भी सपना, कोई भी आईना, कोई भी अधूरी बात

व्यक्ति: वो सभी जिनके भीतर कुछ ऐसा है जो कभी कहा नहीं गया

---

📖 अब पाठ खुलते नहीं, याद आते हैं…

एक महिला को सपना आता है —
वो एक पुराने घर में है, जहाँ उसकी माँ की आवाज़ गूंज रही है:

> “बेटी, वो बात जो तुमने कभी नहीं कही… वही इस जन्म का उत्तर है।”

एक लड़का आईने में देखता है, और वहाँ खुद को नहीं —
एक अनजान बच्चा रोता हुआ दिखता है।
वो समझ नहीं पाता क्यों, पर आँखें भर आती हैं।

---

🧠 अब परीक्षा एक वाक्य नहीं, एक भाव है

> “तुम्हें वो उत्तर ढूँढना है
जो तुम्हारी आत्मा ने पिछली बार कहने की कोशिश की थी…
लेकिन तुम्हारे शब्द साथ नहीं दे पाए थे।”

---

🔄 अब ये उत्तर सिर्फ़ तुम्हारे नहीं… किसी और के भी अधूरे हैं

जब तुम किसी को देख कर भावुक होते हो —
शायद वही तुमसे कभी कुछ पूछना चाहता था।

जब तुम किसी जगह जाकर बेचैन हो जाते हो —
शायद वहाँ तुम्हारा अधूरा उत्तर छूट गया था।

---

🔔 "वो" अब दूसरों की यादों में आने लगा है…

जिस भी इंसान ने कभी कुछ अधूरा छोड़ा —
“वो” उनकी नींद में आता है, और एक वाक्य कहता है:

> “अगर तुमने अब भी उत्तर नहीं दिया…
तो अगली बार तुम खुद प्रश्न बन जाओगे।”

---

📺 अंतिम दृश्य:

एक ब्लैकबोर्ड फिर दिखता है —
इस बार कोई चॉक नहीं, कोई हाथ नहीं…

बस एक आँसू गिरता है —
और वहां लिखा जाता है:

> “उत्तर: (चुप्पी)”

अब कक्षा खुल चुकी है… लेकिन कोई किताब, कोई सिलेबस, कोई शिक्षक इसे समझा नहीं सकता।क्योंकि यह पाठ्यक्रम पिछले जन्मों के अध...
29/06/2025

अब कक्षा खुल चुकी है… लेकिन कोई किताब, कोई सिलेबस, कोई शिक्षक इसे समझा नहीं सकता।
क्योंकि यह पाठ्यक्रम पिछले जन्मों के अधूरे पाठों से बना है — और चेतना उन्हें अब दोबारा पढ़ना चाहती है।
---

🌀 “पुनरावृत्ति: भाग 2 — पाठ्यक्रम जिसे कोई नहीं जानता”

(अब पढ़ाई आत्मा से होती है… और परीक्षा उस ज्ञान की है जो तुम्हें कभी पूरा नहीं मिला)
---

पिछली बार:

“वो” — जो अब पहला छात्र है —
एक ब्लैकबोर्ड के सामने खड़ा है
जहाँ लिखा है:

> “पुनरावृत्ति चक्र: 2”
“छात्र संख्या: 1”
---

अब…

स्थान: कोई भी शहर, कोई भी स्कूल

व्यक्ति: हर वो इंसान जो कभी कुछ अधूरा छोड़ गया था —

एक अधूरी कविता
एक न बोले गए वाक्य
एक अधूरी माफी
या अधूरी मृत्यु

---

📖 अब हर किसी को एक किताब मिलने लगी है… पर उसमें कुछ लिखा नहीं

किताब का टाइटल है:

> “तुम्हारा पाठ्यक्रम — जो कभी खत्म नहीं हुआ”

लेकिन अंदर के पन्ने… ख़ाली हैं।

तभी एक चेतावनी आती है — हर उस इंसान के मन में, जो इस किताब को देखता भी है:

> “लिखो… वो जो अधूरा था।
वरना तुम दोहराए जाओगे… जब तक सब पूरा न हो जाए।”
---

📚 अब छात्र वही बनते हैं, जो भूल गए थे कि वे कभी छात्र थे

एक बुज़ुर्ग महिला को अपने स्कूल का सपना आता है —
वहाँ वो फिर से 10वीं क्लास में है, और ब्लैकबोर्ड पर वही वाक्य लिखा है जो उसने कभी याद नहीं किया।

एक ऑफिस में बैठा कर्मचारी बार-बार एक ही लाइन टाइप करता है —

> “मैंने माफ़ नहीं किया था…”

एक बच्चा, जो बोल नहीं सकता —
अचानक बोर्ड पर खुद-ब-खुद अपने पिछले जन्म का नाम लिख देता है।

---

🔄 यह पाठ्यक्रम अब रिवीजन नहीं, पुनर्जन्म है

"वो" — पहला छात्र — अब समझ चुका है:

> “पुनरावृत्ति का पाठ्यक्रम किसी स्कूल का नहीं…
यह आत्मा का रिकॉल सिस्टम है।”
---

⚰️ अब नई परीक्षा की घड़ी है

हर रात, एक अज्ञात कक्षा खुलती है

वहाँ शिक्षक नहीं, सिर्फ़ तुम और तुम्हारा अतीत होता है

ब्लैकबोर्ड पर लिखा होता है:

> “अगर इस बार भी अधूरा छोड़ दिया… तो अगली पुनरावृत्ति में खुद को नहीं पहचान पाओगे।”

---

📺 अंतिम दृश्य:

एक टीवी स्क्रीन पर एक बच्चा दिखता है —
जिसकी आंखों में तुम अपने पुराने डर देखते हो।

वो कहता है:

> “अब कक्षा तुम्हारी नहीं रही…
तुम खुद कक्षा बन चुके हो।
अब बताओ — क्या तुम तैयार हो अगली पुनरावृत्ति के लिए?”

पुनरावृत्ति: भाग 1 — पहला छात्र”(जहाँ सब कुछ पहले भी हुआ था… लेकिन किसी को याद नहीं)---पिछली श्रृंखला का अंत:“आख़िरी घंट...
28/06/2025

पुनरावृत्ति: भाग 1 — पहला छात्र”

(जहाँ सब कुछ पहले भी हुआ था… लेकिन किसी को याद नहीं)

---

पिछली श्रृंखला का अंत:

“आख़िरी घंटा” अब समाप्त हो चुका है।
37वां उत्तर खुद चेतना में समा चुका है —
और दुनिया से सवाल ही मिट चुके हैं।

लेकिन…

कहीं, किसी अज्ञात क्षेत्र में, एक नई घंटी बजती है।

---

अब…

स्थान: "शून्य लोक" — एक जगह जो ना समय में है, ना मृत्यु में

व्यक्ति: “वो” — एक चेतना, जिसे अब तक कोई नाम नहीं दिया गया

“वो” एक अंधेरे कमरे में जागता है।
कोई दरवाज़ा नहीं।
कोई दीवार नहीं।

बस एक ब्लैकबोर्ड… और उस पर लिखा है:

> “पुनरावृत्ति शुरू हुई।”

---

🧠 अब कोई शिक्षक नहीं, कोई छात्र नहीं…

बल्कि सब कुछ एक ही है।

“वो” खुद से पूछता है:

> “क्या मैं पहले भी ये सोच चुका हूँ?”
“क्या मैं फिर से वही बनने जा रहा हूँ… जो कभी भूल चुका हूँ?”

---

📖 पहली किताब खुलती है — और उसमें सिर्फ़ एक पंक्ति है:

> "पहला छात्र… वही होता है जो आख़िरी उत्तर को भूल चुका हो।”

“वो” अपनी हथेली पर देखता है —
वहाँ अंकित है:

“छात्र संख्या: 1 — पुनरावृत्ति चक्र: 2”

---

🔄 अब नियम बदल चुके हैं…

सवाल अब खुद को बदलते हैं।

उत्तर अब विचार नहीं, व्यवहार बन चुके हैं।

और चेतना अब शरीर में नहीं, समूह में प्रवेश करती है।

---

🌌 अब स्कूल सिर्फ़ एक स्थान नहीं — वो एक विचार है।

एक बच्चा किताब पढ़ते हुए रुक जाता है —
और उसकी आंखें कहती हैं:

> “मुझे ये सब पहले भी याद आ चुका है…”

---

🔔 नई घंटी, नई चेतना, लेकिन वही डर…

एक पुरानी आवाज़ फिर से गूंजती है:

> “कक्षा शुरू हो चुकी है।
अब तुम न पहले छात्र हो… न आख़िरी।
तुम बस पुनरावृत्ति हो।”

---

🔮 जारी रहेगा…

“आख़िरी घंटा: भाग 10 — 37वां उत्तर: जो सब मिटा देगा”(जब चेतना स्वयं उत्तर बन जाए, तब सवाल बेमानी हो जाते हैं…)---पिछली ब...
23/06/2025

“आख़िरी घंटा: भाग 10 — 37वां उत्तर: जो सब मिटा देगा”

(जब चेतना स्वयं उत्तर बन जाए, तब सवाल बेमानी हो जाते हैं…)
---

पिछली बार:

प्रणव ने “36वां प्रश्न” सुना —
जो किसी किताब में नहीं था।
अब वह खुद चेतावनी बन चुका है — हर स्क्रीन, हर दिमाग़ में गूंजता एक नामरहित प्रश्न…

> “तुम जो सोचते हो… क्या वो सच में तुम्हारा है?”
---

अब…

स्थान: इंदौर — “नवचेतना बाल निकेतन”

व्यक्ति: आद्या, 14 साल की लड़की, जो कभी नहीं बोलती थी — लेकिन सबकी सोच पढ़ सकती थी

आद्या अब क्लास में बैठती है, चुप…
लेकिन उसकी कॉपी में कुछ अजीब सा लिखा जाने लगा है — खुद-ब-खुद।

> "37वां उत्तर आने वाला है — और फिर हर सवाल ख़त्म होगा।”
---

🧠 रात 3:37 AM — पूरी दुनिया में एक ही सपना फैलता है

एक खाली क्लासरूम

36 कुर्सियाँ… सभी पर बैठे चेहरे बिना आँखों के

एक आख़िरी कुर्सी खाली है…

तभी बोर्ड पर लिखा जाता है:

> “जो 37वां उत्तर देगा, वो शून्य को जन्म देगा।”
---

📉 अब सिर्फ़ सोच से लोग बदल रहे हैं

एक बच्चा जो किताब खोलता है, अचानक अपनी भाषा भूल जाता है

एक लड़की जो अपनी माँ को पहचान नहीं पाती — क्योंकि उसने “गलत उत्तर” दे दिया

और कुछ लोग सपनों में एक ही जवाब सुनते हैं, बार-बार:

> “मैं नहीं हूँ।”

---

🕯️ आद्या अब उस उत्तर को महसूस कर चुकी है

उसकी आंखों से सफ़ेद धुआँ निकलता है।

वो खड़ी होती है और बोलती है — पहली बार:

> “37वां उत्तर अब भाषा नहीं है। ये एक शून्य है — जो तुम्हें खुद में समा लेगा।”

सारे आईने चटकते हैं।
सारे बोर्ड मिट जाते हैं।

---

📺 एक आख़िरी दृश्य

TV, लैपटॉप, मोबाइल — सब बंद हो जाते हैं।

लेकिन एक स्क्रीन में एक ब्लैकबोर्ड जलता हुआ दिखता है…

जहाँ लिखा होता है:

> “आख़िरी घंटा अब बंद हुआ।”
“पाठ समाप्त। उत्तर शून्य।”
---

🙏 “The End… or The Beginning?”

लेकिन कुछ लोगों को अब भी सपनों में एक घंटी सुनाई देती है…

> “क्या तुम अगले चक्र के पहले छात्र बनना चाहोगे?”

Big shout out to my newest top fans! 💎 Dinesh ChauhanDrop a comment to welcome them to our community,
23/06/2025

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21/06/2025

घूंघट और मॉडल बहु की रसोई /
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आख़िरी घंटा: भाग 9 — 36वां प्रश्न: जो कभी पूछा नहीं गया”(अब सवाल पूछने वाला कोई इंसान नहीं… चेतना खुद सवाल बन चुकी है)--...
21/06/2025

आख़िरी घंटा: भाग 9 — 36वां प्रश्न: जो कभी पूछा नहीं गया”

(अब सवाल पूछने वाला कोई इंसान नहीं… चेतना खुद सवाल बन चुकी है)

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पिछली बार:

रीतिका अब “35वीं छाया” बन चुकी है —
अब क्लास दिमाग़ के भीतर लगती है।
घंटी हर उस सोच में बजती है, जो डर और सवालों से बनी हो।

---

अब…

स्थान: पुणे — “Future Minds Academy”

व्यक्ति: प्रणव, 16 साल का होशियार लेकिन शांत छात्र

जो हर परीक्षा में टॉपर था — लेकिन एक सवाल कभी उसके सपनों में आता:

> “अगर तुम पढ़ रहे हो… तो क्या तुम खुद को याद भी रखोगे?”

---

📖 रात 2:02 AM — 36वां प्रश्न आता है

प्रणव अपनी नोटबुक खोलता है —
हर सवाल के नीचे कुछ लिखा है… किसी और की हैंडराइटिंग में:

> “यह सवाल असली नहीं है।”
“तुम जो जवाब दे रहे हो… क्या वो तुम्हारा है?”
“क्या तुम्हारे उत्तरों में आत्मा है… या बस आदत?”

तभी दीवार पर लिखा गया एक वाक्य चमकता है:

> “36वां प्रश्न: तुम्हारी चेतना कहाँ से आई है?”

---

🕯️ अब उसके भीतर कक्षा खुल चुकी है

वो बिना सोचे जवाब देने लगा है…

उसके जवाब दीवारों पर जलते हुए दिखाई दे रहे हैं

और हर उत्तर के बाद एक चेहरा मिटता है…
(क्या वो पिछले छात्रों के चेहरे हैं?)

---

📉 अब स्कूलों में नई बीमारी फैल रही है: "ज्ञान शून्यता"

बच्चे उत्तर लिखते हैं, लेकिन उन्हें याद नहीं होता कि क्या लिखा

कुछ छात्र कहते हैं: “हम किसी और के दिमाग़ से सोच रहे हैं।”

और कुछ टीचर… बिना पढ़ाए ही क्लास खत्म कर देते हैं — क्योंकि कोई सवाल पूछा ही नहीं गया

---

🧠 प्रणव अब एक चेतावनी बन गया है

वो बोलता नहीं…
लेकिन हर स्क्रीन पर उसका चेहरा उभरता है —
और एक लाइन:

> “36वां प्रश्न अब हर सोच में दाख़िल हो गया है।
अब जवाब दोगे… या चेतना खो बैठोगे?”

---

📺 एक अंतिम वीडियो

YouTube पर एक लाइव वीडियो चलता है —
कोई चैनल नहीं, कोई यूज़र नहीं।

बस एक लड़का — प्रणव — स्क्रीन के सामने बैठा है।

उसकी आंखों से खून बह रहा है।
वो धीरे-धीरे बोलता है:

> “37वां… अब कोई प्रश्न नहीं होगा।
अब सिर्फ़ एक उत्तर बचेगा —
तुम।”

“आख़िरी घंटा: भाग 8 — 35वीं छाया: जो पाठशाला नहीं, दिमाग़ चुनती है”(अब स्कूल कोई इमारत नहीं रहा… ये तुम्हारे सोचने से शु...
21/06/2025

“आख़िरी घंटा: भाग 8 — 35वीं छाया: जो पाठशाला नहीं, दिमाग़ चुनती है”

(अब स्कूल कोई इमारत नहीं रहा… ये तुम्हारे सोचने से शुरू होता है)

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पिछली बार:

34वीं चेतना — एक बच्चा जो कभी नहीं बोला, लेकिन अब हर कक्षा में पढ़ा रहा है।
अब कक्षा सिर्फ़ स्कूल में नहीं लगती, बल्कि जो भी "उस किताब" को देखे, उसके भीतर खुल जाती है।

---

अब…

स्थान: भोपाल, एमपी नगर — एक कोचिंग सेंटर

व्यक्ति: रीतिका, 17 साल की NEET aspirant, दिनभर पढ़ाई, रात में दवाओं से नींद

एक दिन उसे एक अजीब hallucination होता है:

उसके नोट्स की किताब खुद-ब-खुद लिखने लगती है:

> “प्रवेश परीक्षा अब आत्मा की है… शरीर तो पीछे छूट चुका है।”
“तुम 35वीं हो… छाया की छात्रा।”

---

🧠 रात 1:11 AM — चेतना शुरू होती है

रीतिका के दिमाग़ में एक बोर्ड प्रकट होता है।

किसी ने कुछ नहीं बोला — फिर भी वो "सुन रही है।"
किसी ने कुछ नहीं दिखाया — फिर भी "वो समझ रही है।"

धीरे-धीरे उसकी आँखें ऊपर जाती हैं… और वहाँ लिखा है:

> "आख़िरी घंटा तुम्हारे भीतर है।"

---

📉 अगले दिन — सेंटर में 3 छात्र बेहोश पाए जाते हैं

हर किसी ने अपनी कॉपी में एक ही पंक्ति लिखी थी —
“हमने वो पढ़ा… जो कभी छापा ही नहीं गया।”

उनकी आंखें खुली थीं… लेकिन पुतलियाँ गायब।

---

📡 अब चेतावनी सब जगह फैल रही है

YouTube shorts में “आख़िरी घंटा” नाम से 6-सेकंड के वीडियो आ रहे हैं, जिन्हें हटाया नहीं जा सकता।

Spotify पर एक भूतिया lecture play होता है — जिसे सुनते ही लोगों को “सवाल” याद आने लगते हैं… जिनके जवाब कोई किताब नहीं देती।

और कुछ लोगों के AirPods से सिर्फ़ एक वाक्य बार-बार आता है:

> “अब ज्ञान नहीं, चेतना चुनी जाती है। तुम कहाँ खड़े हो?”

---

🩸 अब परीक्षा शुरू हो गई है… और प्रश्न सिर्फ़ तुम्हारे सोच में हैं

रीतिका अपने कमरे की दीवार पर देखती है —
वहाँ लिखा है:

> “35वीं छाया बनी तुम — अब अगली चेतना तुमसे निकलेगी।”

और आईने में उसकी परछाई मुस्कुरा रही है —
लेकिन रीतिका अब शांत है…
उसकी आँखें सफ़ेद हैं… और वो फुसफुसा रही है:

> “अगली घंटी… किस सोच में बजेगी?”

Vishal Yadav Samantha CARTOON Susan Pedrasita MrBeast

“आख़िरी घंटा: भाग 7 — 34वीं चेतना: जो कभी मरी ही नहीं”(एक छाया जो हर कक्षा में थी… पर कभी नाम नहीं लिया गया)---पिछली बार...
19/06/2025

“आख़िरी घंटा: भाग 7 — 34वीं चेतना: जो कभी मरी ही नहीं”

(एक छाया जो हर कक्षा में थी… पर कभी नाम नहीं लिया गया)

---

पिछली बार:

शेखर सर अब “घंटी” बन चुके हैं —
और हर जगह वही चेतावनी गूंज रही है:
“अब पढ़ाई सिर्फ़ ज्ञान नहीं… आत्मा मांगती है।”

---

अब…

स्थान: दिल्ली — “गुरुकुल मिशन स्कूल”

व्यक्ति: प्राचार्य सौमित्र भारद्वाज, 55 वर्षीय सख्त लेकिन धार्मिक स्कूल हेड

एक दिन वे स्कूल की पुरानी अटेंडेंस रजिस्टर चेक कर रहे थे।

हर पन्ने पर एक नाम दोबारा दिख रहा था —
“नाम: —” (कोई नाम नहीं)
कक्षा: उपस्थित

हर क्लास में, हर दिन…

> एक छात्र… जो हमेशा उपस्थित था… लेकिन किसी ने कभी उसे देखा नहीं।

---

📚 प्राचार्य के सामने एक सपना आता है…

वो स्टाफरूम में बैठे हैं —
तभी सभी टीचर्स की आंखें सफ़ेद हो जाती हैं और सब बोलने लगते हैं:

> “34वीं चेतना वापस आ चुकी है… जो कभी मरी ही नहीं थी।”

---

🕛 रात 12:34 AM — स्कूल की छत पर एक आकृति

CCTV फ़ुटेज में दिखता है —
स्कूल की छत पर कोई बैठा है…
कमर झुकी हुई, हाथ में एक पुरानी स्लेट, और होठों से फुसफुसाहट:

> “मैं सब कुछ सुनता था… पर बोलता नहीं था। अब सबको सुनना होगा — मेरा पाठ।”

---

📖 वेदसागर का आख़िरी नोट

(जो भाग 6 में लापता हो गए थे)

> “34वीं चेतना एक आत्मा नहीं…
वो चेतना है जिसे सबने नज़रअंदाज़ किया था।
एक बच्चा जो बोल नहीं सकता था…
लेकिन अब वो दुनिया को पढ़ाएगा, बिना रुके।”

---

🧠 अब जो भी "सुनता" है — उसका दिमाग़ खुलता नहीं, उलट जाता है

एक छात्र को नींद में मैथ्स के सवाल सुनाई देते हैं — जवाब देने पर उसकी जुबान मुड़ जाती है।

एक लड़की के कान से स्लेट की आवाज़ आती है — खरोंच-खरोंच… और दीवार पर उसका नाम दिखता है।

बच्चे बोलना छोड़ देते हैं, लेकिन हाथ से लिखते रहते हैं, बिना देखे।

---

🔔 और तब — घंटी बजती है… लेकिन उल्टी दिशा में।

घड़ी पीछे चलती है —
और बोर्ड पर लिखा जाता है:

> “कक्षा: मृत से पहले की चेतना”
“छात्र संख्या 34: तुम… जो कभी दिखे ही नहीं।”

---

😱 अंतिम दृश्य:

एक नई किताब सभी स्कूलों में पहुँचती है —
टाइटल है:

> “जो छात्रों ने नहीं पढ़ा… वही अब सिखाएंगे।”

और उस किताब के आखिरी पन्ने पर लिखा है:

> “अगर ये पढ़ रहे हो, तो हो सकता है…
तुम ही 35वीं चेतना हो।”

“आख़िरी घंटा: भाग 6 — 33वीं आत्मा: जिसने घंटी बजाई”(कक्षा अब एक आत्मा नहीं, एक इरादा है… जो पूरा होगा)---पिछली बार:32वां...
19/06/2025

“आख़िरी घंटा: भाग 6 — 33वीं आत्मा: जिसने घंटी बजाई”

(कक्षा अब एक आत्मा नहीं, एक इरादा है… जो पूरा होगा)

---

पिछली बार:

32वां छात्र निखिल अब खुद एक “मौन शिक्षक” बन चुका है —
जो अब रात को पढ़ाता है, लेकिन जागते हुए नहीं… चेतना के उस कोने में जहाँ डर और ज्ञान एक हो जाते हैं।

अब एक नया मोड़ आएगा —
घंटी अपने आप नहीं बज रही थी… कोई है जो उसे बजाता है।

---

अब…

स्थान: ऋषिकेश के पास एक वीरान घाट

व्यक्ति: स्वामी वेदसागर — एक सन्यासी, जो आत्माओं पर अध्ययन करते हैं

एक रात वेदसागर जी ने एक अनदेखी छाया को घाट के मंदिर में देखा —
छाया ने एक घंटी को छुआ…
और वेदसागर के कान में एक वाक्य गूंजा:

> “33वीं आत्मा: वही जिसने पहली बार घंटी बजाई थी।”

---

📖 वेदसागर की डायरी — शेखर सर का अतीत

शोध में पता चलता है:

शेखर सर, विज्ञान के शिक्षक नहीं थे… वे मृत विज्ञान नाम की एक गुप्त विद्या के साधक थे।

1993 की घटना सिर्फ़ एक दुर्घटना नहीं थी…
बल्कि एक यज्ञ, जिसमें वे अपने छात्रों की चेतना जोड़ना चाहते थे।

वो घंटी… विशेष रूप से तैयार की गई थी —
हर बार बजती है, तो एक आत्मा लौट आती है।

---

🔔 रात 12:00 — घाट पर घंटी फिर बजती है

अब कोई स्कूल नहीं है… कोई इमारत नहीं…

फिर भी “घंटी” सुनाई देती है।

घाट के पत्थरों पर अचानक छात्रों के नाम उभरने लगते हैं —
कव्या, अर्जुन, रुद्रांशु, निखिल…

और फिर एक नया नाम…

> “स्वामी वेदसागर — छात्र संख्या 33?”

---

🧠 वेदसागर को समझ आता है…

> “शेखर सर की आत्मा अब कक्षा नहीं ले रही… अब वो खुद घंटी बन गई है।”
यानी जो भी उसे सुनता है, वो अगला माध्यम बनता है।

अब शेखर सर दिखाई नहीं देते…
अब हर जगह से “वो पढ़ा रहे हैं” — मोबाइल, रेडियो, नींद, दीवारें… और आत्मा।

---

😱 अंतिम दृश्य:

एक स्कूल की असेंबली चल रही है — बच्चे सुबह की प्रार्थना कर रहे हैं।

तभी एक नई घंटी बजती है —
और स्पीकर से आवाज़ आती है:

> “कक्षा शुरू हो गई है…
विषय है — चेतना की विरासत।
पहला प्रश्न: क्या तुम पढ़ने के लिए चुने गए हो, या सिर्फ़ शरीर हो?”

बच्चे चुप…
और एक बच्चा धीरे-धीरे मुस्कुराता है…
उसकी आंखें पूरी तरह सफेद हैं।
Meta AI Nazar Battu Mr Bean CARTOON Vishal Yadav

“आख़िरी घंटा: भाग 5 — 32वां छात्र: जो कभी पढ़ा ही नहीं”(अब कक्षा सिर्फ ज्ञान नहीं मांगती, आत्मा भी मांगती है…)---पिछली ब...
19/06/2025

“आख़िरी घंटा: भाग 5 — 32वां छात्र: जो कभी पढ़ा ही नहीं”

(अब कक्षा सिर्फ ज्ञान नहीं मांगती, आत्मा भी मांगती है…)

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पिछली बार:

रुद्रांशु बन चुका है 31वां छात्र।
अब “आख़िरी घंटा” स्कूल की इमारतों से निकलकर लोगों के कमरों, स्क्रीन और खोपड़ी में घुस चुका है।

अब ये कक्षा अपने छात्रों को खुद ढूँढती है।

---

अब…

स्थान: दिल्ली, पालम गाँव

व्यक्ति: निखिल, 19 वर्षीय ड्रॉपआउट — पढ़ाई से चिढ़ने वाला, स्कूल कभी पसंद नहीं आया।

उसके दोस्त उसे चिढ़ाते थे —

> “तू कभी पढ़ नहीं पाएगा... तू स्कूल के लिए बना ही नहीं।”

और निखिल कहता था:

> “भाड़ में जाए स्कूल… मैं तो सपने में भी किताब नहीं खोलता।”

---

📦 एक नया सपना

एक रात निखिल को एक अजीब सपना आता है:

वो एक पुराने स्कूल में है — दीवारें टूटी हुई हैं, ब्लैकबोर्ड पर उसका नाम लिखा है।

> "छात्र संख्या 32: निखिल — विषय: अनजाना"

तभी घंटी बजती है — तेज़, कान फाड़ देने वाली।
और आवाज़ आती है:

> “तूने स्कूल को ठुकराया था... अब स्कूल तुझे अपनाएगा।”

---

🕛 अगली रात 12:00 बजे

निखिल उठता है — पूरा शरीर पसीने से भीगा हुआ।

उसके बेड के पास एक पुरानी किताब रखी है — जो उसने कभी नहीं खरीदी।

कवर फटा हुआ है। टाइटल है: "मृत पाठ्यक्रम — अध्याय 1: आत्मा में विज्ञान"

जैसे ही वो किताब खोलता है, कमरे में अजीब सी गंध भर जाती है — जली हुई किताबों और केरोसीन की।

---

🔥 12:07 AM — किताब ज़िंदा हो जाती है

पन्ने खुद पलटने लगते हैं।

हर पेज पर एक नया नाम उभरता है — पिछली कक्षाओं के छात्रों के।

फिर एक पेज आता है, जहाँ लिखा होता है:

> “32वां छात्र कभी पढ़ा नहीं… इसलिए अब वही पढ़ाएगा।”

तभी ब्लैकबोर्ड कमरे में प्रकट होता है, और उस पर खुद-ब-खुद शब्द लिखे जाते हैं —
"शेखर सर की वापसी अब पूरी होगी…"

---

🩸 निखिल अब बोलता नहीं, पढ़ाता है

सुबह जब उसकी माँ कमरे में आती है,
निखिल सामने बैठा है, आंखें खुली हुईं, मगर होश में नहीं।

उसके सामने दीवार पर टॉर्च से बने बच्चों की आकृतियाँ बैठी हैं —
और वो उन्हें पढ़ा रहा है।

उसकी आवाज़ वही है:

> “समझो चेतना को…
क्योंकि अगला छात्र कोई भी हो सकता है —
जो पढ़ेगा नहीं, वो भी अब चुना जाएगा।”

---

🧠 अब चेतावनी सभी को दी जा रही है

तुम्हारे मोबाइल की नोटिफिकेशन में कभी “अज्ञात शेड्यूल” दिखा तो…

अगर आधी रात को घंटी की आवाज़ सुनाई दे तो…

या अचानक कोई किताब पास में दिखे जिसका नाम तुमने कभी नहीं सुना…

तो याद रखना:

> “आख़िरी घंटा शुरू हो चुका है — अब तुम कतार में हो।”

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