06/10/2025
6 अक्टूबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट में एक चौंकाने वाली घटना घटी, जब एक वकील ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बीआर गवई पर जूता फेंकने की कोशिश की। यह हंगामा CJI की बेंच के सामने मामलों की सुनवाई के दौरान हुआ, जब वकील डायस के पास पहुंचा और अपना जूता निकालकर फेंकने का प्रयास किया। हालांकि, कोर्ट में मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने तुरंत हस्तक्षेप किया और जूता CJI तक नहीं पहुंचा। आरोपी वकील को हिरासत में ले लिया गया।
आरोपी वकील की पहचान 71 वर्षीय राकेश किशोर के रूप में हुई है, जो सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाला एक वकील है। उसके पास वकीलों को जारी की जाने वाली प्रॉक्सिमिटी कार्ड भी थी। हिरासत में जाते समय उसने नारे लगाए, "सनातन का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान"। यह घटना सुबह करीब 11:35 बजे कोर्ट नंबर 1 में हुई।
घटना का कारण
यह प्रयास सितंबर 2025 में CJI गवई की एक टिप्पणी से जुड़ा माना जा रहा है। खजुराहो के जवारी मंदिर में भगवान विष्णु की 7 फुट ऊंची सिर कटी मूर्ति के पुनर्स्थापन की याचिका पर सुनवाई के दौरान CJI ने कहा था कि यह "प्रचार पाने के लिए दायर याचिका" है और याचिकाकर्ता "भगवान से खुद पूछ लें" या "शैववाद के प्रति रुचि हो तो शिव लिंग की पूजा कर लें"। इस टिप्पणी को सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद कई लोगों ने धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला बताया, जिससे CJI के खिलाफ आलोचना और महाभियोग की मांग तक उठी। बाद में CJI ने स्पष्ट किया कि वे सभी धर्मों का सम्मान करते हैं और उनकी टिप्पणी का गलत अर्थ निकाला गया।
CJI की प्रतिक्रिया
घटना के दौरान CJI गवई शांत रहे और सुनवाई जारी रखी। उन्होंने वकीलों से कहा, "इन सब चीजों से विचलित न हों। हम विचलित नहीं हैं। ये बातें मुझे प्रभावित नहीं करतीं।" उन्होंने कार्यवाही को बिना रुकावट के आगे बढ़ाया।
कार्रवाई और प्रतिक्रियाएं
- पुलिस ने आरोपी को हिरासत में ले लिया और पूछताछ शुरू कर दी। सुप्रीम कोर्ट की सुरक्षा इकाई ने जांच शुरू की है, और कोर्ट परिसर में सुरक्षा बढ़ा दी गई।
- सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन ने कोर्ट से स्वत: संज्ञान लेने और आरोपी के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की मांग की।
- वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंग ने इसे "जातिवादी हमला" बताया और सभी जजों से संयुक्त बयान जारी करने की मांग की।
- सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं बंटी हुई हैं: कुछ ने जूता फेंकने को निंदनीय बताया, तो कुछ ने CJI की पुरानी टिप्पणी की आलोचना की। पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने इसे "धार्मिक असहिष्णुता" का उदाहरण माना।