08/10/2025
#जूताकाण्ड
अंततः न्यायपालिका को उस उबाल का सामना करना ही पड़ा जो उनकी एकपक्षीय निरंकुश न्यायिक तानाशाही के विरुद्ध हिंदुओं में एक अरसे से उबल रहा है।
घटना निश्चित रूप से अस्वीकार्य है और मोदीजी द्वारा निंदा भी संवैधानिक पद के अनुरूप है लेकिन उस निंदा में 'दलित वोटबैंक ' की चिंता ज्यादा है जिसकी 'धौंस' के दम पर गवई हिंदुत्व व हिंदू प्रतीकों पर उद्दंड टिप्पणी करते रहे हैं और राजनीति में दखल देते रहे हैं।
समस्या यह है कि संविधान भी हिंदुओं द्वारा निर्मित है और उसका मान हमें ही रखना है लेकिन दुर्भाग्य से लोकतंत्र के चार स्तम्भ में से न्यायपालिका राजनैतिक पार्टी के रूप में एकपक्षीय आचरण करती आ रही है।
अगर उसका हस्तक्षेप बिना पक्षपात के होता तो निश्चित तौर पर वह भारत की सर्वाधिक सम्मानीय संस्था बनी रह सकती थी लेकिन यह बार-बार प्रमाणित हुआ है कि इस्लाम से जुड़े मामलों में न्यायपालिका साफ साफ डरी हुई दिखती है क्योंकि मुस्लिमों का स्पष्ट दृष्टिकोण है कि अगर न्यायपालिका उनके पक्ष में फैसला देगी तभी उसे निष्पक्ष मानेंगे वरना उसे 'हिंदू पक्षपाती' माना जायेगा।
मुस्लिम आतंकवाद से डर और इस आक्षेप के कारण न्यायपालिका ने मुस्लिम पक्ष में प्राकृतिक न्याय के विरुद्ध फैसले देना शुरू किया -
-हिंदू मंदिर शबरीमाला में स्त्री प्रवेश की परम्परा के विरुद्ध फैसला लेकिन मस्जिद में स्त्री प्रवेश पर मुस्लिम परम्परा का हवाला।
-दही हांडी, जलीकट्टु व कुछेक मंदिरों में बलि को हिंसक व खतरनाक बताते हुए रोक लेकिन बकर ईद पर चुप्पी।
-मुस्लिम से विवाह करने पर भी लड़की को पिता की सम्पति में अधिकार देने का आदेश लेकिन वक्फ कानूनों पर आपत्ति जताना।
-पाँच साल तक की बच्चियों को रेप के बर्बर मुस्लिम आरोपियों के विडिओ, बायलॉजिकल व अन्य प्रमाणों को अपर्याप्त मानते हुए बरी करना।
-मुस्लिमों पर टिप्पणियों का स्वतः संज्ञान लेना और हिंदू मामलों पर रिट को भी खारिज करना।
-सोशल मीडिया के अतिरेकी हिंदू पोस्टकर्ता को कुरान पढ़ने की सजा देना लेकिन मुस्लिम अपराधियों को यह कहकर बरी करना कि वह नियमित नमाजी है अतः ऐसे धार्मिक आदमी को सजा देना उचित नहीं।
-दिन रात हिंदू आराध्यों को गाली देने वाले पेरियारवादियों के विरुद्ध धूर्ततापूर्ण चुप्पी और एक हिंदू की खंडित मूर्ति प्रकरण में स्वयं सी जे आई गँवई द्वारा घोर विद्वेषपूर्ण व नीच टिप्पणी जो साफ साफ उनके जातिगत विद्वेष को प्रकट करती है।
-जज के यहाँ से नोटों के बोरे मिलने पर भी उसे संवैधानिक संरक्षण देना और सौ रूपये की रिश्वत वाले आरोपी कर्मचारी को बीस साल बाद रिहा करना।
-इस्लामिक आतंकवादियों के मानवाधिकारों के लिए रात को भी कोर्ट खोल देना जबकि साध्वी प्रज्ञा के खिलाफ चार्जशीट दायर न होने पर उन्हें सालों प्रताड़ित करना।
-कांग्रेस के इमरजेंसी काल में इंदिरा के सामने घुटनों के बल आ जाना और मोदी सरकार के प्रत्येक निर्णय में रोड़े अटकाना।
कुल मिलाकर न्यायपालिका के स्वयं के अपराधों की लिस्ट इतनी लंबी है कि गिनाना मुश्किल है और एक लावा हिंदुओं में उबल रहा है।
एक सत्तर वर्षीय पढ़े लिखे आदमी ने जब यह प्रतीकात्मक कदम उठाया है तो इन्हें समझ जाना चाहिए कि हालात कहाँ तक आ पहुंचे हैं।
अभी तो जेन xyz केवल मीम बनाने और जूता उतारने के प्रतीकात्मक कदम तक सीमित है लेकिन कहीं ऐसा न हो कि किसी दिन जूते की जगह मी लोड्स को ऐसे अतिरेकी कदम का सामना करना पड़ जाये जो किंग्सफोर्ड वाले इतिहास में दर्ज हो जाये।
इसलिए न्यायालय मुस्लिम तुष्टिकरण और हिंदू भावनाओं के उत्पीड़न को छोड़कर समानता के आधार पर न्याय करे।
और अब गंवई साहब आपके लिए:-
मनुष्य के कर्मों के चिन्ह उसके व्यक्तित्व व चेहरे पर अंकित हो जाते हैं, तो गँवई साहब आपके सिरे से बोले गये झूठ, आपकी जन्मनाजातिगत कुंठा और हिंदू धर्म व प्रतीकों के प्रति विद्वेष आपके चेहरे पर इस हद तक अंकित हो चुके हैं कि आपके चेहरे से न्यायधीश की गरिमा नहीं एक टुच्चे व्यक्तित्व की घृणा छलकती है और ऐसे में एक बूढ़े व्यक्ति ने उस घृणा को लौटाया भर है और बहुत कम लौटाया है।
अंत में हिंदुओं से मैं इतना ही कहूंगा कि वे संयम रखें क्योंकि पेरियारवादी और ब्रेकिंग इंडिया फोर्सेज इसे दलितों के विरुद्ध प्रतिक्रिया के रूप में प्रचारित कर हिंदू एकता को खंडित करने का प्रयास करेंगे।
इति!
✍️ देवेन्द्र सिकरवार