Sarvesh Tiwari Shreemukh

Sarvesh Tiwari Shreemukh युगों युगों से विश्व का कल्याण हो की प्रार्थना करने वाली सभ्यता का वर्तमान हूँ मैं! मैं सर्वेश हूँ।

पाकिस्तान के साथ मैच खेलने के पीछे बीसीसीआई की क्या मजबूरी है, यह तो वहाँ बैठे लोग ही जानते होंगे। वैसे भी धंधा करने वाल...
15/09/2025

पाकिस्तान के साथ मैच खेलने के पीछे बीसीसीआई की क्या मजबूरी है, यह तो वहाँ बैठे लोग ही जानते होंगे। वैसे भी धंधा करने वाले बड़े लोग जनभावनाओं का विशेष ध्यान नहीं रखते। उनकी दृष्टि केवल और केवल धन पर टिकी होती है। वो देहाती कहावत शायद इन्ही के लिए है कि अपना काम बनता तो भांड में जाये जनता... पर कल सूर्य कुमार यादव ने अपना फर्ज बखूबी निभाया है।
खबरों में है कि सूर्य कुमार यादव ने न टॉस के समय पाकिस्तानी खिलाड़ियों से हाथ मिलाया, न ही मैच खत्म होने पर... बीच में भी खिलाड़ियों ने कभी उनको भाव नहीं दिया। बीसीसीआई के साथ अनुबंध में बंधे खिलाड़ी अपने स्तर से अधिकतम इतना ही कर सकते थे, और उन्होंने बखूबी किया। इसके लिए सूर्य को बधाई बनती है।
कल बीसीसीआई जन भावना के साथ खड़ी नहीं थी, लेकिन टीम इंडिया जन भावना के साथ खड़ी दिखी। जीत के बाद के सम्बोधन में सूर्य कुमार ने जीत भारतीय सेना को समर्पित की, मंच से पहलगाम हमले में मारे गए लोगों को श्रधांजलि दी और उस आतंकी कृत्य की भर्त्सना की। यह सुखद था, वे इस मंच का बेहतर उपयोग कर गए।
पाकिस्तान को हराना कोई बड़ी बात नहीं। क्रिकेट ही नहीं, जीवन के हर क्षेत्र में बार बार पराजित हो चुके पाकिस्तान को हरा कर अब किसी को कोई विशेष खुशी क्या ही होगी। उसे हराना वैसे ही है जैसे किसी मरे हुए जानवर को गोली मारी जाय... इतना तय है कि यह मैच खेल कर बीसीसीआई ने अपनी फजीहत ही कराई है।
मैंने आज ही कहीं पढा कि "पहलगाम में गोली चलाने वाले आतंकियों ने भी हाथ नहीं मिलाया था।" यह बात व्यंग्य में कही जा रही है। इस आक्रोश को खारिज नहीं किया जा सकता। जन भावना तो यही है कि मैच होना ही गलत था। समझ नहीं आता कि सरकारें इसकी अनदेखी क्यों कर जाती हैं...
खैर! बधाई सूर्य कुमार यादव! तुम इतना ही कर सकते थे, तुमने खूब किया...

क्या आप जानते हैं भारत मे कितने प्रकार के भूत पाए जाते हैं? नहीं जानते न? तनिक सोचिये तो, यदि आप जैसे बौद्धिक लोग इतनी म...
04/09/2025

क्या आप जानते हैं भारत मे कितने प्रकार के भूत पाए जाते हैं? नहीं जानते न? तनिक सोचिये तो, यदि आप जैसे बौद्धिक लोग इतनी महत्वपूर्ण जानकारी से वंचित हैं, तो क्या होगा इस देश का? तो आइए! जगत कल्याण के हेतु मैं आपको भारत में पाए जाने वाले विविध प्रकार के भूतों के बारे में बताता हूँ।
१- प्रेत! जब कोई साधारण व्यक्ति हत्या या आत्महत्या कर के मृत्यु को प्राप्त होता है तो वह प्रेत बन जाता है। लद्दाख से कन्याकुमारी तक भारतीय प्रेतों में एक समानता पायी जाती है कि वे शिकार को अकेले पा कर पहले बीड़ी मांगते हैं। कहीं कहीं खैनी भी मांगते हैं। ये जान नहीं लेते, बस जिसे पकड़ लें वह उलूल जुलूल हरकतें करने लगता है।
२- बैताल। प्राकृतिक दुर्घटना से अकालमृत्यु को प्राप्त हुए लोग! ये कॉमेडियन भूत हैं। पकड़ ले तो केवल उल्टे पुल्टे सवाल करते हैं। एक बार हमीं को पकड़ लिया और पूछने लगा- निन्यानवे अधिक होता है कि चालीस? वो तो हमारी बुद्धि खुल गयी और हमने कह दिया, "यह कॉन्फिडेंस पर निर्भर करता है। कॉन्फिडेंस हो तो निन्यानवे वाला भी जीत जाता है, और न हो तो 240 वाला भी फुसकी निकल जाता है" हीहीहीही करते हुए भाग गया बैतलवा...
३- पिशाच। यदि तंत्र साधना करने वाले किसी तांत्रिक की हत्या हो जाय तो वह पिशाच बन जाता है। फिर वह रक्त से नाश्ता करता है और मांस से डीनर। यह जिसे पकड़ ले उसे कोई बचा सकता। जो बचाने जाएगा वह खुद ब्रेकफास्ट बन जायेगा।
४- बरम! ये ब्राह्मण भूत हैं। यदि कोई अपराधी किसी ब्राह्मण की हत्या कर दे तो वह ब्राह्मण बरम हो जाता है। बरम जान नहीं लेते, केवल उठा उठा कर पटकते हैं। ये सुनसान इलाके में रहते हैं और किसी को अकेले पा कर उसे कूट देते हैं। इनकी शांति के लिए इन्हें पूजा दी जाती है, और पूजा हत्यारे के परिवार के लोग ही देते हैं। पूजा देने पर ये शांत रहते हैं।
५- बरम पिशाच! यदि किसी बरम की पूजा बन्द हो जाय, तब वह क्रूर बन जाता है और बरमपिशाच कहलाता है। बरम पिशाच शाकाहारी होता है, खून नहीं पीता। बस शिकार को फुटबॉल बना देता है। उठा कर पटकना कई गुना बढ़ा देता है, और घर तक पहुँच कर पटकता रहता है।
६- तउलकस! ये सबसे मासूम भूत होते हैं। अवैध सम्बन्धों के परिणाम स्वरूप जन्मा बच्चा, जिसे माँ ने प्रतिष्ठा बचाने के लिए मिट्टी के घड़े में रख कर भूमि में गाड़ दिया हो। ये केवल रोते हैं। तो यदि आपको अकेले में किसी बच्चे की रोती हुई आवाज सुनाई दे तो समझ जाइये, आपके आस पास कोई तउलकस भटक रहा है।
७- सिरकटा। इसका सर नहीं होता, केवल धड़ होता है। यह इतना भयावह होता है कि देखने से ही जान निकल जाय। स्त्री 2 फ़िल्म में आपने इसे देख लिया होगा।
८- गणजर्रा! यह वे भूत हैं जो किसी कुंठा के कारण मरे हों। किसी की प्रसिद्धि, धन या सुख शांति देख कर जल मरने वाले लोग गणजर्रा होते हैं। ये जिसपर सवार हो जाएं उसे भी कुंठा से भर देते हैं।
९- बुड़ुआ! पानी में डूब कर मरे लोग बुड़ुआ होते हैं। उस तालाब में नहाने गए लोगों को उसी तरह टांग खींच कर अंदर खींच ले जाते हैं, जैसे किसी यूनिवर्सिटी का बुड्ढा छात्र नए छात्रों को लालसलामी दलदल में खींच ले जाता है।
१०- चुड़ैल! यह स्त्री भूत है। यह बहुत बदमाश होती है। एकदम स्वरा... छत पर या खेत में अकेले सोये लोगों के पास सुन्दर रूप धर के आती है, और उनके शरीर में विष्ठा पोत कर भाग जाती है। छी रे.... इसके पाँव उल्टे होते और आंखें नहीं झपकती।
११- हठी-मर्हि! महाहठी प्रेतनी, जिसे पकड़ ले उसे अपनी इच्छानुसार नचाती रहती है। उसी व्यक्ति से अपने शत्रुओं को दंडित कराती है।
१२- पिशाचिनी! यह रक्त पीती है। देखने में अत्यंत डरावनी। जला हुआ चेहरा, बड़े बड़े दांत, जलती आंखें... बस यूं समझिये कि आपने बिना मेकप के किसी भोजपुरी हीरोइन को देख लिया है। बहुत लोग तो इन्हें देखते ही मर जाते हैं।
१३- जिन्न! ये अल्पंसख्यक भूत हैं। इनके बारे में एक फर्जी धारणा है कि ये अपने मालिक को कुछ भी उपलब्ध करा सकते हैं। वस्तुतः ऐसा होता नहीं है। इनका शरीर विशाल होता है, पर ये ताकतवर नहीं होते। आप जबतक भागियेगा, ये दौड़ाएंगे। रुक कर एक डंडा उठा लीजिये, ये नौ दो तेरह हो जाएंगे।
अब लगे हाथ आप इन भूतों का इलाज जान लीजिये। किसी भी प्रकार के भूत का एक ही इलाज है- हनुमान चालीसा। बजरंग बली का नाम सुनते ही भूतों में भगदड़ मच जाती है।
मुझे लगता है यह जानकारी पा कर आप धन्य हो गए होंगे। तो बोलिये, "जय बजरंग बली।"

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।
😊

आप इतिहास की किताबों में समूचा मध्यकाल भले खिलजी, सैयद, लोदी या मुगल नाम से पढ़ लें, पर समूचे मध्यकाल में आपको एक भी बाहर...
18/08/2025

आप इतिहास की किताबों में समूचा मध्यकाल भले खिलजी, सैयद, लोदी या मुगल नाम से पढ़ लें, पर समूचे मध्यकाल में आपको एक भी बाहरी योद्धा ऐसा नहीं मिलेगा जिसने अपने जीवन मे दस बड़ी लड़ाइयां लड़ी हों। यहाँ तक कि गजनवी जैसे लुटेरे भी योद्धा कहे जाते हैं जो चोरों की तरह घुसते और तेजी से लूट पाट कर हवा की तरह गायब हो जाते थे।
इस पूरे कालखंड के बीच में बस एक नाम स्वर्ण की तरह चमकता है, जिसकी तलवार बार बार विजय का इतिहास रचती रही। जिसका नाम स्वयं में जीत का पर्याय हो गया, जो उत्तर से दक्षिण तक अपने शौर्य का ध्वज लहराते हुए दिग्विजय करता रहा है। वो बीस साल तक लड़ता रहा, जीतता रहा। तबतक, जबतक कि अंतिम विश्राम का समय न आ गया। मध्यकाल का सर्वश्रेष्ठ योद्धा पेशवा बाजीराव बल्लाळ!
उस योद्धा को मुगल वंश का अंत करने का श्रेय मिलना चाहिए था, क्योंकि वही था जिसके कारण औरंगजेब का विशाल राज्य एक दिन चांदनी चौक से पालम तक सिमट कर रह गया। वही था जिसने दक्षिण में विधर्मी सत्ता के तेवर का ठंढा किया। वही था जिसने आज के लगभग समूचे भारत को एक भगवा ध्वज के नीचे ला खड़ा किया। पर इतिहास की किताबें उसके साथ न्याय नहीं करतीं। स्वतंत्र भारत के प्रारंभिक दशकों में जैसे लोगों को शिक्षा मंत्री बनाया गया, उस हिसाब से हम न्याय की उम्मीद कर भी नहीं सकते।
पेशवा की मस्तानी बाई से प्रेम कहानी की चर्चा सुनता हूँ तो लगता है, "बीस वर्ष में चालीस बड़ी लड़ाइयां लड़ने और जीतने वाले योद्धा को प्रेम के लिए क्या ही समय मिला होगा। पर साहित्य और सिनेमा जगत के धुरंधर जो न लिख दें, दिखा दें..."
मराठा साम्राज्य का प्रधानमंत्री रहते हुए बीस वर्षों तक जिस योद्धा ने साम्राज्य की सीमाओं को बढ़ाने में अपना दिन रात एक कर दिया, उस योद्धा को उचित सम्मान मिलना ही चाहिये। और यह सत्ता से अधिक समाज का कार्य है। यह उस महान योद्धा का अधिकार है कि यह देश कहावतों में कहे- जो जीता, वो बाजीराव!
18 अगस्त सन 1700, आज ही के दिन सवा तीन सौ साल पहले उस महान योद्धा का जन्म हुआ था।

पर आपको आज का दिन याद रहना चाहिये। और याद रहना चाहिये, "जो जीता वही बाजीराव..."

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।

श्रीमल्लिकार्जुन! एक ऐसा तीर्थ जहाँ मल्लिका अर्थात माता पार्वती और अर्जुन अर्थात भगवान भोलेनाथ दोनों सङ्ग ही विराजते हैं...
04/08/2025

श्रीमल्लिकार्जुन! एक ऐसा तीर्थ जहाँ मल्लिका अर्थात माता पार्वती और अर्जुन अर्थात भगवान भोलेनाथ दोनों सङ्ग ही विराजते हैं। यह एक ऐसा तीर्थ है जहाँ भगवान भोलेनाथ किसी भक्त को दर्शन देने नहीं गए थे, बल्कि अपने रूठे पुत्र को मनाने एक सामान्य पिता की तरह गए थे। भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती वहाँ बिल्कुल माता-पिता के भाव के साथ ही विराजते हैं। इस कारण वहाँ का महात्म्य और बढ़ जाता है क्योंकि संतान के लिए माता-पिता को मना लेना ईश्वर को मनाने से ज्यादा सहज और आसान है।
आंध्रप्रदेश के श्रीशैल् पर्वत पर अवस्थित मल्लिकार्जुन भगवान शिव का दूसरा ज्योतिर्लिंग है। यहाँ की कथा यह है कि माता-पिता से रूष्ट हो कर भगवान कार्तिकेय कैलाश त्याग कर इस स्थान पर रहने लगे थे। तब पुत्र को मनाने के लिए भगवान भोलेनाथ वहाँ गए, और लोककल्याण के हेतु लिंग स्वरूप में विराजमान हुए।
कुमार रुष्ट क्यों हुए थे? तो कथा वही है कि "पहले किसका विवाह हो" के विषय पर छिड़े द्वंद में पिता ने कहा कि जो पहले समस्त संसार की परिक्रमा कर के आएगा उसी का पहले विवाह कर देंगे। भगवान गणेश ने बुद्धि लगाई और संसार की परिक्रमा करने के स्थान पर माता-पिता की ही परिक्रमा कर विजेता हो गए। उधर भगवान कार्तिकेय जब परिक्रमा कर के लौटे तो देखा, अनुज का विवाह हो चुका है। वे रुष्ट हो गए...
अब बेटा रुष्ट हो जाय तो उसके लिए माता-पिता क्या नहीं कर देते? अपने बेटे को मनाने पहुँचे मल्लिकार्जुन अपने हर भक्त को उसी दृष्टि से देखते हैं, उसकी पीड़ा को उसी भाव से हरते हैं।
इस कथा में जीवन के दो महत्वपूर्ण सूत्र हैं। पहला यह कि ईश्वर भी मानते हैं कि माता-पिता का स्थान समस्त संसार से ऊपर होता है। यदि वे प्रसन्न नहीं हैं तो समझिये आपके ईश्वर भी आप पर प्रसन्न नहीं हैं।
दूसरा यह! कि माता-पिता का प्रेम उस संतान पर अधिक होता है जो किसी भी क्षेत्र में पीछे छूट गया हो। और जब भगवान शिव और माता पार्वती तक ऐसा मानते हैं, तो सामान्य जन को भी अपने कम सफल बेटे के साथ अधिक स्नेह का भाव रखना चाहिये। मनुष्य को सबसे अधिक ऊर्जा माता-पिता के स्नेहपूर्ण व्यवहार से ही मिलती है।
विकिपीडिया बता रही है कि सातवाहन राजाओं के समय का एक अभिलेख है मन्दिर में, जिसके आधार पर कहा जाता है कि यह मंदिर ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में भी अवस्थित था। यह प्रमाण तो उनके लिए है जो साक्ष्य मांगते फिरते हैं, हमारा प्रमाण हमारे पुराण हैं जो कहते हैं कि महादेव वहाँ सतयुग से हैं।
दक्षिण के मंदिरों पर आक्रांताओं के प्रहार तनिक कम हुए हैं, इसी कारण वहां सौंदर्य बचा हुआ है। मल्लिकार्जुन परिसर में असँख्य प्राचीन मूर्तियां, शिवलिंग और सुंदर कलाकारी वाले मन्दिर हैं जिनका एक एक स्तम्भ आप घण्टों निहार सकते हैं। आप अपने पूर्वजों की स्थापत्य कला और मूर्तिकला देख कर निहाल हो सकते हैं।
घने वन में विराजते हैं मल्लिकार्जुन महादेव! रास्ते में 27 किलोमीटर आपको बाघों के लिए रिजर्व क्षेत्र के बीच से गुजरना होता है। मतलब भोले बाबा के सारे गण उपस्थित हैं उस क्षेत्र में। अन्य तीर्थस्थलों की अपेक्षा शान्ति है वहाँ...
तो जब भी संभावना बने, घूम आइये जगतपिता की देहरी से... वे सदैव आपके साथ हैं।

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।

पिछले दिनों भारत सरकार ने 43 ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर रोक लगाई। ये वे प्लेटफॉर्म्स थे जिनपर अधिक अश्लील वीडियो डाले जाते थे...
03/08/2025

पिछले दिनों भारत सरकार ने 43 ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर रोक लगाई। ये वे प्लेटफॉर्म्स थे जिनपर अधिक अश्लील वीडियो डाले जाते थे। इनमें ऑल्ट, उल्लू, देशी फ्लिक्स आदि प्लेटफार्म शामिल हैं। इसमें ऑल्ट का नाम लेना इसलिए जरूरी हो जाता है क्योंकि इस प्लेटफॉर्म को एकता कपूर ने शुरू किया था।
हालांकि ऐसा नहीं है कि इन प्लेटफॉर्म्स के बन्द हो जाने से अश्लील सामग्री आनी बन्द हो जाएगी। अन्य ओटीटी प्लेटफार्म भी अश्लीलता के बल पर ही चल रहे हैं। ओटीटी आया ही इसीलिए कि यहाँ सेंसर के दबाव से बच कर आसानी से अश्लील सामग्री बेची और धन कमाया जा सकता है।
फिल्म इंडस्ट्री बहुत पहले यह बात समझ गयी थी कि इस देश में अश्लील सामग्री दिखा कर सफल होना सबसे आसान है। और इसीलिए सिनेमा में ऐसा प्रयास बहुत पहले से होता आ रहा है। और उस इंडस्ट्री की सफलता यह है कि आज से चालीस साल पहले जिन दृश्यों को बहुत अश्लील माना जाता था, वह आज सहज और सुन्दर माना जा रहा है। जो कल अश्लील था वह आज सहज है, जो आज अश्लील है उसे कल के लिए सहज बनाने के प्रयास चल रहे हैं। फिलहाल ओटीटी इस प्रयास का प्रमुख माध्यम है।
अश्लील इंडस्ट्री का बाजार इतना विशाल और प्रभावशाली है कि कई बार सरकार उसके आगे परास्त हो जाती है। 2014 में सत्ता में आने के बाद भाजपा सरकार ने जब ऑनलाइन पोर्न साइट्स पर रोक लगाने का प्रयास किया तो सारे वामपंथी संगठन विरोध में उतर गए और सिद्ध करने में लग गए कि पोर्न देखना आम जनता का अधिकार है। नैतिकता और सामाजिक दुष्प्रभावों की अनदेखी करते हुए उन्होंने इतना हल्ला मचाया कि सरकार को पीछे हटना पड़ा था। यह पोर्न इंडस्ट्री की विशालता और अकूत धन की शक्ति थी। और इसका असर यह हुआ कि तबतक भले वैसी फिल्में विदेशों में बनती थीं और उसमें विदेशी देहधन्धी लोग काम करते थे, आज वैसी फिल्में भारत में भी बनती हैं और उसमें भारत के लड़के लड़कियां काम कर रहे हैं। यह कहना बहुत गलत नहीं होगा कि एक बहुत बड़े वर्ग ने देह व्यवसाय को भी रोजगार के साधन के रूप में स्वीकार कर लिया है। और इसे स्वीकृति दिलाने में तथाकथित बुद्धिजीवियों, लेखकों, कलाकारों का बहुत बड़ा योगदान है। वे लगातार इसे अधिकार बता कर इसके पक्ष में माहौल बनाते रहे हैं।
पहले पोर्न इंडस्ट्री की सफलता और फिर ओटीटी पर अश्लील फिल्मों की सफलता ने समाज पर कितना बड़ा असर छोड़ा है, इसे देखना हो तो इंस्टाग्राम के रील और यूट्यूब के शॉट्स देखे जा सकते हैं। वहाँ एक दो नहीं, हजारों लाखों लड़के लड़कियां अश्लील रील बना कर प्रसिद्ध हो रहे हैं। चर्चित होने का सबसे आसान माध्यम अश्लील रील बनाना ही हो गया है और लोग इसके पीछे टूट पड़े हैं। देश का कोई हिस्सा इससे अछूता नहीं, सुदूर देहात तक यह नशा पसर गया है।
इस बीमारी को रोका नहीं गया तो इसके बड़े दुष्प्रभाव होंगे। यह तो तय है कि भारत जैसे देश में यह लम्बे समय तक टिकने वाली चीज नहीं है। लेकिन समाज जब किसी अति को नकार कर प्रतिरोध करता है तो उसकी प्रतिक्रिया में भी अतिवादी हो जाता है। भविष्य में उस सम्भावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता।
मुझे लगता है कि केवल कुछ ओटीटी प्लेटफार्म को बन्द करने से बेहतर होता कि इन सब को एक मजबूत सेंसरशिप के अधीन लाया जाता और उसके पालन के नियम कठोर किये जाते। यह अत्यंत आवश्यक हो चला है।

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।

महाकाल! काल अर्थात समय, और मृत्यु भी। जो इन दोनों पर भारी हों, जो इन दोनों को जीत चुके हों, वे हैं महाकाल।   तनिक सोचिये...
01/08/2025

महाकाल! काल अर्थात समय, और मृत्यु भी। जो इन दोनों पर भारी हों, जो इन दोनों को जीत चुके हों, वे हैं महाकाल।
तनिक सोचिये! वे समय को कैसे जीतते हैं? पौराणिक कथाएं कहती हैं, जब सृष्टि नहीं थी, कुछ नहीं था, तब एक सकारात्मक शक्तिपुंज यूँ ही ब्रह्मांड में घूम रहा था। उसी शक्तिपुंज से ब्रह्मा विष्णु और महेश और फिर उनके माध्यम से सृष्टि बनी। वह शक्तिपुंज ही सदाशिव हैं। सकारात्मक शक्तिपुंज अर्थात ब्रह्मांड की पॉजिटिव एनर्जी... जब धरती, सूर्य, चन्द्र, ब्रह्मांड कुछ भी नहीं था, तब भी यह एनर्जी थी, और जब ये सब समाप्त हो जाएंगे तब भी वह एनर्जी रहेगी। वह काल से परे है। वे ही सदाशिव हैं, महाकाल हैं।
और वे मृत्यु को कैसे जीतते हैं? तो वे स्वयं संहार के देवता हैं। जिन्होंने अपने कंठ में ही सृष्टि का समूचा हलाहल धारण किया है, उन्हें मृत्यु कैसे आएगी? जो काल अर्थात समय से परे हैं, वे काल अर्थात मृत्यु से भी परे ही हैं।
तो भगवान शिव के तीसरे ज्योतिर्लिंग अर्थात महाकालेश्वर के रूप में उज्जयनी में इन्ही सदाशिव को पूजते हैं हम-आप! वैसे मानवीय सृष्टि के बाद का यह पहला ज्योतिर्लिंग हैं। पहले ज्योतिर्लिंग भगवान सोमनाथ की कथा मानवीय सृष्टि प्रारम्भ होने के पूर्व चन्द्रमा और उनकी पत्नियों से जुड़ती है, और दूसरे ज्योतिर्लिंग भगवान मल्लिकार्जुन की कथा भगवान शिव के अपने परिवार से। महाकाल की कथा उज्जयनी के एक प्राचीन राजा से जुड़ती है, अर्थात मनुष्य से... जो द्वादश ज्योतिर्लिंगों का क्रम है न, वह बिल्कुल टाइम पीरियड के आधार पर है।
आपको शायद पता हो कि सन 1234 में गुलाम इल्तुतमिश ने महाकाल मंदिर को तोड़ दिया था। तब से सन 1728 ई तक मालवा पर हिंदुओं का शासन ही नहीं रहा, सो पुनर्निर्माण की कोई संभावना ही नहीं थी। पर इन 500 वर्षों में पूजा कभी बन्द नहीं हुई। अत्याचार होता रहा, कत्लेआम होता रहा, पर भक्तों की आस्था नहीं टूटी। पाँच सौ वर्षों तक लोग ध्वस्त मन्दिर में ही जल चढ़ाते रहे, देव की अर्चना करते रहे...
मैं सदैव कहता हूँ, सभ्यता का संघर्ष दस-बीस वर्षों का नहीं होता। वह हजारों वर्षों तक चलता है। सभ्य समाज को लंबे समय तक धैर्य धारण कर अपने कर्तव्य में लगे रहना पड़ता है, तब जा कर दिन लौटते हैं।
फिर एक दिन! मालवा पर मराठों का अधिकार हुआ। बंगाल विजय को निकले राणोजी सिंधिया उज्जयनी में रुके और देखा उस भग्न मन्दिर को। उसी क्षण अपने समस्त अधिकारियों और उज्जयनी के ब्यापारियों को बुलाया और पूछा- इतिहास बदलना है?
किसी ने कोई उत्तर नहीं दिया। पर कुछ महीनों बाद जब राणोजी सिंधिया बंगाल जीत कर लौटे तो महाकाल का भव्य मंदिर खड़ा था। यह इतिहास है।
मर चुकी समस्त परम्पराओं का पुनर्जन्म हुआ! महाकाल की सवारी निकलने लगी। उज्जयनी का वैभव लौट आया।
बाकी क्या बताना! महाकाल मंदिर तो भारत का सबसे अधिक भीड़भाड़ वाले तीर्थों में से एक है, सब तो आप जानते ही हैं। तो जब सम्भव हो, घूम आइये। देख आइये कि दिन 500 वर्षों बाद भी लौटते हैं तो कैसे लौटते हैं।

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।

वैद्यनाथ!   संसार में अनेक देशों की जनसंख्या भी उतनी नहीं है, जितने लोग भगवा धारण कर के सावन के महीने में बाबा बैजनाथ के...
28/07/2025

वैद्यनाथ!

संसार में अनेक देशों की जनसंख्या भी उतनी नहीं है, जितने लोग भगवा धारण कर के सावन के महीने में बाबा बैजनाथ के शिवलिंग पर जल चढ़ाने पहुँच जाते हैं।
बाबा बैजनाथ की कथा कौन नहीं जानता! औघड़दानी भगवान शिव केवल मनुष्यों के ही देवता नहीं हैं, वे संसार के समस्त चर-अचर के मालिक हैं, उनपर कृपा बरसाते हैं। वे देवताओं को मिल जाते हैं और दैत्यों को भी! यही कारण है कि बुराई के प्रतीक लंकेश रावण पर भी उनकी कृपा दृष्टि थी। रावण की तपस्या से प्रसन्न भगवान शिव ने उसे अपना ज्योतिर्लिंग तो दिया, पर यह भी कहा कि इसे जहां भी भूमि पर रख दिया जाएगा, वहीं स्थापित हो जाएगा।
संध्या के समय जब विप्र रावण संध्या वंदन के लिए रुका तो उसने ऐसे किसी व्यक्ति को ढूंढा जो संध्या पूजन करने भर तक शिवलिंग को थाम ले। लोक में मान्यता है कि बैजू नाम के ग्वाले ने कुछ देर तक शिवलिंग को थामा, पर रावण को देर होते और सांझ गहराती देख कर उसने शिवलिंग वहीं रख दिया और गायों को हांकने चला गया। कहीं कहीं यह कार्य भगवान विष्णु और कहीं कहीं भगवान गणेश द्वारा किया गया बताया जाता है।
लोक प्राचीन कथाओं को अनेक रूपों में याद रखता है। इस कथा के भी अनेक रूप हैं। हां, यह बात सभी मानते हैं कि इस स्थान का नाम वैजनाथ धाम उसी बैजू ग्वाले के नाम पर है।
इस कथा को सुन कर आपको लगेगा कि यहाँ तो रावण के साथ छल हो गया। तो सुनिये! छल भी एक सामान्य व्यवहार ही है, और यदि संसार के हित के लिए किसी व्यक्ति विशेष से छल करना भी पड़े तो संकोच नहीं करना चाहिये। धर्म की बागडोर अधर्मी व्यक्ति के हाथ में जाय तो समूची सभ्यता को कष्ट भोगना पड़ता है। संसार को रावण से अत्याचारों से मुक्त करने के लिए यह छल आवश्यक था।
बैजनाथ धाम के शिवलिंग को कामना लिंग कहते हैं। रावण ने भोलेनाथ से मांगा था कि अपना ऐसा विग्रह दीजिये जो मेरी हर मनोकामना पूरी कर दे। देवघर में स्थापित भोलेनाथ अपने भक्तों की हर कामना पूरी करते हैं।
देवघर में केवल बाबा ही नहीं हैं, मइया भी हैं। माँ शक्ति का पवित्र शक्तिपीठ भी है यहाँ। यहाँ माता सती का हृदय गिरा था। माता का मृत शरीर छिन्न-भिन्न हुआ तब भी हृदय वहीं गिरा जहाँ पति विराजमान थे। उतना प्रेम संसार में कहाँ होगा...
देवघर चिताभूमि भी कहलाता है, क्योंकि यहीं माता के हृदय का दाह-संस्कार किया गया था। और फिर उसी चिताभष्म को अपने शरीर में लगा कर बाबा युगों तक संसार से कटे वैरागी हो गए थे। यही कारण है कि यहाँ प्रसाद में भी चिता भष्म दी जाती है।
यहाँ माता के मंदिर और बाबा के मंदिर के शिखरों में बीच लाल कपड़े का रिबन बांधा जाता है। यह गठबंधन है, संसार के सबसे पूज्य युगल का गठबंधन। नए विवाहित जोड़े भी बंधवाते है यह गांठ, इस प्रार्थना के साथ कि उनके मध्य भी शिव-पार्वती सा प्रेम बना रहे। उनकी कृपा हो तो कुछ भी असम्भव नहीं।
सुल्तानगंज में, जहां से जल उठाया जाता है, वहाँ गंगा उत्तर की ओर बहती हैं। सम्भवतः दो ही स्थान ऐसे हैं जहाँ गंगा उत्तरवाहिनी है। एक काशी और दूसरा सुल्तानगंज।
देवघर की यात्रा में असँख्य तीर्थों की श्रृंखला है। अजगैबीनाथ, बासुकीनाथ... हर ओर बाबा की कृपा पसरी हुई है।
बाबा की कृपा आप सब पर भी बरसे। हर हर महादेव...

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।

मुगलिया सन्तनत में सबसे अधिक समय तक राज करने वाले बादशाहों में अकबर (50 वर्ष), औरँगजेब (49 वर्ष) के बाद शाह आलम (द्वितीय...
27/07/2025

मुगलिया सन्तनत में सबसे अधिक समय तक राज करने वाले बादशाहों में अकबर (50 वर्ष), औरँगजेब (49 वर्ष) के बाद शाह आलम (द्वितीय) का नाम आता है जिसने 1760 से 1806 तक लगभग 47 साल राज किया। शाह आलम अंतिम बादशाद बहादुर शाह जफर का दादा था।

इतने लंबे समय तक राज करने वाले बादशाह के बारे में हम इतना कम इसलिए जानते हैं क्योंकि इसकी बादशाहत आज के दिल्ली क्षेत्र (पालम तक) से ज्यादा नहीं थी। देश पर अंग्रेज कब्जा कर चुके थे।

[बहादुर शाह जफर की सल्तनत लाल किले तक सीमित थी]

मुगलों के पतन की यह इंतिहा थी कि एक लुटेरे गुलाम कादिर ने 1788 में दिल्ली पर हमला कर उसे लूट लिया था। न केवल लूटा, बल्कि बादशाह शाह आलम को अपने हाथों अंधा बनाया। यह भी कम था, उसने तो बादशाह् के बेटे, होने वाले बादशाह् और बहादुर शाह जफर के अब्बा अकबर शाह द्वितीय (शासनकाल 1806-1837) को अपने सामने घुंघरू पहनाकर नचवाया। गद्दी की कितनी कीमत थी यह इसी से पता चलता है कि गुलाम कादिर ने उस अंधे बादशाह को सल्तनत चलाने के लिए जिंदा छोड़ दिया। लूटने आया था, लूट कर चला गया।

इस लूट में बादशाह का दुर्लभ पुस्तकालय भी था। भारत के पहले गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स (1773 - 1785) का सिफारिशी खत लेकर विलियम पामर बादशाह के पास एक खास किताब की नकल लेने गया था। बादशाह ने रंज और गुस्से में बताया कि दुष्ट गुलाम कादिर ने उनकी बहुतेरी किताबों को लूटकर लखनऊ (अवध) के नवाब को बेच दिया। उन किताबों के साथ वह किताब भी थी जो विलियम को चाहिए थी, उस किताब के जाने का रंज सबसे ज्यादा था।

जिसके पास किताब थी, जिसने लूटा, जिसने खरीदा और जो उस किताब की नकल बनाना चाहता था, वे सब गैर-हिन्दू थे।

यह वही किताब थी जिसे आम हिन्दू अपने घर में रखना तक नहीं चाहता।

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अजीत
19 नवम्बर 18

मिस्र के फराओ मन्दिर एक बार टूटे, फिर कभी न बन सके और मिस्र समाप्त हो गया। फारस के अग्नि मन्दिर एक बार टूटे फिर वहाँ कभी...
17/07/2025

मिस्र के फराओ मन्दिर एक बार टूटे, फिर कभी न बन सके और मिस्र समाप्त हो गया। फारस के अग्नि मन्दिर एक बार टूटे फिर वहाँ कभी अग्नि की आराधना नहीं हुई। फारस समाप्त हो गया। यूनान में एक बार उनके देवताओं को शैतान बता कर उनके मंदिरों को ध्वस्त किया गया, उसके बाद फिर कभी ग्रीस खड़ा नहीं हुआ। अब कोई ज्यूस या अपोलो को नहीं पूजता... ओलंपिक पर्वत पर अवस्थित उनके द्वादश देवों का कोई नामलेवा नहीं...
प्राचीन रोमन धर्म के मंदिर एक बार खंडित हुए, फिर कभी न बन सके। रोम समाप्त हो गया, ज्यूपिटर के अनुयायी समाप्त हो गए। मेसोपोटामिया की सभ्यता पर एक बार सिकन्दर का आक्रमण हुआ और एक झटके में वह सभ्यता समाप्त हो गयी। उनके देवताओं का अब किसी को नाम तक ज्ञात नहीं...
अब आप यूनानी सभ्यता के बारह देवों (द्वादश देव) की समानता भारत में ढूंढ पा रहे हों तो आइए काशी चलते हैं। संसार की समस्त सभ्यताओं पर हुए सारे बर्बर आक्रमणों को एक में मिला दें, तब भी उनसे अधिक आक्रमण महादेव की काशी पर हुए हैं। पर इस सावन में निहारिये काशी को! भारत के उस सबसे प्राचीन नगर के वैभव को, और महादेव का जलाभिषेक करने के लिए जुटती भक्तों की विशाल भीड़ को... हर्षातिरेक से फहरा उठे आपके रोम रोम चिल्लायेंगे- हर हर महादेव! संसार के सारे असभ्य मिल कर भी सभ्यता का नाश नहीं कर पाते! धर्म कभी भी समाप्त नहीं होता। हम कभी भी समाप्त नहीं हो सकते...
सभ्यता धर्मकाज के लिए कब किसका चयन करेगी, यह कोई नहीं जानता। काशी कैसे अपने भक्तों को बुला कर उनके पाप धोती है, इसका अद्भुत उदाहरण देखिये। जब मोहम्मद गोरी और ऐबक ने काशी का विध्वंस किया, तब जानते हैं वहाँ के मंदिरों और घाटों का पुनर्निमाण किसने कराया? कन्नौज नरेश जयचंद के पुत्र राजा हरिश्चंद्र ने! और वह भी तब जब चन्दावर के युद्ध मे वे गोरी की सेना से पराजित हो गए थे। और सिकन्दर लोदी के समय हुए ध्वंस को ठीक कराया अकबर के दरबार में रहने वाले राजा मानसिंह और राजा टोडरमल ने... राजनैतिक कारणों से लोग भले हजार टुकड़ों में टूट जांय, महादेव की शरण मे आकर सभी एक हो जाते हैं। क्या ब्राह्मण, क्या ठाकुर, क्या यादव, क्या गुर्जर, क्या वैश्य... क्या भाजपा, क्या कांग्रेस क्या सपा क्या राजद... राजनीति तोड़ती है, पर धर्म जोड़ता है...
काशी विश्वनाथ मंदिर को औरंगजेब ने तुड़वाया तो एक दीवाल छोड़ दी उसने। यह इसलिये, कि काशी आने वाले लोग देख लें कि हम उनके देवस्थलों का स्वरूप जब चाहें तब बदल सकते हैं, और वे कुछ नहीं कर सकते। सुन कर बुरा लगा न? पर ऐसी बुराई का उत्तर सभ्यता कैसे देती है, यह देखिये। उस घटना के लगभग सौ वर्ष बाद जब राजमाता अहिल्याबाई होलकर जी ने मन्दिर का निर्माण किया तो उसके कुछ दिनों बाद ही महाराजा रणजीत सिंह जी ने मन्दिर के दोनों शिखरों को सोने से मढ़वा दिया। दिल्ली में बैठे मुगलों के आंखों के सामने मन्दिर पर बाईस मन सोना चढ़ा कर कहा, कि देख! लुटेरों की सेंधमारी से सभ्यता का वैभव समाप्त नहीं होता। तोड़ने वाले समाप्त हो जाते हैं, रचने वाले समाप्त नहीं होते...
महादेव की काशी जाइये तो संसार की उस प्राचीनतम नगरी को इस भाव से भी देखिये कि शिव के त्रिशूल पर बसी यह कभी समाप्त न होने वाली नगरी है। विध्वंस से सभ्यता समाप्त नहीं होती, धर्म कभी समाप्त नहीं होता। महादेव अपने भक्तों को कभी अकेला नहीं छोड़ते।


सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।

युद्ध और खेल में कितना अंतर होता है न? आप किसी खेल समीक्षक से पूछिये, वह जडेजा की साहसी पारी की बड़ाई करने के बाद भी यही ...
15/07/2025

युद्ध और खेल में कितना अंतर होता है न? आप किसी खेल समीक्षक से पूछिये, वह जडेजा की साहसी पारी की बड़ाई करने के बाद भी यही कहेगा कि अंततः हम हार ही गए। काश यशश्वी या गिल चले होते... नायर और रेड्डी कमजोर निकल गए... काश बुमराह थोड़ा और टिके होते... दर्जनों 'काश' जडेजा के संघर्ष का सत्यानाश कर रहे हैं। ठीक भी है, रिकार्ड में टीम इंडिया की हार ही दर्ज होगी। रेटिंग में भारत को नुकसान ही होगा...
युद्ध इसके लगभग विपरीत होता है। युद्ध में जीत हार से अधिक लड़ते रहने का जुनून महत्वपूर्ण होता है। भारतीय इतिहास में ऐसी एक दो नहीं, सैकड़ों लड़ाइयां हैं जहां भारतीय शक्तियां युद्ध हार गईं। पर क्या उन पराजयों के बाद वे समाप्त हो गए? नहीं! वे बार बार उठ खड़े होते, वे हजार बार उठ खड़े हुए। सामने पराजय देख कर भी लड़ाई नहीं छोड़ते, पैर पीछे नहीं खींचते। उन्होंने हार जीत को नहीं, लड़ते रहने को महत्वपूर्ण माना। उनमें संघर्ष करते रहने का साहस था, जुनून था। जभी हजार पराजयों के बाद भी वे हैं और सदैव बने रहेंगे।
ऐसा केवल भारत में ही नहीं है, हर वह देश जो लड़ता रहा है वह बचा हुआ है। यहूदी लड़ने लगे तो दुबारा खड़े हो गए, पारसियों ने एक पराजय के बाद लड़ना छोड़ दिया तो ईरान छूट गया। मिस्र नहीं लड़ सका तो समाप्त हो गया, चीन लड़ता रहा तो बच गया।
शहाबुद्दीन गोरी भारत में प्रवेश के लिए दर्जनों प्रयासों में असफल रहा था। हर बार रास्ता बदलता, हर बार मार खाता। फिर एक मौका मिला और... इसके उलट भी देखिये, आठवीं सदी से ही पश्चिम के बर्बर लुटेरे लगातार आक्रमण करते रहे पश्चिमोत्तर सीमांत पर... इधर वाले लगातार लड़ते रहे। राजपूत, जाट, गुर्जर... दस साल, बीस साल, पचास, सौ पाँच सौ साल... लड़ते रहे तो बने रहे... इस लम्बे कालखण्ड में हार जीत की कोई गिनती नहीं है। इतिहास को याद है केवल संघर्ष... वर्तमान भारत के ध्वज का ऊपरी रङ्ग उसी संघर्ष का तो है...
सभ्यताएं संघर्ष से जीवित रहती हैं। हार जीत तो मात्र तात्कालिक लाभ हानि का हिसाब भर है।
कल जडेजा की पारी भारतीय इतिहास के संघर्षों की याद दिला रही थी। खेल में ही सही, किसी को लड़ते देखना अच्छा लगता है। खेल में बने रहने के लिए संघर्ष करते देख कर अच्छा लगता है। ऐसी परियां याद रह जाती हैं और जीवन के अनेक क्षेत्रों में उत्साहवर्धन करती हैं। वरना टीम इंडिया साल में तीस बार जीतती है और बीस बार हारती है। कौन सा मैच याद रहता है भाई!

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।

सावन!      बाबा का महीना है यह! सावन सुनते ही सबसे पहले भोले बाबा याद आते हैं। आज से हजार साल पहले भी पुरखों को सावन में...
11/07/2025

सावन!
बाबा का महीना है यह! सावन सुनते ही सबसे पहले भोले बाबा याद आते हैं। आज से हजार साल पहले भी पुरखों को सावन में बाबा ही याद आते थे, आज से हजार साल बाद भी सावन में बच्चों को बाबा ही याद आएंगे। बाकी सबकुछ बदल जाता है, सबकुछ बदल जायेगा, बस सावन का भोले बाबा से सम्बंध नहीं बदलेगा... जब जब सावन आएगा, यह धरती हर हर बम बम चिल्लाने लगेगी...
अभी दस बीस साल पहले तक सावन में रिमझिम फुहारें पड़ती थीं। एक दिन शुरू हो जाय तो दस पन्द्रह दिन बरसती थीं बूंदे... खेत तो छोड़िये, पक्के मकानों की दीवारें भी सलसला जाती थीं। चारो ओर पसरी हुई हरियाली और भीगा हुआ मन! आदमी का कलेजा तर हो जाता था साहब... "तेरी दो टकिये की नौकरी में मेरा लाखों का सावन जाए..." जैसे गीत यूँ ही तो नहीं लोक में बस गए थे। और अब? बदल गया न? कितने लोगों के लिए सावन लाखों का है? समूचा आसाढ़ बीत गया, पर सड़कों पर धूल उड़ रही है। पिछले पंद्रह बीस वर्षों में जन्मी पीढ़ी ने न सावन की रिमझिम बारिश देखी है, न ही प्रेमी जोड़े महसूस कर पाते होंगे प्रकृति के उस सजावट को, जब सावन लाखों का लगने लगता है। कितना कुछ बदल गया न?
पिछली पीढ़ी की लड़कियों महिलाओं के लिए सावन झूले का महीना भी होता था। सावन चढ़ते ही बगीचों के ऊँचे ऊँचे पेड़ों पर झूले टांग दिए जाते, और हप्ता बीतते बीतते प्रवासी पक्षियों के जैसे उतर आतीं गाँव भर की समूची ब्याहता बेटियां... उसके बाद आम, जामुन, झूला, कजरी... कुछ बचा है क्या? कब किसी को कजरी के चार बोल तक याद नहीं। साढ़े तीन हजार महीने की तनख्वाह पर किसी प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने या मॉल में कपड़ा सहेजने के काम को जॉब मानने वाले जमाने में झूला और कजरी की फुर्सत किसे है भाई? अब प्रवासी चिड़िया नहीं उतरती सावन में... छुट्टी ही नहीं मिलती...
हाँ, कुछ बचा है तो बाबाधाम जा कर जल चढ़ाने का हुलास बचा है। कांवर उठा कर सौ सवा सौ किलोमीटर दौड़ जाने का साहस बचा हुआ है। बोलबम के नारे बचे हैं, कांवरियों के गीत बचे हैं, और बची है श्रद्धा! वह कभी समाप्त नहीं होगी। इस देश के कंकण कंकण में शंकर हैं न! सावन बाबा का महीना था, है और हमेशा रहेगा...
आज से सावन चढ़ गया। जितना सम्भव हो, निभा लीजिये। एक लोटा जल से ही प्रसन्न हो जाने वाले देव को भी प्रसन्न न कर सके तो क्या ही किया? सनातन परिवार के सबसे बूढ़े देव तो यूँ ही आशीर्वाद बरसाते रहते हैं अपने बच्चों पर... इतना सहज, इतना सुन्दर संसार में और कुछ नहीं।
जय हो 🙏


सर्वेश कुमार तिवारी
गोपालगंज, बिहार।

कल नए पोप श्री लियो 14th का शपथग्रहण हो गया। एंड ऐज यू नो, आई एम बिग फैन ऑफ पोप। आई लाइक एंड रेस्पेक्ट वेरी मच!    नए पो...
20/05/2025

कल नए पोप श्री लियो 14th का शपथग्रहण हो गया। एंड ऐज यू नो, आई एम बिग फैन ऑफ पोप। आई लाइक एंड रेस्पेक्ट वेरी मच!
नए पोप रॉबर्ट फ्रांसिस प्रिवेस्ट उनहत्तर वर्ष के हैं। पोप बनने के बाद वे लियो चौदहवें के नाम से जाने जाएंगे। बताया जा रहा है कि ये उस गद्दी के 267वें पोंप हैं। कल उनका शपथ ग्रहण समारोह हुआ, जहां उन्हें अंगूठी पहनाई गयी। उसके बाद उन्होंने रिलिजियस वाइन पी।
इस कार्यक्रम में वैसे तो दुनिया भर से राजा-महाराजा, बड़े नेता, पादड़ी, विशप आदि गए थे, जिसमें इटली की प्रधानमंत्री और हम भारतीयों की प्रिय सुश्री मैलोनी जी भी थीं। बताते चलें कि इस कार्यक्रम में भारत सरकार ने भी एक प्रतिनिधिमंडल भेजा था, जिसकी अध्यक्षता राज्यसभा के उपसभापति श्री हरिवंस जी कर रहे थे। पोंप जी ने सबको आशीर्वाद दिया और अपने भाषण के अंत मे कहा- इट्स टाइम टू लव...
विदेशी मामलों के जानकार मान जी भाई की पोस्ट से पता चला कि पोप साहब को कुछ विशेष सुविधाएं प्राप्त हैं। जैसे-

- पोप के रहने खाने और पीने का तमाम खर्चा चर्च की ज़िम्मेदारी होती है। पोप के पास सर्दियों का महल अलग, गर्मियों का महल अलग और बसंत का महल अलग होता है। पिछले दिवंगत पोप ने हालांकि किसी महल में निवास नहीं किया था।
- पोप के अंगरक्षक और छोटी सी फौज भी होती है, इस में केवल अविवाहित स्विस मर्द ही शामिल हो सकते है जिनकी लंबाई कम से कम साढ़े छह फुट हो। ये टुकड़ी केवल पोप के आदेश मानती है।
- पोप के पास पोपमोबाइल नामक कार भी होती है, बैट मोबाइल भाँति। इसके अलावा पोप के पास सर्वोत्तम कारों का एक बेड़ा भी होता है।
- पोप का पर्सनल हवाई जहाज़ भी होता है। अमेरिकी प्रेसिडेंट का जहाज़ बेड़ा है एयरफोर्स वन। इसी तरह से पोप का हवाई बेड़ा है - शेपर्ड वन। शेपर्ड यानी गडरिया। यीशु भी एक गड़रिये थे।
- पोप को कोई भी देश किसी भी आरोप में किसी भी कारण गिरफ्तार नहीं कर सकता है।
तो हमारी ओर से पोप लियो को ढेरों शुभकामनाएं। उनके ऊपर महादेव की कृपा बनी रहे।

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