
01/06/2025
वामपंथी आतंक के विरुद्ध जनता के नायक! ब्रह्मेश्वर मुखिया
उन दिनों आतंकी जब चाहते तब किसी किसान के खेतों में लालझण्डा गाड़ कर जमीन लूट लेते। रोज ही किसी न किसी किसान की गर्दन रेत देते, और कानून उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता। मध्य बिहार के अधिकांश व्यवसाई जीने के लिए लेभी देते थे वामपंथी आतंकियों को, जो नहीं देते वे रेत दिए जाते। वही दौर था जब बिहार के अधिकांश युवकों ने केवल जान बचाने के लिए पलायन कर लिया। सौ बीघे के काश्तकार जिनकी गांव में बड़ी हवेलियां थीं, उनके बच्चे दिल्ली में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर एक कमरे में परिवार के साथ रहते थे।
नब्बे के दशक का बिहार अपने अपहरण उद्योग के लिए जाना जाता है, पर बाहर वाले नहीं जानते कि यह उद्योग पूरी तरह वामपंथी संगठनों ने खड़ा किया था।
आतंकी किसी गाँव पर हमला करते, और एक साथ बीसों लोग काट दिए जाते। माँ के सामने बेटे रेत दिए जाते, पत्नी के सामने पति... कानून चुपचाप देखता, सत्ता मुस्कुराते हुए चुस्की लेती।
फिर आये ब्रह्मेश्वर सिंह! लोगों को जोड़ा, संगठित किया! साहस दिया, लड़ने की हिम्मत दी। गाँवों में नारे लगे- सोना बेंचो, लोहा खरीदो! महिलाओं ने गहने बेंचे, हथियार खरीदे गए... कहते हैं, आर्मी वगैरह में काम करने वाले जवानों ने चोरी चोरी ट्रेनिंग दी, और हल चलाने वाले हाथों ने हथियार चलाना सीखा। किसी को मारने के लिए नहीं, अपने बच्चों को बचाने के लिए...अपनी जमीन, अपनी प्रतिष्ठा, अपनी गृहस्थी बचाने के लिए... अपनी जान बचाने के लिए...
ब्रह्मेश्वर सिंह एकाएक बरमेश्वर मुखिया हो गए थे। कुछ के लिए मुखिया जी, कुछ के लिए बाबा... किसी गाँव में घुसते तो लोग विह्वल हो जाते! लगता जैसे कोई देवता आया हो... आतंकियों से रक्षा करने वाला देवता होता ही है।
लोग लड़े! प्रतिरोध किया! खूब खून बहा! वह सारा खून अपनों का था, सदियों से एक दुसरे के साथ सुख पूर्वक जी रहे लोगों को वामी धूर्तों ने एक दूसरे का शत्रु बना दिया था। पर इस रक्तपात का असर यह हुआ कि आतंक लगभग समाप्त हुआ। वामपंथी आतंकियों की रीढ़ टूट गयी, उनका धंधा बन्द हो गया। यह मुखिया जी की जीत थी।
लोग मुखिया जी को भूमिहारों का नेता बताते हैं। षड्यंत्रपूर्ण बात है यह, जातिवादी धूर्तों का फैलाया हुआ जाल। वे किसानों के नेता थे, पीड़ितों के नेता थे। आतंकियों ने जिन जिन की जमीनें छीनी थी, जिनसे लेवी वसूलते थे, जिनका अपहरण कर फिरौती वसूलते थे, ब्रह्मेश्वर मुखिया उन सबके नायक थे, उनके अपने थे।
कुछ लोगों को लगता है कि सम्पत्तियां केवल सवर्णों की लूटी जाती थी। यह भी गलत है। बिहार में जमींदारी के मामले में बाभन लोग यादव, कुर्मी, कोइरी अवधिया के बाद में आते हैं। वामी आतंकियों ने सबको पीड़ा दी थी, ब्रह्मेश्वर उन सब को अपने से लगते थे।
मैं उन लोगों को भी बहुत दोष नहीं दे पाता जिन्होंने वामियों की ओर से हथियार उठाया था। वे मासूम लोग थे जिन्होंने इन धूर्तों ने आतंकी बना दिया था। वामी यही करते हैं- उनके बच्चे अमेरिका, इंग्लैंड में पढ़ते हैं और दूसरों के बच्चों को वे आतंकी बना देते हैं।
जब जब कोई आतंकी संगठन आम जनता को त्रस्त कर देता है, ब्रह्मेश्वर मुखिया जैसे लोग नायक बन कर उभरते हैं। नमन नायक को, नमन मुखिया जी को...