Sarvesh Tiwari Shreemukh

Sarvesh Tiwari Shreemukh युगों युगों से विश्व का कल्याण हो की प्रार्थना करने वाली सभ्यता का वर्तमान हूँ मैं! मैं सर्वेश हूँ।

वामपंथी आतंक के विरुद्ध जनता के नायक! ब्रह्मेश्वर मुखिया     उन दिनों आतंकी जब चाहते तब किसी किसान के खेतों में लालझण्डा...
01/06/2025

वामपंथी आतंक के विरुद्ध जनता के नायक! ब्रह्मेश्वर मुखिया

उन दिनों आतंकी जब चाहते तब किसी किसान के खेतों में लालझण्डा गाड़ कर जमीन लूट लेते। रोज ही किसी न किसी किसान की गर्दन रेत देते, और कानून उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता। मध्य बिहार के अधिकांश व्यवसाई जीने के लिए लेभी देते थे वामपंथी आतंकियों को, जो नहीं देते वे रेत दिए जाते। वही दौर था जब बिहार के अधिकांश युवकों ने केवल जान बचाने के लिए पलायन कर लिया। सौ बीघे के काश्तकार जिनकी गांव में बड़ी हवेलियां थीं, उनके बच्चे दिल्ली में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर एक कमरे में परिवार के साथ रहते थे।
नब्बे के दशक का बिहार अपने अपहरण उद्योग के लिए जाना जाता है, पर बाहर वाले नहीं जानते कि यह उद्योग पूरी तरह वामपंथी संगठनों ने खड़ा किया था।
आतंकी किसी गाँव पर हमला करते, और एक साथ बीसों लोग काट दिए जाते। माँ के सामने बेटे रेत दिए जाते, पत्नी के सामने पति... कानून चुपचाप देखता, सत्ता मुस्कुराते हुए चुस्की लेती।
फिर आये ब्रह्मेश्वर सिंह! लोगों को जोड़ा, संगठित किया! साहस दिया, लड़ने की हिम्मत दी। गाँवों में नारे लगे- सोना बेंचो, लोहा खरीदो! महिलाओं ने गहने बेंचे, हथियार खरीदे गए... कहते हैं, आर्मी वगैरह में काम करने वाले जवानों ने चोरी चोरी ट्रेनिंग दी, और हल चलाने वाले हाथों ने हथियार चलाना सीखा। किसी को मारने के लिए नहीं, अपने बच्चों को बचाने के लिए...अपनी जमीन, अपनी प्रतिष्ठा, अपनी गृहस्थी बचाने के लिए... अपनी जान बचाने के लिए...
ब्रह्मेश्वर सिंह एकाएक बरमेश्वर मुखिया हो गए थे। कुछ के लिए मुखिया जी, कुछ के लिए बाबा... किसी गाँव में घुसते तो लोग विह्वल हो जाते! लगता जैसे कोई देवता आया हो... आतंकियों से रक्षा करने वाला देवता होता ही है।
लोग लड़े! प्रतिरोध किया! खूब खून बहा! वह सारा खून अपनों का था, सदियों से एक दुसरे के साथ सुख पूर्वक जी रहे लोगों को वामी धूर्तों ने एक दूसरे का शत्रु बना दिया था। पर इस रक्तपात का असर यह हुआ कि आतंक लगभग समाप्त हुआ। वामपंथी आतंकियों की रीढ़ टूट गयी, उनका धंधा बन्द हो गया। यह मुखिया जी की जीत थी।
लोग मुखिया जी को भूमिहारों का नेता बताते हैं। षड्यंत्रपूर्ण बात है यह, जातिवादी धूर्तों का फैलाया हुआ जाल। वे किसानों के नेता थे, पीड़ितों के नेता थे। आतंकियों ने जिन जिन की जमीनें छीनी थी, जिनसे लेवी वसूलते थे, जिनका अपहरण कर फिरौती वसूलते थे, ब्रह्मेश्वर मुखिया उन सबके नायक थे, उनके अपने थे।
कुछ लोगों को लगता है कि सम्पत्तियां केवल सवर्णों की लूटी जाती थी। यह भी गलत है। बिहार में जमींदारी के मामले में बाभन लोग यादव, कुर्मी, कोइरी अवधिया के बाद में आते हैं। वामी आतंकियों ने सबको पीड़ा दी थी, ब्रह्मेश्वर उन सब को अपने से लगते थे।
मैं उन लोगों को भी बहुत दोष नहीं दे पाता जिन्होंने वामियों की ओर से हथियार उठाया था। वे मासूम लोग थे जिन्होंने इन धूर्तों ने आतंकी बना दिया था। वामी यही करते हैं- उनके बच्चे अमेरिका, इंग्लैंड में पढ़ते हैं और दूसरों के बच्चों को वे आतंकी बना देते हैं।
जब जब कोई आतंकी संगठन आम जनता को त्रस्त कर देता है, ब्रह्मेश्वर मुखिया जैसे लोग नायक बन कर उभरते हैं। नमन नायक को, नमन मुखिया जी को...

कल नए पोप श्री लियो 14th का शपथग्रहण हो गया। एंड ऐज यू नो, आई एम बिग फैन ऑफ पोप। आई लाइक एंड रेस्पेक्ट वेरी मच!    नए पो...
20/05/2025

कल नए पोप श्री लियो 14th का शपथग्रहण हो गया। एंड ऐज यू नो, आई एम बिग फैन ऑफ पोप। आई लाइक एंड रेस्पेक्ट वेरी मच!
नए पोप रॉबर्ट फ्रांसिस प्रिवेस्ट उनहत्तर वर्ष के हैं। पोप बनने के बाद वे लियो चौदहवें के नाम से जाने जाएंगे। बताया जा रहा है कि ये उस गद्दी के 267वें पोंप हैं। कल उनका शपथ ग्रहण समारोह हुआ, जहां उन्हें अंगूठी पहनाई गयी। उसके बाद उन्होंने रिलिजियस वाइन पी।
इस कार्यक्रम में वैसे तो दुनिया भर से राजा-महाराजा, बड़े नेता, पादड़ी, विशप आदि गए थे, जिसमें इटली की प्रधानमंत्री और हम भारतीयों की प्रिय सुश्री मैलोनी जी भी थीं। बताते चलें कि इस कार्यक्रम में भारत सरकार ने भी एक प्रतिनिधिमंडल भेजा था, जिसकी अध्यक्षता राज्यसभा के उपसभापति श्री हरिवंस जी कर रहे थे। पोंप जी ने सबको आशीर्वाद दिया और अपने भाषण के अंत मे कहा- इट्स टाइम टू लव...
विदेशी मामलों के जानकार मान जी भाई की पोस्ट से पता चला कि पोप साहब को कुछ विशेष सुविधाएं प्राप्त हैं। जैसे-

- पोप के रहने खाने और पीने का तमाम खर्चा चर्च की ज़िम्मेदारी होती है। पोप के पास सर्दियों का महल अलग, गर्मियों का महल अलग और बसंत का महल अलग होता है। पिछले दिवंगत पोप ने हालांकि किसी महल में निवास नहीं किया था।
- पोप के अंगरक्षक और छोटी सी फौज भी होती है, इस में केवल अविवाहित स्विस मर्द ही शामिल हो सकते है जिनकी लंबाई कम से कम साढ़े छह फुट हो। ये टुकड़ी केवल पोप के आदेश मानती है।
- पोप के पास पोपमोबाइल नामक कार भी होती है, बैट मोबाइल भाँति। इसके अलावा पोप के पास सर्वोत्तम कारों का एक बेड़ा भी होता है।
- पोप का पर्सनल हवाई जहाज़ भी होता है। अमेरिकी प्रेसिडेंट का जहाज़ बेड़ा है एयरफोर्स वन। इसी तरह से पोप का हवाई बेड़ा है - शेपर्ड वन। शेपर्ड यानी गडरिया। यीशु भी एक गड़रिये थे।
- पोप को कोई भी देश किसी भी आरोप में किसी भी कारण गिरफ्तार नहीं कर सकता है।
तो हमारी ओर से पोप लियो को ढेरों शुभकामनाएं। उनके ऊपर महादेव की कृपा बनी रहे।

19/05/2025

सरकारी एजेंसियों ने पाकिस्तान की मदद कर रहे कुछ गद्दारों को पकड़ा है। ये हैं- पानीपत से नोमान इलाही, मालेरकोटला से गजाला खातून, यासीन मोहम्मद, नूह से अरमान, जालंधर से मुर्तुजा, हरियाणा के कैथल से देवेन्दर सिंह ढिल्लों और ज्योति मल्होत्रा... सभी की आयु पच्चीस से पैंतीस के बीच मे है।
सोशल मीडिया में सर्वाधिक चर्चा ज्योति की है। शायद इसलिए कि वह चर्चित युट्यूबर भी रही है, और शायद इसलिए भी कि गद्दारों की भीड़ में वह इकलौती हिन्दू है। यह बिल्कुल अप्रत्याशित है, और शायद इसीलिए इसपर अधिक हल्ला हो रहा है। मुझे इससे कोई आपत्ति नहीं, मेरे हिसाब से सबसे पहले इसे ही सजा मिलनी चाहिये। कठोर से कठोर सजा... लेकिन मैं इस लड़की के पतन की प्रक्रिया देख रहा हूँ।
यह युट्यूबर है। शुरुआत ठीक ठाक वीडियो से हुई है, फिर व्यू बढ़ाने के लिए अर्धनग्न हो कर वीडियो बनाने लगी। आप किसी भी धंधे में हों, आप चाहते हैं कि आप प्रगति करें। नाच गाने वाले रील के धंधे में शीघ्र प्रगति के लिए नंगई सबसे आसान मार्ग है। उसी मार्ग पर यह भी उतरी।
उसके बाद यह पाकिस्तान गयी है। एक सामान्य हिन्दू परिवार की लड़की भले पूरी दुनिया घूम ले, लेकिन पाकिस्तान जाने की नहीं ही सोचती। लेकिन इंस्टा, लाइक, फॉलोवर, व्यू... आज के समय में यह कुछ भी करा सकता है।
वहाँ इसे कोई दानिश मिलता है। और ये दानिश के लिए काम भी करने लगती है। सम्भव है केवल पैसे के लिए कर रही हो, सम्भव है प्रेम में आ कर कर रही हो... जिसका चारित्रिक पतन हो गया, वह कितना गिर सकता है इसका आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते। न परिवार की चिंता, न राष्ट्र की सुरक्षा की चिन्ता...
लगभग यही कहानी देवेन्द्र सिंह ढिल्लो की है। उसके बारे में बताया जा रहा है पाकिस्तान गया और हनी ट्रैप में फंस गया... उधर की एक लड़की से दोस्ती हुई। उसने खुफिया जानकारियों के बदले में पैसा और खूबसूरत लड़कियों से दोस्ती कराने का वादा किया। फिर क्या, सिंह साहब बिक गए। उसके बाद पाकिस्तानी एजेंटों के साथ मिल कर देश की खुफिया जानकारी पाकिस्तान भेजने लगे...
ज्योति के गड्ढे में गिरने का जो तरीका है, वह फैशन में है। इनके विरुद्ध बोल दीजिए, दर्जनों बुद्धिजीवी आपको ज्ञान देने लग जायेंगे। उनके अनुसार यही स्वतंत्रता है। ज्योति की अश्लील वीडियोज पर उसे बधाई देने वाले सैकड़ों हजारों रहे होंगे। उसे बहादुर बताने वाले भी... सच पूछिए तो ऐसी टिप्पणियों ने ही इसे पाकिस्तान जाने का साहस दिया होगा। "मैं कुछ भी कर सकती हूँ, समाज कौन होता है रोकने वाला..." ऐसा सोच सकने लायक निर्लज्जता/ आवारापन वहीं से आया होगा...
लाइक, शेयर, व्यू, डॉलर... चीन का अफीम युग याद आता है अब...

जय हिन्द की सेना...
12/05/2025

जय हिन्द की सेना...

माँ शारदा पीठ! शारदा वन, कश्मीर... लाइन ऑफ कंट्रोल से मात्र दस किलोमीटर दूर, पाक अधिकृत कश्मीर में... हम शांडिल्य गोत्री...
09/05/2025

माँ शारदा पीठ! शारदा वन, कश्मीर... लाइन ऑफ कंट्रोल से मात्र दस किलोमीटर दूर, पाक अधिकृत कश्मीर में... हम शांडिल्य गोत्रीय हिंदुओं की कुलदेवी का पीठ... शक्तिपीठ है, मान्यता है कि माता सती का दाहिना हाथ गिरा था यहाँ...
माता सरस्वती का प्राचीनतम तीर्थ... आदि शंकराचार्य से रामानुजाचार्य तक, सबने ज्ञान की देवी की चौकठ पर माथा टेका था... कृष्णगंगा तट पर ज्ञान की देवी का मन्दिर...
लाइन ऑफ कंट्रोल से बस दस किलोमीटर दूर है, मात्र दस किलोमीटर...
प्राचीन मंदिर का बस चिन्ह बचा है। पूजा तो जाने कबसे बन्द है... कोई विग्रह नहीं बचा... जाने कितने दशकों से किसी श्रद्धालु की श्रद्धा नहीं पहुँची इस पुण्यभूमि तक... मात्र दस किलोमीटर तो है।
समय कुछ सौभाग्यशाली शासकों को ही देता है इतिहास बनाने का मौका... आज नहीं तो कल दिन फिरने ही हैं उस पुण्यभूमि के... पर अभी क्यों नहीं?
मैंने गूगल से पूछा। केवल दस किलोमीटर दूर है। मात्र....

07/05/2025

न ही लक्ष्मी कुलक्रमज्जता, न ही भूषणों उल्लेखितोपिवा,
खड्गेन आक्रम्य भुंजीतः वीर भोग्या वसुंधरा।

न लक्ष्मी किसी के यहाँ पीढ़ी दर पीढ़ी निवास करती हैं, न आभूषणों पर किसी का नाम लिखा होता है। सबकुछ खड्ग से तय होता है दोस्त! जो वीर होगा, वही संसार के समस्त सुखों का भोग कर पायेगा...

भारत माता की जय।

03/05/2025

गाँव में जब किसी के घर में आग लग जाय तो गाँव का हर स्त्री पुरुष आग बुझाने के लिए बाल्टी पानी लेकर दौड़ पड़ता है। इतना ही नहीं, आस पड़ोस के गाँव के युवक भी पहुँचते हैं और आग बुझाने के लिए जान लड़ा देते हैं। अब सोचिये, क्या ऐसा केवल उसी व्यक्ति के लिए किया जाता है जिसके घर में आग लगी है? नहीं।
आग यदि शत्रु के घर में लगी हो तब भी लोग बुझाने के लिए दौड़ते हैं। क्योंकि उन्हें उसके घर के साथ साथ अपने घर की चिन्ता भी होती है। वे जानते हैं कि यदि सही समय पर आग न बुझी तो उसकी जद में गाँव के दूसरे घर भी आएंगे। बल्कि आस पड़ोस के गाँव भी जल सकते हैं। इसलिए पूरा जवार आग बुझाने के लिए टूट पड़ता है।
पहलगाम की घटना के बाद देश में जो विरोध हुआ, वह केवल उन निर्दोष मृतकों के मोह में ही नहीं हुआ। उन बेचारों के प्रति संवेदना तो थी ही, पर उसके साथ साथ लोगों को स्वयं की भी चिन्ता थी। वह मानसिकता जो धर्म पूछ कर हत्या कर देने को जायज ठहराती है, उससे चिंतित होना स्वभाविक है, और इसी चिन्ता के कारण लोग उद्वेलित हैं।
कल से देख रहा हूँ कि किसी मृतक की पत्नी कश्मीरियों के समर्थन में बोल रही हैं और नफरत न करने की बात कर रही हैं। उन्हें शान्ति चाहिये। यह अद्भुत ही है कि उनके अनुसार शान्ति के मार्ग में गोलियां और 26 निर्दोषो की हत्या बाधा नहीं है, बल्कि हत्यारों की आलोचना बाधा है, विरोध बाधा है। खैर...
मुझे उनके बयान से कोई विशेष आपत्ति नहीं। वे एक स्वतंत्र देश की नागरिक हैं, उन्हें अपने विचार रखने की पूरी आजादी है। और इस बयान के बाद भी मैं उनका सम्मान ही करूंगा, क्योंकि वे इसी देश की बेटी हैं। पर देश की बहुसंख्यक आबादी किसी भी कारण से बाध्य नहीं कि उनके हर सही-गलत विचार का समर्थन ही करे। लोगों को उनसे संवेदना इसलिए है, क्योंकि उन्होंने अपना पति खोया है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि देश आपको बहुत बुद्धिमान मान ले और आपकी हर बात को सही मान ले। लोग अपनी सुरक्षा की चिन्ता भी करेंगे। और यदि कोई इस चिन्ता को अनावश्यक बताए, उसका विरोध करे, तो उसकी आलोचना भी करेंगे।
किसी ने कहा कि भले मेरे पिता मर गए पर मुझे दो भाई भी मिल गए। अच्छी बात है। यदि यह आपके लिए प्रसन्नता का विषय है तो आपको भाई मिलने की बधाई। पर यह आवश्यक तो नहीं कि देश की हर बेटी पिता के बदले में भाई पा कर प्रसन्न हो।
आप प्रसन्न हो पा रहे हैं तो रहिये। जनता चिंतित है तो उसे अपनी चिन्ता करने दीजिये। यदि आप उसकी चिन्ता पर आपत्ति करेंगे, उसे अनावश्यक बताएंगे, तो आपकी आलोचना भी हो ही सकती है।
कश्मीरी इतने ही अच्छे होते तो इतने लम्बे समय से वहाँ आतंक की फैक्ट्री नहीं चल रही होती। वहाँ के लाखों लोग अपना घर छोड़ कर निर्वासित जीवन नहीं जी रहे होते। भरम फैलाना भी कोई ठीक काम नहीं भाई...

पिछले तीन दिनों में आपको दर्जनों मुस्लिम लोग मिले होंगे जिन्होंने कश्मीर की घटना पर दुख जताया, धर्म पूछ कर गोली मारे जान...
25/04/2025

पिछले तीन दिनों में आपको दर्जनों मुस्लिम लोग मिले होंगे जिन्होंने कश्मीर की घटना पर दुख जताया, धर्म पूछ कर गोली मारे जाने की बात को स्वीकार किया और उसके विरुद्ध बोले, आतंकियों की निंदा की। छोटे बड़े राजनीतिज्ञ, यहाँ तक कि असदुद्दीन ओवैशी जैसे लोगों ने भी सच को स्वीकारा और कार्यवाही के लिए सरकार के साथ खड़े होने की बात कर रहे हैं। लेकिन इसके उलट देखिये, धर्म पूछ कर गोली मारे जाने की घटना को निर्लज्जता से नकारने वाले, आतंकियों के पक्ष में नैरेटिव गढ़ने वाले, और यहाँ तक कि मृतकों की एक फर्जी सूची (जिसमें आधे से अधिक मुस्लिम नाम थे) पोस्ट करने वाले अधिकांश हिन्दू नामधारी हैं। उनमें लेखक हैं, पत्रकार हैं, नचनिया हैं, कुछ राजनैतिक लोग भी...
एक लेखिका जिसने ज्ञानपीठ और साहित्य अकादमी पुरस्कार तक बटोरा है, वे भी लगातार झूठ बोल रही थीं। नरसंहार के दो दिन बाद ही पहलगाम में जा कर विडियो बनाने और हँसते हुए लोगों को आमंत्रित करने वाली वायरल महिलाएं भी हिन्दू ही हैं। सोच कर देखिये, सत्ताईस लाशों के ऊपर हँसने के लिए कितना गिरना पड़ता होगा? ये सब हिन्दू ही हैं...
ये वे लोग हैं जो स्वयं के बुद्धिजीवी होने के दावे करते हैं। खुद को उच्च शिक्षित और सबकुछ समझने वाला बताते हैं, और चाहते हैं कि दुनिया इन्ही की सुने। लेकिन सार्वजनिक रूप से झूठ परोसने में इन्हें तनिक भी लज्जा नहीं आती...
चंद सिक्कों के बदले अपना सबकुछ बेच चुके इन धूर्तों में आपके प्रति इतनी घृणा भरी पड़ी है कि मौका मिले तो सबको चबा जाएंगे। वह तो ईश्वर की कृपा है कि उन्होंने मच्छरों के डंक में विष नहीं दिया, वरना दुनिया में जीवन होता ही नहीं।
क्या आपको नहीं लगता कि इस देश में सर्वाधिक नफरत यही झूठे फैला रहे हैं। इस तरह का षड्यंत्रपूर्ण एकतरफा व्यवहार ही समाज में सर्वाधिक विभेद पैदा करता है। सच तो यह भी है कि ये भले स्वयं को अल्पसंख्यको का समर्थक बताएं, पर वस्तुतः ये अपने तुच्छ लोभ के लिए उनका भी अहित ही कर रहे होते हैं। दरअसल इन भाड़े के टट्टुओं को किसी की चिंता या परवाह नहीं होती। इन्हें केवल और केवल उन जूठी हड्डियों की चिंता होती है जो इनके आका समय समय पर इनके आगे फेंकते हैं।
कश्मीर के हिन्दू नरसंहार के लिए आप दूसरों को क्या ही दोष देंगे? असदुद्दीन ओवैशी आतंकियों को कमीने, हरामजा... जैसी गालियां दे रहे हैं, लेकिन कुछ मंचों के लोभी हिन्दू शायर कवि लेखक आतंकियों के साथ खड़े हैं। कश्मीरियों, पाकिस्तानियों से क्या ही लड़ेंगे आप?

सन 2003 में तात्कालिक प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी कश्मीर गए थे। तब उन्होंने कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत की बात ...
23/04/2025

सन 2003 में तात्कालिक प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी कश्मीर गए थे। तब उन्होंने कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत की बात की थी। हम लोग विद्यार्थी थे, और उस भाषण पर बहुत प्रसन्न हुए थे। इक्कीस साल के बाद आज की स्थिति यह है कि इन तीनों शब्दों पर केवल हँसी आती है। ये तीनों शब्द कश्मीर में हिन्दुओं की हत्या पर अट्टहास करते दिखते हैं।
हमारी वर्तमान व्यवस्था हर साल कश्मीर को अरबों रुपये भेजती है। कल जो लोग कश्मीर में मारे गए वे उच्च सम्पन्न लोग थे। सम्भव है कि मारने वाले आतंकी इन्ही मरने वालों के टैक्स के पैसे से मिली भीख की रोटी खा कर घर से निकले हों। पर उन्हें कोई लज्जा नहीं। उन्होंने अपने हिसाब से सबाब का काम किया है। उन्होंने अपने लिए जन्नत की व्यवस्था बना ली है।
विदेशी टुकड़ों पर पलने वाले स्वघोषित बुद्धिजीवी जिस कैंडल मार्च को दिखा कर नीच आतंकियों को बचा रहे हैं, उस मार्च में अधिकांश हँस रहे हैं। फोटो खिंचाने के लिए सौ रुपये की कैंडल जला कर स्वयं को दूध का धुला साबित कर लेने से सस्ता तरीका और क्या होगा संसार में?
सोशल मीडिया में देखिये, मध्यप्रदेश और झारखंड में बैठे लड़के भी जश्न मना रहे हैं, मीम बना रहे हैं। उनके लिए खुशी की ही बात है। वे किसी भरम में नहीं हैं...
विदेशी टुकड़ों पर पलने वाले बौद्धिक लोग कह रहे हैं, "जहां दो हजार की भीड़ थी वहाँ सुरक्षा क्यों नहीं थी?" बात सही भी है, सुरक्षा होनी चाहिये। पर यदि सुरक्षा नहीं रहे तो धर्म पूछ कर नरसंहार होगा? यही देश चाहते हैं आप? और किससे सुरक्षा करनी है? उन्ही हरामखोरों से, जो हर साल हमारे अरबों रुपये पचा रहे हैं?
ललगणिया लेखकों की पूरी फौज उतर गई है, वे हजार तर्क ला कर डटे हुए हैं कि कोई उनके प्यारे आतंकियों को कुछ न कहे। सरकार दोषी है, पर्यटक दोषी हैं, पूरा देश दोषी है, पर आतंकियों का कोई दोष नहीं। वे दूध के धुले लोग हैं... संसार में हिन्दी के वामी लेखकों जैसे अधम लोग कहीं नहीं... मैं कहूंगा, ये जो अपने परिवार के सगे न हुए वे देश के सगे क्या ही होंगे? पैसा मिले तो किसी को देवता सिद्ध कर देंगे।
और हमारी सरकार? कल से बार बार वही शेर याद आ रहा है- कुर्सी है, तुम्हारा ये जनाजा तो नहीं है, कुछ कर नहीं सकते तो उतर क्यों नहीं जाते?
मैं बार बार कहूंगा- भरम छोड़िये! सच को स्वीकार कीजिये। अबकी जब सरकार कश्मीर के लिए अरबों का अनुदान दे तो विरोध कीजिये... और आपकी जेब का एक सिक्का भी जा रहा हो उधर, तो समझिये आप अपने विनाश की तैयारी कर रहे हैं।

तीन चार वर्ष पुरानी बात है, बाजीराव फिल्म के बहाने मराठा साम्राज्य और पेशवा बाजीराव की मृत्यु पर बात हो रही थी। एक बड़े भ...
21/04/2025

तीन चार वर्ष पुरानी बात है, बाजीराव फिल्म के बहाने मराठा साम्राज्य और पेशवा बाजीराव की मृत्यु पर बात हो रही थी। एक बड़े भाई ने कहा, " रावळखेड़ी गए हो?" रावळखेड़ी वही स्थान है जहाँ उस महावीर योद्धा की मृत्यु हुई थी। मध्यप्रदेश के उस हिस्से में हम कभी गए ही नहीं। मैंने पूछा क्यों?
उन्होंने कहा, "अप्रैल मध्य आते आते वह क्षेत्र जलने लगता है। इतनी अधिक गर्मी कि लू लगने की संभावना लगभग सबको है। आज सुविधा है, संसाधन है, और चिकित्सा शास्त्र के विकास के चलते लू का सहज उपचार हो जाता है, पर तब तो ऐसा कुछ भी नहीं था। अपने जीवन के सभी युद्धों को जीतने वाला वह योद्धा लू से कैसे हार गया, यह समझना हो तो रावळखेड़ी चलो। और ठीक उसी समय चलो, जब उनकी मृत्यु हुई थी। उनकी पुण्यतिथि पर, 26 अप्रैल को।"
चार साल हुए, हम तो कभी न जा सके। एक तो गृहस्थी और नौकरी के कारण छुट्टी नहीं मिलती, और दूसरा यह कि यात्राएं मुझे पसन्द नहीं। यात्राओं को लेकर सहज नहीं हूं, बहुत परेशानी होती है। पर वे लोग हर साल जाते हैं। पेशवा की पुण्यतिथि पर एक बड़ा आयोजन भी करते हैं।
इंदौर से लगभग सवा सौ किलोमीटर दूर है रावलखेड़ी। ओंकारेश्वर से लगभग 40 किलोमीटर। नर्मदा का पावन तट। अपने बयालीसवें युद्ध में विजयी हुए बाजीराव को तेज लू लगी और वे यहीं से स्वर्ग सिधार गए। मस्तानी, प्रेम, द्वंद वाली अधिकांश बातें कवियों, सिनेमा वालों का दिया हुआ विस्तार है।
लम्बे समय तक तिरस्कृत रहा वह स्थान अब कुछ वर्षों से चर्चा में है। भले एक दिन ही सही, पर लोग श्रद्धा के फूल लेकर जुटने लगे हैं। देश भर से...
लोकतंत्र में यह देश अपने महानतम योद्धाओं की समाधियों को लगभग भूल ही गया था। महाराणा सांगा, पेशवा बाजीराव, सबकी समाधियां लम्बे समय तक उजाड़ ही पड़ी रहीं। हेमचंद्र विक्रमादित्य की समाधि तो वक्फ बोर्ड के कब्जे में है। सरकारें शायद यही चाहती थीं कि भारत अपना शौर्य भूल जाये। खैर...
हाँ तो इस वर्ष भी पेशवा बाजीराव बल्लाळ की पुण्यतिथि पर रावरखेड़ी में जुट रहे हैं लोग... संख्या इस बार बढ़ ही रही है। आप यदि सहजता से जा सकने की दूरी पर हैं तो जाइये। देखिये और याद रखिये अपने महान पूर्वजों को...

सर्वेश कुमार तिवारी
गोपालगंज, बिहार।

आजकल जब कोई व्यक्ति ब्राह्मणों को गाली देता है तो बहुत विचलित नहीं होता हूँ। अब इतना स्पष्ट समझ आ गया है कि फिलहाल इस दे...
19/04/2025

आजकल जब कोई व्यक्ति ब्राह्मणों को गाली देता है तो बहुत विचलित नहीं होता हूँ। अब इतना स्पष्ट समझ आ गया है कि फिलहाल इस देश में चर्चा पाने का एक नकारात्मक तरीका यह भी है, और अपने अपने कैरियर में फेल हो चुके लोग एक बार यह करके भी देखते हैं। कुछ को सफलता भी मिलती है, पर अधिकांश यूँ ही सड़ गल जाते हैं। वैसे भी, हर व्यक्ति तो बुद्ध या कबीर नहीं हो सकता न!
आप गाली देने वालों की लिस्ट देखिये, सब के सब कुंठित और बिल्कुल ही असफल लोग हैं। परीक्षाओं में बार बार फेल होने वाले विद्यार्थी, नौकरी की दौड़ से बार बार छंट जाने पर बौखलाए युवक, लगातार डिजास्टर फिल्में देने वाला फ्लॉप निर्देशक, असफल अभिनेत्री, या अपनी बौद्धिक सामर्थ्य से बहुत अधिक का स्वप्न देखने वाले अधिकारी... इस लिस्ट में बार बार नकारे जा रहे वे राजनैतिक लोग भी हैं जो किसी भी तरह चर्चा में आना चाहते हैं। अपने पारिवारिक जीवन में भी पूरी तरह नकारा सिद्ध हो चुके वे असफल लोग, जो तीन तीन शादियों के बाद भी अकेले जी रहे हैं, कोई उन्हें पानी देने वाला भी नहीं... मुझे इनपर कभी क्रोध नहीं आता, मुझे दया आती है। खैर...
पिछले कुछ दशकों से भारत में चर्चा पाने के लिए 'राखी सावंत थ्यूरम' सबसे अधिक प्रयोग हो रहा है। राजनीति और सिनेमा जगत के साथ लेखन जगत भी इसका खूब उपयोग करता रहा है। कुछ नहीं मिलता तो ब्राह्मणों को गाली दे दो! इस देश में वैसे असहाय मूर्खों की संख्या बहुत बड़ी है, जिनके भाग्य में आनन्द का एकमात्र साधन गाली गलौज और दोषारोपण ही है। वे राखी सावंत के इन मौसेरे भाइयों के बयान पर खूब आनन्दित होते हैं। वैसे इससे उनका जीवन स्तर नहीं बदलता, वे वही रहते हैं।
हालांकि यह तरीका अब धीरे धीरे चूक रहा है। अब केवल ब्राह्मणों को गाली दे कर न कोई विधायक बन सकता है, न ही उसकी फिल्म हिट हो सकती है। कुछ तो अपनी बेहूदगी के कारण अपने बच्चों का कैरियर तक खा गए। दरअसल लोग समझने लगे हैं कि ब्राह्मणों को गाली देना केवल और केवल अपनी नाकामी छुपाने के लिए की गई उल्टी भर है। आज के समय में ब्राह्मण किसी भी क्षेत्र में इतने प्रभावशाली नहीं कि उस क्षेत्र की व्यवस्था उनके नियंत्रण में हो। और यदि किसी क्षेत्र में हैं भी, तो वे स्वयं भी ब्राह्मणों के सबसे बड़े शत्रु और विरोधी हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं ब्राह्मण लम्बे समय से प्रतिष्ठा पाते रहे हैं। उसका कारण उनकी विद्वता, उनका धैर्य और धर्म पर उनकी अटूट आस्था रही है। दुर्भाग्य यह है कि पिछले कुछ दशकों में तीनों ही उनके हाथ से छूटते जा रहे हैं। तो सम्भव है कि अगले कुछ दशकों में यह गालीबाजी भी समाप्त ही हो जाएगी।

सर्वेश कुमार तिवारी
गोपालगंज, बिहार।

अभी कल तक दोनों मिल कर 5 हजार वर्ष के शोषण के लिए बाभनो को गरिया रहे थे।😊
15/04/2025

अभी कल तक दोनों मिल कर 5 हजार वर्ष के शोषण के लिए बाभनो को गरिया रहे थे।😊

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