07/08/2025
"राष्ट्रीय हथकरघा दिवस पर बधाई! हम अपने देश में हथकरघा की समृद्ध विरासत और जीवंत परंपरा पर बहुत गर्व करते हैं। हम अपने कारीगरों के प्रयासों की भी सराहना करते हैं और 'वोकल फॉर लोकल' होने की हमारी प्रतिबद्धता दोहराते हैं
राष्ट्रीय हथकरघा दिवस प्रतिवर्ष 7 अगस्त को मनाया जाता है। यह दिन भारतीय हथकरघा परंपरा की समृद्ध विरासत को सम्मानित करने और बुनकरों के बहुमूल्य योगदान को रेखांकित करने के लिए समर्पित है।
प्रमुख बिंदु:
इस दिन देशभर में विशेष आयोजन किए जाते हैं, जिसमें हथकरघा प्रदर्शनियां, फैशन शो, डिज़ाइन कार्यशालाएं, बुनकरों को पुरस्कार, GI उत्पादों की प्रदर्शनी आदि शामिल होते हैं।
कई डिज़ाइन संस्थान और उद्योगपति भी इस अभियान से जुड़कर पारंपरिक उत्पादों को वैश्विक मंच देते हैं।
इतिहास और पृष्ठभूमि
7 अगस्त 1905 को स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत हुई थी।
यह आंदोलन ब्रिटिश शासन द्वारा बंगाल विभाजन के विरोध में आरंभ हुआ था, जिसमें भारतीयों ने विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार कर स्वदेशी वस्त्रों और उत्पादों को अपनाने का संकल्प लिया था।
यह आंदोलन हथकरघा उद्योग को पुनर्जीवित करने का भी एक प्रयास था।
इसी ऐतिहासिक महत्त्व को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 2015 में पहली बार 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की।
राष्ट्रीय हथकरघा दिवस का उद्देश्य
हथकरघा क्षेत्र की विशिष्टता और परंपरा को संरक्षित और प्रोत्साहित करना
पारंपरिक कारीगरों और बुनकरों को सम्मान देना
स्वदेशी वस्त्रों और उत्पादों को बढ़ावा देना
युवा पीढ़ी को स्थानीय हस्तकला और हथकरघा के प्रति जागरूक बनाना
‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे अभियानों को मजबूती देना
भारत की हथकरघा परंपरा
भारत का हथकरघा क्षेत्र दुनिया में सबसे पुराना और विविधताओं से भरपूर है।
हर राज्य में अपनी अनोखी बुनाई की शैली और डिज़ाइन है।
जैसे – उत्तर प्रदेश में बनारसी साड़ी, तमिलनाडु में कांजीवरम, पश्चिम बंगाल में तांत और बालूचरी, ओडिशा में संबलपुरी, मध्यप्रदेश में चंदेरी और महेश्वरी आदि।
यह परंपरा सिर्फ वस्त्र नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक पहचान और लोककथाओं की अभिव्यक्ति भी है।
इन वस्त्रों पर चित्रित कला में देवी-देवता, प्रकृति, लोकजीवन और पारंपरिक प्रतीकों का समावेश होता है।
सरकारी प्रयास
हथकरघा को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने कई योजनाएं और पहल शुरू की हैं।
इनमें डिज़ाइन सुधार, तकनीकी प्रशिक्षण, बुनकरों को ऋण सहायता, मार्केटिंग प्लेटफॉर्म, GI टैग और डिजिटल विपणन जैसी योजनाएं शामिल हैं।
इंडिया हैंडलूम ब्रांड, बुनकर क्रेडिट कार्ड, राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम और ई-कॉमर्स प्लेटफ़ॉर्म जैसे प्रयासों ने बुनकरों को नए बाज़ार और ग्राहकों से जोड़ने में मदद की है।
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