
02/12/2023
नाईं को बालों से कोई मोह नहीं है
न मोची को चमड़े के लिए कोई भाव है
एक पुजारी सारा जीवन ईश्वर को भोग लगाकर फिर खाता है।
तकनीकी तौर पर ब्राह्मणों का धंधा पूजा-पाठ नहीं शिक्षण रहा है वो भी भिक्षाटन के द्वारा ही चलता था क्योंकि तब 15 लाख की एमबीए नहीं होती थी।
कोई ब्राह्मण गुरुकुल चलाकर या पाठशाला चलाकर करोड़पति नहीं बना।
और अगर हो भी तो इस लॉजिक से मौलवी का भी धंधा है
पादरी का भी धंधा है
ग्रन्थी का भी धंधा है
लेकिन गाली सिर्फ ब्राह्मण खाएंगे
वरना यूरोप, अमेरिका ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका की तरह सबको ईसाई कैसे बनाएंगे।
अविनाश त्रिपाठी