16/05/2025
मन का आईना कुछ इस तरह चमकने लगा है जैसे निशा को चीरते सुबह का सूरज उजाला फैलाने लगा हो । आज कल मैं अपने में मस्त रहता हूं, जिंदगी जीने का हुनर अब सीखने लग गया हूं ।
रास्ते अब मुझे सुकून देते हैं, मंजिलों की फिकर से आजाद महसूस करने लग गया हूं । ग़म का क्या है उसका तो काम है आना, फर्क तो तब है जब हम गम में नहीं अपने सफर में मस्त रहते हैं ।
- धीरेन्द्र सिंह