04/08/2025
गरीब भाई-बहन की राखी की कहानी (रक्षाबंधन विशेष)
एक छोटे से गाँव में, मिट्टी की दीवारों और टूटे छप्पर वाली एक झोपड़ी में, रहते थे भाई-बहन – राजू और गुड़िया। बचपन में ही उनके माता-पिता इस दुनिया से चले गए थे। तब से राजू, जो मुश्किल से 12 साल का था, अपनी छोटी बहन गुड़िया का सहारा बन गया।
राजू दिनभर खेतों में मजदूरी करता, और जो थोड़े बहुत पैसे मिलते, उसी से गुड़िया की पढ़ाई, कपड़े और दोनों का खाना चलता। गुड़िया भी समझदार थी – हर दिन स्कूल से लौटकर मिट्टी के घर की सफाई करती, पानी भरती और भाई के लिए खाना बनाती।
रक्षाबंधन का दिन आया।
गुड़िया के पास न तो कोई सुंदर राखी थी, न मिठाई। लेकिन उसने घर के पुराने रंगीन धागों से एक छोटी-सी राखी बनाई और उसमें अपने प्यार की गाँठ बाँध दी।
सुबह-सुबह, उसने राजू को बैठाया, राखी बाँधी और चावल-हल्दी से तिलक किया। उसकी आँखों में चमक थी और प्यार भरा था।
राजू के पास उसे देने के लिए कुछ नहीं था – लेकिन उसने अपनी मजदूरी के पैसों से एक छोटी-सी किताब खरीदी थी, जो गुड़िया को बहुत पसंद थी – "चंपक"।
गुड़िया ने वो किताब ऐसे थाम ली जैसे सोने का ताज मिल गया हो।
उनका रक्षाबंधन बिना मिठाई, बिना नए कपड़ों के, सबसे अनमोल था – क्योंकि उसमें त्याग, मेहनत और सच्चा प्यार था।
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सीख:
राखी सिर्फ धागा नहीं – एक रिश्ते की डोर है। जो खून से नहीं, भावना और समर्पण से बंधती है।