01/01/2024
राम मंदिर अयोध्या की कहानी
अयोध्या मूल रूप से मंदिरों का शहर था। इतिहासकारों के अनुसार कौशल प्रदेश की प्राचीन राजधानी अवध को कालांतर में अयोध्या और बौध काल में साकेत कहा जाने लगा। वहीं सरयू नदी के दूसरे हिस्से को श्रावस्ती कहा जाता था। शोधानुसार पता चलता है भगवान राम का जम 5114 ईवी पूर्व हुआ था। चैत्र मास की नवमी को रामनवमी के रूप में मनाया जाता है।
अयोध्या पहले कौशल जनपद की राजधानी थी। वाल्मीकिकृत रामायण के बालकाण्ड में उल्लेख है अयोध्या 12 योजन (96 मील) लम्बी और 3 योजन (24 मील) चौड़ी थी। वाल्मीकि रामायण में अयोध्या पुरी का वर्णन विस्तार से किया गया है। रामायण में अयोध्या नगरी के सरयु तट पर बसे होने और उस नगरी के भव्य एवं समृद्ध होने का उलेख मिलता है। वहां चौड़ी सड़के और भव्य महल थे। बगीचे और आम के बाग थे और साथ ही चौराहों पर लगने वाले बड़े बड़े स्तम्भ थे। हर व्यक्ति का घर राजमहल जैसा था। इस नगरी में सुंदर, लंबी और चौड़ी सड़कें थीं। इद्र की अमरावती की तरह महाराज दशरथ ने उस पुरी को सजाया था। कहते हैं भगवान श्रीराम के जल समाधि लेने के पश्चात अयोध्या कुछ काल के लिए उजाड़-सी हो गई थी, लेकिन उनकी जन्मभूमि पर बना महल वैसे का वैसा ही था। भगवान श्रीराम के पुत्र कुश ने एक बार पुन: राजधानी अयोध्या का पुनर्निर्माण कराया। इस निर्माण के बाद सूर्यवंश की अगली 44 पी यों तक इसका अस्तित्व आखरी राजा, महाराजा बृहलदल तक अपने चरम पर रहा। कौशलराज बृहलदल की मृत्यु महाभारत युग में अभिमन्यु के हाथों हुई थी। महाभारत के युद्ध के बाद अयोध्या उजड़-सी हो गई, मगर श्रीराम जन्मभूमि का अस्तित्व फिर भी बना रहा ।
विक्रमादित्य के बाद के राजाओ ने समय-समय पर इस मंदिर की देख-रेख की। उन्ही में से एक शुंग वंश के प्रथम शासक पुषयमित्र शुंग ने भी मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। पुषयमित्र का एक शिलालेख अयोध्या से प्राप्त हुआ था उसमें उसे सेनापति कहा गया है तथा उसके द्वारा दो अश्वमेध यज्ञो के किए जाने का वर्णन है। अनेक अभिलेखों ज्ञात होता है गुप्तवंशीय चद्रगुप्त द्वितीय के समय और तत्पश्चात काफी समय तक अयोध्या गुप्त साम्राज्य की राजधानी थी। गुप्तकालीन महाकवि कालिदास ने अयोध्या का रघुवंश में कई बार उल्लेख किया है।
चीनी फा-यान ने यहां देखा कई बौध मठों का रिकॉर्ड रखा गया है। यहां पर 7वीं शताब्दी में चीनी यात्री हेनसांग आया था। उसके अनुसार यहां 20 बौध मंदिर थे तथा 3,000 भिक्षु रहते थे और यहां हिंदुओ का एक प्रमुख और भव्य मंदिर भी था, जहां रोज हजारों की संखया में लोग दर्शन करने आते थे जिसे राम मंदिर कहा जाता था।
इसके बाद ईसा की 11वीं शताब्दी में कन्नौज नरेश जयचंद आया तो उसने मंदिर पर सम्राट विक्रमादित्य के प्रशस्ति शिलालेख को उखाड़कर अपना नाम लिखवा दिया। पानीपत के युद्ध के बाद जयचंद का भी अंत हो गया। इसके बाद भारतवर्ष पर आक्रांताओ का आक्रमण और बढ़ गया। आक्रमणकारियों ने काशी, मथुरा के साथ ही अयोध्या में भी लूटपाट की और पुजारियों की हत्या कर मूर्तिया तोड़ने का क्रम जारी रखा। लेकिन 14वीं सदी तक वे अयोध्या में राम मंदिर को तोड़ने में सफल नहीं हो पाए। विभिन्न आक्रमणों के बाद भी सभी झंझावातों को झेलते हुए श्रीराम की जन्मभूमि पर बना भव्य मंदिर 14वीं शताब्दी तक बचा रहा। कहते हैं कि सिकंदर लोदी के शासनकाल के दौरान यहां मंदिर मौजूद था। अंतत: 1527-28 में अयोध्या में स्थित भव्य मंदिर को तोड़ दिया गया और उसकी जगह बाबरी ढांचा खड़ा किया गया। कहते हैं मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर के एक सेनापति ने बिहार अभियान के समय अयोध्या में श्रीराम के जन्मस्थान पर स्थित प्राचीन और भव्य मंदिर को तोड़कर एक मस्जिद बनवाई थी, जो 1992 तक विद्यमान रही। बाबरनामा के अनुसार 1528 में अयोध्या पड़ाव के दौरान बाबर ने मस्जिद निर्माण का आदेश दिया था।
हिंदुओं के दावे के बाद से विवादित जमीन पर नमाज के साथ-साथ पूजा भी होने लगी। 1853 में अवध के नवाब वाजिद अली शाह के समय पहली बार अयोध्या में साम्प्रदायिक हिंसा भड़की। 1859 में अंग्रेजी प्रशासन ने विवादित जगह के आसपास बाड़ लगा दी। मुसलमानों को ढांचे के अंदर और हिंदुओं को बाहर चबूतरे पर पूजा करने की इजाजत दी गई। असली विवाद शुरू हुआ 23 दिसंबर 1949 को, जब भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाई गईं। हिंदुओं का कहना था कि भगवान राम प्रकट हुए हैं, जबकि मुसलमानों ने आरोप लगाया कि किसी ने रात में चुपचाप मूर्तियां वहां रख दीं। यूपी सरकार ने मूर्तियां हटाने का आदेश दिया, लेकिन जिला मैजिस्ट्रेट (डीएम) केके नायर ने दंगों और हिंदुओं की भावनाओं के भड़कने के डर से इस आदेश को पूरा करने में असमर्थता जताई। सरकार ने इसे विवादित ढांचा मानकर ताला लगवा दिया। यूसी पांडे की याचिका पर फैजाबाद के जिला जज केएम पांडे ने 1 फरवरी 1986 को हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत देते हुए ढांचे पर से ताला हटाने का आदेश दिया। 6 दिसंबर 1992 को वीएचपी और शिवसेना समेत दूसरे हिंदू संगठनों के लाखों कार्यकर्ताओं ने विवादित ढांचे को गिरा दिया। देश भर में सांप्रदायिक दंगे भड़के गए, जिनमें 2 हजार से ज्यादा लोग मारे गए।
अगस्त 2003 में पुरातात्विक विभाग के सर्वे में कहा गया जहां बाबरी मस्जिद बनी थी, वहां मंदिर होने के संकेत मिले हैं। भूमि के अंदर दबे खंबे और अन्य अवशेषों पर अंकित चिन्ह और मिली पॉटरी से मंदिर होने के सबूत मिले हैं। भारतीय पुरात्तत्व सर्वेक्षण द्वारा हर मिनट की वीडियोग्राफी और स्थिर चित्रण किया गया। इस खुदाई में कितनी ही दीवारें, फर्श और बराबर दूरी पर स्थित 50 जगहों से खंभों के आधारों की दो कतारें पाई गई थीं। एक शिव मंदिर भी दिखाई दिया। जीपीआरएस रिपोर्ट और भारतीय सर्वेक्षण विभाग की रिपोर्ट अब उच्च न्यायालय के रिकार्ड में दर्ज हैं। 30 सितम्बर, 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खणडपीठ ने विवादित ढांचे के संबंध में ऐतिहासिक निर्णय सुनाया। न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल एवं न्यायमूर्ति एसयू खान ने एकमत से माना जहां रामलला विराजमान हैं, वही श्रीराम की जन्मभूमि है।
9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया। 2.77 एकड़ विवादित जमीन हिंदू पक्ष को मिली। मस्जिद के लिए अलग से 5 एकड़ जमीन मुहैया कराने का आदेश। 5 अगस्त 2020 को राम मंदिर का भूमि पूजन कार्यक्रम हुआ।
राम मन्दिर अयोध्या में राम जन्मभूमि के स्थान पर बनाया जा रहा एक हिन्दू मन्दिर है जहाँ रामायण के अनुसार, हिन्दू धर्म के प्रमुख देवता भगवान श्रीराम का जन्मस्थान है। मन्दिर निर्माण की पर्यवेक्षण श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र कर रहा है। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का कार्य प्रगति पर है। इस दौरान खुदाई में प्राचीन मंदिर के अवशेष मिले हैं। इसमें अनेकों मूर्तियां और स्तंभ शामिल हैं।
कई सदियों के लंबे इंतजार के बाद भगवान रामलला गर्भगृह में विराजेंगे। पीएम मोदी के हाथों 22 जनवरी को रामलला के प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। भगवान रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए 84 सेकंड का अति सूक्ष्म मुहूर्त निकाला गया है। जो 12 बजकर 29 मिनट 8 सेकंड से 12 बजकर 30 मिनट 32 सेकंड तक होगा। ऐसे में हर भारतीय का हृदय आनंदित रोम रोम पुलकित है। गाजियाबाद के दूधेश्वर वेद विद्यापीठ के विध्यार्थी मोहित पांडे को मुख्य पूजारी के रूप मे चुना गया है। बता दे कि रामलला के प्राण प्रतिष्ठा के दिन रामलला को पीला वस्त्र धारण करवाया जायेगा। दिन के हिसाब से रामलला के वस्त्रो का रंग बदलता है।
500 साल तक हिंदू समाज के सतत संघर्ष के बाद आज अयोध्या में भव्य राम मंदिर बन रहा है। मंदिर की ऊंचाई 161 फीट रहेगी। सिर्फ नींवनीं में ही 2 लाख ईंटे लगेगी जिन पर श्रीराम लिखा होगा। सीढ़ियों की चौड़ाई 16 फीट रहेगी। मंदिर में 5 गुंबद होगे। पूरा मंदिर 360 पिलर पर टिका होगा। इसमें गर्भ गृह, कुदु मंडप, नृत्य मंडप और रंग मंडप होगा। 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में बन रहे राम मंदिर में भगवान श्री राम की प्राण-प्रतिष्ठा होगी। पूरी परियोजना 2025 तक पूरी हो सकती है। मंदिर परिसर में एक संग्रहालय, डिजिटल अभिलेखागार और एक शोध केंद्र भी बनेगा।
70 एकड़ ज़मीन में मंदिर बन रहा है। पूरे परिसर के उत्तरी हिस्से में मंदिर बन रहा है। मंदिर में राजस्थान के भरतपुर के बंसी पहाड़पुर से पत्थर मंगाए गए है। लगभग 5 लाख पत्थर मंदिर में लगाए जा रहे हैं। मंदिर का फर्श मकराना मार्बल है। मंदिर की उम्र लगभग 1,000 साल रहेगी। रामलला की मूर्ति 5 साल के भगवान राम की होगी। मूर्ति की ऊंचाई 51 इंच होगी। ललाट के ऊपर का हिस्सा अलग है। मूर्ति खड़ी होगी। मूर्ति 3 कलाकार बना रहे हैं।
अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण के साथ ही पूरे शहर के सौंदर्यीकरण के कई प्रोजेक्ट एकसाथ चल रहे हैं। राम मंदिर को जोड़ने वाले सभी रास्तों और चौक-चौराहों पर रामायणकालीन प्रसंगों का मनमोहक चित्रण किया जा रहा है। प्रमुख मार्गों की दीवारों को टेराकोटा फाइन क्ले म्यूरल कलाकृतियों से सजाने की प्रक्रिया जारी है। सभी प्रमुख मार्गों की दीवारों को कंकड़-पत्थर से बनी कलाकृतियों से सजाने का कार्य भी शुरू कर दिया है। इसमें श्रीराम दरबार, खर-दूषण वध, कैकई कोपभवन गमन दृष्य समेत अनेक प्रसंगों को दर्शाया जा रहा है। 50 से ज्यादा म्यूरल स्कल्प्चर्स व भित्ति चित्र पेंटिंग्स की ऊंचाई 9 फीट और चौड़ाई 20 फीट निर्धारित की गई है।
इस बीच इंडिगो ने मुंबई और अयोध्या के बीच सीधी कनेक्टिविटी की घोषणा करते हुए कहा कि यह उड़ान 15 जनवरी से शुरू होगी। पर्यटन की दृष्टि से 2047 तक अयोध्या को वैश्विक आध्यात्मिक राजधानी के रूप में विकसित करने पर लक्ष्य केंद्रित किया जा रहा है।
बीएनटी की खास पेशकशI