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01/01/2024

राम मंदिर अयोध्या की कहानी

अयोध्या मूल रूप से मंदिरों का शहर था। इतिहासकारों के अनुसार कौशल प्रदेश की प्राचीन राजधानी अवध को कालांतर में अयोध्या और बौध काल में साकेत कहा जाने लगा। वहीं सरयू नदी के दूसरे हिस्से को श्रावस्ती कहा जाता था। शोधानुसार पता चलता है भगवान राम का जम 5114 ईवी पूर्व हुआ था। चैत्र मास की नवमी को रामनवमी के रूप में मनाया जाता है।

अयोध्या पहले कौशल जनपद की राजधानी थी। वाल्मीकिकृत रामायण के बालकाण्ड में उल्लेख है अयोध्या 12 योजन (96 मील) लम्बी और 3 योजन (24 मील) चौड़ी थी। वाल्मीकि रामायण में अयोध्या पुरी का वर्णन विस्तार से किया गया है। रामायण में अयोध्या नगरी के सरयु तट पर बसे होने और उस नगरी के भव्य एवं समृद्ध होने का उलेख मिलता है। वहां चौड़ी सड़के और भव्य महल थे। ब‍गीचे और आम के बाग थे और साथ ही चौराहों पर लगने वाले बड़े बड़े स्तम्भ थे। हर व्यक्ति का घर राजमहल जैसा था। इस नगरी में सुंदर, लंबी और चौड़ी सड़कें थीं। इद्र की अमरावती की तरह महाराज दशरथ ने उस पुरी को सजाया था। कहते हैं भगवान श्रीराम के जल समाधि लेने के पश्चात अयोध्या कुछ काल के लिए उजाड़-सी हो गई थी, लेकिन उनकी जन्मभूमि पर बना महल वैसे का वैसा ही था। भगवान श्रीराम के पुत्र कुश ने एक बार पुन: राजधानी अयोध्या का पुनर्निर्माण कराया। इस निर्माण के बाद सूर्यवंश की अगली 44 पी यों तक इसका अस्तित्व आखरी राजा, महाराजा बृहलदल तक अपने चरम पर रहा। कौशलराज बृहलदल की मृत्यु महाभारत युग में अभिमन्यु के हाथों हुई थी। महाभारत के युद्ध के बाद अयोध्या उजड़-सी हो गई, मगर श्रीराम जन्मभूमि का अस्तित्व फिर भी बना रहा ।

विक्रमादित्य के बाद के राजाओ ने समय-समय पर इस मंदिर की देख-रेख की। उन्ही में से एक शुंग वंश के प्रथम शासक पुषयमित्र शुंग ने भी मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। पुषयमित्र का एक शिलालेख अयोध्या से प्राप्त हुआ था उसमें उसे सेनापति कहा गया है तथा उसके द्वारा दो अश्वमेध यज्ञो के किए जाने का वर्णन है। अनेक अभिलेखों ज्ञात होता है गुप्तवंशीय चद्रगुप्त द्वितीय के समय और तत्पश्चात काफी समय तक अयोध्या गुप्त साम्राज्य की राजधानी थी। गुप्तकालीन महाकवि कालिदास ने अयोध्या का रघुवंश में कई बार उल्लेख किया है।

चीनी फा-यान ने यहां देखा कई बौध मठों का रिकॉर्ड रखा गया है। यहां पर 7वीं शताब्दी में चीनी यात्री हेनसांग आया था। उसके अनुसार यहां 20 बौध मंदिर थे तथा 3,000 भिक्षु रहते थे और यहां हिंदुओ का एक प्रमुख और भव्य मंदिर भी था, जहां रोज हजारों की संखया में लोग दर्शन करने आते थे जिसे राम मंदिर कहा जाता था।

इसके बाद ईसा की 11वीं शताब्दी में कन्नौज नरेश जयचंद आया तो उसने मंदिर पर सम्राट विक्रमादित्य के प्रशस्ति शिलालेख को उखाड़कर अपना नाम लिखवा दिया। पानीपत के युद्ध के बाद जयचंद का भी अंत हो गया। इसके बाद भारतवर्ष पर आक्रांताओ का आक्रमण और बढ़ गया। आक्रमणकारियों ने काशी, मथुरा के साथ ही अयोध्या में भी लूटपाट की और पुजारियों की हत्या कर मूर्तिया तोड़ने का क्रम जारी रखा। लेकिन 14वीं सदी तक वे अयोध्या में राम मंदिर को तोड़ने में सफल नहीं हो पाए। विभिन्न आक्रमणों के बाद भी सभी झंझावातों को झेलते हुए श्रीराम की जन्मभूमि पर बना भव्य मंदिर 14वीं शताब्दी तक बचा रहा। कहते हैं कि सिकंदर लोदी के शासनकाल के दौरान यहां मंदिर मौजूद था। अंतत: 1527-28 में अयोध्या में स्थित भव्य मंदिर को तोड़ दिया गया और उसकी जगह बाबरी ढांचा खड़ा किया गया। कहते हैं मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर के एक सेनापति ने बिहार अभियान के समय अयोध्या में श्रीराम के जन्मस्थान पर स्थित प्राचीन और भव्य मंदिर को तोड़कर एक मस्जिद बनवाई थी, जो 1992 तक विद्यमान रही। बाबरनामा के अनुसार 1528 में अयोध्या पड़ाव के दौरान बाबर ने मस्जिद निर्माण का आदेश दिया था।

हिंदुओं के दावे के बाद से विवादित जमीन पर नमाज के साथ-साथ पूजा भी होने लगी। 1853 में अवध के नवाब वाजिद अली शाह के समय पहली बार अयोध्या में साम्प्रदायिक हिंसा भड़की। 1859 में अंग्रेजी प्रशासन ने विवादित जगह के आसपास बाड़ लगा दी। मुसलमानों को ढांचे के अंदर और हिंदुओं को बाहर चबूतरे पर पूजा करने की इजाजत दी गई। असली विवाद शुरू हुआ 23 दिसंबर 1949 को, जब भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाई गईं। हिंदुओं का कहना था कि भगवान राम प्रकट हुए हैं, जबकि मुसलमानों ने आरोप लगाया कि किसी ने रात में चुपचाप मूर्तियां वहां रख दीं। यूपी सरकार ने मूर्तियां हटाने का आदेश दिया, लेकिन जिला मैजिस्ट्रेट (डीएम) केके नायर ने दंगों और हिंदुओं की भावनाओं के भड़कने के डर से इस आदेश को पूरा करने में असमर्थता जताई। सरकार ने इसे विवादित ढांचा मानकर ताला लगवा दिया। यूसी पांडे की याचिका पर फैजाबाद के जिला जज केएम पांडे ने 1 फरवरी 1986 को हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत देते हुए ढांचे पर से ताला हटाने का आदेश दिया। 6 दिसंबर 1992 को वीएचपी और शिवसेना समेत दूसरे हिंदू संगठनों के लाखों कार्यकर्ताओं ने विवादित ढांचे को गिरा दिया। देश भर में सांप्रदायिक दंगे भड़के गए, जिनमें 2 हजार से ज्यादा लोग मारे गए।

अगस्त 2003 में पुरातात्विक विभाग के सर्वे में कहा गया जहां बाबरी मस्जिद बनी थी, वहां मंदिर होने के संकेत मिले हैं। भूमि के अंदर दबे खंबे और अन्य अवशेषों पर अंकित चिन्ह और मिली पॉटरी से मंदिर होने के सबूत मिले हैं। भारतीय पुरात्तत्व सर्वेक्षण द्वारा हर मिनट की वीडियोग्राफी और स्थिर चित्रण किया गया। इस खुदाई में कितनी ही दीवारें, फर्श और बराबर दूरी पर स्थित 50 जगहों से खंभों के आधारों की दो कतारें पाई गई थीं। एक शिव मंदिर भी दिखाई दिया। जीपीआरएस रिपोर्ट और भारतीय सर्वेक्षण विभाग की रिपोर्ट अब उच्च न्यायालय के रिकार्ड में दर्ज हैं। 30 सितम्बर, 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खणडपीठ ने विवादित ढांचे के संबंध में ऐतिहासिक निर्णय सुनाया। न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल एवं न्यायमूर्ति एसयू खान ने एकमत से माना जहां रामलला विराजमान हैं, वही श्रीराम की जन्मभूमि है।

9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया। 2.77 एकड़ विवादित जमीन हिंदू पक्ष को मिली। मस्जिद के लिए अलग से 5 एकड़ जमीन मुहैया कराने का आदेश। 5 अगस्त 2020 को राम मंदिर का भूमि पूजन कार्यक्रम हुआ।

राम मन्दिर अयोध्या में राम जन्मभूमि के स्थान पर बनाया जा रहा एक हिन्दू मन्दिर है जहाँ रामायण के अनुसार, हिन्दू धर्म के प्रमुख देवता भगवान श्रीराम का जन्मस्थान है। मन्दिर निर्माण की पर्यवेक्षण श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र कर रहा है। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का कार्य प्रगति पर है। इस दौरान खुदाई में प्राचीन मंदिर के अवशेष मिले हैं। इसमें अनेकों मूर्तियां और स्तंभ शामिल हैं।

कई सदियों के लंबे इंतजार के बाद भगवान रामलला गर्भगृह में विराजेंगे। पीएम मोदी के हाथों 22 जनवरी को रामलला के प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। भगवान रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए 84 सेकंड का अति सूक्ष्म मुहूर्त निकाला गया है। जो 12 बजकर 29 मिनट 8 सेकंड से 12 बजकर 30 मिनट 32 सेकंड तक होगा। ऐसे में हर भारतीय का हृदय आनंदित रोम रोम पुलकित है। गाजियाबाद के दूधेश्वर वेद विद्यापीठ के विध्यार्थी मोहित पांडे को मुख्य पूजारी के रूप मे चुना गया है। बता दे कि रामलला के प्राण प्रतिष्ठा के दिन रामलला को पीला वस्त्र धारण करवाया जायेगा। दिन के हिसाब से रामलला के वस्त्रो का रंग बदलता है।

500 साल तक हिंदू समाज के सतत संघर्ष के बाद आज अयोध्या में भव्य राम मंदिर बन रहा है। मंदिर की ऊंचाई 161 फीट रहेगी। सिर्फ नींवनीं में ही 2 लाख ईंटे लगेगी जिन पर श्रीराम लिखा होगा। सीढ़ियों की चौड़ाई 16 फीट रहेगी। मंदिर में 5 गुंबद होगे। पूरा मंदिर 360 पिलर पर टिका होगा। इसमें गर्भ गृह, कुदु मंडप, नृत्य मंडप और रंग मंडप होगा। 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में बन रहे राम मंदिर में भगवान श्री राम की प्राण-प्रतिष्ठा होगी। पूरी परियोजना 2025 तक पूरी हो सकती है। मंदिर परिसर में एक संग्रहालय, डिजिटल अभिलेखागार और एक शोध केंद्र भी बनेगा।

70 एकड़ ज़मीन में मंदिर बन रहा है। पूरे परिसर के उत्तरी हिस्से में मंदिर बन रहा है। मंदिर में राजस्थान के भरतपुर के बंसी पहाड़पुर से पत्थर मंगाए गए है। लगभग 5 लाख पत्थर मंदिर में लगाए जा रहे हैं। मंदिर का फर्श मकराना मार्बल है। मंदिर की उम्र लगभग 1,000 साल रहेगी। रामलला की मूर्ति 5 साल के भगवान राम की होगी। मूर्ति की ऊंचाई 51 इंच होगी। ललाट के ऊपर का हिस्सा अलग है। मूर्ति खड़ी होगी। मूर्ति 3 कलाकार बना रहे हैं।

अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण के साथ ही पूरे शहर के सौंदर्यीकरण के कई प्रोजेक्ट एकसाथ चल रहे हैं। राम मंदिर को जोड़ने वाले सभी रास्तों और चौक-चौराहों पर रामायणकालीन प्रसंगों का मनमोहक चित्रण किया जा रहा है। प्रमुख मार्गों की दीवारों को टेराकोटा फाइन क्ले म्यूरल कलाकृतियों से सजाने की प्रक्रिया जारी है। सभी प्रमुख मार्गों की दीवारों को कंकड़-पत्थर से बनी कलाकृतियों से सजाने का कार्य भी शुरू कर दिया है। इसमें श्रीराम दरबार, खर-दूषण वध, कैकई कोपभवन गमन दृष्य समेत अनेक प्रसंगों को दर्शाया जा रहा है। 50 से ज्यादा म्यूरल स्कल्प्चर्स व भित्ति चित्र पेंटिंग्स की ऊंचाई 9 फीट और चौड़ाई 20 फीट निर्धारित की गई है।

इस बीच इंडिगो ने मुंबई और अयोध्या के बीच सीधी कनेक्टिविटी की घोषणा करते हुए कहा कि यह उड़ान 15 जनवरी से शुरू होगी। पर्यटन की दृष्टि से 2047 तक अयोध्या को वैश्विक आध्यात्मिक राजधानी के रूप में विकसित करने पर लक्ष्य केंद्रित किया जा रहा है।

बीएनटी की खास पेशकशI

23/12/2023

भारत का सबसे बड़ा होटल - औरिका मुंबई स्काईसिटी

औरिका मुंबई स्काईसिटी मुंबई हवाई अड्डे के टर्मिनल 2 के पास स्थित है। लेमन ट्री होटल्स लिमिटेड ने 669 कमरों वाली औरिका मुंबई स्काईसिटी लॉन्च किया, जो कमरों की संख्या के हिसाब से देश का सबसे बड़ा होटल है।

औरिका, मुंबई स्काईसिटी - लेमन ट्री होटल्स द्वारा असाधारण सेवाओं और पेशकशों के माध्यम से लक्जरी को बढ़ाया जाता है। यह मुंबई एयरपोर्ट इंटरनेशनल - मुंबई छत्रपति शिवाजी महाराज इंटरनेशनल एयरपोर्ट (टर्मिनल 2) के पास बेहतरीन होटलों में से एक है। होटल का रणनीतिक स्थान मुंबई में प्रमुख परिवहन केंद्रों, कॉर्पोरेट केंद्रों और लोकप्रिय पर्यटक आकर्षणों तक आसान पहुंच प्रदान करता है, जो इसे शहर की खोज के लिए एक आदर्श आधार बनाता है।

यह संपत्ति धूम्रपान रहित है और इस्कॉन से 5.4 किमी दूर स्थित है। लेमन ट्री होटल्स द्वारा लक्जरी, पृथ्वी थिएटर 3.5 मील दूर है। औरिका, मुंबई स्काईसिटी - लेमन ट्री होटल्स द्वारा आपको जुहू बीच से 3.7 मील (6 किमी) और अमेरिकी वाणिज्य दूतावास जनरल से 4.9 मील (7.9 किमी) दूर रखता है। मुंबई में स्थित, फीनिक्स मार्केट सिटी मॉल, औरिका, मुंबई स्काईसिटी से 3.2 मील की दूरी पर - लेमन ट्री होटल्स द्वारा लक्जरी एक छत, मुफ्त निजी पार्किंग, एक रेस्तरां और एक बार के साथ आवास प्रदान करता है। यह 5 सितारा होटल रूम सर्विस, 24 घंटे का फ्रंट डेस्क और मुफ्त वाईफाई प्रदान करता है। होटल में पारिवारिक कमरे हैं। मेहमान स्पा में शारीरिक उपचार का लुत्फ़ उठा सकते हैं और 2 रेस्तरां में से किसी एक में खाने का आनंद ले सकते हैं। अन्य मुख्य आकर्षणों में एक आउटडोर पूल और एक बार/लाउंज शामिल हैं।

होटल के सभी कमरों में केतली लगी हुई है। शॉवर और मुफ़्त टॉयलेटरीज़ से सुसज्जित एक निजी बाथरूम के साथ, होटल के सभी अतिथि कमरों में एक फ्लैट स्क्रीन टीवी और एयर कंडीशनिंग है, और चयनित कमरे आपको बैठने की जगह प्रदान करेंगे। अतिथि कमरे मेहमानों को एक मिनीबार प्रदान करेंगे। दैनिक नाश्ता बुफ़े, कॉन्टिनेंटल या अमेरिकी विकल्प प्रदान करता है।

पतंजलि जी. केसवानी, अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक-लेमन ट्री होटल्स ने कहा, “औरिका होटल्स एंड रिसॉर्ट्स ब्रांड के तहत यह हमारा तीसरा होटल है, साथ ही मुंबई में भी हमारा तीसरा होटल है। मेरा मानना है कि इस अतिरिक्त सुविधा से व्यापार और अवकाश यात्रियों दोनों की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलेगी। यह लॉन्च हमें अगले चार वर्षों में परिचालन और खोले जाने सहित हमारी कुल इन्वेंट्री को 20,000+ कमरों तक लाने के हमारे लक्ष्य के एक कदम और करीब लाता है,”।

“हम इस वर्ष अपनी इन्वेंट्री में 23 प्रतिशत की वृद्धि कर रहे हैं। हमारे कमरों की संख्या 8500 से बढ़कर 10500 हो जाएगी और यह एक साल में हमने सबसे अधिक वृद्धि देखी है, हमारा लक्ष्य 3000 नए व्यक्तियों की भर्ती करना है। उनमें से लगभग आधे new और अन्य आधे होटल छोड़ने वालों के प्रतिस्थापन के लिए होंगे,” केसवानी ने कहा था।

दिसंबर 2023 से पहले औरिका, मुंबई स्काईसिटी - लेमन ट्री होटल्स द्वारा लक्जरी को औरिका, मुंबई स्काईसिटी के नाम से जाना जाता था।

बीएनटी की खास पेशकशI

18/12/2023

भारत की विविधता व उसके परिणाम

भारत की विविधता इसकी सबसे बड़ी खासियत और सबसे बड़ी खूबसूरती है। यहां के लोग विभिन्न भाषाएँ बोलते हैं। विभिन्न प्रकार का खाना खाते हैं, अलग-अलग त्यौहार मनाते हैं और भिन्न भिन्न धर्मों का पालन करते हैं तथा अलग-अलग पहनावा पहनते हैं। ये विभिन्नताएँ विविधता के पहलू हैं।

भौगोलिक दृष्टि से भारत विविधताओं का देश है। इस विशाल देश में उत्तर का पर्वतीय भू - भाग, जिसकी सीमा पूर्व में ब्रह्मपुत्र और पश्चिम में सिन्धु नदियों तक विस्तृत है। इसके साथ ही गंगा, यमुना, सतलुज की उपजाऊ कृषि भूमि, विन्ध्य और दक्षिण का वनों से आच्छादित पठारी भू - भाग, पश्चिम में थार का रेगिस्तान, दक्षिण का तटीय प्रदेश तथा पूर्व में असम और मेघालय का अतिवृष्टि का सुरम्य क्षेत्र सम्मिलित है।

भारत के विभिन्न प्रान्तों में अनेक भाषाएं अस्तित्व में हैं, जो भिन्न-भिन्न प्रान्तों को परस्पर अलग सा कर देती हैं। साइमन कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार, यहां व्यवहार में लाई जाने वाली भाषाओं की संख्या लगभग 222 है। इसके अतिरिक्त भारत के विभिन्न भागों में लगभग 545 भाषाएं व्यवहार में लाई जाती हैं। इन विभिन्न भाषाओं के कारण भारत में विविधता र्दिशत होती है। वर्तमान में भारत के संविधान द्वारा 22 भाषाओं को मान्यता प्रदान की गई है। अनेक भाषाएँ के कारण हम आपस में अजनवी समान हो जाते हैं । भाषा-भेद को यह समस्या हमारी राष्ट्रीय एकता की सबसे बड़ी बाधा है ।

भारत के अनेक क्षेत्रों में सांस्कृतिक विविधता दिखाई पड़ती है। यहाँ विभिन्न क्षेत्रों के व्यक्तियों में सांस्कृतिक भिन्नता मिलती है। लोगों का शारीरिक गठन, खान-पान, रहन-सहन, वेश-भूषा, यहाँ तक की मानसिकता भी अलग-अलग प्रकार की है। उदाहरणार्थ - उत्तर भारत में अनेक जगह यथा - दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता आदि में सभ्य, शिक्षित एवं शिष्ट लोग मिलते हैं, तो असम तथा नागालैण्ड में अपेक्षाकृत कुछ कम सुसंस्कृत एवं शिष्ट लोग मिलते हैं। भारत एक त्योहारों का देश है। यहाँ भिन्न प्रकार के त्योहार मनाए जाते है। पंजाब में बैसाखी, हिमाचल प्रदेश में फुल्लैच, हरियाणा में सांझी, उत्तर प्रदेश में लठमार होली, केरल में ओनम, तमिलनाडू में पोंगाल या असम में बिहू, काफ़ी उल्लास से मनाए जाते हैं। भारत के विभिन्न भागों में खाना पकाने का ढंग उनकी संस्कृति के मुताबिक अलग-अलग है। दक्षिण में जहाँ इडली और डोसा प्रसिद्ध हेै, वहीं उत्तर के लोग मक्की की रोटी और सरसों का साग. खाते हैं। यदि आप लोगों के पोशाकों पर ध्यान दें तो उसमें भी विविधता दिखाई पड़ती है। उदाहरण - पंजाब की महिलाएँ अधिकतर समय सल्वार-कमीज़ पहनतीं हैं, जबकि महाराष्ट्र की महिलाएँ लावनि साड़ी पहनना पसंद करती हैं।

भारत के विभिन्न भागों में अलग-अलग धर्म यथा - हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध, पारसी तथा जैन धर्म के अनुयायी रहते हैं। प्रत्येक धर्म भी कई मतों में बंटा हुआ है, उदाहरणार्थ - हिन्दू धर्म जिसे भारत का सर्वाधिक प्राचीन धर्म माना जाता है, वैष्णव, शैव, सनातन, आर्य समाज, राम भक्त, कृष्ण भक्त, कबीर पन्थी, नाथ पन्थी आदि मतों में विभाजित है। अत: विभिन्न धर्म तथा मतों के अनुयायियों में धार्मिक विविधता दिखाई देती है।

ऐतिहासिक अध्ययन से ज्ञात होता है कि मौर्य, गुप्त तथा अंग्रेज़ों के शासनकाल को यदि छोड़ दिया जाए तो भारत कभी संगठित नहीं रहा, बल्कि भारत के विभिन्न भागों पर एक ही समय में कई नरेशों ने शासन किया, उदाहरणार्थ - अगर उत्तर भारत पर हर्षवर्धन का शासन था, तो उसी समय बंगाल में पाल वंशीय शासकों का तथा दक्षिण में चालुक्यों का शासन था। अत: कहा जा सकता है कि यहाँ राजनीतिक एकता का अभाव रहा है।

भारत में आर्थिक दृष्टि से भी विविधता व्याप्त है। यहाँ धन का असमान वितरण है। एक तरफ़ ऐसा वर्ग है, जो अथक परिश्रम के पश्चात् दो वक्त की रोटी लायक़ पैसा नहीं कमा पाता है, वहीं दूसरी तरफ़ ऐसा भी वर्ग है, जिसकी आर्थिक स्थिति इतनी सुदृढ़ तथा आय इतनी अधिक है कि इस वर्ग के व्यक्तियों की गणना विश्व के धनाढ्य व्यक्तियों में की जाती है।

भारत में विभिन्नता के कुछ परिणाम भी सामने आए है। विभिन्न क्षेत्रों के प्राकृतिक साधनों, क्षेत्रीयता, भाषा के आधार पर नए-नए राज्यों की माँग को लेकर कई हिंसक आन्दोलन हुए है। अक्सर विभिन्न धर्मों के लोगों के लिए बनाए जाने वाले सामाजिक कानूनों में भिन्नता आ जाती है। धार्मिक आधार पर बनने वाले राजनीतिक दलों ने भी साम्प्रदायिक संघर्षों को बढ़ाने में वृद्धि की व जन समाज को बहुसंख्यक एवं अल्पसंख्यक जैसे वर्गों में बाँट दिया गया। सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता के परिणामस्वरूप समाज कई टुकड़ों में बँट जाता है तो वहाँ की राजनीति सिद्धान्तों पर आधारित नहीं रह पाती। भारत के लोगों के नैतिक स्तर का निरन्तर पतन हो रहा है और हिंसा एवं उपद्रवों में निरन्तर वृद्धि हो रही है। आर्थिक असमानता के कारण विभिन्न वर्गो में द्वेष बढता है तथा इससे वर्ग संघर्ष, अशान्ति एवं अमीरों के प्रति घृणा बढती है। यह वातावरण राष्ट्र-निर्माण एवं राष्ट्रीय विकास के लिए उचित नहीं है।

भारत की विविधता में एकता गौरव और शक्ति का स्रोत है। यह इस बात का जीता- जागता उदाहरण है कि कैसे एक राष्ट्र अपनी असंख्य संस्कृतियों, भाषाओं और परंपराओं के साथ सौहार्दपूर्वक सह- अस्तित्व में रह सकता है। यह विविधता न केवल भारत की विशिष्टता को परिभाषित करती है, बल्कि दुनिया के लिए एक प्रेरणा के रूप में भी काम करती है, जो मतभेदों को गले लगाने और उनके भीतर एकता खोजने की सुंदरता को प्रदर्शित करती है।

बीएनटी की खास पेशकशI

18/12/2023

भारत का सबसे बड़ा नेशनल पार्क - हेमिस

भारत दुनिया के सबसे विविध वन्यजीवों में से कुछ का घर है। यह भूमि पक्षियों की 2000 से अधिक प्रजातियों और स्तनधारियों की 500 से अधिक प्रजातियों का पालन-पोषण करती है। जब भारत सरकार ने वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 पारित किया तो राष्ट्रीय उद्यानों की स्थापना में तेजी आई। पहले भारत में केवल 5 राष्ट्रीय उद्यान थे, अब यह संख्या 106 हो गई है जो बहुत बड़ी है। भारत भर में फैले राष्ट्रीय उद्यानों का नेटवर्क कुछ सबसे विविध पारिस्थितिक तंत्रों और दुर्लभ वन्यजीव प्रजातियों को आश्रय देता है। ये संरक्षित क्षेत्र वन्यजीवों के साथ-साथ पौधों की प्रजातियों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

भारत के कई राष्ट्रीय उद्यानों में से, 4,400 वर्ग किलोमीटर के विशाल क्षेत्र में फैला हेमिस नेशनल पार्क न केवल भारत में बल्कि विश्व स्तर पर भी सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान है। जम्मू और कश्मीर के सुदूर लद्दाख क्षेत्र में स्थित, यह समुद्र तल से 3,000 से 5,000 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। हेम ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी इलाका बर्फ से ढकी चोटियों, अल्पाइन जंगलों, घास के मैदानों और हिमनद धाराओं की विशेषता वाली बेजोड़ प्राकृतिक सुंदरता प्रस्तुत करता है। हेमिस राष्ट्रीय उद्यान हिम तेंदुओं के लिए प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि हेमिस नेशनल पार्क में हिम तेंदुओं का घनत्व दुनिया के किसी भी अन्य स्थान या संरक्षित क्षेत्रों से अधिक है।

1981 में एक राष्ट्रीय उद्यान के रूप में घोषित, हेमिस का उद्देश्य क्षेत्र के लुप्तप्राय वन्य जीवन और अद्वितीय ट्रांस-हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करना है।

यह प्रतिष्ठित हिम तेंदुआ, तिब्बती भेड़िया, भूरा भालू और यूरेशियन लिंक्स सहित दुर्लभ पशु प्रजातियों का घर है जो अत्यधिक ठंडे रेगिस्तानी परिस्थितियों में जीवित रहने के लिए अच्छी तरह से अनुकूलित हैं।

यह पार्क विविध पक्षी प्रजातियों जैसे हिमालयी गिद्ध, चुकार पट्रिज, ग्रांडाला और शिकार के विभिन्न पक्षियों का भी समर्थन करता है।

हेमिस की अनूठी विशेषताओं में औषधीय पौधों की व्यापकता है, जिनमें से कुछ अन्यत्र कहीं नहीं पाए जाते हैं। इसके भू-भाग की पच्चीकारी में शुष्क अल्पाइन सीढ़ियाँ और नम घास के मैदान शामिल हैं जो स्थानीय समुदाय द्वारा पाले गए पशुधन को जीविका प्रदान करते हैं।
हेमिस नेशनल पार्क के प्रवेश द्वार के पास स्थित प्रसिद्ध हेमिस मठ की उपस्थिति के कारण इसका धार्मिक महत्व है।

स्टोक कांगड़ी जैसे बर्फ से ढके पहाड़ों, हिमनदी घाटियों और अल्पाइन चरागाहों के शानदार दृश्य पूरे वर्ष प्रकृति प्रेमियों और साहसिक उत्साही लोगों को आकर्षित करते हैं। इन ऊंचाईयों पर, सर्दियों के दौरान मौसम ठंडा रहता है और तापमान शून्य से नीचे तक गिर जाता है।

पार्क अधिकारियों ने नाजुक पारिस्थितिकी पर न्यूनतम प्रभाव सुनिश्चित करते हुए गतिविधियों को विनियमित करने के लिए कड़े उपाय लागू किए हैं। वे अन्य संरक्षण उद्देश्यों के साथ-साथ लुप्तप्राय हिम तेंदुओं के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान और आवास संरक्षण को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए, हेमिस नेशनल पार्क, लद्दाख के उच्च ऊंचाई वाले ट्रांस-हिमालयी क्षेत्रों के बीच एक प्राकृतिक आश्चर्य है।

बीएनटी की खास पेशकश!

14/12/2023

रुद्राक्ष : प्रकार और महत्व

हिंदू धर्म में रुद्राक्ष की पूजा भी की जाती हैं। रुद्राक्ष को भगवान शंकर से जुड़ा हुआ मानने के चलते इसे हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। रुद्राक्ष को लेकर यह भी मान्यता है कि रुद्राक्ष धारण करने से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। जानकारों की मानें तो रुद्राक्ष का लाभ अदभुत और अचूक होता है, परन्तु यह तभी सम्भव है जब सोच समझकर नियमों का पालन करके रुद्राक्ष धारण किया जाए।

रुद्राक्ष एक फल की गुठली है। इसका उपयोग मुख्य रूप से आध्यात्मिक क्षेत्र में किया जाता है। रुद्राक्ष कई प्रकार के होते हैं और हर तरह के रुद्राक्ष का अपना एक खास महत्व होता है। पंडित सुनील शर्मा के अनुसार शिवपुराण में 14 प्रकार के रुद्राक्ष का उल्लेख किया गया है। इनमें एक मुखी रुद्राक्ष से लेकर 14 मुखी रुद्राक्ष होते हैं, वहीं इनके अलावा दो और प्रकार के रुद्राक्ष भी माने गए हैं, जो गौरी शंकर रुद्राक्ष व गणेश रुद्राक्ष हैं। उनके अनुसार हर प्रकार के रुद्राक्ष को शरीर पर धारण करने का अलग अलग मतलब होता है।

जानकारों के अनुसार पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने एक बार कई वर्षों तक तपस्या की, इस दौरान किन्हीं कारणोंवश जब उन्होंने अपनी आंखें खोली तो उनकी आंखों से जो आंसू निकले और इन्हीं आंसुओं से रुद्राक्ष के वृक्ष की उत्पत्ति हुई। यही कारण है कि हिंदू धर्म में रुद्राक्ष की पूजा की जाती है।

रुद्राक्ष धारण करने के नियम:

रुद्राक्ष को कलाई, कंठ और ह्रदय पर धारण किया जाता है, वहीं इसे कंठ प्रदेश तक धारण करना सबसे उचित माना गया है।
रुद्राक्ष का एक दाना धारण करने पर यह दाना ह्रदय तक होना चाहिए।
जबकि कलाई में बारह,कंठ में छत्तीस और ह्रदय पर एक सौ आठ दानों को धारण करना चाहिए।
रुद्राक्ष धारण करना सर्वोत्तम दिन सावन में, सोमवार को या शिवरात्रि का दिन माना जाता है।
रुद्राक्ष को शिव जी को समर्पित करने के बाद धारण करना चाहिए और उसी माला या रुद्राक्ष पर मंत्र जाप करना चाहिए।
रुद्राक्ष धारण करने वालों को सात्विक रहने के अलावा आचरण को शुद्ध रखना चाहिए।

ऐसे समझें रुद्राक्ष के प्रकार व उनका महत्व:

एक मुखी रुद्राक्ष
शोहरत, पैसा, सफलता पाने और ध्‍यान करने के लिए लाभकारी है। इसके अलावा एक मुखी रुद्राक्ष ब्‍लडप्रेशर और दिल से संबंधित रोगों से भी बचाता है। यह सूर्य ग्रह से संबंधित माना गया है। जानकारों के अनुसार पूरे ब्रह्मांड की कल्‍याणकारी वस्‍तुओं में एकमुखी रुद्राक्ष का नाम सर्वप्रथम आता है। ये रुद्राक्ष गंभीर पापों से मुक्‍ति दिलाता है। इसके प्रभाव में मनुष्‍य अपनी इंद्रियों को वश में कर ब्रह्म ज्ञान की प्राप्‍ति की ओर अग्रसर होता है। धन प्राप्‍ति में भी एकमुखी रुद्राक्ष फायदेमंद साबित होता है। मंत्र: ऊं ह्रीं नम:।

दो मुखी रुद्राक्ष
आत्‍मविश्‍वास और मन की शांति की प्राप्‍ति के लिए और सर्दी-जुकाम, तनाव और स्‍नायु तंत्र के विकार और अच्‍छी नींद के लिए इसे विशेष माना गया है। यह चंद्रमा ग्रह से संबंधित है। माना जाता है कि दो मुखी रुद्राक्ष में साक्षात् शिव और पार्वती बसते हैं। इसे धारण करने के बाद आप अपनी सारी समस्‍याएं ईश्‍वर पर छोड़ दें, वही आपके बिगड़े काम संवारेंगें। दांपत्‍य जीवन को सुखी बनाने के लिए दो मुखी रुद्राक्ष अत्‍यंत लाभकारी है। मंत्र: ऊं नम:।

तीन मुखी रुद्राक्ष
इसका महत्व मन की शुद्धि और स्‍वस्‍थ जीवन के लिए माना जाता है। यह मंगल ग्रह से संबंधित है। तीन मुखी रुद्राक्ष को अग्‍नि देव का स्‍वरूप कहा गया है। जिस प्रकार अग्‍नि के संपर्क में आने से स्‍वर्ण भी शुद्ध हो जाता है ठीक उसी प्रकार तीन मुखी रुद्राक्ष भी धारणकर्ता के शरीर को शुद्ध करता है। मंत्र: ऊं क्‍लीं नम:।

चार मुखी रुद्राक्ष
मानसिक क्षमता, एकाग्रता और रचनात्‍मकता के लिए इसका खास महत्व माना गया है। यह बुध ग्रह से संबंधित है। जानकारों के अनुसार चार मुखी रुद्राक्ष के प्रभाव से ज्ञान और संतान प्राप्‍ति के मार्ग में आ रही समस्‍याएं दूर होती हैं। ये एकाग्रता बढ़ाता है एवं वैज्ञानिक अध्‍ययन और धार्मिक ग्रंथों के अध्‍ययन में चार मुखी रुद्राक्ष काफी फायदेमंद साबित होता है। मंत्र: ऊं ह्रीं नम:।

पांच या पंचमुखी रुद्राक्ष
इसे ध्‍यान और आध्‍यात्‍मिक कार्यों के लिए उत्तम माने जाने के साथ ही रक्‍तचाप, एसिडिटी और ह्रदय संबंधी रोगों के लिए खास माना गया है। यह ब्रहस्पति यानि गुरु ग्रह से संबंधित है। मान्यता है कि पांच मुखी रुद्राक्ष पर पंच देवों की कृपा बरसती है जिस कारण यह पंच तत्‍वों से निर्मित दोषों का नाश करता है। पांच मुखी रुद्राक्ष मानसिक शांति प्रदान कर मन के रोगों को दूर करता है। गृहस्‍थ जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। मंत्र: ऊं ह्रीं नम:।

छह मुखी रुद्राक्ष
इसे ज्ञान, बुद्धि, संचार कौशल और आत्‍मविश्‍वास के लिए खास माना जाता है। यह शुक्र ग्रह से संबंधित है। माना जाता है कि इसके प्रभाव से बुद्धि तेज होती है और ज्ञान की प्राप्‍ति होती है। छह मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से ब्रह्महत्‍या जैसे जघन्‍य पाप से मुक्‍ति मिलती है। जिन लोगों के वैवाहिक जीवन में प्रेम की कमी है या अलगाव की स्थिति है तो उन्‍हें छह मुखी रुद्राक्ष से अवश्‍य ही लाभ होगा। मंत्र: ऊं ह्रीं हूं नम:।

सात मुखी रुद्राक्ष
इसे आर्थिक और कॅरियर में विकास के साथ ही हड्डियों और नसों व गर्दन दर्द से मुक्‍ति पाने के लिए विशेष महत्व वाला माना गया है। यह शनि ग्रह से संबंधित है। मान्यता के अनुसार सात मुखी रुद्राक्ष चोरी के आरोप से मुक्‍त करता है। नौकरी और व्‍यापार में सफलता पाना चाहते हैं तो सात मुखी रुद्राक्ष से आपको लाभ होगा और भाग्‍योदय होगा। सात मुखी रुद्राक्ष के प्रभाव में धन का आगमन होता है। मंत्र: ऊं हूं नम:।

आठ मुखी रुद्राक्ष
इसका उपयोग कॅरियर में आ रही बाधाओं और मुसीबतों को दूर करने के अलावा कमर दर्द, शरीर में दर्द और किडनी और लिवर संबंधी समस्‍याओं के लिए किया जाता है। यह राहु ग्रह से संबंधित है। माना जाता है कि आठ मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से भय और अकाल मृत्‍यु का डर समाप्‍त हो जाता है।ऐसा माना जाता है कि आठ मुखी रुद्राक्ष धारण करने वाला व्‍यक्‍ति मृत्‍यु के पश्‍चात् भगवान शंकर के गणों में शामिल होता है। आठ मुखी रुद्राक्ष बुद्धि, ज्ञान, धन, यश और उच्च पद की प्राप्ति में सहायक सिद्ध होता है। मंत्र: ऊं हूं नम:।

नौ मुखी रुद्राक्ष
इसका महत्व मुख्य रूप से ऊर्जा, शक्‍ति, साहस और निडरता पाने के अलावा पेट और त्‍वचा संबंधित समस्‍याओं से छुटकारा पाने के लिए माना गया है। ये केतु ग्रह से संबंधित है। जानकारों के अनुसार नौ मुखी रुद्राक्ष से धन सम्पत्ति, मान-सम्मान, यश, कीर्ति और सभी प्रकार के सुखों की वृद्धि होती है। नौ मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से आंखों की दृष्टि तेज होती है। ये मनुष्‍य को मानसिक और भौतिक दुखों से बचाता है। मंत्र: ऊं ह्रीं हूं नम:।

दस मुखी रुद्राक्ष
इसका महत्व मुख्य रूप से नकारात्‍मक शक्‍तियों और नज़र दोष से बचाने व वास्‍तु और कानूनी मामलों से रक्षा करने के लिए माना जाता है। इसके अलावा यह इंसोमनिया से बचाव के लिए भी उपयुक्त माना जाता है। दस मुखी रुद्राक्ष भूत-प्रेत, डाकिनी और पिशाचिनी जैसी बुरी शक्‍तियों से बचाता है। दस मुखी रुद्राक्ष धारण करने से दमा, गठिया, पेट और नेत्र संबंधी रोग दूर होते हैं। यह रुद्राक्ष ग्रह दोष को भी दूर करता है। मंत्र: ऊं ह्रीं नम:।

ग्‍यारह मुखी रुद्राक्ष
इसे आत्‍मविश्‍वास में बढ़ोत्तरी, निर्णय लेने की क्षमता, क्रोध नियंत्रण और यात्रा के दौरान नकारात्‍मक ऊर्जा से सुरक्षा पाने के लिए धारण किया जाता है। वहीं ये भी माना जाता है कि यह प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाए रखता है। यह मंगल ग्रह से संबंधित माना गया है। माना जाता है कि ग्‍यारह मुखी रुद्राक्ष से आय के स्रोत खुलते हैं और व्‍यापार में वृद्धि होती है और नए अवसर प्राप्‍त होते हैं। रोग से मुक्‍ति मिलती है। ग्‍यारह मुखी रुद्राक्ष को धारण करने वाले व्‍यक्‍ति को राजनीति, कूटनीति और हर क्षेत्र में विजय हासिल होती है। संतान प्राप्‍ति की इच्‍छा रखते हैं या पति की तबियत खराब रहती है तो ग्‍यारह मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। मंत्र: ऊं ह्रीं हूं नम:।

बारह मुखी रुद्राक्ष
इसे ह्रदय संबंधित परेशानियों में लाभकारी माने जाने के साथ ही नाम, शोहरत, सफलता प्राप्‍त की मनोकामना से भी पहना जाता है। इसे धारण करने का महत्व प्रशासनिक कौशल और नेतृत्‍व करने के गुणों का विकास के लिए भी माना गया है। यह सूर्य ग्रह से संबंधित है। जानकारों के अनुसार राजनीति या सरकारी क्षेत्रों में काम कर रहे जातकों को बारह मुखी रुद्राक्ष से लाभ मिलता है।बारह मुखी रुद्राक्ष असाध्‍य और भयानक रोगों से मुक्‍ति दिलाता है। ह्रदय रोग, उदर रोग व मस्तिष्क से सम्बन्धित रोगों में बारह मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से लाभ होता है। मंत्र: ऊं रों शों नम: ऊं नम:।

तेरह मुखी रुद्राक्ष
इस रुद्राक्ष का महत्व आर्थिक स्थिति को मजबूत कर आपके आकर्षण और तेज में वृद्धि करने के अलावा मधुमेह और यौन रोगों से निजाद दिलाने में माना जाता है। यह शुक्र ग्रह से संबंधित है। जानकारों की मानें तो तेरह मुखी रुद्राक्ष वैवाहिक जीवन के लिए अति उत्‍तम होता है। तेरह मुखी रुद्राक्ष निसंतान दंपत्तियों को संतान प्राप्‍ति का आशीर्वाद प्रदान करता है। तेरह मुखी रुद्राक्ष वशीकरण का सकारात्‍मक तरीका है। इस रुद्राक्ष से प्रेम सुख मिलता है। मंत्र: ऊं ह्रीं नम:।

चौदह मुखी रुद्राक्ष
इसका महत्व छठी इंद्रीय जागृत के सही निर्णय लेने की क्षमता प्रदान में माना गया है। यह शनि ग्रह से संबंधित है। माना जाता है कि चौदह मुखी रुद्राक्ष को धारण करने वाले व्‍यक्‍ति को कभी भी जेल जाना नहीं पड़ता। भगवान शिव भी चौदह मुखी रुद्राक्ष ही धारण करते हैं इसलिए इस रुद्राक्ष का अत्‍यंत महत्‍व है। चौदह मुखी रुद्राक्ष पक्षाघात की चिकित्सा के लिए अत्यंत हितकारक है। मंत्र: ऊं नम:।

गणेश रुद्राक्ष
इसका महत्व ज्ञान, बुद्धि और एकाग्रता में वृद्धि में माना गया है। मान्यता के अनुसार गणेश रूद्राक्ष पहने हुए एक व्यक्ति को जीवन के सभी क्षेत्रों में से सफलता प्राप्त होती है। गणेश रुद्राक्ष को धारण करने से सभी तरह के क्‍लेशों से मुक्‍ति मिलती है। गणेश रुद्राक्ष को धारण करने से केतु के अशुभ प्रभावों से भी मुक्‍ति मिलती है। मंत्र: ऊं श्री गणेशाय नम:।

गौरी शंकर रुद्राक्ष
परिवार में सुख-शांति आने और मानसिक शांति का अनुभव कराने में इसका महत्व माना गया है। यह चंद्रमा से संबंधित माना जाता है। पंडितों व जानकारों के अनुसार गृहस्‍थ सुख के लिए गौरी शंकर रुद्राक्ष अति शुभ माना जाता है। जिन स्त्रियों को गर्भ से सम्बंधित कोई समस्या हो उनके लिए भी यह लाभकारी हो सकता है। जिन लोगों के विवाह में देरी हो रही हो या कोई बाधा आ रही है, तो उन्‍हें गौरी शंकर रुद्राक्ष धारण करने से फायदा पहुंचता है। मंत्र: ऊं गौरी शंकराय नम:।

रुद्राक्ष, जिसकी भारतीय आध्यात्मिकता और कल्याण में महत्वपूर्ण भूमिका है, नेपाल, भारत, हिमालय की तलहटी में और इंडोनेशिया में उगाया जाता है। ज्योतिष शास्त्र और आयुर्वेद में भी इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। रुद्राक्ष के पेड़ों में, नेपाल में, विशेषकर डिंगला क्षेत्र के पेड़ सबसे अच्छे हैं।

बीएनटी की खास पेशकशI

08/12/2023

1000 साल पुराने रहस्‍यमय शव, क्या 'एलियन' हैं

लैटिन अमेरिकी देश मेक्सिको की संसद में एलियन को लेकर एक असामान्‍य घटना देखने को मिली है। इसे मानव सभ्‍यता के इतिहास में एक निर्णायक क्षण कहा जा रहा है। इससे आने वाले समय में एलियन और यूएफओ में लोगों की रुचि और ज्‍यादा बढ़ सकती है। दरअसल, मेक्सिको की कांग्रेस के अंदर एक आधिकारिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें दो 'एलियन शव' का प्रदर्शन किया गया। ताकि लोग उन्‍हें देख सकें। इस घटना को इंसानी इतिहास में निर्णायक मौका बताया जा रहा है। इसको लेकर दुनियाभर में चर्चा है। एलियन की इन लाशों का आधिकारिक अनावरण यूएफओ विशेषज्ञ जैमी मौसान ने किया।

ये दो छोटे-छोट शव सभी पर्यवेक्षकों के लिए रखे गए हैं। आयोजकों का दावा है कि यह ममी बन चुकीं लाशें 1000 साल पुरानी हैं और इन्‍हें पेरू के कूस्‍को से हासिल किया गया है। मौसान ने मैक्सिको सरकार के सदस्‍यों से कहा कि 'यूएफओ के नमूने' का मेक्सिको की एक यूनिवर्सिटी में अध्‍ययन किया गया है जहां उनके मुताबिक वैज्ञानिकों ने जोर देकर कहा है कि उन्‍होंने रेडियोकार्बन डेटिंग के आधार पर डीएनए साक्ष्‍य हासिल करने में सफलता हासिल की है।

मार्का डॉट काम ने मौसान के हवाले से कहा, 'ये नमूने हमारी पृथ्‍वी के विकास के हिस्‍सा नहीं हैं। ये एक शैवाल की खान में मिले हैं और बाद में वे जीवाश्‍म में बदल गए। अमेरिका की तरह से ही मैक्सिको के सांसदों ने भी यूएफओ के ऊपर एक सुनवाई आयोजित की है। मंगलवार को दो लाशों को जिन्‍हें 'गैर इंसानी' एलियन जीव माना जा रहा है, उन्‍हें संसद के अंदर प्रदर्शित किया गया। मौसान एक पत्रकार भी हैं और लंबे समय से परग्रही जीवों के बारे में जांच कर रहे हैं।

इस कार्यक्रम में अमेरिकी नौसेना के पूर्व पायलट रयान ग्रेव्‍स भी मौजूद थे। रयान ने दावा किया है कि उड़ानों के दौरान उनका सामना यूएफओ से हुआ था। ये ममी में बदल चुके शव शीशे के बॉक्‍स में रखे गए थे ताकि और लोग भी उन्‍हें देख सकें। मौसान ने सुनवाई के दौरान मैक्सिको सरकार और अमेरिका के अधिकारियों को इस खोज की जानकारी दी। दुनियाभर में एलियन को लेकर अक्‍सर कई दावे किए जाते रहे हैं। हाल में अमेरिका ने इसको लेकर बड़ा दावा किया था। इन ममी के इंसान की तरह से चेहरे हैं। उनके हाथों में तीन उंगलियां और पैर हैं।

मौसन ने प्रेजेंटेशन में कहा कि नमूने पेरू की प्राचीन नाजका लाइन्स के पास से बरामद किए गए थे और मेक्सिको के राष्ट्रीय स्वायत्त विश्वविद्यालय (यूएनएएम) द्वारा कार्बन-डेटेड किया गया था और निष्कर्ष निकाला गया था कि वे लगभग 1,000 साल पुराने थे। उन्होंने दावा किया कि उनका पृथ्वी पर किसी भी प्रजाति से कोई संबंध नहीं है। अतीत में इसी तरह की खोजें ममीकृत बच्चों के अवशेष के रूप में सामने आई हैं।

प्रिंसटन विश्वविद्यालय के खगोल भौतिकी विभाग के पूर्व प्रमुख और रिपोर्ट के अध्यक्ष डेविड स्पर्गेल ने कहा कि उन्हें नमूनों की प्रकृति के बारे में पता नहीं है लेकिन उन्होंने पारदर्शिता का आग्रह किया है। उन्होंने कहा, "अगर आपके पास कुछ अजीब है, तो दुनिया के वैज्ञानिक समुदाय को नमूने उपलब्ध कराएं और हम देखेंगे कि उनमें क्या है।"

बीएनटी की खास पेशकशI

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