17/01/2024
भगवान विष्णु गरुड़ पर बैठकर कैलाश पर्वत पर गए। द्वार पर गरुड़ को छोड़कर खुद शिव से मिलने अंदर चले गए। तब कैलाश की अभूतपूर्व प्राकृतिक शोभा को देखकर गरुड़ मंत्रमुग्ध थे कि तभी उनकी नजर एक खूबसूरत छोटी-सी चिडि़य़ा पर पड़ी। चिडिय़ा कुछ इतनी सुंदर थी कि गरुड़ के सारे विचार उसकी तरफ आकर्षित होने लगे। उसी समय कैलाश पर यमदेव पधारे और अंदर जाने से पहले उन्होंने उस छोटे से पक्षी को आश्चर्य की दृष्टि से देखा। गरुड़ समझ गए कि उस चिडिय़ा का अंत निकट है और यमदेव कैलाश से निकलते ही उसे अपने साथ यमलोक ले जाएंगे।
गरुड़ को दया आ गई। वह इतनी छोटी और सुंदर चिडिय़ा को मरता हुआ नहीं देख सकते थे। उन्होंने उसे अपने पंजों में दबाया और कैलाश से हजारों कोस दूर एक जंगल में एक चट्टान के ऊपर छोड़ दिया और खुद वापस कैलाश पर आ गए।
आखिर जब यमदेव आए तो गरुड़ ने पूछ ही लिया कि उन्होंने उस चिडिय़ा को इतनी आश्चर्य भरी नजर से क्यों देखा था? यमदेव बोले, ‘‘गरुड़ जब मैंने उस चिडिय़ा को देखा तो मुझे ज्ञात हुआ कि वह चिडिय़ा कुछ ही पल में यहां से हजारों कोस दूर एक नाग द्वारा खा ली जाएगी, मैं सोच रहा था कि वह इतनी जल्दी इतनी दूर कैसे जाएगी पर अब जब वह यहां नहीं है तो निश्चित ही वह मर चुकी होगी।
गरुड़ समझ गए कि मृत्यु टाले नहीं टलती, चाहे कितनी भी चतुराई की जाए। इसलिए कृष्ण कहते हैं: करता तू वह है, जो तू चाहता है, परंतु होता वह है, जो मैं चाहता हूं। कर तू वह जो मैं चाहता हूं, फिर होगा वो जो तू चाहेगा।