
26/05/2025
"कुछ लोग मिट्टी से जन्म लेते हैं, और कुछ लोग मिट्टी को अमरता दे जाते हैं।
जो पत्थर बेजान लगते हैं, वही किसी कलाकार के हाथों भगवान बन जाते हैं।
और जब कोई इंसान अपने जीवन को ही संघर्ष की मूर्ति बना दे,
तो वो सिर्फ नाम नहीं... एक युग बन जाता है।"
#प्रभातराय — एक ऐसा नाम, जिसने कला को साधना और मूर्तियों को आत्मा दे दी।
ग्वालियर की एक तंग गली से निकला वो कलाकार, जिसने बीड़ी बेची, बर्तन धोए,
सड़क किनारे पेंटिंग्स बेचकर भी सपनों को ज़िंदा रखा।
पिता ने कला का बीज बोया, पत्नी सुनीता संग मिलकर तपस्या की।
20 रुपये की दिहाड़ी से शुरू हुआ सफर बना **15,000+ मूर्तियों** की गाथा।
उनकी बनाई मूर्तियां आज संसद भवन, इंदौर, फ्रांस, अयोध्या तक बोलती हैं —
72 फीट हनुमान, 11 मुख ज्योतिर्लिंग, संसद की सूक्ष्म मूर्तियां, महाराजा रणजीत सिंह, भगवान राम।
हर मूर्ति में भक्ति थी, हर रचना में आत्मा।
छोटा कमरा बना "प्रभात मूर्ति कला केंद्र",
जहां आज भी सुनीता जी और उनकी टीम उस कला को जीवित रखे हुए है।
अयोध्या में स्थापित 108 फीट की भगवान राम की मूर्ति — उनकी अंतिम भव्य रचना।
उन्होंने कभी छुट्टी नहीं ली, क्योंकि उनके लिए कला ही पूजा थी।
उनका जीवन कहता है —
"संघर्ष सबसे बड़ा शिक्षक होता है, और समर्पण सबसे सच्चा धर्म।"
वो कलाकार नहीं, कलियुग के ऋषि थे।