27/09/2025
सालासर बालाजी धाम के पीछे दो मुख्य कहानियाँ हैं: एक मूर्ति के प्रकट होने से संबंधित है, और दूसरी दाढ़ी-मूँछ वाले हनुमान जी के स्वरूप से जुड़ी है। दोनों कहानियों का केंद्र भगवान हनुमान के एक महान भक्त मोहनदास जी हैं।
मूर्ति प्रकट होने की कथा
असोता गाँव में किसान को मूर्ति मिलना: संवत् 1811 (सन् 1754) में राजस्थान के असोटा गाँव में एक जाट किसान अपने खेत में हल चला रहा था। अचानक उसका हल किसी चीज से टकराकर रुक गया। जब उसने उस जगह को खोदा, तो उसे भगवान हनुमान की एक मूर्ति मिली।
ठाकुर को स्वप्न में आदेश: उसी रात, असोटा के ठाकुर को स्वप्न में भगवान हनुमान के दर्शन हुए। हनुमान जी ने ठाकुर को आदेश दिया कि इस मूर्ति को सालासर में उनके परम भक्त मोहनदास जी के पास पहुँचा दिया जाए।
मोहनदास जी को स्वप्न में वचन: उसी रात, सालासर में मोहनदास जी को भी बालाजी ने स्वप्न में दर्शन दिए और उन्हें बताया कि वह अपने वचन को निभाने के लिए काले पत्थर की मूर्ति के रूप में आ रहे हैं।
मूर्ति की स्थापना: अगले दिन, ठाकुर ने सजी-धजी बैलगाड़ी में मूर्ति को सालासर के लिए रवाना किया। जहाँ बैलगाड़ी अपने आप रुक गई, वहीं बालाजी की मूर्ति स्थापित की गई। इस तरह, संवत् 1811 (सन् 1754) में श्रावण शुक्ल नवमी, शनिवार को इस मूर्ति की स्थापना की गई।
दाढ़ी-मूँछ वाले हनुमान जी की कथा
मोहनदास जी को दर्शन: सालासर बालाजी की प्रतिमा में दाढ़ी और मूँछ होने के पीछे की कहानी भी मोहनदास जी से जुड़ी है। जब हनुमान जी ने मोहनदास जी को पहली बार दर्शन दिए थे, तो वे दाढ़ी-मूँछ वाले वेश में आए थे।
अद्भुत रूप का श्रृंगार: मूर्ति की स्थापना के बाद, एक दिन मोहनदास जी भगवान के भजन में इतने लीन हो गए कि उन्होंने मूर्ति पर घी और सिंदूर का श्रृंगार करना शुरू कर दिया। जब श्रृंगार पूरा हुआ, तो उन्हें बालाजी का वह रूप दिखा, जिसमें उन्होंने दाढ़ी-मूँछ और मस्तक पर तिलक लगाया था।
अद्वितीय रूप: चूंकि भगवान ने इसी रूप में अपने भक्त को दर्शन दिए थे, इसलिए सालासर बालाजी की प्रतिमा को इसी विशेष रूप में स्थापित किया गया। यह भारत में एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहाँ हनुमान जी को दाढ़ी-मूँछ के साथ पूजा जाता है।