07/12/2025
टिब्बी ब्लॉक राजस्थान का राईस बेल्ट कहा जाता है आजकल पूरे देश में चर्चा में है. टिब्बी के पास राठीखेड़ा गाँव में एशिया का सबसे बड़ा इथेनॉल प्लांट, 40 MW का पावर प्लांट, 555 टन प्रति दिन के dwgs ड्रायर, और 925 टन प्रति दिन कार्बन डाई आक्साइड उत्पादन वाली विशाल यूनिट लगाया जाना प्रस्तावित है. इनकी ड्राफ्ट रिपोर्ट जो पर्यावरणीय स्वीकृति के लिए काम में ली गयी उसमें बहुत सा विरोधाभास दिखता है. चंडीगढ़ की एकदम नयी कंपनी इस प्लांट के लिए आगे आई है जो 2020 में रजिस्टर की गयी.
इस प्रॉजेक्ट की aaq मॉडलिंग स्टडी में पॉइंट सोर्स प्रदुषण के भूमिगत सान्द्रता बहुत ही कम दिखाई है. इन्हें पता है कि एक बार प्रॉजेक्ट लगा दिया तो हिलाने वाला कोई नहीं है. वायु प्रदुषण मुख्यतः छोटे धूल कणों, सल्फर डाई आक्साइड व नाइट्रोजन के आक्साइड का होगा. साथ ही प्लांट से उत्सर्जक जहरीले धातु जिन्हें स्थानीय वातावरण में छोड़ा जाएगा उसकी बात रिपोर्ट में छुपाई गई है.
60 लाख लीटर प्रतिदिन भूमिगत जल निकालने की स्वीकृति केंद्रीय भू जल बोर्ड ने दी है. क्या प्लांट की भूख इतने पानी से मिट जाएगी? नहीं. ये इलाके के भू जल असंतुलन का मुख्य कारण बनेगा चूंकि इस क्षेत्र में सिंचाई भू जल पर निर्भर है
एक तिहाई effluent के वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट से ट्रीट करने की बात काग़ज़ी है. कोई प्लांट पानी शुद्ध नहीं करता. शून्य लिक्विड डिस्चार्ज का दावा करने वाले पंजाब के जीरा प्लांट में रिवर्स बोरिंग से वापस डालते हुए पकड़े गए हैं. और नवंबर 2025 में पूर्ण रूप से बंद करने के आदेश पारित हो गए हैं .
40 मेगावाट का पावर प्लांट के लिए जैव ईंधन (पराली, नर्मे की लकड़ी, bagasse) जलाने वाले बोईलर इंस्टॉल किए जाएंगे. वहीं ईंधन के रूप में कोयले का भी उपयोग होगा. तो पराली और कोयला इतनी बड़ी मात्रा में जलेगा उसके ज़हरीले धुएं का आम जनता पर निश्चित रूप से प्रभाव पड़ेगा. ये एथेनोल प्लांटों की सामान्य समस्या है कोस्ट कट के लिए धुएँ को ट्रीट नहीं करना.
पावर नहीं होने की स्थिति में 1250 kva के विशालकाय डीज़ल जेनेरेटर भी काम में लिए जाएंगे जो 500 लीटर प्रति घंटा डीज़ल की खपत करेंगे. ये धुआं कहां जाएगा? आपके घरों में, आपके फेफड़ों में और शोर आपके कानों से होते हुए हार्ट तक.
पावर प्लांट की राख सुबह सुबह आपके घरों के आँगन और छतों पर मिला करेगी. सबसे बड़ी बात यह है कि 4400 क्विंटल राख रोज बनेगी.
कम्पनी का दावा काग़ज़ी है कि दो साल में पूरा ग्रीन बेल्ट लगा देंगे. अपने आसपास चल रहे कई इथेनॉल फैक्ट्री देखें तो वहां शुरुआत तक नहीं हुई है.
कम्पनी कहती है कि प्लांट कमिश्न होने से पहले ही हर साल 5 करोड़ रुपये से सरकारी स्कूलों में इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने में मदद करना शुरू कर देंगे.
कम्पनी अपनी रिपोर्ट में कहती है कि मॉनिटरिंग के लिए लेब फैसीलिटी भी होगी जिसे कम्पनी द्वारा नौकरी दिए गए पर्यावरण के एक्सपर्ट्स ऑपरेट करेंगे. क्या ऐसा संभव है कि नौकर मालिक के ख़िलाफ़ रिपोर्ट बनाकर सबमिट करे.
कम्पनी अपनी रिपोर्ट में जमीन को गैर कृषि वाली बंजर भूमि बोलना चाह रही है. Minor vegetation is scattered in the form of bushes which will be cleared for construction. वहीं कृषि भूमि है या नहीं के बात पर कम्पनी कहती है कि कुल प्रॉजेक्ट एरिया 40 एकड़ है.
कम्पनी का दावा है कि फैक्ट्री के कुल भौगोलिक क्षेत्र के एक तिहाई भाग (5.38 हेक्टेयर) पर 5-10 मीटर मोटा ग्रीन बेल्ट प्लांट के कमिशन होने से पहले ही बना देंगे. जिसमें 2500 पेड़ प्रति हेक्टेयर में होंगे. क्या पेड़ एक दिन में ही आकार ले लेते हैं. जब कि ज़हर निकलना तो पहले दिन ही शुरू हो जाएगा.
फ़र्मेन्टेशन से बनी 9250 क्विंटल कार्बन डाई आक्साइड को स्क्रबर से इकठ्ठे करने का दावा भी खोखला है. अत्यधिक बढ़ी हुई कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा से ना सिर्फ फसलों के उत्पादन पर प्रभाव होगा. वहीं आम जनता और जीवों के लिए भी दिक्कतें है.
काला तीतर वाइल्डलाइफ सेंचुरी 30-35 किलोमीटर की दूरी पर है जो हरयाणा का राज्य पक्षी भी है. वहीं अबुबशहर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी के ब्लेक बक भी कम्पनी के प्रदूषकों की चपेट में आयेंगे. कम्पनी ने डिक्लेरेशन दिया कि 15 किलोमीटर की परिधि में कोई वाइल्डलाइफ सेंचुरी /वाइल्डलाइफ कॉरिडोर /नेशनल पार्क नहीं है. क्या पक्षी /जीव 15 किलोमीटर की एगजेक्ट सीमा मानते हैं?
जहां इस प्रॉजेक्ट से मात्र 475 लोगों को रोजगार देने का खोखला वादा किया है वहां स्थानीय लोगों को अभी क्षणिक रोजगार मिल सकता है लेकिन लंबे समय का रोजगार इसलिए नहीं मिलेगा क्यूंकि ohs का कुल बजट मात्र एक करोड़ रुपये है. स्थानीय लोगों के साथ किसी भी दुर्घटना के समय वे बड़े मुवावजे के साथ धरना प्रदर्शन कर सकते. इसलिए अन्य राज्यों से आए कामगारों को रखा जाएगा.
कंपनी के वित्तीय संसाधनों की बात करें तो पैड अप केपिटल मात्र 1 लाख रुपए है बाकी 450 करोड़ का बुलबुला लोन का है यदि किसी कारणवश ये प्रदूषण फैलाते हैं और इन पर प्रदूषकों की सफाई और जुर्माने की बात चले तो भरपाई कौन करेगा? अर्थात पर्यावरणीय जिम्मेदारियों से तो ये पहले ही भाग चुके हैं.
अब बात करते हैं 2024 में शुरू हुए समीपवर्ती भोपालपुरा के एथेनोल प्रोजेक्ट की. एनजीटी ने प्लांट पर लगे प्रदूषण के गंभीर आरोपों के बाद जांच के दिए आदेश दिये हैं. गांववालों ने फोटो, वीडियो, मेडिकल रिपोर्ट और लिखित शिकायतें सौंपकर स्थिति का सबूत दिया है। गांव में गंभीर प्रदूषण और स्वास्थ्य संकट के आरोप के प्रमाण एनजीटी में सबमिट किए गए. वहाँ राख-गंदे पानी से हवा, खेत, पानी और लोगों की सेहत बिगड़ रही है. शिकायत में दावा किया गया है कि यह संयंत्र पर्यावरण स्वीकृति की शर्तों का उल्लंघन कर रहा है। इसमें बिना ट्रीटमेंट के कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन, राख को सीधे हवा में छोड़ना शामिल है। एनजीटी को की गयी शिकायत में बताया गया है कि यह संयंत्र पर्यावरण स्वीकृति की शर्तों का उल्लंघन कर रहा है। इसमें बिना ट्रीटमेंट के कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन, राख को सीधे हवा में छोड़ना शामिल है। गंदा पानी नालों और खेतों में छोड़ा जा रहा है, जो जीरो लिक्विड डिस्चार्ज (जेडएलडी) नियम का सीधा उल्लंघन है। साथ ही, भूजल के अत्यधिक दोहन से इलाके में पानी की भारी कमी हो गई है। संयंत्र से निकलने वाला घना धुआं, हवा को जहरीला बना रहा है। तेज और असहनीय शोर ने आसपास के स्कूलों और आम जनजीवन को प्रभावित कर दिया है।जबकि यह केवल 100 केएलपीडी एवं 3 मेगा वाट के पवार प्लांट है वहीं राठीखेड़ा वाला तो 13 गुना बड़ा प्रोजेक्ट है. इन दोनों प्रोजेक्ट को ईआईए अधिसूचना के तहत ‘बी2’ श्रेणी में रखा गया था, जिससे इसे अनिवार्य रूप से की जाने वाली जनसुनवाई से छूट मिल गई, जबकि यह प्लांट आवासीय, शैक्षणिक और कृषि क्षेत्र के बेहद नजदीक स्थित है।
पंजाब के जीरा में स्थित एथेनोल फेक्टरी को बंद करने के आदेश सरकार ने नंबर 2025 में दिये हैं जो ड्यून एथेनोल प्राइवेट लिमिटेड की तरह जीरो लिक्विड डिस्चार्ज के दावे के साथ चलना शुरू हुई लेकिन पर्यावरण के सारे मानकों का उल्ल्ङ्घन करती रही जबकि 180 केएलपीडी की फेक्टरी थी.
स्थानीय लोगों से बातचीत संवाद करते हुए छोटे प्रोजेक्ट लगें और लोगों का ट्रस्ट डेवल्प हो तभी कोई प्रोजेक्ट सस्टेन कर सकता है यहाँ तो ई20 राष्ट्रीय ईंधन की नीति के नीचे स्थानीय अस्तित्व और स्वाभिमान को किनारे किए जा रहा है. विकास का ये मॉडल जरूर ढेरों सवाल लेकर आया है राजस्थान के लिए.