01/05/2025
जेठ और बहु की कहानी
एक गाँव में रामलाल और उसका परिवार रहता था। रामलाल के दो बेटे थे - बड़ा बेटा, मोहन, और छोटा बेटा, सोहन। मोहन की पत्नी का नाम सीता था, और सोहन की पत्नी का नाम गीता था।
सीता एक समझदार और सुशील बहू थी। वह घर के सभी काम करती थी, सबका आदर करती थी, और कभी किसी से झगड़ा नहीं करती थी। मोहन भी अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता था और उसकी हर बात मानता था।
इसके विपरीत, गीता थोड़ी चंचल और अपने मन की करने वाली थी। वह घर के कामों में ज्यादा ध्यान नहीं देती थी और अक्सर अपनी सास और जेठानी से छोटी-छोटी बातों पर बहस करती थी। सोहन भी अपनी पत्नी के स्वभाव से थोड़ा परेशान था, लेकिन वह उसे बहुत चाहता था।
एक दिन, गाँव में एक बड़ा त्योहार था। घर में बहुत काम था, और सभी लोग तैयारियों में लगे हुए थे। सीता सुबह से शाम तक काम कर रही थी, जबकि गीता अपने कमरे में आराम कर रही थी। मोहन ने देखा कि सीता कितनी मेहनत कर रही है, और उसे बहुत दुख हुआ।
उसने अपनी माँ से कहा, "माँजी, सीता कितना काम कर रही है, और गीता आराम कर रही है। यह ठीक नहीं है।"
माँजी ने कहा, "बेटा, तुम ठीक कह रहे हो। मैं गीता को समझाऊँगी कि उसे भी काम में हाथ बँटाना चाहिए।"
माँजी ने गीता को बुलाया और उसे प्यार से समझाया कि घर के काम में सभी को मिलकर काम करना चाहिए। गीता को अपनी गलती का एहसास हुआ, और उसने अपनी सास से माफी माँगी।
उस दिन के बाद, गीता बदल गई। वह घर के कामों में सीता की मदद करने लगी और सभी के साथ प्यार से रहने लगी। गाँव के लोग भी उसकी तारीफ करने लगे।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि परिवार में एकता और प्रेम सबसे महत्वपूर्ण है। हमें हमेशा दूसरों का सम्मान करना चाहिए और मिल-जुलकर काम करना चाहिए।