21/10/2024
"" मान्यता ""
मान्यता का अर्थ होता है किसी बात, विचार, सिद्धांत आदि को किसी समाज या संस्था द्वारा स्वीकृति मिल जाना परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि जिस बात विचार सिद्धांत को किसी ने जिस रूप में मान्यता/स्वीकृति दी गई है वह बात विचार सिद्धांत उसी स्वरूप में ही होगा । उसका स्वरूप उसके विपरीत भी हो सकता है इसी अनुक्रम में जब हम किसी विचार सिद्धांत बात आदि को मानते हैं तो इसका अर्थ यह नहीं होता कि वह कारक हमारा हो गया है ।,,,, जैसे कि सभी जानते हैं विभिन्न संप्रदायों में विभिन्न प्रकार की मान्यताएं होती हैं परंतु यदि हम किसी को मान्यता देते हैं तो वह सिर्फ किसी के द्वारा स्वीकृत मान्यता मात्र है वह हमारी योग्यता नहीं होती ।,,,,,,उदाहरणार्थ यदि कोई सूर्य को अपना मान ले इसका अर्थ यह नहीं कि सूर्य उसका हो गया किसी की मान्यता के बाद भी सूर्य सबको प्रकाश देता है। इसी प्रकार कोई जल को अपना मान ले तो जल उसका नहीं हो जाएगा उसके मान्यता के बाद भी जल सबकी प्यास बुझाने की क्षमता रखता है।,,,,,, सामान्यतः लोग किसी चीज को मान्यता देने के बाद उस पर अपना अधिकार व नियंत्रण स्थापित करते/समझते है परंतु यह यथार्थ में हो नहीं पाता केवल भ्रम रह जाता है।यदि किसी के मानने में शक्ति होती तो या जो सूर्य ,जल इत्यादि को मानते है तथा अपनी मान्यता के आधार पर जिस पर अपना अधिकार या नियंत्रण समझते हैं तो सूर्य उनका हो जाता और केवल उनके लिए प्रकाशित होता तथा जल उनका होकर केवल उनकी प्यास बुझाता।किसी चीज की मान्यता से अपना अधिकार या नियंत्रण उस पर भले न हो परंतु समाज में विचलन व समस्याएं उत्पन्न होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
Dheeraj Kumar