07/06/2025
शिलांग के हालात उन दिनों बहुत खराब थे लूट पाट गरीबी, नशा खोरी ने वहां के युवाओं को अपराध की राह पर खडा कर दिया था,बात है वर्ष 2000 की।
असम के शिलचर दूरदर्शन ने मुझे सर्वभाषा कवि सम्मेलन में काव्य पाठ के लिए बुलाया था, देश के बड़े बड़े कवि इस सम्मेलन में काव्य पाठ के लिए आये थे।
मै हरिद्वार से दिल्ली और दिल्ली से सीधे ट्रेन पकड़ कर शायद गुवाहाटी उतरी और वहां से बस से शिलचर वहां दूरदर्शन की ओर से सब रहने खाने की व्यवस्था थी, दूरदर्शन शिल्चर ने बहुत सुंदर मेजबानी की।
मेरे मन में बचपन से ही वर्षावन चेरापूंजी के लिए बहुत आकर्षण था सर्वाधिक वर्षा वाला यह क्षेत्र जब मैं गई तो सूखा पड़ा था, बहरहाल मैं शिलचर से चली तो मैंने शिलचर में लोगों को अपनी चेरापूंजी देखने की इच्छा जताई तब सबने गुवाहाटी होते हुए शिलांग जाने और वहां से टैक्सी लेकर चेरापूंजी जहां बहुत बड़ा जल प्रपात है देखने को कहा और साथ ही गुवाहाटी और शिलांग की परिस्थितियों से सजग करते हुए बताया कि वहां सुबह छः बजे से और शाम छः बजे के बाद बाहर मत निकालना, और कोई कीमती चीजें साथ मत रखना बैग पर्स मत रखना वरना किसी भी अनहोनी को रोक नहीं सकोगी, वहां के हालात बहुत खराब है,नशे का इतना बड़ा साम्राज्य है कि नशेड़ी लूटपाट को मोटरसाइकिल पर सवार घूमते हैं यदि चुन्नी भी मूल्यवान लगी तो छीन कर भाग जायेंगे।
मैंने पहले गुवाहाटी पहुंचने का फैसला किया, मै उन दिनों नेशनल यूनियन आफ़ जर्नलिस्ट तत्कालीन पत्रकारों की सबसे बड़ी संस्था जो बाद में बुरी तरह बिखर गई की नेशनल यूनिट की कार्यकारिणी सदस्य थी तो गुवाहाटी में यूनियन के सदस्यों को अपने आने की सूचना दी, उनमें वहां की यूनिट के अध्यक्ष ने अपने घर पर ही मेरे रुकने की व्यवस्था कर रखी थी बढ़िया स्वागत के लिए आज भी आभारी हूं, कामाख्या मंदिर के दर्शन करने के बाद मै शिलांग के लिए निकली, निकलने से पहले वहां के यूनिट सदस्यों ने भी मुझे उन्हीं सब खतरों से आगाह किया। और मुझे शिलांग के पुलिस बाजार में ही कोई होटल लेने की सलाह दी ।
मैंने शाम तक शिलांग पहुंच कर बहुत देखभाल और यथासामर्थ छान-बीन कर एक होटल में कमरा ले लिया होटल से ही सुबह अपनी चेरापूंजी रवानगी के लिए एक टैक्सी बुक की टैक्सी को सुबह छः बजे आना था होटल मैनेजर ने कहा आप इस ड्राईवर के साथ निश्चिंत हो कर जा सकती है ये हमारा विश्वसनीय ड्राइवर है, कोई कुछ भी आश्वासन दे लेकिन खुद में सुरक्षा और सुरक्षित निर्णय जरुरी है।
जैसे कैसे रात बीती मन में हजारों तरह के भय भी थे और चेरापूंजी देखने का आकर्षण सब बातों पर भारी था, स्कूल की किताबों में लिखा होता था एक बार चेरापूंजी जरुर देखना चाहिए और बचपन की छाप हमारे मन मस्तिष्क पर हमेशा हावी रहती है।
खैर सुबह हुई टैक्सी आ गई, ड्राईवर बोलचाल से सही लग रहा था लेकिन मेरा शंकित मन सजग था मैं निकली अपने बचपन के सपने को पूरा करने, रास्ते में ड्राइवर से भी वहां के हालात पर बात हुई उसने भी कुछ ऐसा ही माहौल बयान किया।
मेरे पास कैमरा भी था और पर्स भी मैंने घर पर फोन कर शर्मा जी को अपना पूरा प्लान बता दिया था, मैंने टैक्सी ड्राइवर से कहा देखो अगर कुछ गडबड महसूस होती है तो तुम तुरंत टैक्सी स्टार्ट करना हम फौरन यहां से निकल जायेंगे।
चेरापूंजी में चारों तरफ सूखा पड़ा था ये तो हमारी पाठ्य पुस्तकों वाला चेरापूंजी था ही नहीं उपर पहुंच कर सामने वाली पहाड़ी पर बहता बहुत बड़ा जल प्रपात देखा, बंगला देश और भारत की सीमा दिखाई दी जैसे थोड़ी ही दूर दौड कर जायेंगे तो सीमा पर पहुंच जायेंगे।
खाने पीने को वहां कुछ नहीं था चाय की दुकान दिखी थी लेकिन मैं नजारों में खो कर खतरे से कतई बेखौफ नहीं हुई थी।
थोड़ी ही देर में मुझे जैसे मेरी छठी इंद्री ने कहा कुछ खतरा है, कुछ युवक बदहाल से बहुत धीरे हमारी ओर सरक रहे थे, स्थिति को जैसे ही मैंने भांपा ठीक उसी समय ड्राइवर ने भी माहौल को खतरनाक जान टैक्सी में बैठ टैक्सी स्टार्ट की मैं पहले से सजग थी तुरंत टैक्सी में बैठ कर मै वापिस शिलांग पुलिस बाजार होटल के लिए रवाना हो गई, रात को मेरी ट्रेन थी दिल्ली के लिए मैं कुछ टूटे हुए ख्वाब को साथ लेकर फिर कभी चेरापूंजी को याद न कर पाने की मानसिकता लिए दिल्ली लौट आई और वहां से हरिद्वार पहुंच गई।
सोनम और राजा के साथ हुई घटना ने मुझे शिलांग की याद करवा दी, लेकिन सवाल ये है कि इंदौर से शिलांग हनीमून पर जाना? वहां तो कुछ है ही नहीं ऐसा जो हनीमून कपल को आकर्षित करे, तो क्यों चुना उन्होंने शिलांग को , सोनम अपनी सास से जिस झरने की बात कर रही है वो झरना तो शिलांग में केवल चेरापूंजी में ही है , एक बात और अरुणाचल और शायद मेघालय में भी एक पत्नी बहु पति की प्रथा है, कहा जाता है कि वहां स्त्री पुरुष का अनुपात विसंगत है, मानव तस्करी भी एक पक्ष है और लूटमारी तो एक पक्ष है ही, बहरहाल ईश्वर से प्रार्थना है कि वो सोनम को हर मुसीबत से छुटकारा दिलायें और सकुशल घर वापस भेज दें, राजा के हालात पर मन बहुत दुखी है, उन्हें स्कूटी का चयन भी नहीं करना चाहिए था और पहाड की इतनी उंचाई है कि स्कूटी की सवारी तो पर्याप्त नहीं थी।
फोटो रखी है लेकिन ढूढनी होगी।
मिल गईं तो शेयर करुंगी वर्ष 2000में मोबाइल फोन फोटो का कोई अवसर नहीं था, कैमरा ही रील वाला आजमाया जाता था।