
15/08/2025
तात मोर अति पुन्य बहूता, देखेउँ नयन राम कर दूता
तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग
तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग
हनुमान जी के प्रहार से व्याकुल होकर गिर पड़ने के बाद सावधान होकर लंकिनी रहती है कि हे तात! मेरे बड़े पुण्य हैं, जो मैं श्री रामचंद्रजी के दूत आपको अपने नेत्रों से देख पाई, हनुमान जी के एक क्षण मात्र के संग के कारण लंकिनी का कल्याण हो गया गोस्वामी जी कहते है कि सत्संग की ऐसी महिमा है स्वर्ग और मोक्ष के सब सुखों को तराजू के एक पलड़े में रखा जाए, तो भी वे सब मिलकर (दूसरे पलड़े पर रखे हुए) उस सुख के बराबर नहीं हो सकते, जो लव (क्षण) मात्र के सत्संग से होता है..
जय सियाराम 🙏