28/09/2025
वो बेवफा है वो हमे कहां समझती है
कितना दर्द है सीने में वो कहां समझती हैं
साथ तो वो चल पड़ी है मेरे साथ
रुकना कहां पर है कहां समझती है वो
कदम कदम पर रोकता है दिल
की ये क्या साथ निभायेगी पर
जिसको पता भी नहीं है
क्या मांगता है दिल
सुनाना चाहते थे कुछ उसको
दिल के जख्म ,
पर अल्फाजों कहां कुछ समझती है वो
एक अच्छा जीवन साथी सभी
जख्मों को भर देता है ये हम समझते थे
पर अब तो हमने अंधेरों को ही अपना घर बना लिया हमने
पर इतना कुछ वो कहां समझती हैं
चांद, तारे सब उसके है
अंधे को उजाले नहीं सहारे की जरूरत होती है
पर इतना कुछ वो कहां समझती है
वो सिर्फ़ उसका है इतना वो कहां समझती हैं
सब कुछ पाने को चाह में
एक दिन वो सब खो बैठेगी
तारे तो उसके रहेंगे पर वो
चांद को तो खो बैठेगी
हम उसके बाद, उसके ही तो है
अगर समझे तो पर
पर इतना कहां समझती हैं वो
डॉ०मोनू बौद्ध