01/09/2025
बेर-बेर करीं उधारी मत,
हर जगह हाथ पसारी मत।
महंगाई त दिन-ब-दिन बढ़त बा,
चादर से लमहर पाँव पसारी मत।
भले रात में उपासे सूतीं रउवा,
कबो ताकि दोसरा के दुआरी मत।
प्यार से भी समझा सकत बानीं,
मेहरारू के कबहूं मारी मत।
आपन जुबान काबू में राखीं,
हरदम देहल करी गारी मत।
साली के अब चक्कर छोड़ीं,
बार-बार जाईं ससुरारी मत।
मांस-मछरी जरुर खाईं रउवा,
बाकिर खाईल छोड़ीं तरकारी मत।
झगड़ा लड़ाई से फरके रहीं,
कबो गाढ़ल मुर्दा उखारी मत।
एकही शादी में खुश रहीं,
लियाई कबों दोसर नारी मत।
सबसे मिल-जुल के रहऽ “ताज”,
केहू से मोल ली झगड़ा भारी मत।
मेरे जीवन पर आधारित, मेरे द्वारI रचित कविता!
राधा||राधा||🙏