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मणिपुर के मामले में संसद में चर्चा के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने  लोकसभा में 2-3 अप्रैल की रात करीब दो बजे प्रस...
03/04/2025

मणिपुर के मामले में संसद में चर्चा के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में 2-3 अप्रैल की रात करीब दो बजे प्रस्ताव पेश किया।

- सांसदों के चर्चा के बाद गृह मंत्री शाह ने बताया कि मणिपुर में शांति बहाली के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।

- लगभग 1:40 घंटे की चर्चा के बाद मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाने का प्रस्ताव लोकसभा में 3:40 बजे मंज़ूर किया।

- विपक्ष ने आधी रात को चर्चा के औचित्य पर सवाल उठाए। इस पर स्पीकर ओम बिरला ने कहा कि चर्चा कराई जा सकती है।

बिहार की नीतीश सरकार ने उर्दू भाषा को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। सरकारी और गैर-सरकारी कर्मचारियों के...
13/03/2025

बिहार की नीतीश सरकार ने उर्दू भाषा को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। सरकारी और गैर-सरकारी कर्मचारियों के साथ-साथ साहित्य, वकालत, शिक्षा, समाजसेवा और पत्रकारिता से जुड़े व्यक्तियों को उर्दू सिखाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। यह प्रशिक्षण सत्र 8 अप्रैल 2025 से शुरू होकर 70 दिनों तक चलेगा, जिसमें प्रत्येक सोमवार से गुरुवार दोपहर 1 बजे से 3 बजे तक कक्षाएं होंगी。

उर्दू निदेशालय ने इच्छुक व्यक्तियों से ऑनलाइन या डाक के माध्यम से आवेदन आमंत्रित किए हैं। सरकार का मानना है कि उर्दू राज्य की दूसरी आधिकारिक भाषा है, और इस पहल से प्रशासनिक कार्यों में उर्दू का उपयोग सुगम होगा, जिससे उर्दू भाषी जनता के साथ बेहतर संवाद स्थापित किया जा सकेगा।

इस निर्णय का राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में भी विश्लेषण किया जा रहा है, विशेषकर आगामी विधानसभा चुनावों के संदर्भ में। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम मुस्लिम समुदाय के बीच सरकार की छवि को मजबूत करने का प्रयास हो सकता है।

कुल मिलाकर, यह पहल बिहार में भाषाई समरसता और प्रशासनिक सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।

हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (एचसीयू) के छात्र तेलंगाना सरकार द्वारा कंचा गाचीबौली में 400 एकड़ भूमि की नीलामी के फैस...
13/03/2025

हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (एचसीयू) के छात्र तेलंगाना सरकार द्वारा कंचा गाचीबौली में 400 एकड़ भूमि की नीलामी के फैसले का विरोध कर रहे हैं, जिसमें प्रतिष्ठित मशरूम रॉक संरचना भी शामिल है। तेलंगाना राज्य औद्योगिक अवसंरचना निगम लिमिटेड (टीएसआईआईसी) इस भूमि की नीलामी से लगभग ₹10,000 करोड़ की आय का अनुमान लगा रहा है, जिसमें पार्क, वॉकवे और आवासीय क्षेत्रों का विकास शामिल है। हालांकि, छात्र, संकाय सदस्य और पर्यावरण कार्यकर्ता इस कदम को क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता और विश्वविद्यालय की पारिस्थितिक विरासत के लिए खतरा मानते हैं।

प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व विश्वविद्यालय के छात्र संघ द्वारा किया जा रहा है, जिन्हें संकाय सदस्यों और पर्यावरण समूहों का समर्थन प्राप्त है। वे मांग कर रहे हैं कि नीलामी को तुरंत रोका जाए और भूमि को औपचारिक रूप से विश्वविद्यालय के नाम पर पंजीकृत किया जाए ताकि आगे के अतिक्रमण को रोका जा सके।

विवादित भूमि में मशरूम रॉक शामिल है, जो एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और पारिस्थितिक स्थल है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि इस क्षेत्र में कोई भी निर्माण कार्य पारिस्थितिकी तंत्र को अपरिवर्तनीय नुकसान पहुंचा सकता है।

विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि 400 एकड़ भूमि विश्वविद्यालय की नहीं है, और एक कानूनी मामले का हवाला देता है जिसमें उच्च न्यायालय ने भूमि को राज्य सरकार की संपत्ति घोषित किया था। इसके बावजूद, छात्र और संकाय सदस्य नीलामी का विरोध जारी रखे हुए हैं, इस भूमि के शैक्षणिक और पर्यावरणीय महत्व का हवाला देते हुए।

प्रदर्शन जारी रहने की संभावना है क्योंकि छात्र और उनके समर्थक सरकार से नीलामी पर पुनर्विचार करने और विश्वविद्यालय की पारिस्थितिक और शैक्षणिक विरासत को संरक्षित करने की मांग कर रहे हैं।

13/03/2025

वक़्फ़ संशोधन विधेयक के खिलाफ देशभर में विरोध, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने जताई आपत्ति

नई दिल्ली: वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक 2024 को लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन तेज हो गए हैं। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने इस विधेयक को मुस्लिम समुदाय के हितों के खिलाफ बताते हुए 17 मार्च को जंतर मंतर पर 'महाधरना' आयोजित करने की घोषणा की है। इससे पहले यह प्रदर्शन 13 मार्च को निर्धारित था, लेकिन होली के त्योहार के कारण इसे स्थगित कर दिया गया था।

AIMPLB के प्रवक्ता डॉ. सैयद कासिम रसूल इलियास ने एक प्रेस वार्ता में कहा कि यह विधेयक वक़्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन में हस्तक्षेप करता है और मुस्लिम समुदाय के अधिकारों का हनन है। उन्होंने कहा, "यह विधेयक न केवल वक़्फ़ बोर्ड की स्वायत्तता को प्रभावित करेगा, बल्कि मुस्लिम समुदाय की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान पर भी आघात करेगा।"

विधेयक के प्रमुख विवादित बिंदु
- विधेयक के तहत गैर-मुस्लिम सदस्यों को वक़्फ़ बोर्ड और परिषदों में शामिल करने का प्रावधान किया गया है, जिसका AIMPLB और अन्य मुस्लिम संगठनों ने विरोध किया है।
- बोर्ड का मानना है कि हिंदू और सिख धर्मस्थलों के प्रबंधन में ऐसे प्रावधान नहीं किए गए हैं, जिससे मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभाव की स्थिति उत्पन्न हो रही है।
- विधेयक के जरिए सरकार को वक़्फ़ संपत्तियों के अधिग्रहण और उनके प्रबंधन में हस्तक्षेप का अधिकार मिल सकता है, जिससे वक़्फ़ संपत्तियों की सुरक्षा पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

समर्थन और विरोध के स्वर
विधेयक को लेकर मुस्लिम समुदाय के भीतर भी मतभेद देखने को मिल रहे हैं। मुफ़्ती शमून क़ासमी ने इस विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि इससे वक़्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी, जो समुदाय के दीर्घकालिक हित में है।

वहीं, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने इस विधेयक का कड़ा विरोध किया है। उन्होंने कहा कि, "यह विधेयक मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है और इसे किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किया जाएगा।"

ऑल इंडिया मिली काउंसिल के महासचिव उमर आबेदीन क़ासमी मदनी ने भी इस विधेयक पर आपत्ति जताते हुए कहा कि, "विधेयक के प्रावधान मुस्लिम धार्मिक संस्थानों के प्रबंधन को कमजोर करेंगे और सरकार को अनावश्यक हस्तक्षेप का अधिकार देंगे।"

सरकार की प्रतिक्रिया
सरकार ने इस विधेयक की समीक्षा के लिए 31 सदस्यीय संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया है, जिसमें 21 सदस्य लोकसभा से और 10 सदस्य राज्यसभा से शामिल हैं। यह समिति विधेयक के विभिन्न प्रावधानों की जांच करेगी और अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करेगी।

AIMPLB ने इस मुद्दे पर देशभर के धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों से समर्थन की अपील की है। बोर्ड ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने इस विधेयक को वापस नहीं लिया, तो देशभर में विरोध प्रदर्शन और तेज हो सकते हैं।

(अल हिंद न्यूज़ के लिए विशेष रिपोर्ट)

जामिया, AMU और MANUU में छात्र संघ चुनावों पर रोक: छात्रों में बढ़ती नाराजगी नई दिल्ली/हैदराबाद/अलीगढ़, 13 मार्च 2025 – ...
13/03/2025

जामिया, AMU और MANUU में छात्र संघ चुनावों पर रोक: छात्रों में बढ़ती नाराजगी

नई दिल्ली/हैदराबाद/अलीगढ़, 13 मार्च 2025 – देश के प्रमुख अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों, जामिया मिलिया इस्लामिया (JMI),अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) और मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी (MANUU) में छात्र संघ चुनावों पर लंबे समय से जारी प्रतिबंध को लेकर छात्रों में नाराजगी और असंतोष बढ़ता जा रहा है। छात्र इन संस्थानों में चुनावों की बहाली की मांग कर रहे हैं, लेकिन प्रशासन और सरकार के बीच खिंचाव के कारण चुनाव नहीं हो पा रहे हैं।

जामिया मिलिया इस्लामिया (JMI) में चुनावों पर प्रतिबंध क्यों?
जामिया मिलिया इस्लामिया (JMI) में छात्र संघ चुनाव 2006 से स्थगित हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन ने सुरक्षा कारणों और शैक्षणिक माहौल को प्रभावित होने का हवाला देकर चुनावों पर रोक लगा रखी है।
- छात्रों का आरोप है कि चुनाव पर प्रतिबंध से उनकी लोकतांत्रिक आवाज दबाई जा रही है।
- 2019 में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शनों के बाद विश्वविद्यालय ने अनुशासनात्मक कार्रवाई का सहारा लिया और चुनाव बहाली की मांग को ठुकरा दिया।
- 2022 और 2023 में छात्रों ने चुनावों के लिए हस्ताक्षर अभियान भी चलाया, लेकिन प्रशासन ने कहा कि "परिसर की शांति और सुरक्षा को बनाए रखना सर्वोच्च प्राथमिकता है।"

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) में चुनावों का मुद्दा
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) में भी पिछले कई वर्षों से छात्र संघ चुनाव नहीं हो रहे हैं। AMU में आखिरी छात्र संघ चुनाव 2018 में हुआ था।
- प्रशासन ने कोविड-19 महामारी के बाद से चुनाव कराने में असमर्थता जताई है।
- इसके अलावा, परिसर में बढ़ती राजनीतिक गतिविधियों और प्रशासनिक दबाव के कारण भी चुनाव स्थगित हैं।
- छात्रों ने AMU प्रशासन पर "लोकतांत्रिक प्रक्रिया को खत्म करने" का आरोप लगाया है।
- दिसंबर 2024 में छात्रों ने चुनाव बहाली की मांग को लेकर प्रशासनिक भवन के बाहर धरना प्रदर्शन किया।

मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी (MANUU) में भी हालात तनावपूर्ण
MANUU में जनवरी 2023 में आखिरी बार छात्र संघ चुनाव हुए थे, जिसमें मतीन अशरफ को अध्यक्ष चुना गया था। इसके बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने विरोध-प्रदर्शनों और सुरक्षा कारणों का हवाला देकर चुनावों को रद्द कर दिया।
- सितंबर 2024 में MANUU के छात्रों ने हॉस्टल की खराब स्थिति और प्रशासन की अनदेखी के खिलाफ बड़े स्तर पर प्रदर्शन किया।
- इस प्रदर्शन के बाद प्रशासन ने छात्र संघ चुनावों को रद्द करने का निर्णय लिया।
- छात्रों ने इस फैसले का विरोध करते हुए कहा कि "चुनाव छात्रों की लोकतांत्रिक पहचान हैं और इसे बहाल किया जाना चाहिए।"
- प्रशासन ने कहा कि "चुनाव से परिसर का शांतिपूर्ण माहौल बिगड़ सकता है।"

छात्रों का गुस्सा और प्रशासन का रुख
तीनों विश्वविद्यालयों – जामिया, AMU और MANUU के छात्रों का कहना है कि प्रशासन और सरकार जानबूझकर चुनावों को रोक रही है ताकि छात्रों की आवाज को दबाया जा सके।
- जामिया के एक छात्र नेता ने कहा, "हमारे लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन हो रहा है। अगर चुनाव नहीं कराए गए तो हम आंदोलन को और तेज करेंगे।"
- AMU के छात्रों ने आरोप लगाया कि "प्रशासन सरकार के दबाव में काम कर रहा है।"
- MANUU के छात्रों ने कहा कि "प्रदर्शन और आवाज उठाने का अधिकार हमारा संवैधानिक हक है। चुनावों को बहाल किया जाए।"
विशेषज्ञों की राय
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अल्पसंख्यक संस्थानों में छात्र राजनीति को दबाने के पीछे राजनीतिक कारण भी हो सकते हैं।
- दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) के एक प्रोफेसर ने कहा कि "छात्र संघ चुनाव लोकतंत्र का एक अहम हिस्सा हैं। इन्हें रोकना छात्रों के अधिकारों का हनन है।"
- उन्होंने कहा कि "अगर प्रशासन को सुरक्षा संबंधी चिंता है तो उसे शांतिपूर्ण माहौल में चुनाव कराने के लिए ठोस योजना बनानी चाहिए।"

आगे की रणनीति
छात्रों ने साफ कर दिया है कि अगर चुनाव बहाल नहीं किए गए तो वे शांतिपूर्ण आंदोलन जारी रखेंगे। जामिया, AMU और MANUU के छात्र संगठनों ने संयुक्त रूप से एक रणनीति तैयार करने का संकेत दिया है।
- छात्रों का कहना है कि वे शांतिपूर्ण प्रदर्शन, कानूनी कार्रवाई और हस्ताक्षर अभियान के जरिए चुनाव की बहाली की मांग करेंगे।
- प्रशासन ने कहा है कि "चुनाव तभी कराए जाएंगे जब विश्वविद्यालय का माहौल पूरी तरह शांत होगा।"

निष्कर्ष
जामिया मिलिया इस्लामिया, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी में छात्र संघ चुनावों पर रोक को लेकर छात्रों और प्रशासन के बीच तनाव लगातार बढ़ रहा है। छात्रों का कहना है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया के बिना उनकी आवाज दबाई जा रही है। अब देखना यह होगा कि प्रशासन और सरकार छात्रों की इस मांग को कब तक टाल पाते हैं।

(रिपोर्ट: अल हिंद न्यूज़)

जनसुराज और प्रशांत किशोर: बिहार की राजनीति में नई लहर नई दिल्ली, 13 मार्च 2025 – बिहार की राजनीति में एक नया और महत्वपूर...
13/03/2025

जनसुराज और प्रशांत किशोर: बिहार की राजनीति में नई लहर

नई दिल्ली, 13 मार्च 2025 – बिहार की राजनीति में एक नया और महत्वपूर्ण मोड़ प्रशांत किशोर के नेतृत्व में उभर रहा है। चुनावी रणनीतिकार के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले प्रशांत किशोर ने अब "जनसुराज" के बैनर तले बिहार की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभानी शुरू कर दी है। जनसुराज के माध्यम से प्रशांत किशोर ने एक नई राजनीतिक ताकत खड़ी करने का प्रयास किया है, जिसका मुख्य उद्देश्य बिहार की जनता की मूलभूत समस्याओं को हल करना और पारंपरिक जाति और धर्म आधारित राजनीति से ऊपर उठकर विकास पर आधारित राजनीति को बढ़ावा देना है।

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प्रशांत किशोर का राजनीतिक सफर
प्रशांत किशोर (PK) का नाम भारतीय राजनीति में एक सफल रणनीतिकार के रूप में जाना जाता है। उन्होंने कई बड़े राजनीतिक दलों के लिए चुनावी रणनीति तैयार की और महत्वपूर्ण चुनावी जीत दिलाई। उनके राजनीतिक सफर की प्रमुख झलकियां इस प्रकार हैं:

- 2014 लोकसभा चुनाव:नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद के अभियान के पीछे प्रशांत किशोर का मास्टर प्लान था। भाजपा ने इस चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज की।
- 2015 बिहार विधानसभा चुनाव:प्रशांत किशोर ने जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस के महागठबंधन के लिए रणनीति बनाई। इस चुनाव में महागठबंधन को भारी जीत मिली और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने।
- 2017 पंजाब विधानसभा चुनाव: कांग्रेस के लिए कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में चुनावी रणनीति बनाई, जिसमें कांग्रेस को बड़ी जीत मिली।
- 2019 आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव: वाईएसआर कांग्रेस के लिए चुनावी रणनीति तैयार की, जिससे जगन मोहन रेड्डी मुख्यमंत्री बने।
- 2021 पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव:तृणमूल कांग्रेस के लिए ममता बनर्जी की जीत सुनिश्चित करने में बड़ी भूमिका निभाई।

प्रशांत किशोर ने इन सफलताओं के बाद बिहार की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने का फैसला किया और 2022 में "जनसुराज" अभियान की शुरुआत की।

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#जनसुराज: मिशन और दृष्टिकोण
प्रशांत किशोर ने जनसुराज को बिहार की पारंपरिक राजनीति से अलग रखते हुए इसे एक "जन आंदोलन" के रूप में स्थापित करने की कोशिश की है। उनके अनुसार, जनसुराज का मुख्य उद्देश्य है:
✔️ जाति और धर्म आधारित राजनीति से ऊपर उठकर विकास आधारित राजनीति को बढ़ावा देना।
✔️ शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और बुनियादी सुविधाओं पर ध्यान केंद्रित करना।
✔️ बिहार के गांव-गांव तक पहुंचकर जनता से सीधे संवाद करना।
✔️ भ्रष्टाचार, प्रशासनिक असफलता और सामाजिक अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना।

प्रशांत किशोर ने इस आंदोलन के तहत "पदयात्रा" की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने बिहार के सुदूर गांवों और कस्बों में जाकर जनता की समस्याओं को समझा और उनके समाधान का रोडमैप तैयार किया।

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जनसुराज पदयात्रा:
- प्रशांत किशोर ने 2 अक्टूबर 2022 को पश्चिम चंपारण से जनसुराज की पदयात्रा शुरू की।
- इस पदयात्रा के तहत उन्होंने 12,000 किलोमीटर से अधिक की यात्रा की।
- उन्होंने बिहार के 38 जिलों और 5000 से अधिक गांवों का दौरा किया।
- पदयात्रा के दौरान प्रशांत किशोर ने 1 करोड़ से अधिक लोगों से सीधा संवाद किया।
- इस अभियान का उद्देश्य था –
- बिहार के लोगों को जागरूक करना।
- जमीनी समस्याओं को समझकर उनका समाधान निकालना।
- भ्रष्टाचार, रोजगार की कमी और शिक्षा व्यवस्था की खामियों को उजागर करना।

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जनसुराज का प्रभाव और राजनीतिक समीकरण:
प्रशांत किशोर के जनसुराज आंदोलन ने बिहार की पारंपरिक राजनीति को चुनौती दी है। इसका असर बिहार के प्रमुख दलों – जेडीयू, बीजेपी और आरजेडी – पर पड़ रहा है।

1. जेडीयू और नीतीश कुमार पर असर:
- प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार के नेतृत्व और उनकी नीतियों पर सवाल उठाए।
- उन्होंने जेडीयू की राजनीति को जाति आधारित बताया और विकास के मोर्चे पर असफल करार दिया।

2. बीजेपी के खिलाफ सीधा हमला:
- प्रशांत किशोर ने भाजपा की धार्मिक राजनीति और हिंदुत्व के एजेंडे को खुलकर निशाना बनाया।
- उन्होंने बिहार में बढ़ते सांप्रदायिक तनाव और अल्पसंख्यकों के खिलाफ नीतियों पर सवाल उठाए।

3. आरजेडी की रणनीति पर प्रभाव:
- प्रशांत किशोर ने आरजेडी की यादव-मुस्लिम समीकरण वाली राजनीति को पुरानी राजनीति बताया।
- उन्होंने तेजस्वी यादव को विकास की जगह जातीय राजनीति पर ध्यान देने का आरोप लगाया।

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आलोचना और चुनौतियाँ:
हालांकि प्रशांत किशोर के जनसुराज को जनता से अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है, लेकिन उन्हें कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ रहा है:
❌ जनसुराज के पास अभी तक कोई संगठित पार्टी ढांचा नहीं है।
❌ बिहार के प्रमुख जातीय वोट बैंक (यादव, कुर्मी, दलित) पर पकड़ बनाना मुश्किल हो सकता है।
❌ पारंपरिक दलों – जेडीयू, बीजेपी और आरजेडी – के मजबूत नेटवर्क के खिलाफ जनसुराज का उभरना आसान नहीं है।
❌ मुसलमानों और पिछड़े वर्गों में पहले से स्थापित दलों (आरजेडी और कांग्रेस) की पकड़ को चुनौती देना कठिन हो सकता है।

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भविष्य की रणनीति और चुनावी संभावनाएँ:
प्रशांत किशोर ने यह संकेत दिया है कि वह 2025 के विधानसभा चुनाव में जनसुराज को एक राजनीतिक दल के रूप में स्थापित कर सकते हैं।
- जनसुराज को यदि यादव, मुस्लिम और दलित वोट बैंक का समर्थन मिलता है, तो यह जेडीयू और आरजेडी के समीकरण को बिगाड़ सकता है।
- यदि भाजपा और जेडीयू का गठबंधन कमजोर होता है, तो प्रशांत किशोर इस स्थिति का लाभ उठा सकते हैं।
- सीमांचल और पश्चिम बिहार के इलाकों में जनसुराज का प्रभाव बढ़ रहा है।

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विश्लेषण और निष्कर्ष:
प्रशांत किशोर का जनसुराज बिहार की पारंपरिक जातीय राजनीति को चुनौती देने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने जमीनी स्तर पर मजबूत पकड़ बनाने के लिए एक अलग रणनीति अपनाई है। हालांकि, पारंपरिक राजनीतिक दलों की मजबूत स्थिति को देखते हुए प्रशांत किशोर के लिए यह सफर आसान नहीं होगा। बिहार की राजनीति में जनसुराज एक नया मोर्चा खोल चुका है, जिसका असर आने वाले विधानसभा चुनाव में देखने को मिलेगा।

(Al Hind News के लिए विशेष रिपोर्ट)

बिहार में राजनीतिक परिदृश्य: जातीय समीकरण और राजनीतिक समीकरण का विश्लेषणनई दिल्ली, 13 मार्च 2025 – बिहार की राजनीति का आ...
13/03/2025

बिहार में राजनीतिक परिदृश्य: जातीय समीकरण और राजनीतिक समीकरण का विश्लेषण

नई दिल्ली, 13 मार्च 2025 – बिहार की राजनीति का आधार जातीय समीकरणों और राजनीतिक गठबंधनों पर टिका हुआ है। पिछले कुछ दशकों में जातीय आधार पर होने वाले ध्रुवीकरण ने बिहार की राजनीति को एक अलग दिशा दी है। आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए राजनीतिक दलों ने अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी है। आइए बिहार की मौजूदा राजनीतिक स्थिति और जातीय समीकरणों पर एक विस्तृत नजर डालते हैं:

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जातीय जनसंख्या का वितरण (2025 के आंकड़ों के अनुसार):
बिहार की राजनीति में जातीय संतुलन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। राज्य की कुल जनसंख्या 13.07 करोड़ है, जिसमें विभिन्न जातीय समूहों का निम्नलिखित वितरण है:
- अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC): 27.13%
- अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC): 36.01%
- अनुसूचित जाति (SC): 19.65%
- अनुसूचित जनजाति (ST):1.68%
- सामान्य वर्ग: 15.52%
- मुस्लिम समुदाय:17.70%

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मुख्य राजनीतिक दल और उनका प्रभाव:

1. जनता दल यूनाइटेड (JDU)
- मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में JDU ने बिहार की राजनीति पर गहरी पकड़ बनाई है।
- JDU का मुख्य समर्थन आधार कुर्मी, कोयरी और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में है।
- JDU ने बीजेपी के साथ मिलकर लंबे समय तक सत्ता पर कब्जा किया, लेकिन हाल ही में गठबंधन में तनाव की स्थिति देखी गई है।

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2. भारतीय जनता पार्टी (BJP)
- बीजेपी का मुख्य समर्थन आधार सवर्ण (ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) का हिस्सा है।
- 2020 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने JDU के साथ मिलकर सरकार बनाई थी।
- हाल ही में, मुस्लिम समुदाय के खिलाफ घृणा अपराधों और विवादित बयानों के कारण बीजेपी के प्रति मुस्लिम समुदाय की नाराजगी बढ़ी है।

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3. राष्ट्रीय जनता दल (RJD)
- लालू प्रसाद यादव की पार्टी का मुख्य समर्थन आधार यादव और मुस्लिम समुदाय है।
- 2020 के विधानसभा चुनावों में RJD सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी।
- RJD का एजेंडा सामाजिक न्याय, गरीबों और पिछड़ों के उत्थान पर केंद्रित रहा है।

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4. कांग्रेस (INC)
- कांग्रेस का बिहार में प्रभाव सीमित रहा है।
- कांग्रेस का परंपरागत समर्थन आधार मुस्लिम और दलित समुदाय में रहा है।
- हाल के वर्षों में कांग्रेस को नए नेतृत्व और रणनीति की आवश्यकता महसूस हो रही है।

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5. लोक जनशक्ति पार्टी (LJP)
- रामविलास पासवान के बाद उनके बेटे चिराग पासवान ने पार्टी की बागडोर संभाली है।
- LJP का मुख्य समर्थन आधार **पासवान (SC) समुदाय में है।
- चिराग पासवान ने 2020 के चुनाव में बीजेपी के खिलाफ जाकर अलग रणनीति अपनाई थी।

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राजनीतिक गठबंधन का गणित (2025 के संभावित परिदृश्य):
- एनडीए (JDU + BJP): यदि JDU और BJP साथ आते हैं तो यह गठबंधन जातीय समीकरण के आधार पर मजबूत स्थिति में रहेगा।
- महागठबंधन (RJD + INC + लेफ्ट):यादव, मुस्लिम और दलित समुदाय के समर्थन से महागठबंधन मजबूत स्थिति में है।
- तीसरा मोर्चा:LJP, AIMIM और छोटे दलों के गठबंधन के रूप में उभर सकता है, जो मुस्लिम और दलित वोट बैंक पर प्रभाव डाल सकता है।

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2020 के विधानसभा चुनाव परिणाम (संक्षिप्त विवरण):
- कुल सीटें: 243
- भाजपा:74
- JDU: 43
- RJD: 75
- कांग्रेस: 19
- LJP: 1
- अन्य: 31

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मुस्लिम वोट बैंक का प्रभाव:
- बिहार की राजनीति में मुस्लिम वोट बैंक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- सीमांचल (किशनगंज, अररिया, कटिहार, पूर्णिया) और पटना, गया जैसे क्षेत्रों में मुस्लिम समुदाय का प्रभाव महत्वपूर्ण है।
- AIMIM (असदुद्दीन ओवैसी) ने सीमांचल क्षेत्र में 2020 में 5 सीटें जीतकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी।

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हाल के घटनाक्रम और प्रभाव:
- CAA और NRC के मुद्दे पर मुस्लिम समुदाय में असंतोष।
- राम मंदिर निर्माण और तीन तलाक कानून के कारण बीजेपी के प्रति मुस्लिम समुदाय में नाराजगी।
- AIMIM का सीमांचल में बढ़ता प्रभाव महागठबंधन के वोट बैंक में सेंध लगा सकता है।

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राजनीतिक विश्लेषण और संभावित परिणाम:
-JDU और BJP के साथ आने पर सत्ता में वापसी की संभावना मजबूत होगी।
RJD और कांग्रेस के गठबंधन को यादव-मुस्लिम समीकरण का फायदा मिलेगा।
- AIMIM और LJP तीसरे मोर्चे के रूप में उभर सकते हैं, जिससे चुनावी नतीजे प्रभावित हो सकते हैं।

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(Al Hind News के लिए विशेष रिपोर्ट)

भारत में रमज़ान: इबादत, रोज़ा और एकता का महीनानई दिल्ली, 13 मार्च 2025 – भारत में मुस्लिम समुदाय के लिए रमज़ान का महीना ...
13/03/2025

भारत में रमज़ान: इबादत, रोज़ा और एकता का महीना

नई दिल्ली, 13 मार्च 2025 – भारत में मुस्लिम समुदाय के लिए रमज़ान का महीना एक खास आध्यात्मिक महत्व रखता है। रमज़ान इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना होता है, जिसे पवित्र माना जाता है। इस महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग पूरे दिन रोज़ा (उपवास) रखते हैं, अल्लाह की इबादत करते हैं और गरीबों व जरूरतमंदों की मदद करते हैं।

रमज़ान के दौरान रोज़ेदार सूर्योदय से पहले सहरी (सुबह का भोजन) करते हैं और दिनभर बिना खाना-पानी के रहते हैं। दिनभर के उपवास के बाद सूर्यास्त के समय इफ्तार के साथ रोज़ा खोला जाता है। इफ्तार में खजूर, फल, शर्बत और विभिन्न पारंपरिक पकवान शामिल होते हैं।

भारत के विभिन्न हिस्सों में रमज़ान का अलग-अलग सांस्कृतिक रंग देखने को मिलता है। दिल्ली की जामा मस्जिद, हैदराबाद की मक्का मस्जिद और लखनऊ की बड़ी इमामबाड़ा जैसे ऐतिहासिक स्थलों पर रमज़ान के दौरान हजारों लोग नमाज़ और तरावीह के लिए इकट्ठा होते हैं। मुंबई के मोहम्मद अली रोड और कोलकाता के पार्क सर्कस में इफ्तार बाजार की रौनक देखते ही बनती है।

सद्भाव और सेवा का महीना
रमज़ान न सिर्फ इबादत और रोज़े का महीना है, बल्कि इसे दान और सेवा का महीना भी माना जाता है। मुस्लिम समुदाय के लोग ज़कात (दान) देकर गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करते हैं। मस्जिदों और सामाजिक संगठनों की ओर से मुफ्त इफ्तार का आयोजन किया जाता है, जिसमें हर धर्म और समुदाय के लोग शामिल होते हैं।

रमज़ान का संदेश
रमज़ान का महीना एकता, भाईचारे और शांति का प्रतीक है। इस्लामिक विद्वानों का कहना है कि रोज़ा सिर्फ भूख और प्यास सहने का नाम नहीं है, बल्कि यह आत्मसंयम, सहानुभूति और अल्लाह के प्रति समर्पण का प्रतीक है। रमज़ान के अंत में ईद-उल-फितर का त्योहार मनाया जाता है, जिसमें रोज़े की समाप्ति के बाद लोग एक-दूसरे को गले लगाते हैं और खुशी मनाते हैं।

भारत में रमज़ान की इस पवित्र भावना का असर देश के सामाजिक ताने-बाने पर भी पड़ता है। विभिन्न धर्मों और समुदायों के लोग एक-दूसरे के साथ इफ्तार में शामिल होते हैं, जिससे सांप्रदायिक सद्भावना और भाईचारा मजबूत होता है।

(Al Hind News के लिए विशेष रिपोर्ट)

बिहार में जाति सर्वे और आगामी चुनाव: बदलते सियासी समीकरणों पर नज़रपटना, 13 मार्च 2025 (अल हिंद न्यूज़)– बिहार में हाल ही...
13/03/2025

बिहार में जाति सर्वे और आगामी चुनाव: बदलते सियासी समीकरणों पर नज़र

पटना, 13 मार्च 2025 (अल हिंद न्यूज़)– बिहार में हाल ही में संपन्न हुए जाति सर्वे ने राज्य की राजनीति में एक नई हलचल मचा दी है। इस सर्वे के आंकड़ों के सामने आने के बाद से राजनीतिक दलों की रणनीतियों में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर सभी प्रमुख पार्टियां जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए अपनी सियासी चाल चल रही हैं।

जाति सर्वे के प्रमुख आंकड़े और असर
बिहार सरकार द्वारा कराए गए इस जाति सर्वे के मुताबिक, राज्य में पिछड़ा वर्ग (OBC) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) की आबादी 63% के करीब है, जबकि अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की जनसंख्या क्रमशः 19% और 2% के करीब है। वहीं, उच्च जाति की आबादी लगभग 15% के आसपास दर्ज की गई है। इस सर्वे के नतीजों ने बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है, क्योंकि यह आंकड़े राज्य की सामाजिक और राजनीतिक संरचना को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं।

राजनीतिक दलों की रणनीति
जाति सर्वे के नतीजों के बाद बिहार की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने इसे सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि सर्वे के नतीजों के आधार पर सरकार पिछड़े और वंचित वर्ग के कल्याण के लिए नई योजनाएं लागू करेगी।

वहीं, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस सर्वे पर सवाल उठाते हुए इसे राजनीतिक हथकंडा करार दिया है। भाजपा नेताओं का कहना है कि यह सर्वे जातिगत ध्रुवीकरण को बढ़ावा देगा और समाज को बांटने का काम करेगा।

कांग्रेस और वाम दलों ने भी जाति सर्वे के समर्थन में बयान दिए हैं। कांग्रेस ने सर्वे को सामाजिक न्याय की दिशा में एक अहम पहल बताया है, जबकि वाम दलों ने कहा है कि इस सर्वे के आधार पर सामाजिक असमानता को दूर करने के लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए।

आगामी चुनाव पर प्रभाव
जाति सर्वे के नतीजे आगामी विधानसभा चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। माना जा रहा है कि सर्वे के आधार पर राजनीतिक दल अपने उम्मीदवारों का चयन करेंगे और जातीय समीकरणों के अनुसार प्रचार अभियान चलाएंगे।
विशेषज्ञों का मानना है कि ओबीसी और ईबीसी वर्ग की अधिक संख्या का लाभ राजद और जदयू को मिल सकता है, जबकि भाजपा को उच्च जाति के मतदाताओं के साथ हिंदुत्व के एजेंडे पर भरोसा करना पड़ सकता है।

जनता की राय
जाति सर्वे के मुद्दे पर जनता की राय भी बंटी हुई नजर आ रही है। कुछ लोगों का मानना है कि इससे सामाजिक न्याय को मजबूती मिलेगी और सरकार की योजनाएं समाज के हाशिए पर खड़े लोगों तक पहुंचेंगी। वहीं, कुछ लोग इसे जातिवाद को बढ़ावा देने वाला कदम मान रहे हैं।

निष्कर्ष
जाति सर्वे के नतीजे और उस पर हो रही सियासत ने बिहार की राजनीति को पूरी तरह से बदल दिया है। आगामी चुनाव में जातीय समीकरणों का असर किस हद तक होगा, यह देखना दिलचस्प होगा। राजनीतिक दलों की रणनीति और जनता की प्रतिक्रिया यह तय करेगी कि बिहार की सत्ता का ताज किसके सिर सजेगा।

नमस्कार, अल हिंद न्यूज़ के प्रिय पाठकों। आज, 13 मार्च 2025 के प्रमुख राजनीतिक समाचार इस प्रकार हैं:बिहार में होली और जुम...
12/03/2025

नमस्कार, अल हिंद न्यूज़ के प्रिय पाठकों। आज, 13 मार्च 2025 के प्रमुख राजनीतिक समाचार इस प्रकार हैं:

बिहार में होली और जुमा पर विवाद: बिहार में इस वर्ष होली और जुमा (शुक्रवार) एक ही दिन पड़ने से राजनीतिक माहौल गरमा गया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समक्ष मुस्लिम वोट बैंक को संतुष्ट करने की चुनौती खड़ी हो गई है, क्योंकि जेडीयू नेताओं द्वारा होली को स्थगित करने की मांग से विवाद बढ़ता जा रहा है।
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तेलंगाना में कांग्रेस पर मुस्लिम नेताओं की उपेक्षा का आरोप: तेलंगाना में एमएलसी सीट आवंटन को लेकर कांग्रेस पार्टी के मुस्लिम नेताओं ने नाराजगी जताई है। उन्होंने आरोप लगाया है कि पार्टी नेतृत्व ने मुस्लिम समुदाय के नेताओं को नजरअंदाज किया है, जिससे समुदाय में असंतोष बढ़ रहा है।
Aaj Tak

महाराष्ट्र में मुस्लिम आरक्षण की मांग तेज: महाराष्ट्र में मुस्लिम नेताओं ने शैक्षणिक क्षेत्र में 5% आरक्षण की मांग को लेकर सरकार पर दबाव बढ़ा दिया है। एनसीपी नेता सलीम सरंग ने उपमुख्यमंत्री अजीत पवार से मुलाकात कर इस मुद्दे पर चर्चा की है।
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वक्फ संशोधन विधेयक पर विरोध प्रदर्शन: वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के नेताओं ने विरोध जताया है। उनका कहना है कि यह विधेयक मुस्लिम समुदाय के हितों के खिलाफ है और इससे उनके धार्मिक अधिकारों का हनन होगा।
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पश्चिम बंगाल में राजनीतिक तनाव: पश्चिम बंगाल में भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी ने तृणमूल कांग्रेस के मुस्लिम विधायकों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए कहा है कि सत्ता में आने पर वे उन्हें विधानसभा के सामने फेंक देंगे। इस बयान से राज्य की राजनीति में तनाव बढ़ गया है।
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The   Mayor released a new statement ahead of the upcoming   on March 14, which coincides with the Friday prayers held d...
12/03/2025

The Mayor released a new statement ahead of the upcoming on March 14, which coincides with the Friday prayers held during the month of .

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