20/06/2025
भारत की विदेश नीति पर गंभीर सवाल: क्या वैश्विक मंच पर कमजोर हो रही है भारत की पकड़?
Al Hind News | विशेष रिपोर्ट | 20 जून 2025
मोदी सरकार ने अपने अब तक के कार्यकाल में विदेश नीति को बड़ी प्राथमिकता दी है। 'विश्वगुरु भारत', 'ग्लोबल साउथ की आवाज' और 'सबके साथ, सबका विकास' जैसे नारे गढ़े गए।
बीते एक दशक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 65 से अधिक देशों का दौरा किया, कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत ने नेतृत्वकारी भूमिका की कोशिश भी की।
मगर जमीनी सच्चाई यह है कि वैश्विक राजनीति के मौजूदा परिदृश्य में भारत को कई कूटनीतिक मोर्चों पर झटके लगे हैं। ब्रिक्स से लेकर पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों तक, पारंपरिक सहयोगी रूस से लेकर संयुक्त राष्ट्र तक — हर जगह भारत की विदेश नीति की सीमाएं सामने आ रही हैं।
इस रिपोर्ट में हम तथ्यों के साथ विश्लेषण करेंगे कि भारत की विदेश नीति कहाँ लड़खड़ा रही है:
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1️⃣ ब्रिक्स विस्तार: भारत की आवाज अनसुनी
2023 के ब्रिक्स सम्मेलन में नए सदस्यों को जोड़ने का निर्णय लिया गया।
भारत ने स्पष्ट आपत्ति दर्ज कराई थी कि विस्तार की प्रक्रिया में पारदर्शिता होनी चाहिए और चीन के प्रभुत्व को सीमित किया जाना चाहिए।
इसके बावजूद ब्रिक्स में ईरान, सऊदी अरब, UAE, इथियोपिया और मिस्र को शामिल कर लिया गया — भारत की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए।
कई विशेषज्ञों के अनुसार, यह भारत की कूटनीतिक हार थी, जिसने संकेत दिया कि वैश्विक मंचों पर भारत की पकड़ कमजोर हो रही है।
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2️⃣ पड़ोसी देशों से रिश्तों में गिरावट
मालदीव:
2024 में सत्ता परिवर्तन के बाद राष्ट्रपति मोहम्मद मुज्जू के नेतृत्व में 'इंडिया आउट' अभियान तेज हुआ।
भारत को अपने सैनिक हटाने पड़े।
वहीं चीन ने \$400 मिलियन के नए इंफ्रास्ट्रक्चर समझौते साइन किए।
नेपाल:
कालापानी, लिपुलेख सीमा विवाद अब भी अटका हुआ है।
नेपाल ने Belt & Road Initiative के तहत \$5 बिलियन के चीनी निवेश को मंजूरी दी।
श्रीलंका:
हंबनटोटा पोर्ट पर पहले से चीन का नियंत्रण है।
2025 में श्रीलंका और चीन के बीच \$1.2 बिलियन के नए रक्षा समझौते हुए।
पाकिस्तान:
2024-25 में 1,200 से अधिक सीजफायर उल्लंघन हुए।
कूटनीतिक स्तर पर कोई ठोस संवाद नहीं हो पाया।
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3️⃣ रूस: पुराने मित्र से दूरी बढ़ती
रूस ने पहली बार पाकिस्तान को S-350 एयर डिफेंस सिस्टम बेचा।
भारत-रूस व्यापार 2024 में 14% घटा।
ऊर्जा समझौतों में रूस ने चीन को प्राथमिकता दी।
रणनीतिक स्तर पर भारत-रूस के रिश्तों में पुरानी गर्माहट नहीं बची है।
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4️⃣ वैश्विक दक्षिण (Global South) में नेतृत्व कमजोर
भारत ने 2023 में ग्लोबल साउथ समिट का आयोजन किया था।
मगर जब आंकड़े देखें:
चीन का अफ्रीका में निवेश (\$155 बिलियन) भारत के निवेश (\$30 बिलियन) से 5 गुना बड़ा है।
LATAM (लैटिन अमेरिका) में भारत की मौजूदगी सीमित है।
विकासशील देशों के बीच नेतृत्वकारी भूमिका निभाने का भारत का दावा हकीकत से दूर नजर आता है।
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5️⃣ अमेरिका के साथ रिश्ते: असंतुलित संतुलन नीति?
अमेरिका के साथ QUAD और I2U2 मंचों में भारत की भूमिका मजबूत हुई है।
लेकिन रूस और ईरान जैसे पारंपरिक सहयोगी अब नाराज दिखते हैं।
ईरान के साथ चाबहार पोर्ट डील बार-बार टल रही है।
चीन इस रिक्ति का लाभ उठाकर इन क्षेत्रों में अपने प्रभाव को बढ़ा रहा है।
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6️⃣ UNSC स्थायी सदस्यता: कोई ठोस परिणाम नहीं
2014 से लगातार भारत के नेताओं द्वारा यह कहा गया कि भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता मिलनी चाहिए।
लेकिन:
2025 तक न तो कोई औपचारिक प्रस्ताव पास हुआ, न ही UNSC में भारत को नए अधिकार मिले।
चीन और अन्य विरोधी गुट इसे लगातार रोकते रहे।
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निष्कर्ष: नीति में दिखावा ज्यादा, रणनीति कम
भारत की विदेश नीति के मौजूदा हालात को देखते हुए निम्न बिंदु सामने आते हैं:
✅ अति-प्रचार और इवेंट-ड्रिवन कूटनीति पर अत्यधिक जोर है।
✅ पड़ोस में चीन का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है।
✅ पुराने मित्रों से दूरी बढ़ती जा रही है।
✅ वैश्विक नेतृत्व की भूमिका अभी कमजोर है।
जब तक भारत अपनी विदेश नीति में दीर्घकालिक रणनीति, निवेश बढ़ाने की क्षमता और संतुलित कूटनीति नहीं लाता — तब तक 'विश्वगुरु' बनने का सपना सिर्फ नारे तक ही सीमित रहेगा।