Aao Islam Ke Baare Main Jaane

Aao Islam Ke Baare Main Jaane "इस्लाम के रास्ते पर चलते हुए 🕋 | शांति, प्रेम और इंसानियत का पैगाम | अल्लाह पर भरोसा, दिल में करुणा 🙏 #इस्लाम #शांति"
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23/09/2025

इस वीडियो में हम इस्लाम में इंसान की अहमियत पर चर्चा करेंगे, जो कुरान और हदीस की रोशनी में गहराई से समझाया गया है। क्या आपको पता है कि अल्लाह ने हमें क्यों बनाया और हमारे जीवन का असली मकसद क्या है? हम जानेंगे कि इंसान को कैसे सम्मानित किया गया है, उसकी सृष्टि और इबादत का उद्देश्य क्या है, और सभी इंसानों के बीच भेदभाव की कोई जगह नहीं है। यह ज्ञान न केवल हमें सिखाता है, बल्कि हमारी ज़िंदगी को भी मकसदपूर्ण बनाता है। अगर आप इस धार्मिक विषय में रुचि रखते हैं, तो इस वीडियो को लाइक और शेयर करना न भूलें!

#इस्लाम #कुरान #हदीस #इंसान #धार्मिकज्ञान

🌟 **इस्लाम में इंसान की अहमियत: कुरान और हदीस की रोशनी में** 🌟अस्सलामु अलैकुम, दोस्तों! आज मैं एक बहुत महत्वपूर्ण विषय प...
23/09/2025

🌟 **इस्लाम में इंसान की अहमियत: कुरान और हदीस की रोशनी में** 🌟

अस्सलामु अलैकुम, दोस्तों! आज मैं एक बहुत महत्वपूर्ण विषय पर बात करना चाहता हूँ – इंसान के बारे में इस्लाम क्या कहता है? हम सब इंसान हैं, लेकिन क्या हम जानते हैं कि अल्लाह ने हमें क्यों बनाया, हमारी क्या गरिमा है, और हमारी ज़िंदगी का असली मकसद क्या है? कुरान और हदीस में इस पर इतना विस्तार से बताया गया है कि पढ़कर दिल को सुकून मिलता है। आइए, स्टेप बाय स्टेप समझते हैं। यह पोस्ट थोड़ी लंबी है, लेकिन पढ़ने लायक है – अगर आप धार्मिक बातों में इंटरेस्ट रखते हैं, तो शेयर ज़रूर करें! 📖

**1. इंसान की सृष्टि: अल्लाह की सबसे बेहतरीन रचना**
कुरान में अल्लाह फरमाता है कि इंसान को मिट्टी से बनाया गया, फिर उसमें अपनी रूह फूंकी। सूरह अल-मुमिनून (23:12-14) में वर्णन है: "हमने इंसान को मिट्टी के सत्व से पैदा किया, फिर उसे एक बूंद में बदल दिया, फिर थक्के में, फिर मांस में, फिर हड्डियों में – और आखिर में एक पूरी रचना बना दिया।" यह दिखाता है कि इंसान की क्रिएशन कितनी जटिल और खूबसूरत है। सूरह अल-इसरा (17:70) में कहा गया: "हमने आदम की संतान को सम्मान दिया और उन्हें ज़मीन-समुद्र पर सवारी दी, अच्छी रिज़्क दी और कई रचनाओं पर श्रेष्ठता दी।"

हदीस में पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया (सहीह बुखारी): "अल्लाह ने आदम को अपनी सूरत पर बनाया," जो इंसान की गरिमा का मतलब है – हम अल्लाह की रचना हैं, इसलिए हमें खुद का सम्मान करना चाहिए। जन्म से ही शैतान हमें छूता है, लेकिन ईसा (अलैहिस्सलाम) जैसे कुछ अपवाद हैं। यह बताता है कि इंसान की शुरुआत पवित्र है, लेकिन चुनौतियाँ आती हैं। 😇

**2. इंसान का मकसद: इबादत और परीक्षा**
क्यों बनाए गए हम? कुरान का स्पष्ट जवाब सूरह अज-जारीयात (51:56) में: "मैंने जिन्न और इंसान को सिर्फ अपनी इबादत के लिए पैदा किया।" इबादत सिर्फ नमाज़ नहीं, बल्कि अल्लाह को जानना, अच्छे काम करना और नैतिक जीवन जीना है। सूरह अल-बकरा (2:30) में इंसान को पृथ्वी पर "खलीफा" (उत्तराधिकारी) बनाया गया – यानी हम धरती के संरक्षक हैं, पर्यावरण और समाज की देखभाल करें।

सूरह अल-मुल्क (67:2) कहता है: "अल्लाह ने मौत और जीवन बनाया ताकि तुम्हारी परीक्षा ले कि कौन सबसे अच्छे अमल करता है।" हदीस में एक कुदसी हदीस है: "मैं एक छिपा खजाना था, मैंने चाहा कि मुझे जाना जाए, इसलिए सृष्टि की।" (यह इब्न अरबी जैसे विद्वानों से जुड़ी है)। पैगंबर (सल्ल.) ने फरमाया कि आदम की गलतियाँ हमारी संतान में हैं, लेकिन तौबा से सुधार होता है। ज़िंदगी एक टेस्ट है – पास करने वाले को जन्नत! 💪

**3. इंसान की गरिमा: सभी बराबर, कोई भेदभाव नहीं**
इस्लाम में इंसान की वैल्यू बहुत ऊँची है। सूरह अत-तिन (95:4-5): "हमने इंसान को सबसे अच्छे रूप में पैदा किया, फिर उसे नीचे गिरा दिया" – मतलब हमारी क्षमता है श्रेष्ठ बनने की, लेकिन गलतियाँ हमें गिरा सकती हैं। सूरह अन-निसा (4:1): "ऐ लोगो, अपने रब से डरो जिसने तुम्हें एक जान से पैदा किया" – सभी आदम की औलाद हैं, कोई रंग-जाति का फर्क नहीं।

पैगंबर (सल्ल.) का फरमान (सहीह मुस्लिम): "कोई अरब गैर-अरब पर श्रेष्ठ नहीं, सिवाय तकवा (ईश्वर-भय) के।" इंसान की हत्या पूरी मानवता की हत्या है (सूरह अल-माइदा 5:32)। यह हमें सिखाता है कि हर इंसान की जान कीमती है – रेसिज्म या डिस्क्रिमिनेशन की कोई जगह नहीं! 🌍

**4. इंसान की प्रकृति: अच्छाई और बुराई का संघर्ष**
इंसान परफेक्ट नहीं – कुरान कहता है हम कमजोर हैं (सूरह अन-निसा 4:28), जल्दबाज (सूरह अल-मआरिज 70:19)। नफ्स अम्मारा (बुराई उकसाने वाला, सूरह यूसुफ 12:53) और नफ्स लव्वामा (पछतावा करने वाला, सूरह अल-कियामा 75:2) का जिक्र है। शैतान हमें बहकाता है (सूरह अल-आराफ 7:11-28)।

हदीस में पैगंबर (सल्ल.) ने कहा: "हर इंसान गुनाह करता है, लेकिन सबसे अच्छा वो जो तौबा करता है।" हमारी फितरत (प्राकृतिक स्वभाव) सूरह अर-रूम (30:30) में है – अल्लाह की ओर मुड़ना। तो, संघर्ष है, लेकिन जीत अच्छे अमलों से! ⚖️

दोस्तों, यह इस्लाम की शिक्षाएँ हैं जो हमें बताती हैं कि इंसान अल्लाह की अमानत है। अगर हम कुरान और सुन्नत पर अमल करें, तो हमारी ज़िंदगी मकसदपूर्ण हो जाएगी। क्या आप सहमत हैं? कमेंट में अपनी राय शेयर करें, और अगर पसंद आए तो लाइक और शेयर करें। अल्लाह हम सबको हिदायत दे! 🤲

22/09/2025

आज के 4:30 मिनट के इस शॉर्ट रील में जानिए जकात क्यों है इस्लाम की रीढ़! कुरान और हदीस की रोशनी में जकात की अहमियत, निसाब, दरें (2.5% नकद), किसे दें और सामाजिक-आध्यात्मिक फायदे सरल भाषा में। छात्र और युवा मुसलमानों के लिए खास मार्गदर्शन — रमज़ान में जकात, सालाना हिसाब और आम गलतफहमियों का हल। अगर आप जकात के बारे में सही जानकारी चाहते हैं या अपने अनुभव साझा करना चाहते हैं, कमेंट में बताइए। वीडियो पसंद आए तो लाइक और शेयर करें ताकि ज्यादा लोग लाभान्वित हों! #जकात #निसाब #रमज़ान #कुरान #हदीस

अस्सलामु अलैकुम दोस्तों! 🌙✨आज मैं आप सभी के साथ इस्लाम के एक महत्वपूर्ण स्तंभ, **जकात** के बारे में बात करना चाहता हूं। ...
22/09/2025

अस्सलामु अलैकुम दोस्तों! 🌙✨

आज मैं आप सभी के साथ इस्लाम के एक महत्वपूर्ण स्तंभ, **जकात** के बारे में बात करना चाहता हूं। जकात सिर्फ एक धार्मिक कर्तव्य नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी व्यवस्था है जो समाज को मजबूत बनाती है, गरीबी को जड़ से मिटाती है और हमारी आत्मा को शुद्ध करती है। चलिए, आज इस पर विस्तार से चर्चा करते हैं – कुरान और हदीस के नजरिए से, इसके फायदों से, और कैसे इसे निकाला जाता है। अगर आप मुसलमान हैं या इस्लाम के बारे में जानना चाहते हैं, तो यह पोस्ट जरूर पढ़ें और शेयर करें! 📖❤️

# # # जकात क्या है?
जकात इस्लाम के पांच स्तंभों में से तीसरा है – शहादा, नमाज़, जकात, रोज़ा और हज। अरबी में 'जकात' का मतलब 'शुद्धिकरण' या 'वृद्धि' है। यह हर सक्षम मुसलमान पर फर्ज है, जो अपनी संपत्ति का एक हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों को देता है। पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इसे इस्लाम का आधार बताया है। कुरान में जकात को 82 बार उल्लेख किया गया है, ज्यादातर नमाज़ के साथ, जैसे सूरह अल-बकरा (2:43) में: "नमाज़ कायम करो, जकात दो और रुकू करने वालों के साथ रुकू करो।"

# # # जकात के फायदे: इंसानियत और इस्लामी नजरिए से
**मानवतावादी (इंसानियत) दृष्टि से:**
- **गरीबी का उन्मूलन:** जकात अमीरों से धन लेकर गरीबों तक पहुंचाती है, जिससे समाज में आर्थिक असमानता कम होती है। इससे जरूरतमंदों को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार मिलता है, और अपराध-भुखमरी जैसी समस्याएं घटती हैं। कल्पना कीजिए, अगर हर अमीर जकात दे तो दुनिया से गरीबी खत्म हो सकती है! 🌍
- **सामाजिक एकता:** यह अनाथों, विधवाओं, कर्जदारों और मुसाफिरों की मदद करती है। इससे समाज में भाईचारा बढ़ता है और लोग एक-दूसरे का सहारा बनते हैं।
- **आर्थिक विकास:** जकात धन को संचित होने से रोकती है और उसे अर्थव्यवस्था में घुमाती है, जिससे नौकरियां पैदा होती हैं और विकास होता है।

**इस्लामी नजरिए से:**
- **आत्मा की शुद्धि:** जकात लोभ और कंजूसी से बचाती है। कुरान (सूरह अत-तौबा 9:103) कहता है: "उनके मालों से सदका (जकात) लीजिए, जिससे आप उन्हें पाक करें और उन्हें बढ़ाएँ।" इससे हमारा धन और दिल दोनों शुद्ध होते हैं।
- **आखिरत का इनाम:** हदीस (सही बुखारी) में पैगंबर (स.अ.व.) ने कहा: "जकात देने से धन कम नहीं होता, अल्लाह उसे बढ़ाता है।" यह आग से बचाव है – जकात न देने वालों को कुरान (9:34-35) में सजा की चेतावनी दी गई है।
- **ईमान की मजबूती:** यह अल्लाह की दया को आकर्षित करती है और हमें नेक बनाती है। पैगंबर (स.अ.व.) ने फरमाया: "जकात गरीबों का अमीरों पर हक है।"

जकात न सिर्फ व्यक्तिगत विकास करती है, बल्कि पूरे उमmah (समुदाय) को मजबूत बनाती है। 😊

# # # जकात कैसे काम करती है और कितनी निकाली जाती है?
जकात हर बालिग, सक्षम मुसलमान पर फर्ज है, अगर उसके पास **निसाब** (न्यूनतम सीमा) की संपत्ति हो और वह एक साल (हौल) तक उसके पास रहे।
- **निसाब:** सोने के लिए 85 ग्राम (7.5 तोला), चाँदी के लिए 612 ग्राम (52.5 तोला) के बराबर। पशुधन या फसल के लिए अलग सीमाएं हैं।
- **दर:** ज्यादातर संपत्ति (नकद, सोना, शेयर) पर 2.5% (1/40वां हिस्सा)। उदाहरण: अगर आपके पास 10 लाख रुपये की बचत है (एक साल से), तो जकात = 25,000 रुपये।
- **अन्य दरें:** फसल पर 5-10%, पशुधन पर संख्या के आधार पर (जैसे 40 भेड़ों पर 1 भेड़)।
- **कैसे निकालें:** सालाना गणना करें – कर्ज घटाकर। जकात 8 श्रेणियों को दी जाती है (कुरान 9:60): फकीर, मिस्कीन, जकात वसूल करने वाले, नए मुसलमान, गुलाम आजाद करने, कर्जदार, अल्लाह के रास्ते में, मुसाफिर।
- **टिप:** रमजान में जकात निकालना सुन्नत है। संस्थाओं के माध्यम से दें ताकि सही जगह पहुंचे।

हदीस (सही मुस्लिम) में पैगंबर (स.अ.व.) ने फरमाया: "यदि लोग जकात न दें, तो अल्लाह वर्षा रोक लेगा।" तो आइए, हम सब जकात को अपनाएं और दुनिया को बेहतर बनाएं! 🙏

क्या आप जकात देते हैं? आपके अनुभव शेयर करें कमेंट्स में। अगर कोई सवाल हो, तो पूछिए। अल्लाह हम सबको हिदायत दे। 🤲

20/09/2025

अस्सलामु अलैकुम दोस्तों! 🌙 इस शॉर्ट वीडियो में जानिए: क्या अतिशयोक्ति (घुलुव) इस्लाम में गुनाह है? हम कुरान और सहीह हदीस की रोशनी में बतायेंगे कि क्यों सच्चाई, सादगी और संतुलन ईमान के लिए ज़रूरी हैं। जानें अतिशयोक्ति के खतरे — गुमराही, समाज में फितना और अल्लाह की नराज़गी — और कैसे हम धर्म के नाम पर बढ़ा-चढ़ाकर बात करने से बचें। युवा मुस्लिम दर्शकों के लिए स्पष्ट, सीधा और दिलचस्प मसला। अगर आपको वीडियो पसंद आए तो लाइक और शेयर ज़रूर करें, और नीचे कमेंट में अपनी राय बताइए। जज़ाकल्लाह खैर! 🙏

#अतिशयोक्ति #इस्लाम #घुलुव #हदीस #कुरान #सच्चाई #ईमान

अस्सलामु अलैकुम दोस्तों! 🌙आज हम एक बहुत महत्वपूर्ण विषय पर बात करेंगे: अतिशयोक्ति (हाइपरबोली) और इस्लाम में इसका क्या स्...
17/09/2025

अस्सलामु अलैकुम दोस्तों! 🌙
आज हम एक बहुत महत्वपूर्ण विषय पर बात करेंगे: अतिशयोक्ति (हाइपरबोली) और इस्लाम में इसका क्या स्थान है। पहले तो यह समझ लीजिए कि अतिशयोक्ति क्या होती है। अतिशयोक्ति वह तरीका है जिसमें सच्चाई से हटकर, बात को बढ़ा-चढ़ाकर या अतिरंजित करके पेश किया जाता है। जैसे कोई कहानी या घटना को इतना बड़ा करके बताया जाए कि वह असलियत से बहुत दूर हो जाए। दुनिया के कई धर्मों में, जैसे हिंदू, बौद्ध, ईसाई, जैन और सिख धर्म में, अतिशयोक्ति को जायज माना जाता है – खासकर धार्मिक कथाओं, मिथकों या पूजा-पाठ में। उदाहरण के लिए, हिंदू धर्म में देवताओं की शक्तियों को इतना बढ़ा-चढ़ाकर बताया जाता है कि वह एक तरह की कल्पना या प्रतीक बन जाती है। लेकिन इस्लाम में यह बिल्कुल अलग है। इस्लाम सच्चाई, सादगी और संतुलन का धर्म है, और यहां अतिशयोक्ति को धर्म के नाम पर फैलाना एक बहुत बड़ा गुनाह माना जाता है।
अब आइए, इस्लामिक नजरिए से विस्तार से समझते हैं कि अतिशयोक्ति क्यों गलत है और यह इतना बड़ा पाप क्यों है।
1. इस्लाम में सच्चाई की अहमियत:
इस्लाम का मूल आधार ही सच्चाई पर टिका है। अल्लाह तआला ने कुरान-ए-पाक में फरमाया है:
"और झूठ से बचो" (सूरह अल-हज, आयत 30)।
झूठ की परिभाषा में सिर्फ सीधा झूठ ही नहीं, बल्कि अतिशयोक्ति भी शामिल है अगर वह लोगों को गुमराह करे। पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया: "झूठ बोलने वाला मुसलमान नहीं है" (सहीह बुखारी)। धर्म के नाम पर अतिशयोक्ति फैलाना तो और भी बड़ा झूठ है, क्योंकि यह अल्लाह की शिक्षाओं को तोड़-मरोड़कर पेश करता है। अगर कोई धार्मिक कहानी या हदीस को बढ़ा-चढ़ाकर बताए, तो वह लोगों के ईमान को कमजोर कर सकता है और समाज में फितना (अशांति) पैदा कर सकता है।
2. घुलुव (अतिशयोक्ति) का खतरा:
इस्लाम में "घुलुव" शब्द का इस्तेमाल किया जाता है, जो धर्म में अतिरेक या अतिशयोक्ति को दर्शाता है। पैगंबर साहब (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया: "धर्म में अतिशयोक्ति से बचो, क्योंकि तुमसे पहले की उम्मतें (समुदाय) इसी अतिशयोक्ति की वजह से तबाह हो गईं" (सहीह मुस्लिम)।
उदाहरण के तौर पर, ईसाई धर्म में हजरत ईसा (अलैहिस्सलाम) को खुदा का बेटा मानना या उन्हें ईश्वर का रूप देना एक तरह की अतिशयोक्ति है, जो इस्लाम में शिर्क (बहुदेववाद) मानी जाती है। इसी तरह, अन्य धर्मों में संतों या अवतारों की शक्तियों को इतना बढ़ा-चढ़ाकर बताया जाता है कि लोग उन्हें पूजने लगते हैं। लेकिन इस्लाम कहता है: अल्लाह अकेला है, और पैगंबर सिर्फ इंसान हैं – कोई चमत्कार या अतिशयोक्ति नहीं। कुरान में फरमाया गया: "कह दो: मैं तुम्हारी तरह का एक इंसान हूं, मुझ पर वह्य (प्रकाशना) आती है" (सूरह अल-कहफ, आयत 110)। यह सादगी इस्लाम की खूबसूरती है।
3. धर्म के नाम पर अतिशयोक्ति फैलाने के नुकसान:
गुमराही पैदा करती है: अगर कोई मस्जिद में या सोशल मीडिया पर किसी हदीस को बढ़ा-चढ़ाकर बताए, जैसे "फलां अमल करने से जन्नत मिल जाएगी" जबकि असल में ऐसा नहीं है, तो लोग गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं। यह ईमान को कमजोर करता है।
समाज में विभाजन: अतिशयोक्ति से फितना फैलता है। इतिहास में देखें, तो कई फिरके (sects) इसी वजह से बने, जहां लोगों ने पैगंबर या सहाबा की प्रशंसा में हद पार कर दी।
अल्लाह की नाराजगी: कुरान में फरमाया गया: "ऐ ईमान वालो! अपने धर्म में हद से आगे न बढ़ो" (सूरह अल-माइदा, आयत 77)। यह सीधा आदेश है कि अतिशयोक्ति न करो।
सजा का डर: जो धर्म के नाम पर झूठ या अतिशयोक्ति फैलाता है, वह कयामत के दिन जहांनम की आग का हकदार हो सकता है। पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया: "जो मेरे नाम पर झूठ गढ़ेगा, उसका ठिकाना जहांनम है" (सहीह बुखारी)।
4. इस्लाम में संतुलन का रास्ता:
इस्लाम हमें मध्य मार्ग (उम्मत-ए-वस्ता) पर चलने की हिदायत देता है। न ज्यादा सख्ती, न ज्यादा ढील। अतिशयोक्ति की बजाय, सच्चाई और सबूत पर आधारित बात करो। अगर कोई धार्मिक कहानी सुनानी है, तो कुरान और सहीह हदीस से ही लो – बिना बढ़ा-चढ़ाए। इससे ईमान मजबूत होता है और समाज एकजुट रहता है।
दोस्तों, याद रखें: इस्लाम झूठ, अतिशयोक्ति या मिथकों का धर्म नहीं, बल्कि हकीकत और तर्क का धर्म है। अगर आप भी कभी ऐसी अतिशयोक्ति देखें या सुनें, तो उसे रोकें और सच्चाई की तलाश करें। अल्लाह हमें सच्चाई के रास्ते पर रखे। आमीन।
शेयर करें अगर यह पोस्ट आपको पसंद आई, और कमेंट में बताएं आपका क्या ख्याल है!

जजाकल्लाह खैर! 🙏

कुरान पर सवाल पूछनाअस्सलामु अलैकुम दोस्तों,  आज हम एक बहुत अहम और दिलचस्प मसले पर बात करेंगे, जो अक्सर हमारे मन में उठता...
17/09/2025

कुरान पर सवाल पूछना

अस्सलामु अलैकुम दोस्तों,
आज हम एक बहुत अहम और दिलचस्प मसले पर बात करेंगे, जो अक्सर हमारे मन में उठता है: *क्या कुरान या हदीस की व्याख्या पर सवाल पूछना गलत है?* कई बार ऐसा होता है कि हम कुरान की किसी आयत या हदीस के अनुवाद को लेकर सवाल मन में आता है। जब हम किसी आलिम से जवाब मांगते हैं, तो कुछ लोग जवाब देने की बजाय कहते हैं, "तुम्हारा ईमान कमजोर है" या "कुरान पर सवाल उठा रहे हो?" क्या वाकई सवाल पूछना गलत है? आइए, इस सवाल का जवाब कुरान की एक खूबसूरत आयत, सूरह अल-बकराह (आयत 260) की रोशनी में ढूंढते हैं।

📖 **सूरह अल-बकराह, आयत 260 का अनुवाद**:
"और (याद करो) जब इब्राहिम ने कहा: 'ऐ मेरे रब! मुझे दिखा कि तू मुर्दों को कैसे जिंदा करता है?' अल्लाह ने फरमाया: 'क्या तू ईमान नहीं लाया?' उसने कहा: 'क्यों नहीं, लेकिन (मैं ये पूछ रहा हूं) ताकि मेरा दिल मुतमइन (संतुष्ट) हो जाए।' अल्लाह ने फरमाया: 'तो चार परिंदे ले, उन्हें अपने पास मंसूख (परिचित) कर ले, फिर उन्हें (काटकर) मिला ले, फिर हर पहाड़ पर उनमें से एक हिस्सा रख दे, फिर उन्हें पुकार, वो तेरे पास दौड़ते हुए आएंगे। और जान ले कि अल्लाह गालिब (शक्तिशाली) और हकीम (बुद्धिमान) है।'"

# # # इस आयत से क्या सीख मिलती है?
1️⃣ **सवाल पूछना जायज है**: हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम, जिन्हें अल्लाह ने "खलीलुल्लाह" (अल्लाह का दोस्त) का दर्जा दिया, उन्होंने अल्लाह से सवाल किया कि मुर्दों को जिंदा करने का तरीका क्या है। यह सवाल इसलिए नहीं था कि उनका ईमान कमजोर था, बल्कि इसलिए कि उनका दिल और ज्यादा तसल्ली (इत्मिनान) चाहता था। इस्लामिक विद्वानों (जैसे इब्न कसीर और मौलाना मaududi) की तफसीर बताती है कि सवाल पूछना, अगर नीयत सही हो (जैसे समझ बढ़ाना या दिल की संतुष्टि), तो न सिर्फ जायज है, बल्कि यह ईमान को और मजबूत कर सकता है।

2️⃣ **अल्लाह का जवाब और सबक**: जब इब्राहिम ने सवाल किया, तो अल्लाह ने पहले पूछा, "क्या तुम ईमान नहीं लाए?" यह इसलिए ताकि साफ हो कि इब्राहिम का सवाल शक की वजह से नहीं था। फिर अल्लाह ने न सिर्फ जवाब दिया, बल्कि एक चमत्कार दिखाया: चार परिंदों को काटकर, उनके टुकड़े अलग-अलग पहाड़ों पर रखने और फिर उन्हें पुकारने पर जिंदा करके। यह आयत हमें सिखाती है कि अगर सवाल सही नीयत से हो, तो अल्लाह उसे स्वीकार करते हैं और जवाब भी देते हैं।

3️⃣ **आलिमों की जिम्मेदारी**: कई बार कुछ आलिम सवालों का जवाब देने की बजाय सवाल करने वाले को डांटते हैं या उसके ईमान पर सवाल उठाते हैं। लेकिन यह आयत ठीक इसके उलट सिखाती है। अगर हजरत इब्राहिम जैसे बड़े पैगंबर सवाल पूछ सकते हैं, तो आम मुसलमान क्यों नहीं? आलिमों का फर्ज है कि वे सब्र और इल्म के साथ जवाब दें, जैसे पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने सहाबा के सवालों का जवाब देते थे। मिसाल के तौर पर, एक सहाबी ने पूछा था, "क्या हमारी दुआएं कबूल होती हैं?" और पैगंबर ने बड़े प्यार से जवाब दिया। अगर कोई आलिम जवाब न दे पाए, तो यह उसकी कमी हो सकती है, न कि सवाल करने वाले की।

4️⃣ **ईमान और इत्मिनान में फर्क**: तफसीर मआरिफुल कुरान में लिखा है कि ईमान अनदेखे पर यकीन करना है, लेकिन "इत्मिनान-ए-कल्ब" (दिल की तसल्ली) उससे ऊंचा दर्जा है। इब्राहिम का ईमान तो पहले से था, लेकिन उन्होंने अनुभव के जरिए और ज्यादा यकीन चाहा। आज अगर हम कुरान की किसी आयत या हदीस की व्याख्या पर सवाल करते हैं, तो यह ईमान की कमी नहीं, बल्कि समझ को गहरा करने की कोशिश है।

5️⃣ **अल्लाह की कुदरत**: आयत का अंत इस बात पर जोर देता है कि "अल्लाह गालिब और हकीम है।" यानी हर सवाल का जवाब और हर शक का हल अल्लाह की हिकमत और कुदरत में है। हमें बस सही नीयत से सवाल पूछने और जवाब तलाश करने की जरूरत है।

# # # आज के दौर में क्या करें?
- अगर आपके मन में कुरान या हदीस को लेकर सवाल है, तो उसे दबाएं नहीं। सम्मान के साथ, सही नीयत से आलिमों से पूछें।
- अगर कोई आलिम जवाब देने की बजाय आपका ईमान पर सवाल उठाए, तो निराश न हों। और आलिमों से बात करें, कुरान और हदीस की किताबें (जैसे तफसीर इब्न कसीर, तफसीर मआरिफुल कुरान) पढ़ें।
- याद रखें: सवाल पूछना आपके ईमान को कमजोर नहीं करता, बल्कि उसे मजबूत कर सकता है, जैसे हजरत इब्राहिम का सवाल उनके यकीन को और बढ़ा गया।

💡 *तो आइए, अपने सवालों को सम्मान के साथ पूछें, जवाब तलाश करें, और अपने ईमान को और मजबूत करें।* अगर आपके मन में इस आयत या किसी और आयत से जुड़ा सवाल है, तो कमेंट में जरूर बताएं। हम मिलकर जवाब तलाश करेंगे, इंशाअल्लाह।

*📢 इस पोस्ट को शेयर करें ताकि और लोग भी इस खूबसूरत आयत का सबक सीख सकें।*
#इस्लाम #कुरान #सूरह_बकराह #ईमान #सवाल_और_जवाब #इस्लामिक_नजरिया

14/09/2025

इस वीडियो में जानिए क्या आज की मूर्ति पूजा उसी गुमराही की अगली कड़ी है जो हजरत नूह (अ.स.) के समय से शुरू हुई थी। कुरान व हदीस की रोशनी में शिर्क, तौहीद, और नूह (अ.स.) की सीखों का संक्षिप्त और स्पष्ट व्याख्यान — सिर्फ 4:15 में। धार्मिक शिक्षा के लिए उपयुक्त, तर्कसंगत और नम्र दावत का पैमाना। अगर आपको यह जानकारी उपयोगी लगे तो वीडियो को लाइक और शेयर जरूर करें ताकि सही संदेश फैल सके। और अधिक जानने के लिए कमेंट में प्रश्न लिखें। #नूह #मूर्तिपूजा #शिर्क #तौहीद #कुरान #हदीस #इस्लाम #धार्मिकशिक्षा

🌙 अस्सलामु अलैकुम दोस्तों! 🌙आज मैं आप सबके साथ एक बहुत महत्वपूर्ण और विचारणीय विषय पर बात करना चाहता हूं – मूर्ति पूजा क...
14/09/2025

🌙 अस्सलामु अलैकुम दोस्तों! 🌙
आज मैं आप सबके साथ एक बहुत महत्वपूर्ण और विचारणीय विषय पर बात करना चाहता हूं – मूर्ति पूजा की हकीकत और इस्लामी नजरिया। क्या आप जानते हैं कि आज दुनिया में जो मूर्ति पूजा की प्रथा चल रही है, वह हजारों साल पुरानी उस गुमराही की निरंतरता है जो हजरत नूह अलैहिस्सलाम के समय से शुरू हुई थी? आइए, इस्लाम की रोशनी में इस पर विस्तार से चर्चा करें। यह पोस्ट थोड़ी लंबी है, लेकिन पढ़ने लायक है – शायद आपके दिल को छू जाए और सोचने पर मजबूर कर दे। 📖
हजरत नूह अलैहिस्सलाम का पैगाम: तौहीद की दावत
हजरत नूह (अ.स.) को अल्लाह तआला ने अपनी कौम को एक ईश्वर (अल्लाह) की इबादत की दावत देने के लिए भेजा था। कुरान-ए-पाक में सूरह नूह (71:1-4) में उनका जिक्र है: उन्होंने अपनी कौम से कहा, "मैं तुम्हारे लिए खुला हुआ डराने वाला हूं। अल्लाह के सिवा किसी की इबादत न करो।" लेकिन उनकी कौम ने इस पैगाम को ठुकरा दिया।
उस समय, लोग नेक इंसानों की मौत के बाद उनकी याद में मूर्तियां बनाते थे। जैसे, वद्द, सुवा, यगूथ, यऊक और नस्र – ये नाम उन नेक लोगों के थे जिनकी तस्वीरें या मूर्तियां बनाई गईं ताकि लोग उन्हें देखकर नेकी की राह पर चलें। लेकिन शैतान ने धीरे-धीरे लोगों को गुमराह किया। पहले तो ये मूर्तियां सिर्फ यादगारी थीं, लेकिन पीढ़ी दर पीढ़ी, लोग इन्हें देवता मानने लगे। वे सोचने लगे कि ये मूर्तियां उन्हें फायदा पहुंचा सकती हैं या नुकसान से बचा सकती हैं। यह था शिर्क (बहुदेववाद) की शुरुआत! 😔
हजरत नूह (अ.स.) ने 950 साल तक दावत दी, लेकिन उनकी कौम ने मूर्तियों को नहीं छोड़ा। कुरान में सूरह हूद (11:32) में他们的 लोगों का जवाब है: "ऐ नूह! तू हमसे बहुत झगड़ चुका है... अब अगर तू सच्चा है तो जो अजाब तू हमें डराता है, उसे ले आ।" आखिरकार, अल्लाह ने तूफान भेजा और शिर्क करने वाले डूब गए। लेकिन शिर्क की यह जड़ बाकी रही और फैलती गई।
आज की मूर्ति पूजा: उसी पुरानी गुमराही की निरंतरता?
जी हां, इस्लामी नजरिए से देखें तो आज हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म या अन्य परंपराओं में जो मूर्ति पूजा होती है, वह उसी शिर्क की चेन है जो नूह (अ.स.) के समय से चली आ रही है। कुरान में सूरह अन-अंबिया (21:52-54) में हजरत इब्राहीम (अ.स.) का किस्सा है, जहां वे अपनी कौम से पूछते हैं: "ये मूर्तियां क्या हैं जिनकी तुम इबादत करते हो? क्या तुम्हें अक्ल नहीं कि ये तुम्हें नहीं सुन सकतीं?" यह दिखाता है कि शिर्क नूह (अ.स.) के बाद भी जारी रहा और पीढ़ियां इसे मानती रहीं।
आज लोग मूर्तियों को पूजते हैं, उन्हें दूध चढ़ाते हैं, फूल चढ़ाते हैं, मानते हैं कि वे प्रार्थना सुनती हैं। लेकिन इस्लाम कहता है: यह सब झूठ है! अल्लाह तआला फरमाते हैं सूरह अज-जारियात (51:56): "मैंने जिन्न और इंसान को सिर्फ अपनी इबादत के लिए पैदा किया।" मूर्ति पूजा इंसान की फितरत (प्राकृतिक स्वभाव) के खिलाफ है। हर इंसान तौहीद (एक अल्लाह की इबादत) पर पैदा होता है (सूरह अर-रूम 30:30), लेकिन समाज और परंपराएं उसे गुमराह करती हैं।
इंसानियत के हिसाब से क्यों है यह गलत? 🤔
झूठ पर आधारित: मूर्तियां निर्जीव हैं – न सुनती हैं, न बोलती हैं, न फायदा पहुंचाती हैं। कुरान में सूरह अन-नह्ल (16:20-21): "वे जिन्हें अल्लाह के सिवा पुकारते हैं, वे कुछ भी पैदा नहीं कर सकते... वे मुर्दा हैं, जिंदा नहीं।"
इंसान की गरिमा खोना: इंसान, जो आशरफ-उल-मखलूकात (सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ) है, एक पत्थर या मिट्टी की पूजा करे? यह कितनी बड़ी गिरावट है!
समाजी नुकसान: शिर्क से अंधविश्वास, अन्याय और क्रूरता बढ़ती है। नूह (अ.स.) की कौम इतनी क्रूर हो गई कि पैगंबर को मारने की साजिश की।
अल्लाह का हक: शिर्क सबसे बड़ा जुल्म है (सूरह लुकमान 31:13)। अल्लाह कहते हैं: "अगर कोई शिर्क करे, तो मैं उसे माफ नहीं करूंगा, लेकिन इससे कम गुनाहों को चाहूं तो माफ कर दूंगा" (सूरह अन-निसा 4:48)।
दोस्तों, यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है, लेकिन सच्चाई तो एक है – अल्लाह अकेला है, कोई शरीक नहीं। अगर कोई मूर्ति पूजक यह पढ़ रहा है, तो सोचिए: क्या आप उसी गुमराही को जारी रखना चाहते हैं जिसे नूह (अ.स.) ने ठुकराया था?
निष्कर्ष और दावत ❤️
अल्लाह हमें तौहीद की राह पर चलाए। अगर आप तौबा करें और इस्लाम अपनाएं, तो अल्लाह दयालु है – सब माफ कर देगा। मुसलमान भाइयों-बहनों, हमें प्यार से दावत देनी चाहिए, नफरत नहीं। कुरान पढ़िए, हदीस पढ़िए, और सच्चाई फैलाइए।
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📖 हजरत शीश अलैहिस्सलाम: कुरआन व हदीस की रोशनी में एक नबी की कहानी | सच्चाई और अफवाहों का सफर 🕌अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्ल...
14/09/2025

📖 हजरत शीश अलैहिस्सलाम: कुरआन व हदीस की रोशनी में एक नबी की कहानी | सच्चाई और अफवाहों का सफर 🕌
अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाही व बरकातुहु!
भाइयों और बहनों, आज हम बात करेंगे हजरत शीश अलैहिस्सलाम की, जो हजरत आदम अलैहिस्सलाम के बेटे और इस्लाम में मान्य एक नबी हैं। उनका नाम सुनकर शायद कुछ लोग सोचें कि ये कोई पुरानी कथा है, लेकिन कुरआन और हदीस हमें उनकी जिंदगी से सबक देते हैं – मानवता की शुरुआत, हिदायत और अल्लाह की रहमत की। आइए, विस्तार से जानें कि कुरआन-हदीस क्या कहते हैं, उनका जन्म-मृत्यु कहां हुआ, और वो अफवाह जो भारत के उत्तर प्रदेश से जुड़ी है। ये पोस्ट सिर्फ जानकारी के लिए है, ताकि हम प्रमाणिक स्रोतों पर चलें।
1️⃣ कुरआन का नजरिया: सम्मान लेकिन नाम का जिक्र नहीं
कुरआन मजीद में हजरत शीश अलैहिस्सलाम का नाम सीधे तो नहीं आता, लेकिन सूरह अल-माइदा (5:27-31) में हजरत आदम अलैहिस्सलाम के दो बेटों – काबिल और हाबील – की दर्दनाक कहानी बयान की गई है। काबिल ने जलन में हाबील का कत्ल कर दिया। इसके बाद अल्लाह ने हजरत आदम को तसल्ली देने के लिए एक नया बेटा अता फरमाया, जो हजरत शीश थे। तफसीर इब्न कसीर जैसे प्रमाणिक किताबों में इसे स्पष्ट किया गया है। कुरआन पैगंबरों को ऊंचा दर्जा देता है: "और हमने तुमसे पहले हर उम्मत में रसूल भेजा" (सूरह अन-नहल 16:36)। हजरत शीश उन 124,000 पैगंबरों में से एक हैं, जैसा हदीस में आता है।
2️⃣ हदीस का नजरिया: पैगंबरी और वसीयत का वारिस
हदीस शरीफ में उनका जिक्र साफ मिलता है। सहीह मुस्लिम में हजरत अबू धर्र रजि. से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: "अल्लाह ने 124,000 नबी भेजे, जिनमें 313 रसूल थे।" हजरत शीश को नबी का दर्जा मिला। सहीह इब्न हिब्बान में है कि हजरत आदम की वफात के बाद हजरत शीश ने उनकी जगह ली और उन्हें वही (अल्लाह का कलाम) मिला। हजरत इब्न अब्बास रजि. से रिवायत है कि उन्होंने हजरत आदम का वसीयतनामा संभाला और इंसानों को 50 सहीह (अल्लाह के आदेश) सिखाए। उनका नाम "शीश" का मतलब "उपहार" या "नया" है, क्योंकि वे हाबील के कत्ल के बाद अल्लाह का तोहफा थे।
3️⃣ पैदा कैसे हुए? कब और कहां?
कैसे? हदीस और तफसीर के मुताबिक, हजरत आदम और हव्वा अलैहिमास्सलाम के बेटे थे काबिल, हाबील और शीश। हाबील के कत्ल के बाद अल्लाह ने शीश को भेजा। कुछ रिवायतों में कहा गया कि वे जन्मजात खतना किए हुए पैदा हुए।
कब? सटीक तारीख कुरआन-हदीस में नहीं, लेकिन इतिहासकारों (जैसे अल-तबरी) की गणना से उनका जन्म हाबील के कत्ल के 50 साल बाद हुआ, यानी लगभग 3874 ईसा पूर्व। हजरत आदम की उम्र 130 साल होने पर उनकी पैदाइश हुई।
कहां? जन्मस्थान पर इख्तिलाफ है, लेकिन ज्यादातर रिवायतें मक्का या उसके आसपास (मध्य पूर्व) बताती हैं। हजरत आदम श्रीलंका या मलेशिया उतरे, लेकिन परिवार मक्का पहुंचा। कोई पक्की हदीस नहीं, लेकिन पैगंबरों की जिंदगी अरब से जुड़ी मानी जाती है।
4️⃣ उम्र कितनी? मौत कब और कैसे?
हदीस में लंबी उम्र का जिक्र है (जैसे हजरत नूह 950 साल)। रिवायतों से हजरत शीश 912 साल जिए। उनका इंतकाल हजरत आदम की वफात के बाद हुआ, लगभग 2962 ईसा पूर्व। मौत के "दिन" का कोई जिक्र नहीं – ये सैकड़ों साल की बात है। वे शांतिपूर्ण तरीके से दुनिया से रुखसत हुए, मानवता को हिदायत देकर।
5️⃣ दफन कहां? प्रमाणिक जगहें
कुरआन-हदीस में दफन का जिक्र नहीं, लेकिन इतिहासकार बताते हैं:
मुख्य रिवायत: मक्का के अबू क़ुबैस पहाड़ की गुफा में, जहां हजरत आदम और हव्वा भी दफन हैं। (अल-तबरी और विकिशिया से)
दूसरी: लेबनान के बाक़ा घाटी (नबी शीश गांव) में एक मزار, जो प्राचीन माना जाता है।
इस्लाम में पैगंबरों के कब्र पर मजार बनाना ठीक है अगर सिर्फ याद के लिए, लेकिन पूजा या मन्नत हराम है – ये शिर्क की ओर ले जाता है।
6️⃣ अफवाह: अयोध्या (यूपी) में दफन? इस्लामी नजरिए से गलत क्यों?
कुछ लोग मानते हैं कि हजरत शीश का मजार अयोध्या में "हजरत शीश जिन्नती मस्जिद" में है, जहां 12 फुट लंबी कब्र है। ये लोकल किंवदंती है, शायद हिंदू-मुस्लिम साझा इतिहास से जुड़ी। लेकिन प्रमुख उलेमा (जैसे इस्लामQA और फतवे साइट्स) कहते हैं: कोई प्रमाणिक हदीस या ऐतिहासिक सबूत नहीं!
क्यों गलत? पैगंबरों के कब्र मदीना, बैतुल मुकद्दस जैसे जगहों पर पक्के हैं। बाकी अफवाहें bid'ah (नई बुराई) पैदा करती हैं।
खतरा: मजार पर चादर चढ़ाना या दुआ मांगना अल्लाह के अलावा किसी से मदद लेना है, जो कुरआन के खिलाफ है (सूरह फातिर 35:14)।
सलाह: ऐसी जगह जाएं तो सिर्फ जियारत के लिए, लेकिन इबादत सिर्फ अल्लाह की। प्रमाणिक किताबें पढ़ें – सहीह बुखारी, मुस्लिम।
हजरत शीश अलैहिस्सलाम की जिंदगी हमें सिखाती है: मुश्किलों में अल्लाह पर भरोसा रखो, वो नया रास्ता दिखाता है। अगर ये पोस्ट पसंद आई, तो शेयर करें, कमेंट में अपनी राय बताएं। अल्लाह हमें हिदायत दे। आमीन! 🤲

10/09/2025

अस्सलामु अलैकुम मेरे भाइयों और बहनों — एक भारतीय मुसलमान की सीधी और दिल से निकली आवाज़। 1947 के वादों से आज के पाकिस्तान तक: क्या ये सच में इस्लाम है या सिर्फ नाम का इस्लामिक रिपब्लिक? शरिया, उलेमा, भ्रष्टाचार, जुआ-शराब, आतंकवाद और अल्पसंख्यकों पर जुल्म — सब पर ईमानदार समीक्षा। मैं अपने नजरिये से बताता हूँ कि असली इस्लाम दिलों में होता है न कि सिर्फ कानूनों में। बात खुले दिल से करें, तौबा और सुधार की और बढ़ें। अगर आप सहमत या असहमत हैं तो कमेंट में अपनी राय दें। वीडियो पसंद आए तो लाइक और शेयर करें। अल्लाह हाफ़िज़।

#शरिया #उलेमा #भारतीयमुसलमान #हमारीबात

09/09/2025

इस्लाम की रोशनी में एड्स (AIDS) की रोकथाम: क्या اسلامی जीवनशैली सच में HIV फैलाव को रोक सकती है? इस शॉर्ट वीडियो में जानें कि शरिया के नैतिक निर्देश — विवाह में वफादारी, व्यभिचार से परहेज, नशीली दवाओं और शराब का निषेध, स्वच्छता और रोगियों के प्रति दया — कैसे HIV संक्रमण के जोखिम को घटा सकते हैं। हम कुरान व हदीस की रोशनी में तर्क और समाजिक दृष्टिकोण समझाएँगे और बताएँगे कि रोकथाम और समर्थन दोनों जरूरी हैं। अपने विचार कमेंट में साझा करें। अगर जानकारी उपयोगी लगे तो लाइक करें और शेयर करके दूसरों तक पहुँचाएँ। #शरिया #स्वास्थ्य #मुस्लिम #रोकथाम

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