17/09/2025
कुरान पर सवाल पूछना
अस्सलामु अलैकुम दोस्तों,
आज हम एक बहुत अहम और दिलचस्प मसले पर बात करेंगे, जो अक्सर हमारे मन में उठता है: *क्या कुरान या हदीस की व्याख्या पर सवाल पूछना गलत है?* कई बार ऐसा होता है कि हम कुरान की किसी आयत या हदीस के अनुवाद को लेकर सवाल मन में आता है। जब हम किसी आलिम से जवाब मांगते हैं, तो कुछ लोग जवाब देने की बजाय कहते हैं, "तुम्हारा ईमान कमजोर है" या "कुरान पर सवाल उठा रहे हो?" क्या वाकई सवाल पूछना गलत है? आइए, इस सवाल का जवाब कुरान की एक खूबसूरत आयत, सूरह अल-बकराह (आयत 260) की रोशनी में ढूंढते हैं।
📖 **सूरह अल-बकराह, आयत 260 का अनुवाद**:
"और (याद करो) जब इब्राहिम ने कहा: 'ऐ मेरे रब! मुझे दिखा कि तू मुर्दों को कैसे जिंदा करता है?' अल्लाह ने फरमाया: 'क्या तू ईमान नहीं लाया?' उसने कहा: 'क्यों नहीं, लेकिन (मैं ये पूछ रहा हूं) ताकि मेरा दिल मुतमइन (संतुष्ट) हो जाए।' अल्लाह ने फरमाया: 'तो चार परिंदे ले, उन्हें अपने पास मंसूख (परिचित) कर ले, फिर उन्हें (काटकर) मिला ले, फिर हर पहाड़ पर उनमें से एक हिस्सा रख दे, फिर उन्हें पुकार, वो तेरे पास दौड़ते हुए आएंगे। और जान ले कि अल्लाह गालिब (शक्तिशाली) और हकीम (बुद्धिमान) है।'"
# # # इस आयत से क्या सीख मिलती है?
1️⃣ **सवाल पूछना जायज है**: हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम, जिन्हें अल्लाह ने "खलीलुल्लाह" (अल्लाह का दोस्त) का दर्जा दिया, उन्होंने अल्लाह से सवाल किया कि मुर्दों को जिंदा करने का तरीका क्या है। यह सवाल इसलिए नहीं था कि उनका ईमान कमजोर था, बल्कि इसलिए कि उनका दिल और ज्यादा तसल्ली (इत्मिनान) चाहता था। इस्लामिक विद्वानों (जैसे इब्न कसीर और मौलाना मaududi) की तफसीर बताती है कि सवाल पूछना, अगर नीयत सही हो (जैसे समझ बढ़ाना या दिल की संतुष्टि), तो न सिर्फ जायज है, बल्कि यह ईमान को और मजबूत कर सकता है।
2️⃣ **अल्लाह का जवाब और सबक**: जब इब्राहिम ने सवाल किया, तो अल्लाह ने पहले पूछा, "क्या तुम ईमान नहीं लाए?" यह इसलिए ताकि साफ हो कि इब्राहिम का सवाल शक की वजह से नहीं था। फिर अल्लाह ने न सिर्फ जवाब दिया, बल्कि एक चमत्कार दिखाया: चार परिंदों को काटकर, उनके टुकड़े अलग-अलग पहाड़ों पर रखने और फिर उन्हें पुकारने पर जिंदा करके। यह आयत हमें सिखाती है कि अगर सवाल सही नीयत से हो, तो अल्लाह उसे स्वीकार करते हैं और जवाब भी देते हैं।
3️⃣ **आलिमों की जिम्मेदारी**: कई बार कुछ आलिम सवालों का जवाब देने की बजाय सवाल करने वाले को डांटते हैं या उसके ईमान पर सवाल उठाते हैं। लेकिन यह आयत ठीक इसके उलट सिखाती है। अगर हजरत इब्राहिम जैसे बड़े पैगंबर सवाल पूछ सकते हैं, तो आम मुसलमान क्यों नहीं? आलिमों का फर्ज है कि वे सब्र और इल्म के साथ जवाब दें, जैसे पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने सहाबा के सवालों का जवाब देते थे। मिसाल के तौर पर, एक सहाबी ने पूछा था, "क्या हमारी दुआएं कबूल होती हैं?" और पैगंबर ने बड़े प्यार से जवाब दिया। अगर कोई आलिम जवाब न दे पाए, तो यह उसकी कमी हो सकती है, न कि सवाल करने वाले की।
4️⃣ **ईमान और इत्मिनान में फर्क**: तफसीर मआरिफुल कुरान में लिखा है कि ईमान अनदेखे पर यकीन करना है, लेकिन "इत्मिनान-ए-कल्ब" (दिल की तसल्ली) उससे ऊंचा दर्जा है। इब्राहिम का ईमान तो पहले से था, लेकिन उन्होंने अनुभव के जरिए और ज्यादा यकीन चाहा। आज अगर हम कुरान की किसी आयत या हदीस की व्याख्या पर सवाल करते हैं, तो यह ईमान की कमी नहीं, बल्कि समझ को गहरा करने की कोशिश है।
5️⃣ **अल्लाह की कुदरत**: आयत का अंत इस बात पर जोर देता है कि "अल्लाह गालिब और हकीम है।" यानी हर सवाल का जवाब और हर शक का हल अल्लाह की हिकमत और कुदरत में है। हमें बस सही नीयत से सवाल पूछने और जवाब तलाश करने की जरूरत है।
# # # आज के दौर में क्या करें?
- अगर आपके मन में कुरान या हदीस को लेकर सवाल है, तो उसे दबाएं नहीं। सम्मान के साथ, सही नीयत से आलिमों से पूछें।
- अगर कोई आलिम जवाब देने की बजाय आपका ईमान पर सवाल उठाए, तो निराश न हों। और आलिमों से बात करें, कुरान और हदीस की किताबें (जैसे तफसीर इब्न कसीर, तफसीर मआरिफुल कुरान) पढ़ें।
- याद रखें: सवाल पूछना आपके ईमान को कमजोर नहीं करता, बल्कि उसे मजबूत कर सकता है, जैसे हजरत इब्राहिम का सवाल उनके यकीन को और बढ़ा गया।
💡 *तो आइए, अपने सवालों को सम्मान के साथ पूछें, जवाब तलाश करें, और अपने ईमान को और मजबूत करें।* अगर आपके मन में इस आयत या किसी और आयत से जुड़ा सवाल है, तो कमेंट में जरूर बताएं। हम मिलकर जवाब तलाश करेंगे, इंशाअल्लाह।
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